Tuesday, December 19, 2023

सिलिकोसिस पीड़ित परिवार की तिरसिया बाई गोंड के लिए सहारा बनी मशरूम की खेती

 

गाँधी ग्राम स्थित तिरसिया बाई के आँगन में बने शेड के भीतर लटकते मशरूम के बैग। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। हीरा और पत्थर की खदानों में काम करके अपनी जिंदगी खपा देने वाले आदिवासी परिवारों की मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में अनगिनत कहानियां हैं। दशकों तक हाड तोड़ मेहनत करने के बाद उनकी जिंदगी में खुशहाली तो नहीं आई, मुसीबत का पहाड़ जरूर टूट पड़ा। क्योंकि मेहनत करके परिवार की जरूरतों को पूरा करने वाला व्यक्ति सिलिकोसिस की गिरफ्त में आकर असमय काल कवलित हो गया। ऐसी ही कहानियों में एक कहानी तिरसिया बाई गोंड की है। 

जिला मुख्यालय पन्ना से 7 किलोमीटर दूर स्थित गांधीग्राम में एक टूटे से कच्चे घर में रहने वाली तिरसिया बाई (37 वर्ष) जो पैरों से विकलांग है और बड़ी कठिनाई से चल पाती है, उसके पति इमरतलाल की मौत 2 साल पहले सिलिकोसिस से पीड़ित होने के कारण हो गई थी। इसके ससुर की मौत भी फेफड़ों में होने वाली इसी बीमारी से हुई थी। इन परिस्थितियों में अपने तीन बच्चों की परवरिश करना तिरसिया बाई के लिए कठिन ही नहीं बेहद चुनौती पूर्ण था। लेकिन तिरसिया बाई हिम्मत नहीं हारी, वह अपने घर के सामने समाजसेवी संस्था पृथ्वी ट्रस्ट की मदद से शेड लगवा कर मशरूम उगाना शुरू किया। मशरूम की खेती अब इस गरीब आदिवासी परिवार का बहुत बड़ा सहारा है। यहां पर गांधी ग्राम सहित अन्य ग्रामों की महिलाओं को भी मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

अपने घर के सामने खड़ी तिरसिया बाई गोंड के लिए मशरूम की खेती सहारा बनी। 

गौरतलब है कि जिस इलाके की धरती में बेशकीमती रत्न हीरा निकलता हो, वहां रहने वाले आदिवासियों की जिंदगी में इसकी चमक दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आती। भीषण गरीबी, कुपोषण, पत्थर खदानों में मजदूरी करने के कारण जानलेवा बीमारी सिलिकोसिस और पलायन इनकी नियति बन चुकी है। इन हालातों के बीच समाज सेवी संस्था पृथ्वी ट्रस्ट की पहल व प्रयासों से पांच ग्रामों की गरीब आदिवासी महिलाएं मशरूम की खेती करना सीख रही हैं। इस अभिनव पहल से आदिवासी महिलाओं की जिंदगी में बदलाव दिखने लगा है। 

हरिजन व आदिवासी बहुल गांधी ग्राम में समाजसेवी संस्था पृथ्वी ट्रस्ट ने इसी साल मशरूम उत्पादन केंद्र शुरू किया है। इस केंद्र में गांधी ग्राम सहित रानीपुर, सुनहरा, जरधोवा व माझा की आदिवासी महिलाओं को मशरुम की खेती कैसे करें, इसका प्रशिक्षण दिया जाता है। अक्टूबर से लेकर अब तक 12-12 महिलाओं के तीन समूह मशरूम की खेती के गुर सीखकर अपने अपने घरों में मशरूम उगाना शुरू कर दिया है। 

तिरसिया बाई ने बताया कि उनके पति इमरत लाल आदिवासी की दो साल पहले सिलिकोसिस से पीड़ित होने के कारण मौत हो चुकी है। मेरे दो लड़के व एक लड़की है। एक लड़का मजदूरी करता है तथा दूसरा लड़का गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है। हांथ व पैर से विकलांग होने के कारण मैं मजदूरी नहीं कर सकती। मुझे 600 रुपए विकलांग पेंशन मिलती है। पूरी तरह अपने लड़कों पर आश्रित हूं, अभी तक प्रधानमंत्री आवास का लाभ भी नहीं मिला। तिरसिया बाई आगे बताती हैं कि जब से मेरे घर के आंगन में मशरूम उत्पादन केंद्र खुला है, तब से अतिरिक्त आय होने की उम्मीद जागी है। केंद्र में मशरुम के 70 बैग लगाएं हैं, जिनमें मशरूम निकलने लगा है।

समाजसेवी संस्था पृथ्वी ट्रस्ट की समीना बेग बताती हैं कि इन्विरोनिक्स ट्रस्ट दिल्ली के सहयोग से हमने वर्ष 2021 में मशरूम उगाने की गतिविधि रानीपुर, सुनहरा, गांधी ग्राम, जरधोवा तथा माझा गांव में शुरू किया था। इस गतिविधि में हमने सिलिकोसिस पीड़ित तथा पत्थर खदानों में काम करने वाले परिवारों की महिलाओं का चयन कर उन्हें मशरूम उगाने का प्रशिक्षण दिया। 

गरीब आदिवासी महिलाओं को मशरुम की खेती से जोड़ने के पीछे उद्देश्य कुपोषण दूर करना, पलायन रोकना तथा स्थानीय स्तर पर रोजगार देना था। इस उद्देश्य की पूर्ति में काफी हद तक हम कामयाब हुए हैं। आदिवासी व अनुसूचित जाति की महिलाएं मशरुम के उत्पादन में खासा रुचि ले रही हैं। अतिरिक्त आए होने से वे उत्साहित हैं तथा कुपोषण की स्थिति में भी कमी आई है।

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