।। बाबूलाल दाहिया ।।
यह मैं नही कह रहा बल्कि इन कन्दों का संकेत है। आप इस घुइयां के कन्द को कहीं भी रखें, बराही कन्द खनुआ कन्द पीडी कन्द को सात कमरे के भीतर रखें पर वह सभी 1-2 जून तक अंकुरित हो जाते हैं।
आप मानें न मानें पर यह हम किसानों के कई पीढ़ियों से सचेतक रहे हैं। हमारे गर्मी से अलसाए पुरखे इन्ही से गुरुज्ञान प्राप्त कर खेतों के नाट मोघा की बंधाई, घर की छवाई एवं खेतों में घूर, खातू की डराई आदि शुरू करते थे। जिनके गायों के बछड़े तीन साल के नाटे हो जाते, उनका भी हल में चलने के लिए अभ्यास शुरू हो जाता था।
अन्य लोगों के वर्ष के शुरुआत के महीने भले ही जनवरी य चैत्र रहे हों पर हम किसानों के साल का प्रथम महीना तो हर वर्ष आषाढ़ ही होता है। इसीलिए यह तमाम कन्द आधे जेठ से ही हमें सचेत करने लगते थे कि -
आधा जेठ आषाढ़ कहावय।
सजग रहय तउनय फल पाबय।।
और फिर इन्हें देख हमारे पुरखे एलर्ट हो जाते थे इस आषाढ़ के काम के बोझ को उतारने में। क्योंकि यदि दौगरा गिर गया तो फिर अन्य कहावत चरितार्थ होने लगती थी कि -
तेरा कातिक तीन आषाढ़।
चूक जाय ते जाय बाजार।।
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