Friday, August 27, 2021

बड़ेगाँव-बिरवाही , कूकुर मरगा आबा जाही

  •   दोहरी मानसिकता में जीने वालों के लिए यह कहानी एक नसीहत                      

                   


विन्ध्य प्रदेश में अनेक कहावतें हैं। यूँ तो यह कहावत सतना जिले की सीमा से जुड़े हुए पन्ना जिला वाले भू भाग की है। पर इन कहावतों को किसी भौगोलिक सीमा में बांध कर नहीं रखा जा सकता। यह बगैर हाथ पाँव एक गाँव से दूसरे गांव, एक जिले से दूसरा जिला होती इसी तरह अंनत यात्रा करती रहती हैं। यही कारण है कि यह बघेलखण्ड बुन्देलखण्ड दोनो क्षेत्रों में एक जैसी प्रचलित है।

बड़ागाँव जहॉ देवेंद्र नगर के थोड़ा आगे है वहीं बिरबाही  देवेद्रनगर के दक्षिण पश्चिम के कोने में ककरहटी के समीप एक छोटा सा गाँव है। इसकी अंतरकथा सिर्फ इतनी है कि एक कुत्ता दोनों गाँव घूमता रहा पर उसे भोजन कहीं नसीब नहीं हुआ। किन्तु उसकी मनोदशा स्थिर रह कर काम न करने वालों को शिक्षा बहुत बड़ी दे जाती है।

अक्सर देखा जाता है कि आबारा कुत्ते कभी - कभी एक गाँव से दूसरे गांव भी पहुच जाते हैं। कथा के अनुसार एक कुत्ता ने अनुभव किया कि " बिरबाही गाँव में भागवत कथा के भंडारे की गहमा-गहमी तो है, पर उसकी पंगत 4 बजे शाम के पहले तो उठेगी नहीं ? किन्तु समीपी बड़ेगाँव में झमा झम बैंड बजने की आवाज आ रही थी। लगता है वहां बरात आई है ?

हो सकता है वहाँ की पंगत उठने वाली होगी इसलिए, क्यों न बड़ेगाँव की बारात की जूठी पत्तलें पहले खाई जाए ?" उसने दौड़ लगाई और कुछ समय बाद ही बड़ागाँव पहुच गया। "पर यह क्या ? यहां तो अभी पंगत का ऊस बॉस ही नही है ? इससे पहले तो बिरबाही की भंडारे की पंगत ही उठ जायगी, इसलिए यहाँ इन्तजार करना ब्यर्थ है। "

कुत्ता पुन: दौड़ लगाता वापस आ गया  पर यहाँ आकर देखा कि बिरबाही गाँव की पंगत तो उठ चुकी थी व गाँव के सारे आबारा कुत्ते जूठी फेंकी गई पत्तलों का भोजन चट कर चुके थे। कुत्ते को भारी पष्चाताप हुआ कि वह ब्यर्थ में क्यों बड़ागाँव गया ?  मुझसे तो अच्छे यह मरियल और खजहे कुत्ते रहे, जो यहीं पत्तलों के इंतजार में बैठे रहे ?

पर क्या करुं ? भूख के मारे बुरा हाल है। और यहां की पूड़ी खीर आदि तो यह खजहे मरियल कुत्ते ही चट कर गये इसलिए अब खाना तो बड़ेगाँव में ही मिलेगा।"

वह फिर वहां से बड़ेगाँव की ओर भगा, पर एक कोस का रास्ता तय करते उसे देर हो गई। अबकी बार भूख के मारे तेज दौड़ भी नहीं सकता था। किन्तु जब बड़ागाँव पहुचा तब तक पंगत उठ चुकने के कारण वहां के कुत्ते भी पत्तलों का दाना- दाना चाट चुके थे। और कुत्ते की असफल दौड़ धूप पर कहावत बन गई  कि---

बड़ेगाँव बिरवाही , कूकुर मरगा आबा जाही।

इस तरह दोहरी मानसिकता में जीने वालों के लिए यह कथा एक अच्छी  नसीहत है।

@बाबूलाल दाहिया

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