Friday, April 7, 2023

विश्व स्वास्थ्य का दिवस है, कहते हैं सब आज। बीज बैंक में देखिए, विश्व स्वास्थ्य का राज।।

 


।। बाबूलाल दाहिया ।।                

मित्रो! कहते हैं आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है। कोई भी दिवस मनाने का एक मकसद होता है। उसका सीधा सा अर्थ है कि लोग उसके प्रति सजग हों। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय समय-समय पर अनेक दिवसों की याद दिलाता रहता है। मनुष्य का स्वास्थ्य से बहुत प्राचीन रिश्ता है । जब हम छोटे-छोटे थे तभी से सुनते आ रहे हैं कि 

  प्रथम सुख्ख निरोगी काया।

  दूसर सुख हो घर में माया।।

यानी स्वास्थ्य पहले धन बाद में। परन्तु हम देखते हैं कि लोगो की औसत उम्र तो बढ़ी है पर औसत तीन ब्यक्तियों में एक ब्यक्ति रक्तचाप, मोटापा य डायबिटीज का मरीज भी हुआ है। और मैं इस आधार पर कहता हूं कि जितने लोग हमारा मियूजियम य बीज बैंक देखने आते हैं तो हर तीसरा ब्यक्ति कहता है कि  "दाहिया जी बगैर शक्कर की चाय बनवाइयेगा ?"  लेकिन ऐसा क्यो है? वह इसलिए है कि सभी ने परम्परागत अनाजों को खाना छोड़ दिया है। वे परम्परागत अनाज थे ( कोदो, कुटकी, सांवा, काकुन, ज्वार, मक्का, बाजरा, जौ, चना, गेहूं, चावल ) साथ ही कई प्रकार की दालें भी।

पर हरित क्रांति आने के पश्चात हमारा  भोजन अब तीन अनाजों में ही सिमट कर रह  गया है। वे हैं (गेहूं, चावल, दाल) और वह भी सभी रसायन से पके हुए? जब कि पहले हमारे  भोजन में  दश-बारह अनाज शामिल थे, जो पूर्णतः रसायन रहित और उनमे रोगों से लड़ने की क्षमता तो थी ही पर उनसे हमें अनेक तरह के पोषक तत्व भी मिलते थे।


मोटे अनाजो में एक विशेषता यह भी थी कि उनको यदि 100 ग्राम भी खाया जाए यो उनके साथ दो हिस्सा दाल, सब्जी, दूध, मट्ठा कुछ न कुछ अवश्य खाना पड़ता था। अस्तु उनसे भोजन पोष्टिक भी हो जाता था दूसरी ओर उपरोक्त बीमारियां नहीं होती थी। हमने अपने दश-बारह अनाजो में गेंहू चावल भी बताया है। आप कहते होंगे कि" गेहूं चावल ही तो हम खाते हैं ? " पर हाईब्रीड और परम्परागत में अन्तर है। परम्परागत कुदरती है लेकिन हाईब्रीड कृत्रिम। परम्परागत का तना बड़ा होता है अस्तु वह रसायनिक खाद बर्दास्त नहीं करता। साथ ही तना बड़ा होने से उसे तीन स्टेज में जमने वाला नीदा नहीं दबा पाता अस्तु वह स्वाभाविक रसायन रहित होता है। उसके विपरीत आज बाजार से खरीद कर जो अनाज दालें य सब्जियां लोग खाते हैं वे पूर्णतः रसायन स्नान किए हुए ही होते हैं।

इसी तरह यदि कीटों को देखा जाय तो रसायनिक खाद न पड़ने से देसी का पौधा अधिक हरा नही होता अस्तु उसमे उतने ही कीट आते हैं जिन्हें चिड़िया, गिरगिट, मकड़ी, लखाडी एवं अन्य मांसाहारी कीट कंट्रोल कर सके। अस्तु उनमे रसायनिक कीटनाशी डालने की जरूरत नही पड़ती । इसलिए विश्व स्वास्थ्य की असली दवा तो हमारे बीज बैंक में ही 200 प्रकार की परम्परागत धान, 15 प्रकार के देसी गेहूं, कोदो,कुटकी, सांवा काकुन, बाजरा आदि के रूप में  हैं जिन्हें किसान ले जाएँ और खेतों में उगाकर परिवार समेत खाएं तथा दूसरों को भी खिलाएं।

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