आंवले की इस पतली टहनी में लगा था मधुमक्खी का छत्ता। |
।। बाबूलाल दाहिया ।।
यह हमारे आँगन में लगा आंवला का पेड़ है। इसकी एक पतली सी डाल में पिछले वर्ष मधुमक्खियों ने छोटा सा छत्ता बनाया था। उस समय उस समूह में बहुत कम मक्खियां थीं। उसी आंगन में समर्सिबल पम्प लगा था एवं पीछे एक बगिया भी थी, जिसके फूलों का मधु मक्खियों ने भरपूर लाभ उठाया और देखते ही देखते उनका बहुत बड़ा छत्ता हो गया।
यदि यह छत्ता किसी दूसरे के आंगन में होता तो पिछले 11 माह में वह दो तीन बार उस छत्ते से मधु रस निकाल चुका होता। किन्तु जैव विविधता संरक्षक हमारा परिवार मधु मक्खियों को अपने आंवला में छत्ता बनाकर रहता देख ही प्रसन्न होता रहा। और उनसे जरा भी कभी छेड़छाड़ नहीं की। लेकिन अगस्त के अंतिम सप्ताह में मधु मक्खियां अपने अंडे बच्चे जिला पेड़ और छत्ता दोनो को छोड़ कर चली गईं । पहले तो हम इसका कारण नहीं समझ पाए कि आखिर मधु मक्खी हमसे क्यों रूठ गईं ? पर इन दिनों जब आंवला की फल से लदी डाल झुक कर टूटने की स्थिति में हैं तो उनकी दूरदर्षिता हमारे समझ मे आ गई।
टहनी में फल आने से पहले ही मधुमक्खियां छूमंतर हो गईं। |
दरअसल आवले में फूल तो मार्च में आते हैं, पर झरबेरी जैसे छोटे- छोटे फल अगस्त के प्रथम सप्ताह में दिखते हैं। जो मध्य सितम्बर में कुछ बड़े हो जाते हैं। किन्तु इन मधुमक्खियों की समझदारी तो देखिए कि जो बात हमारे समझ में आज आ रही हैं, उसे वह एक माह पहले ही भाप गईं थी।
क्योंकि इस वर्ष आंवला में इतने फल आये हैं कि डाल की उस टहनी में भी आठ दश फल झूल रहे हैं। जिस पतली टहनी में उनका छत्ता लगा हुआ था।
बस यही तो उनकी समझदारी है कि जो मधु मक्खी जून में अंधड़ तूफान में भी टहनी छोड़कर नहीं भागी थीं, वह आंवले के अत्यधिक फल से डाल टूटने की सम्भावना से अंतिम अगस्त में ही चली गईं। हमें विश्वास है कि आगामी फरवरी तक वह अवश्य लौट कर पुन: आ जाएगीं।
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