Sunday, April 17, 2022

केक काटकर अनूठे अंदाज में मनाया गया बाघ का जन्मदिन

  •  मध्यप्रदेश के पन्ना में है जंगली बाघ का जन्मदिन मनाने की परंपरा
  •  बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को दिया था इस बाघ शावक को जन्म 
  • गरिमामय समारोह में "अवर टाइगर रिटर्न" पुस्तक का भी हुआ विमोचन

पन्ना का बाघ पी-111 जिसका हर साल मनाया जाता है जन्मदिन। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बाघ पुनर्स्थापना के लिए पूरी दुनिया में एक मिसाल बन चुके मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में 12 वर्ष पूर्व जंगली बाघ का जन्मदिन मनाने की अनूठी परंपरा शुरू हुई थी। जिसका निर्वहन पन्नावासी बड़े ही उत्साह के साथ करते आ रहे हैं। जैसा कि सर्वविदित है कि वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था, उस समय यहां पर बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने की मंशा से बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई। योजना के तहत बांधवगढ़ से पन्ना लाई गई बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को यहां अपनी पहली संतान को जन्म दिया, जिससे पन्ना का जंगल जो शोक गीत में तब्दील हो चुका था, वह गुलजार हो गया। कामयाबी की खुशी वाले इसी दिन की मधुर स्मृति में 16 अप्रैल को हर साल प्रथम बाघ शावक का जन्मोत्सव मनाया जाता है।

गौरतलब है कि पन्ना में जंगली बाघ का जन्मदिन मनाने की परंपरा तत्कालीन क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व आर. श्रीनिवास मूर्ति ने शुरू की थी। टाइगर मैन के नाम से प्रसिद्ध हो चुके श्री मूर्ति के अथक प्रयासों व टीम वर्क की मजबूत भावना के चलते पन्ना में बाघों का उजड़ा संसार फिर आबाद हो सका है। यहां की चमत्कारिक सफलता को देख दुनिया न सिर्फ आश्चर्यचकित हुई अपितु कई देशों ने पन्ना माडल से प्रभावित होकर उसका अनुकरण भी किया। वर्ष 2019 तक बाघ का जन्मदिन बड़े धूमधाम से एक पर्व की तरह मनाया जाता रहा। शहर के प्रमुख मार्गों से जागरूकता रैली भी निकलती रही। लेकिन कोरोना काल में जन्मोत्सव प्रतीकात्मक रूप में मनाया गया। इस वर्ष जब कोरोना संक्रमण का खतरा कम हुआ और बंदिशों से मुक्ति मिली तो बाघ का जन्मदिन श्री मूर्ति की मौजूदगी में धूमधाम से मनाया गया।

बाघ के जन्मदिन पर केक काटते डॉ. दिनेश एम पंडित साथ में राजमाता दिलहर कुमारी व श्री मूर्ति।  

हालांकि समारोह का आयोजन शासकीय तौर पर नहीं हुआ लेकिन पन्नावासियों ने अपनी सक्रिय भागीदारी से समारोह को अविस्मरणीय बना दिया। आम जनमानस में भी अब यह समझ निर्मित हुई है कि प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण करके ही पृथ्वी को विनाश से बचाया जा सकता है। हमारा वजूद भी इसी बात पर निर्भर है कि हम सह-अस्तित्व की भावना से जीना सीखें। क्योंकि कुदरत जब विनाश की पटकथा लिखती है तो कथित रूप से सुपर पावर कहे जाने वाले राष्ट्र भी बौने साबित होते हैं। कोरोना संकट इसका जीता जागता उदाहरण है।

जन्मोत्सव समारोह में शामिल रहे गणमान्य जन

 


बेहद गरिमामई माहौल में आयोजित हुए इस समारोह में पन्ना शहर के गणमान्य जन जहां शामिल हुए, वहीं कई सेवानिवृत्त वनअधिकारी जिनकी भूमिका बाघ पुनर्स्थापना में रही है, वे भी पहुंचे। समारोह में राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त वयोवृद्ध शिक्षक देवी दत्त चतुर्वेदी जी जिन्होंने स्कूली बच्चों को प्रकृति व वन्य जीवों के बारे में नेचर कैंप के माध्यम से जागरूक करने का कार्य किया, वे हुए भी शामिल हुए। इतना ही नहीं प्रणामी संप्रदाय के धर्मगुरु व ख्यातिलब्ध सर्जन डॉ. दिनेश एम पंडित, राजमाता दिलहर कुमारी व प्रतिष्ठित चिकित्सक डॉ विजय परमार की मौजूदगी समारोह में रही। गणमान्य जनों ने केक काटकर बाघ के जन्मोत्सव को यादगार बना दिया। इस मौके पर आर. श्रीनिवास मूर्ति व पियूष सेकशरिया द्वारा लिखित पुस्तक "अवर टाइगर रिटर्न" के संशोधित दूसरे संस्करण का विमोचन भी अतिथियों द्वारा किया गया। पन्ना बाघ पुनर्स्थापना के महती कार्य में किसी न किसी रूप में अपनी भूमिका निभाने वाले पन्नावासियों व वन अधिकारियों ने इस मौके पर रोचक संस्मरण भी सुनाये।

मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट बनाने में पन्ना की क्या है भूमिका ?



मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिज़र्व वर्ष 2009 में जब बाघ विहीन हो गया तो इसका असर यह हुआ कि मध्यप्रदेश के सिर से टाइगर स्टेट का ताज भी छिन गया। पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना को मिली चमत्कारिक सफलता के बाद जब यहाँ बाघों का कुनबा फिर से आबाद हुआ और इनकी तादाद तेजी से बढ़ी तो वर्ष 2018 में मध्यप्रदेश फिर टाइगर स्टेट बन गया। विदित हो कि 2018 में हुई बाघों की देशव्यापी गणना रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश 526 बाघों के साथ टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल किया। जबकि कर्नाटक 524 बाघों के साथ महज दो के अंतर से दूसरे स्थान पर रहा। जाहिर है कि पन्ना यदि आबाद न होता तो मध्यप्रदेश के टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल कर पाना मुमकिन नहीं था। 

श्री मूर्ति बताते हैं कि वर्ष 2009 में शून्य के साथ शुरू हुआ पन्ना का सफर आज उस मुकाम तक आ पहुंचा है कि पन्ना के लोग गर्व कर रहे हैं। मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिज़र्व में 60-70 बाघ हैं। जबकि 30-40 बाघ विंध्य और बुन्देलखण्ड क्षेत्र के जंगल में फैलकर वंश वृद्धि कर रहे हैं। बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत हम बाहर से कुल 7 टाइगर लाये थे लेकिन उसके बदले अभी तक हम कितने टाइगर बाहर दे चुके हैं यदि उनकी गिनती की जाय तो सभी आश्चर्य चकित होंगे। पन्ना ने जो लिया था उसे ब्याज और सूद के साथ वापस लौटा दिया है। 

भारत में हैं 2 हजार 967 से अधिक बाघ

वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय बाघ संरक्षण मंच की एक बैठक हुई थी, जिसमें विश्व के 13 टाइगर रेंज देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लिया था। इस सम्मलेन में वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था। इस लक्ष्य को भारत ने चार साल पहले ही 2018 में हासिल कर लिया। 

मालुम हो कि पूरे विश्‍व में सबसे अधिक बाघ संरक्षण कहीं हो सका है तो वह हमारा भारत ही है। बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है। भारतीयों ने बाघ को देश की शक्ति, शान, सतर्कता, बुद्धि और धीरज का प्रतीक माना है। पूरे विश्व में कुल 3,900 टाइगर बचे हैं, जिनमें से 2,967 बाघ भारत में है। इस संबंध में आई अब तक की सभी रिपोर्ट इस ओर ध्‍यान दिलाती हैं कि भारत के केरल, उत्तराखंड, बिहार और मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होते देखी जा रही है। नवीनम बाघ गणना के अनुसार भारत में बाघ की संख्या 2,967 है, जो विश्व की संख्या का लगभग 70 प्रतिशत से अधिक है। कहना होगा कि 2018 की बाघ गणना के बाद, जिसे कि 2019 में जारी किया था के अनुसार भारत में बाघों की संख्या पूरे विश्व में सर्वाधिक बनी हुई है।

वीडियो : टाइगर के जन्मदिन 16 अप्रैल को पन्ना टीम के साथ जंगल में आर. श्री निवास मूर्ति  



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