Saturday, October 23, 2021

आदिवासियों का एक उपेक्षित समुदाय भुमिया : बाबूलाल दाहिया

आदिवासी समुदाय के व्यक्ति से चर्चा करते हुए बाबूलाल दाहिया। 

हमारे मध्यप्रदेश में आदिवासियों की 7 प्रमुख जातियॉ एवं 34 उप जातियॉ हैं। उन 7 में से गोंड़ ,भील, बैगा, भारिया और सहरिया जहां द्रविण मूल के माने जाते हैं, वहीँ कोल और कोरकू आष्ट्रिक मुंडा समूह के। किन्तु कोलो में उनके 7 गोत्र हैं एवं मवासी, भुमिया तथा खैरवार उनकी ऐसी उपजाति हैं जो कोलो से इतर अपना स्वतंत्र अस्त्तित्व बनाये हुए हैं।

कोल के अन्य गोत्र  रउतेल, कठौतिहा ,कथरिहा, ठकुरिया आदि जहां रीवा, सतना, सीधी, शहडोल, उमरिया, कटनी आदि जिलों में अधिक पाए जाते हैं, वहीं  खैरवार सीधी, छतरपुर में और मवासी यूपी से जुड़े सतना के मझगवां तहसील में। किन्तु भुमिया पन्ना ,कटनी व जबलपुर जिले में ही निवासरत हैं। सतना जिले में उनकी संख्या बहुत कम है।

पिपरिया गाँव के प्रह्लाद का कथन है कि भुमिया का आशय कभी उस झाड़ फूक करने वाले पण्डा गुनिया से था, जो उसी से अपनी आजीविका चलाता था । किन्तु कालांतर में संख्या बढ़ी तो वह कोलों के उप जाति का रूप ग्रहण कर लिया। लेकिन संस्कृतिक रूप से कोलो से भिन्न आज भी नही है। उसी तरह से विवाह, जातीय गीत और रोटी भाजी य कोदई भाजी का दण्ड लेने वाले महतो देमान एवं जातीय पंचायते।

भुमिया लोगों के भी 7 गोत्र हैं किन्तु उनके नाम बनबसिया, चन्देल,कर्चुली, राठौर,समरबा, कोपहा ,बम्हनिया है। कोलो के जिस प्रकार मृत्यु दान लेने वाले कोल मंगन होते हैं उसी प्रकार भुमिया लोगो के यहां मृत्यु दान लेने वाले भी होते हैं जो "बरितिया" कहलाते हैं। यह दान में मृतक के कपड़े और उसके हाथ में  रहने वाली कुल्हाड़ी ले जाते हैं। बाकी यदि सम्पन्न घर हुआ तो बकरी और बर्तन की मांग भी करते हैं।

आदिवासी कोई हो उसकी कमोवेश एक ही जीवन शैली है कि धरती के सीमित संसाधनों का उपयोग। यही कारण है कि उनकी संस्कृति में जीव जगत के लाखों साल बने रहने की अवधारणा आज भी छिपी है।अस्तु भुमिया समुदाय के पुरखों ने भी उतनी ही जमीन अपने कब्जे में रखी जितनी वे खोद खन कर उसमें खेती कर सकें। बाकी महुआ, तेंदू, अचार जैसी बनोपज ही उनकी अजीविका के साधन थे।

किन्तु आज जिस तरह जंगल समाप्त हो रहे हैं और जमीन भी उनने अधिक नहीं बनाया, तो इस अर्थ प्रधान युग में उनके सामने भी उत्तरोत्तर जीवन यापन का संकट गहराता जा रहा है।

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