डॉ. भीमराव अम्बेडकर भारत में दलित चेतना, दलित उत्थान और दलित समाज को राष्ट्रीय मुख्य धारा से जोड़ने वाले अग्रणी महापुरुष हैं और भारत की संविधानसभा में संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने देश के सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और समान अवसर की गारन्टी देने का जो महान और अभिनव कार्य किया है, उसके लिये हम सदा उनके आभारी रहेंगे ।
लेकिन आज अम्बेडकर जयंती के अवसर पर डॉ. अम्बेडकर को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कुछ तथ्यपरक जानकारी आपके समक्ष रखना जरूरी समझता हूँ क्योंकि लोकतंत्र में "वोट बैंक की राजनीति के जोर पकड़ने के साथ ही हमने महापुरुषों का बंटवारा कर लिया । यह तो एक अच्छी बात है और एक हद तक राजनैतिक मजबूरी है कि राष्ट्रपिता गांधी को आज देश के सभी राजनैतिक दल आदरपूर्वक मानते हैं जबकि भाजपा और संघ परिवार को हमेशा गांधी को राष्ट्रपिता मानने में आपत्ति रही है, लेकिन आज वे भी बढ़चढ़कर गांधी का स्तुतिगान कर रहे हैं। डॉ. अम्बेडकर के मामले में भी भाजपा और संघ परिवार का दृष्टिकोण अभी-अभी बदला है वरना हिन्दूवादी संगठनों और नेताओं ने कभी भी उन्हें महापुरुष नहीं माना ।
दूसरी ओर कुछ जनाधारहीन दलित नेता अम्बेडकर पर अपना एकाधिकार जमाते हुए उन्हें कांग्रेस खिलाफ और कांग्रेस नेताओं के विरोधी के रूप में स्थापित करने का प्रयास करते रहे हैं और कई अधकचरे अपढ़ कांग्रेसजन भी अम्बेडकर के प्रति पूर्वाग्रह रखते रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन और उसके बाद के दौर में डॉ. भीमराव अम्बेडकर वास्तव में कांग्रेस के पूरक तत्व के रूप में देश हित में और देश के नव निर्माण में काम करते रहे कुछ हल्के नीतिगत और कार्यक्रमगत मतभेदों के कारण अम्बेडकर कांग्रेस से अलग "रिपब्लिकन पार्टी" बनाकर काम करते रहे । लेकिन मूल रूप से वे कांग्रेस को दिशा और मार्गदर्शन देने का काम ही करते रहे ।
डॉ. अम्बेडकर के भारतीय राष्ट्रीय परिदृश्य पर उमरने से बहुत पहले ही देश में स्वतंत्रता आंदोलन की चेतना जागृत हो चुकी थी और इससे भी पहले देश के नव निर्माण के लिये और नये समाज के निर्माण के लिये समाज सुधार के कार्य होने लगे थे । राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा उन्मूलन और स्त्रियों को नागरिक अधिकार देने के लिये जनचेतना जगाई अंग्रेजी शासन के जरिये सती प्रथा उन्मूलन का कानून बनवाने में सफलता पाई, तो गोपालकृष्ण गोखले और महादेव रानाडे ने विधवा विवाह को मान्यता देने और विवाह की न्यूनतम आयु तय कराने के कानून बनवाये ।
ज्योतिबा फुले ने स्त्री शिक्षा, अछूतोद्धार और मानव मात्र में समानता और भाईचारे के लिये रचनात्मक कार्य किये । दक्षिण भारत में अछूतों के मंदिर प्रवेश के आंदोलन हुये और इसके बाद जब महात्मा गांधी राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरे तो उन्होंने आजादी से पहले समूचे भारतीय समाज में एकता, समानता और समान अधिकार के लिये आवाज बुलंद की। गांधी जी ने साफ सफाई और पाखाना साफ करने जैसे काम स्वयं किये और इन कामों में लगे दलितों को समझाया कि मेहनत और श्रम किसी स्थिति में हैय या कमतर नहीं है । इसी तरह ऊंची जाति के लोगों को भी समझाया कि काम करने के कारण किसी को अछूत या कमतर नहीं माना जा सकता। गांधी जी ने भी अछूतों के मंदिर प्रवेश के आंदोलनों का संचालन किया ।
राजस्थान के प्रसिद्ध नाथद्वारा मंदिर में गांधी जी ने जो आंदोलन किया उसके बाद राजस्थान के कई मंदिरों में दलितों के लिये मंदिर प्रवेश की सुविधा दी गई। इसी तरह केरल और महाराष्ट्र में भी गांधी जी ने मंदिर प्रवेश आंदोलन संचालित किये। दलितो को शिक्षा और स्वदेशी उद्योग में तरक्की करने के अवसर देने के लिये भी गांधी जी ने अभिनव कार्य किये। इसी दौर में इंग्लैण्ड से शिक्षा प्राप्त कर लौटे और मुम्बई में बैरिस्टर के रूप में कार्य कर रहे डॉ. अम्बेडकर ने दलित बस्तियों और दलितों की दुर्दशा देख उनके हित और उनके हक में आवाज उठाई। दलितों ने अपने बीच के ही एक उच्च शिक्षित व्यक्ति को पाकर उसे अपना नेता और मुक्तिदाता माना, जिससे भारतीय समाज में एकीकरण की प्रक्रिया को बल मिला। यह अम्बेडकर के प्रयासों की ही देन कहा जाएगा कि कांग्रेस के आंदोलनों में, 7 विशेषकर मुम्बई के मजदूर आंदोलन और दीगर आंदोलनों में दलितों की भागीदारी अच्छी खासी रहा करती थी।
बाद में विदर्भ और देश के दूसरे क्षेत्रों में भी दलित समाज कांग्रेस से जुड़ा बिहार, उत्तरप्रदेश और पंजाब के शिक्षित युवक कांग्रेस संगठन में जिले से लेकर राष्ट्र स्तर तक महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी संभालने लगे । बाबू जगजीवनराम ने इसी दौर में बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में दलित चेतना जगाने और दलितों की समस्या को लेकर आंदोलन चलाए । भोला पासवान शास्त्री, बाबू दयाल राम, संकटाप्रसाद भी इसी दौर के दलित नेता हैं । कांग्रेस या गांधी जी से अम्बेडकर के मतभेदों को अनावश्यक और गलत तरीके से प्रचारित किया जाता है। पूना पैक्ट और उस पर हुई बहस एक सोची समझी रणनीति के तहत की गई, ताकि विदेशी सरकार और देश के सवर्ण समाज की भावना उजागर कर दलितों के हित में फैसले कराये जा सकें ।
आजादी के बाद संविधान निर्माण में डॉ. अम्बेडकर की भूमिका, कांग्रेस के सहयोग के बिना असंभव थी। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि सन 1946 में जो संविधानसभा बनी, उसके लिये अम्बेडकर तत्कालीन मुम्बई प्रांत या सीपीएण्ड बरार से चुने नहीं गये थे । आप सब 1946 की संविधानसभा के सदस्यों की सूची देख सकते हैं। डॉ. अम्बेडकर को उनके कानून के ज्ञान के कारण गांधी-नेहरु ने बंगाल से जिताया था। डॉ. अम्बेडकर के लिये पण्डित नेहरु के आग्रह पर नेताजी सुभाष बोस के छोटे भाई शरद बोस ने सीट खाली की और उनके रिक्त स्थान पर डॉ. अम्बेडकर को संविधानसभा में चुना गया। देश विभाजन के कारण जब अगस्त 1947 में बंगाल का एक बड़ा हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान में चला गया, तब फिर से चुनाव हुए और तब डॉ. अम्बेडकर को सीपीएण्ड बरार से चुने जाने के लिये सरदार पटेल ने रविशंकर शुक्ल और तत्कालीन मुख्यमंत्री खेर साहब को जवाबदारी सौंपी थी और ये चुने भी गए।
इसके बाद जहां तक संविधानसभा में प्रारूप समिति में अध्यक्ष पद का सवाल है, पहले अल्लादी कृष्णन अध्यक्ष थे लेकिन वृद्धावस्था के कारण वे इस पद की जिम्मेदारी नहीं संभाल सकते थे, इसीलिये उनकी सिफारिश पर अम्बेडकर को अध्यक्ष बनाया गया था। डॉ. अम्बेडकर ने भी संविधान प्रारूप सभा को सौंपते हुए अपने भाषण में कांग्रेस की सदाशयता और अनुशासन की जो तारीफ की है और कांग्रेस नेतृत्व की तारीफ की है. उससे लगता है कि कांग्रेस और अम्बेडकर में कोई मूल मतभेद नहीं रहे बल्कि सहयोगी भाव ही रहे हैं।
( इस आलेख के लेखक राजा पटेरिया मध्यप्रदेश शासन के पूर्व मंत्री व म.प्र. कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हैं। )
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