Friday, April 29, 2022

पन्ना का निवासी गिद्ध बिहार राज्य का विहार कर वापस लौटा

  •  प्रवासी हिमालयन ग्रिफिन चार गिद्ध पन्ना से उड़ान भरकर चीन पहुंचे 
  •  जीपीएस टैग लगने से गिद्धों के बारे में मिल रही है रोचक जानकारी



।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। पर्यावरण के सबसे बेहतरीन सफाईकर्मी कहे जाने वाले गिद्धों के अनोखे संसार की मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से बहुत ही रोचक जानकारी मिल रही है। इस विशालकाय पक्षी के रहवास, प्रवास और आवागमन के संबंध में जिस तरह के तथ्य प्रगट हुए हैं, वे बेहद चौंकाने वाले हैं। मौसम के अनुरूप गिद्ध अपने लिए अनुकूल ठिकाने की तलाश में लंबी उड़ान भरकर हजारों किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। मालूम हो कि गिद्धों के रहवास और आवागमन के संबंध में अध्ययन करने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व में 25 गिद्धों को सौर ऊर्जा चलित जीपीएस टैग लगाए गए थे, जिससे महत्वपूर्ण व रोचक जानकारी मिल रही है।

पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने प्रवासी गिद्धों सहित पन्ना टाइगर रिजर्व के निवासी गिद्धों के आवागमन व भ्रमण की जानकारी साझा की है। निवासी गिद्धों के बारे में आपने बताया कि कुछ गिद्ध पन्ना टाइगर रिजर्व से भ्रमण करते हुए पालपुर कूनो वन्य प्राणी अभ्यारण्य श्योपुर पहुंचकर वापस आए हैं। एक इंडियन वल्चर पन्ना टाइगर रिजर्व से भ्रमण करते हुए बिहार राज्य में सोन नदी तक की यात्रा कर वापस आया तथा अचानकमार वन्य प्राणी अभ्यारण्य अमरकंटक का भी भ्रमण किया है। श्री शर्मा बताते हैं कि रेड हेडेड गिद्ध ज्यादातर लैंडस्केप में ही विचरण कर रहे हैं।


क्षेत्र संचालक श्री शर्मा के मुताबिक अब तक चार हिमालयी ग्रिफिन गिद्ध HG_8673, HG_8677,HG_8654 और HG_6987 भारतीय सीमा पार कर चुके हैं। वर्तमान में वे चीन के तिब्बती क्षेत्र काराकोरम रेंज, नेपाल और चीन के तिब्बती क्षेत्र के पास चीन के उइघुर क्षेत्र में हैं। पहला हिमालयन ग्रिफिन HG_ 8673 के जीपीएस टैग की प्राप्त जानकारी से पता चला है कि यह गिद्ध पन्ना टाइगर रिजर्व से अपना प्रवास समाप्त कर चीन के तिब्बत क्षेत्र में Shigatse City के समीप पहुंच गया है। यह गिद्ध पन्ना टाइगर रिजर्व से बिहार में पटना, तत्पश्चात नेपाल देश के सागरमथा राष्ट्रीय उद्यान से एवरेस्ट के समीप से होते हुए Shigatse City की यात्रा की है। इस गिद्ध ने यह यात्रा लगभग 60 दिनों में 7500 किलोमीटर से अधिक दूरी तय करके की है।

पन्ना में पाई जाती हैं गिद्धों की 7 प्रजातियां 

मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिज़र्व राष्ट्रीय पशु बाघ सहित आसमान में ऊंची उड़ान भरने वाले गिद्धों का भी घर है। यहां पर गिद्धों की 7 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 4 प्रजातियां पन्ना टाइगर रिजर्व की निवासी प्रजातियां हैं। जबकि शेष 3 प्रजातियां प्रवासी हैं। गिद्धों के प्रवास मार्ग हमेशा से ही वन्य जीव  प्रेमियों के लिए कौतूहल का विषय रहे हैं। गिद्ध न केवल एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश बल्कि एक देश से दूसरे देश मौसम अनुकूलता के हिसाब से प्रवास करते हैं। प्रवासी गिद्ध बड़ी संख्या में हर साल पन्ना टाइगर रिज़र्व हजारों किमी. की यात्रा तय करके यहाँ पहुंचते हैं और प्रजनन करते हैं। ठंढ में यहाँ प्रवास करने के बाद गिद्ध गर्मी शुरू होते ही फिर अपने घर वापस लौट जाते हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती हैं गिद्धों की 9 प्रजातियां 

भारतीय उपमहाद्वीप में गिद्धों की 9 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से तीन जिप्स जाति की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। जिप्स जाति के गिद्ध  1980 के दशक तक बहुत अधिक संख्या में पाए जाते थे। उस समय उनकी संख्या लगभग चार करोड़ थी। 1990 के दशक से गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट शुरू हुई और सन 2000 तक लगभग 95% गिद्ध लुप्त हो गए। सन 2007 तक जिप्स जाति के गिद्धों की तीन स्थानीय प्रजातियां सफेद पीठ वाले गिद्ध, लंबी चोंच वाले गिद्ध और पतली चोंच वाले गिद्धों की लगभग 99% आबादी लुप्त हो गई थी। वर्ष 2012 आते-आते इन गिद्धों की संख्या नाममात्र रह गई, किंतु इनकी संख्या में गिरावट की गति कम हो गई।

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी द्वारा गिद्धों के समूह पर शोध करने से ज्ञात हुआ कि लगभग 76% गिद्धों की मृत्यु उनके गुर्दों के खराब होने से हुई थी। इन गिद्धों के अंदरूनी अंगों में सफेद दानेदार परत जमा हुई मिली, जो गिद्धों के गुर्दे खराब होने के कारण होती है। शोध से यह भी ज्ञात हुआ कि गिद्धों के गुर्दे पशु चिकित्सा में दी जाने वाली डाइक्लोफिनेक नामक दवा से खराब हुए हैं। गिद्धों पर इस डाइक्लोफिनेक रसायन का प्रभाव तब पड़ता है, जब वे ऐसे पशु के शव का सेवन करते हैं जिसकी मृत्यु डाइक्लोफिनेक दवा से उपचार के 72 घंटे के अंदर हुई हो। यह दवा उपचार के 72 घंटे बाद मल-मूत्र द्वारा शरीर से निकल जाती है, परंतु यदि मृत्यु 72 घंटे के अंदर हुई हो तो इस दवा के अवशेष पशु के शरीर में ही रह जाते हैं और यह दवा मांस के माध्यम से गिद्धों के शरीर में पहुंच जाती है। इस दवा का अंश मात्र भी गिद्धों के लिए जहर है।

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