कान में चोगी खोसे प्रशन्न मुद्रा में बैठा बुजुर्ग। फोटो- गोपी कृष्ण सोनी |
।। बाबूलाल दाहिया ।।
आदिवासी बुजुर्ग के कान में खुसी यह बीड़ी नहीं अपितु चोगी है। अगर इसे बीड़ी, सिगरेट की परदादी कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। कहते हैं तम्बाकू सबसे पहले बादशाह जहांगीर के समय में अंग्रेजों द्वारा लाई गई और उन्हें इंग्लैंड से लाये हुए एक उपहार के रूप में हुक्के सहित भेट की गई।
फिर तो इसका इतना प्रचार बढा कि गुलमेंहदी गाजर घास की तरह दूरस्त क्षेत्र तक में पहुच गई। बाद में सिगरेट ,सिगार ,बीड़ी आदि इसके अनेक उत्पाद बने जिसके करोड़ों लोग आदी हो चुके हैं। आदिवासी क्षेत्र में यह चोगी में रखकर पी जाने लगी, जो यदा-कदा आज भी प्रचलन में है।
सिगरेट की तुलना में बीड़ी से ज्यादा नुकसान होता है। डॉक्टरों का कहना है कि बीड़ी और सिगरेट दोनों से ही कैंसर होता है। यह न केवल पीने वालों की उम्र कम करता है, बल्कि कैंसर की ओर धकेल देता है। बीड़ी सस्ती होने के कारण ग्रामीण इलाकों में ज्यादा पी जाती है। यही वजह है कि नॉर्थ-ईस्ट इलाके में देश में सबसे ज्यादा लंग्स, ब्रेन और नेक कैंसर के मरीज हैं।
आज 30त्न माउथ केंसर का जनक अगर गुटखा को माना जाय तो 30त्न भागीदारी बीड़ी सिगरेट और चोगी की भी होती है। बाकी 40त्न की हिस्सेदारी अब रसायनिक खाद, कीटनाशक, नीदा नाशक की हो गई है। चोगी आम के पत्ते, सरई के पत्ते एवं तेंदू चार आदि अन्य कई तरह के पत्तो से बन जाती है।
लेकिन बहुत पहले सुना गया एक आदिवासी गीत अभी तक जेहन में आ जाता है जिसमें नायिका अपने नायक की खूबसूरती की जो कल्पना करती है, उसमें सिर में घुघराले बाल तो हैं ही पर कान में खुसी हुई एक अदद चोगी भी है।
00000
No comments:
Post a Comment