डॉ. राहुल बनर्जी : पन्ना का जीनियस जिसने आइंस्टीन के फार्मूले में सुधार किया। |
जनवरी 1980 में दो विदेशी वैज्ञानिक ( एक जर्मन व एक ब्रिटिश) कुछ उपकरणों को लादे हुए रीवा इंजीनियरिंग कालेज में आये और पूछ रहे थे कि हमे प्रोफेसर राहुल बनर्जी से मिलना है । प्रिंसिपल साहब बोले इस नाम का कोई प्रोफेसर हमारे कालेज में नही है। उन वैज्ञानिकों ने विदेशी जर्नल में छपे राहुल बनर्जी के पेपर्स दिखाए जिसमे उनका पता गवर्नमेंट इंजिनीयरिंग कालेज रीवा लिखा था ।
प्रिंसिपल साहब ने खोज बीन की तो पता चला कि ये फोर्थ ईयर B.E. इलेक्ट्रिकल के स्टूडेंट है । होस्टल में रहते तो हैं लेकिन अधिकतर समय किसी पेड़ के नीचे बैठे या लाइब्रेरी में लिखते पाए जाते है । टीचर्स की निगाह में ये क्लास अटेंड न करने वाले 'बेकार' स्टूडेंट हैं । प्रिंसीपल साहब ने राहुल बनर्जी को खोजवाया और तब पता चला कि ये कोई साधारण छात्र नही बल्कि विश्व स्तर के वैज्ञानिक हैं । अंग्रेज व जर्मनी के वैज्ञानिक इनके लिए वे उपकरण लाये थे, जिनके साथ इनको 16 फरवरी 1980 पूर्ण सूर्य ग्रहण के दिन दक्षिण भारत मे जा कर प्रयोग करने थे ।
फ़्लैश बैक --
अस्सी के दशक में हम लोग पन्ना के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे । हमसे सीनियर छात्र थे राहुल भैया उर्फ आज के Dr. Rahul Banerjee. राहुल भैया का सिलेक्शन इंजीनियरिंग कालेज रीवा में हो गया । ये रीवा चले गए , इसके कुछ साल बाद हम जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज आ गए। कालेज की छुट्टियों में जब हम पन्ना आते तब टिकुरिया मोहल्ला में इनके घर पर राहुल भैया से मिलना होता। इनसे विज्ञान की तमाम बाते जैसे क्वासर पल्सर क्वार्क प्लाज्मा आदि सुन कर हम अचंभित हो जाते थे । इनके पिताजी सरकारी स्कूल में इंग्लिश के टीचर थे ।
छात्र जीवन मे राहुल बनर्जी ने बहुत खोजे की थी । इन्होंने मुझे अपनी शोध कॉपी (researches in brain) दिखाई थी , जिसमें हाथ से बने रंग बिरंगे अनेक चित्र व गणित की लंबी लंबी डेरिवेशन थी । सब कुछ हमारे दिमाग से ऊपर का मैटर था । थोड़ा थोड़ा यह समझ आया कि राहुल भैया ने ओपेनलूप और क्लोजलूप रेडियो एक्टिविटी की खोज की है । और सबसे महत्वपूर्ण यह कि इन्होंने आइंस्टीन के फार्मूले E=MC^2 में अपेक्षित सुधार किया , कि किसी विशेष परिस्थिति में यह आप्लिकेबल नही होगा तब इसमे एक कांस्टेन्ट जोड़ा जाना चाहिए जिसे राहुल बनर्जी ने positronium constant नाम दिया । छात्र जीवन में इनकी अनेकानेक रिसर्च विदेशी जर्नलों में प्रकाशित हो चुकी थी ।
B.E. की डिग्री होने से पहले ही अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने राहुल बैनर्जी को Ph.D.की मानद उपाधि से अलंकृत कर दिया। यह हमारे देश का पहला ऐसा केस था , जहां किसी छात्र ने ग्रेजुएशन से पहले पीएचडी हासिल कर ली हो । छात्र जीवन मे ही उनकी एक पुस्तक खन्ना पब्लिशर दिल्ली से प्रकाशित हुई थी - spacecraft and computer memories।
राहुल भैया थोड़ा मुश्किल से B.E.पास हुए क्योकि ये अपनी रिसर्च में इतने डूबे रहते कि कोर्स पढ़ने में टाइम नही दे पाते थे । इनके पास विश्व के अनेक देशों से वैज्ञानिक के पद पर कार्य करने के आफर थे , लेकिन उनकी बात आज भी मुझे याद आती है, जो 1987 में पन्ना से भोपाल साथ मे की गई बस यात्रा में उन्होंने कही थी - अशोक मैं नौकरी सिर्फ भारत मे ही करूंगा, चाहे मुझे यहां कोई सुविधा न मिले, क्योकि देश को मेरी जरूरत है। सुविधाओं की खातिर मैं विदेश में कभी नौकरी नही करूंगा ।
देशभक्त राहुल भैया आज 35 साल बाद भी विदेश में सैटल नही हुए जबकि अनेकानेक देशों से जॉब आफर उनको लगातार मिलते रहे । हालांकि अनेक विदेशी विश्विद्यालयो और संस्थानों में लेक्चर देने जाते रहे। 90 के दशक की शुरुआत में जब कंप्यूटर साइंस नए विषय के रूप में देश मे पढ़ाया जाने लगा उन्होंने artificial intelligence को रिसर्च के लिए चुना और M. Tech, PhD करके BITS पिलानी में सहायक प्रोफ़ेसर नियुक्त हुए और कुछ वर्षों बाद कंप्यूटर साइंस विभाग के HOD और फिर BITS पिलानी में डीन हुए।
वर्तमान में पन्ना के राहुल बैनर्जी जयपुर के LNM institute of information technology के Director पद को सुशोभित कर रहे हैं। 'genius' शब्द भी इनकी प्रतिभा के आगे छोटा है।
मेरे छात्र जीवन के प्रेरणा स्त्रोत , अत्यंत सरल स्वभाव , सादगी , अभिमान रहित , सदैव खुशमिजाज , चॉकलेट प्रेमी, स्वप्रचार से दूर, किंतु ज्ञान के महासागर आदरणीय राहुल भैया को प्रणाम ।
(डॉ. अशोक कुमार तिवारी की फेसबुक वॉल से साभार)
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