Wednesday, March 30, 2022

गुजरात में नदी जोड़ परियोजना पर रोक, तो केन- बेतवा पर क्यों नहीं?

  •  आगामी गुजरात चुनाव में आदिवासी वोट बैंक खिसकने के डर का असर
  •  काश,वन्य प्राणियों का भी होता अपना वोट बैंक तो बच जाता बाघों का घर


केन नदी को निहारते वनराज का बांध बनने से डूब जायेगा आशियाना। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। आदिवासियों के आक्रामक रुख व विरोध के चलते सरकार ने गुजरात में पार-तापी-नर्मदा नदी जोडऩे की परियोजना को स्थगित करने का फैसला किया है। गुजरात सरकार के सिंचाई मंत्री ने मंगलवार को विधानसभा में जानकारी देते हुए बताया कि इस परियोजना से आदिवासियों के विस्थापन की आशंका है और राज्य सरकार आदिवासियों को उनकी पुश्तैनी जमीन से विस्थापित नहीं करना चाहती है। जबकि वास्तविकता यह है कि आदिवासी शुरू से ही इस परियोजना का विरोध करते आ रहे हैं।

पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश का कहना है कि सरकार ने आदिवासियों के विरोध व आगामी गुजरात चुनाव को देखते हुए नदी जोड़ो परियोजना पर रोक लगाई है। लेकिन मध्यप्रदेश में विनाशकारी केन- बेतवा लिंक परियोजना जारी है। मालूम हो कि केन- बेतवा लिंक परियोजना से पन्ना टाइगर रिजर्व का बड़ा हिस्सा डूब जाएगा, जिससे यहां स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे 70 से भी अधिक बाघों सहित विभिन्न प्रजाति के जीवों की जिंदगी संकट में पड़ जाएगी। इतना ही नहीं इस परियोजना के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का वह खूबसूरत जंगल जो सदियों से हरा-भरा और वनाच्छादित है, वह भी नष्ट हो जाएगा। इससे पर्यावरण और इकोसिस्टम को कितनी क्षति होगी इसका अनुमान लगा पाना भी कठिन है। इतना ही नहीं केन नदी का नैसर्गिक प्रवाह थमने से डाउनस्ट्रीम के गांवों में जल संकट के साथ-साथ अनेकों तरह की समस्याएं उत्पन्न होंगी।


चुनावी राजनीति की समझ रखने वाले जानकारों का कहना है कि गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। यहां विधानसभा में 27 आदिवासी सीटें हैं। नर्मदा-पार-तापी परियोजना आदिवासी बहुल सीटों से होकर गुजरती है। अगर यह परियोजना जारी रहती है तो राज्य में सत्ताधारी दल को आगामी चुनाव में भारी नुकसान हो सकता है। यही वजह है कि अब राज्य सरकार इस परियोजना को रोकने की बात कह रही है। जाहिर है कि वोट बैंक की राजनीति तथा आदिवासियों के आक्रामक विरोध को देखते हुए सरकार परियोजना पर रोक लगाने को मजबूर हुई है। इसके उलट केन-बेतवा लिंक परियोजना को लेकर इस तरह का विरोध नहीं है। पन्ना टाइगर रिजर्व का बड़ा हिस्सा डूबने व पन्ना से लेकर उत्तर प्रदेश के बांदा तक केन किनारे स्थित ग्रामों में आने वाले संकट के बावजूद इस इलाके के लोग शांत हैं। केन किनारे स्थित ग्रामों के ज्यादातर लोगों को इस परियोजना के बारे में जानकारी तक नहीं है। जो छुटपुट विरोध है भी वह सरकार द्वारा केन-बेतवा लिंक परियोजना का किए जा रहे लाभकारी प्रचार के आगे सुनाई भी नहीं दे रहा।

काश! बाघों और जंगल में रहने वाले वन्य प्राणियों, पक्षियों और पेड़-पौधों का भी अपना वोट बैंक होता? तो वे भी गुजरात के आदिवासियों की तरह अपने वजूद को बचाने के लिए विरोध प्रदर्शन कर पाते। यदि ऐसा संभव होता तो कोई भी सरकार बाघों के घर को डुबाने व जंगल को तबाह करने की हिम्मत नहीं करती। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है, वन्यजीवों के वजूद की किसी को चिंता नहीं। विनाशकारी विकास के पक्षधर शक्तिशाली हैं, उनके आगे मूक और निरीह वन्यजीवों की कौन फिक्र करता है?

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