- बेशकीमती हीरो के लिए देश और दुनिया में विख्यात मध्यप्रदेश का पन्ना जिला जिसे समृद्धि के शिखर पर होना चाहिए वह अत्यधिक पिछड़ा और फटेहाल है। यहां की खदानों में यदा-कदा जिन्हें हीरा मिलता है उनकी कहानी तो चर्चित होती है, लेकिन इन खदानों में हीरों की तलाश करके बर्बाद हुए परिवारों की कहानी कोई नहीं जानता।
कल्याणपुर गांव के पास पटी बजरिया हीरा खदान क्षेत्र का नजारा, यहां अपनी किस्मत चमकाने सैकड़ों लोग करते हैं हीरों की तलाश। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना ( मध्यप्रदेश )। हरे-भरे जंगल के नीचे जमीन में हीरों के भंडार को लेकर इन दिनों मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले का बक्सवाहा जंगल चर्चा में है। छतरपुर के पड़ोस में ही पन्ना जिला है, जो हीरा खदानों के लिए जाना जाता है। यहां की धरती में भी हीरों का अकूत भंडार है, जिसका उत्खनन तकरीबन 300 सालों से किया जा रहा है। इस लिहाज से पन्ना जिले की रतनगर्भा धरती में निवास करने वाले लोगों को समृद्धि के शिखर पर होना चाहिए था। लेकिन यहां के हालात व हकीकत ठीक उलट है। भीषण गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, पलायन और सिलिकोसिस जैसी जानलेवा बीमारी इस जिले के गरीब आदिवासियों व मजदूरों की नियति बन चुकी है। पन्ना में हीरों की चमकीली दुनिया का यह सच क्या झकझोरने वाला नहीं है ? जैव विविधता से परिपूर्ण बक्सवाहा के समृद्ध जंगल को उजाड़ कर वहां हीरा खदान शुरू करने से पूर्व क्या पन्ना जिले के हालात पर गौर करना व इससे सबक लेना जरूरी नहीं है ?
हीरा खदान में जिंदगी खराब हो गई, बहुत पापी काम है यह। बब्बू गोंड़ 60 वर्ष निवासी कल्याणपुर ने बताया कि कई साल तक उन्होंने हीरा खदान लगाई, लेकिन हीरा मिलना तो दूर देखने तक को नहीं मिला। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित कल्याणपुर गांव में अधिसंख्य आबादी आदिवासियों की है। इस गांव के पास ही पटी बजरिया हीरा खदान क्षेत्र है, जहां अपनी किस्मत चमकाने हीरों की तलाश में दूर-दूर से लोग आते हैं। मजे की बात तो यह है कि जिस गांव में हीरा की यह खदान है जहां सैकड़ों लोग खदान खोदने आते हैं, उस गांव के लोग गरीबी में अपना जीवन बसर कर रहे हैं। हीरों की चमक इस गांव में कहीं भी नजर नहीं आती। गांव के आदिवासी हीरा खदान में या जहां काम मिला मजदूरी करते हैं तथा महिलाएं जंगल से लकड़ी लाकर शहर में जाकर बेंचती हैं। इसी से इन गरीब आदिवासियों का गुजारा चलता है।
कल्याणपुर गांव का बब्बू गोंड़ जिसने कई साल खदान लगाई, लेकिन हीरा नहीं मिला। हीरों की धरती में फटेहाल जीवन जीने को मजबूर। |
बीते रोज हम रिमझिम बारिश के बीच जब कल्याणपुर (पटी बजरिया) हीरा खदान क्षेत्र में पहुँचे, तो गांव में अपने घर के सामने बब्बू गोंड़ बैठे हुए थे। हम वहां रुके और बारिश से मोबाइल को बचाने के लिए उनसे एक छोटी पॉलीथिन की पन्नी ली। इसी दौरान उन्होंने हीरा खदान खोदने का अपना कटु अनुभव हमसे साझा किया। बब्बू गोंड़ के घर से सीधे हम खदान क्षेत्र में पहुंचे तो वहां का नजारा देख हैरान रह गये। जहां तक नजर जाती हर तरफ पत्थर की गोल बटैयों के ढेर जिन्हें ग्रामवासी लुढयाई खोदारा बोलते हैं, दिख रही थी। इलाके में आसपास यहां आज भी वन क्षेत्र है, इसलिए कभी न कभी इस खदान क्षेत्र में भी जंगल रहा होगा। लेकिन अब यहां जंगल तो क्या झाडियां तक नहीं बचीं सिर्फ बटैयों के ढ़ेर हैं।
हीरा खदान क्षेत्र जहां खुदाई के बाद अब सिर्फ पत्थर की बटैंया नजर आती हैं। |
पत्थर के इन ढेरों में ही हीरों की तलाश में आए हुए लोग झोपड़ी बनाकर रहते हैं। बरसाती से कवर अपनी झोपड़ी के भीतर बैठे हल्के विश्वकर्मा 37 वर्ष निवासी चंदला जिला छतरपुर ने बताया कि पटी बजरिया हीरा खदान का बहुत नाम सुना था कि यहां हीरा मिलता है, इसलिए आए हैं। अब ऊपर वाले की मेहरबानी होगी तो हमारी भी किस्मत चमक जाएगी। इसके पहले कभी हीरा खदान लगाई है, यह पूछे जाने पर आपने बताया कि 17-18 वर्ष पहले खिन्नी घाट में खदान लगाई थी लेकिन वहां कुछ नहीं मिला। इनके ठीक बाजू में शंकर लाल द्विवेदी 60 वर्ष की झोपड़ी है, ये भी चंदला छतरपुर से यहां पर हीरों की तलाश में आए हैं। इसके पहले भी इन्होंने खदान लगाई है लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया फलस्वरूप हीरों की तलाश जारी है।
हीरा खदान ने कर्ज में डुबाया, बिक गई जमीन
खदान से निकली हीरा धारित चाल (ककरु) की मिट्टी धोते हुए मजदूर। |
हीरा खदान लगाने और पलक झपकते रंक से राजा बनने की लालसा या कहें नशा कितना खतरनाक और मुसीबत में डालने वाला हो सकता है, इसका जीता जागता उदाहरण पास के ही गांव जनकपुर के निवासी 70 वर्षीय खेलाईं साहू हैं। इनकी कहानी हीरों की चमकीली दुनिया के स्याह पक्ष को बखूबी उजागर करती है। इनके बारे में जब हमें पता चला तो पटी बजरिया हीरा खदान क्षेत्र से सीधे हम जनकपुर पहुंचे। हमसे चर्चा करते हुए खेलाईं साहू ने बताया कि उन्होंने 20-22 वर्ष की उम्र में ही खदान लगाना शुरू कर दिया था और पूरे 50 साल तक खदान लगाई, लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा। वे आगे बताते हैं कि हीरा पाने के लालच में उन्होंने अपनी 4 एकड़ खेती की जमीन भी बेच डाली फिर भी हीरा नहीं मिला। उन्हें सिर्फ तीन छोटी रेजें ( हीरे के कंण ) मिली थीं, जो डेढ़ सौ रुपये, तेरह सौ रुपये तथा 240 रुपये में बिकी थीं।
इतना सब होने के बाद भी खेलाईं साहू नहीं चेते और अपनी किस्मत चमकाने के लिए हीरों की तलाश को जारी रखा। इसका परिणाम यह हुआ कि वे कर्ज में डूबते चले गए, उनके ऊपर 10 लाख रुपये का कर्ज हो गया। वे बताते हैं कि इस कर्ज को चुकाने के लिए उन्होंने मुख्य सड़क मार्ग के किनारे स्थित अपनी पैतृक जमीन भी 16 लाख रुपए में बेच दी, जिसकी मौजूदा समय कीमत लगभग एक करोड़ है। श्री साहू बताते हैं कि हीरा पाने की लालच में वे इस कदर अंधे थे कि उन्हें हर समय सिर्फ हीरा ही दिखता था। उन्हें यही लगता था कि शायद अब मिल जाये। आपने बताया कि उन्होंने गजरी, जनकपुर, पुखरी, हर्रा चौकी, बरम की खुईयां, नरेंद्रपुर, पटी बजरिया, सरकोहा व रुंज नदी में हीरा खदान लगाई और कर्ज चुकाने के बाद जो पैसा बचा था उसे भी खदानों में झोंक दिया।
अब उनके पास कुछ भी नहीं बचा, बुढ़ापे में पति-पत्नी वृद्धावस्था पेंशन के सहारे जिंदगी गुजार रहे हैं। खेलाईं ने बताया कि उनके चार लड़के व चार लड़कियां हैं, सभी की शादी हो चुकी है सिर्फ एक लड़के की नहीं हुई जो 22 वर्ष का है। सभी लड़के अलग रहते हैं कोई मदद नहीं करता। अब बुढ़ापे में अपनी की गई गलतियों को याद करके पछताता हूँ।
70 किलोमीटर क्षेत्र में है हीरा धारित पट्टी का विस्तार
हीरा खदान क्षेत्र में इस तरह झोपड़ी बनाकर रहते हैं, हीरों की तलाश में बाहर से आने वाले लोग। |
पन्ना जिले में हीरा धारित पट्टी का विस्तार लगभग 70 किलोमीटर क्षेत्र में है, जो मझगवां से लेकर पहाड़ीखेरा तक फैली हुई है। हीरे के प्राथमिक स्रोतों में मझगवां किंबरलाइट पाइप एवं हिनौता किंबरलाइट पाइप पन्ना जिले में ही स्थित है। यह हीरा उत्पादन का प्राथमिक स्रोत है जो पन्ना शहर के दक्षिण-पश्चिम में 20 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां अत्याधुनिक संयंत्र के माध्यम से हीरों के उत्खनन का कार्य सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) द्वारा संचालित किया जाता रहा है। मौजूदा समय उत्खनन हेतु पर्यावरण की अनुमति अवधि समाप्त हो जाने के कारण यह खदान 1 जनवरी 21 से बंद है, जिसे पुन: शुरू कराने के लिए प्रयास हो रहे हैं।
दो सर्किल में दिए जा रहे उथली हीरा खदानों के पट्टे
पन्ना स्थित हीरा कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक वर्तमान में पन्ना और इटवां सर्किल में निजी और शासकीय भूमि में हीरा खदानों के पट्टे जारी किए जा रहे हैं। पन्ना सर्किल में दहलान चौकी, सकरिया चौपड़ा, सरकोहा, कृष्णा कल्याणपुर (पटी), राधापुर व जनकपुर। जबकि इटवां सर्किल में हजारा मुड्ढा, किटहा, रमखिरिया, बगीचा, हजारा, और भरका आदि क्षेत्र शामिल हैं। हीरा अधिकारी रवि पटेल ने बताया कि वर्ष 2020 में 633 उत्खनन पट्टे बनाए गए थे, जबकि वर्ष 2021 में जुलाई माह तक 542 पट्टे बनाए जा चुके हैं। हीरा खदान पट्टा के लिए इच्छुक व्यक्ति को जिला हीरा कार्यालय में दो सौ रुपये के चालान के साथ आवेदन करना होता है। तदुपरांत चाहे गए क्षेत्र में 8 बाय 8 मीटर क्षेत्र में उत्खनन पट्टा प्रदान कर दिया जाता है। खदान में हीरा प्राप्त होने पर नियमानुसार उसे हीरा कार्यालय में जमा किए जाने का प्रावधान है। इन हीरों की खुली नीलामी होती है, हीरा बिकने पर निर्धारित खनिज राजस्व काटकर शेष राशि संबंधित व्यक्ति को प्रदान की जाती है।
सैकड़ों की संख्या में चल रही हैं अवैध खदानें
बृहस्पति कुंड का वह वन क्षेत्र जहां पर सैकड़ों की संख्या में हीरा की अवैध खदानें चलती हैं। |
वन संरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद से अधिकांश हीरा धारित क्षेत्र वन सीमा के भीतर आ जाने के कारण वहां पर वैधानिक रूप से हीरों का उत्खनन बंद हो गया है। चूंकि हीरों की उपलब्धता वाली शासकीय राजस्व भूमि बहुत ही कम है, इसलिए निजी पट्टे की भूमि व वन क्षेत्र में ही अधिकांश खदानें चलती हैं। वन व पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले समाजसेवी इंद्रभान सिंह बुंदेला बताते हैं कि हीरा धारित पट्टी से होकर प्रवाहित होने वाली तीन नदियों किलकिला, रुंज व बाघिन नदी के प्रवाह क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में अवैध हीरा खदानें चलती हैं। जिससे जंगल उजडऩे के साथ-साथ पर्यावरण को भी भारी नुकसान हो रहा है।
श्री बुंदेला बताते हैं कि वन क्षेत्र में चलने वाली अवैध हीरा खदानों को रोकने के लिए वन अमले द्वारा जब दबिश दी जाती है, तो टकराव के हालात बनते हैं। बीते साल उत्तर वन मंडल पन्ना अंतर्गत बिश्रमगंज वन परिक्षेत्र के रहुनिया बीट में चल रही अवैध हीरा खदान को रोकने जब वन अमला मौके पर पहुंचा, तो खनन माफियाओं ने वन अमले पर हमला बोल दिया था। जिसमें डिप्टी रेंजर सहित चार वनरक्षक घायल हो गए थे। अवैध खदानों के मामले में बृजपुर क्षेत्र सबसे आगे है। यहां बृहस्पति कुंड के प्रवाह क्षेत्र में बड़ी संख्या में अवैध खदानें संचालित होती हैं। यह इलाका अत्यधिक दुर्गम व सैकड़ों फिट की गहराई में है। यहीं पर बाघिन नदी गिरती है, जिससे बेहद मनोरम प्रपात निर्मित होता है। लेकिन अवैध उत्खनन से यहां का नैसर्गिक सौंदर्य उजड़ रहा है।
चमकदार हीरों का चलता है काला कारोबार
पन्ना जिले की रत्नगर्भा धरती से निकलने वाले चमकदार हीरों का काला कारोबार भी धड़ल्ले से चलता है। अवैध हीरा खदानों से प्राप्त होने वाले हीरों सहित वैध खदानों के भी ज्यादातर हीरे चोरी-छिपे बेच दिए जाते हैं। जिससे शासन को जहां राजस्व की हानि होती है, वहीं हीरों से जुड़े अपराधों में भी वृद्धि होती है। हीरों के इस अवैध कारोबार पर प्रभावी अंकुश लगाने में हीरा कार्यालय नाकाम साबित हो रहा है। नाम जाहिर न करने की शर्त पर हीरा कार्यालय के एक कर्मचारी ने बताया कि विभाग में स्टाफ ना के बराबर हैं। जिससे हीरा खदानों की मॉनिटरिंग नहीं हो पाती है।
खदानों पर नजर रखकर प्राप्त हीरों को जमा करवाने में अहम भूमिका निभाने वाले हवलदारों की संख्या पूर्व में 32 से 34 हुआ करती थी, जो अब सिर्फ तीन है। अगले महीने एक हवलदार रिटायर हो जाएगा, फलस्वरुप सिर्फ 2 बचेंगे। अब दो हवलदार 5 सौ से भी अधिक खदानों पर कैसे नजर रखेंगे ? हीरा कार्यालय में सिर्फ एक बाबू है, जबकि हीरा इंस्पेक्टर एक भी नहीं हैं। तीन हीरा इंस्पेक्टर थे जो रिटायर हो चुके हैं।
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