Friday, June 28, 2024

पेड़ तभी होंगे जब चिड़ियां रहेंगी और चिड़िया भी तभी रहेंगी जब पेड़ रहेंगे

   


 

।। बाबूलाल दाहिया ।।

युवावस्था में मैंने एक आस्ट्रेलियन विद्वान ए. एल. बासम  की लिखी हुई पुस्तक ( अद्भुत भारत ) पढ़ी थी, जो अभी तक स्मरण में है। उनने भारत में लगभग 10 वर्ष रहकर यहां के वेद, उपनिषदों आदि के अध्ययन के पश्चात उस पुस्तक को लिखा था। अंग्रेजी में लिखी उस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद भी है। ए.एल. बासम उस पुस्तक में एक स्थान पर एक छात्र का उल्लेख करते हैं, जो किसी ऋषि के पास (जीव जगत ) की शिक्षा लेने आया था।

ऋषि ने कहा " तुम एक पीपल का फल लाओ ?" उसने कहा " जी लाया गुरुवर ?" और वह पीपल का फल लाकर उनके सामने रख देता है। ऋषि ने कहा" इसे तोड़ो?" उसने कहा " जी तोड़ा गुरुवर ! इसमें बहुत से छोटे-छोटे दाने दिख रहे हैं?" ऋषि ने कहा " इसके एक दाने को तोड़ो ?"  छात्र ने कहा " जी तोड़ा गुरुवर पर इसमें तो कुछ दिखाई नही देता ?" ऋषि ने कहा  "जिस पीपल के बीज में तुम्हे कुछ दिखाई नही देता उसमें तो अनंत पीपल बृक्ष उगने की संभावना छिपी है ?"

ऋषि का कथन सही था। उसमें हजारों पीपल बृक्ष के उगने की संभावना छिपी थी। पर वह फलीभूत तो तब होगी जब कोई चिड़िया उस पीपल फल को खायगी और उसका बीज उसकी आहार नली की हल्की-हल्की आंच से अंकुरण लायक परिपक्व हो जाएगा। उसके पश्चात जब वह चिड़िया किसी घर के मुंडेर, कुँए के पाट अथबा पेड़ के कोटर में बैठ कर बीट करेगी तब वह उगेगा। क्योकि पीपल बरगद और ऊमर के बृक्ष के नीचे अरबों खरबों के संख्या में बीज बिछे रहते हैं परन्तु एक में भी अंकुरण नही होता। अंकुरण उसी बीज में होगा जिसकी चिड़िया के खाने के पश्चात उस बीज की उसके पेट में बेदरिंग हो जायगी।

परन्तु पीपल बरगद आदि का एक समन्वय चिड़ियों से यह भी है कि इन बृक्षों में रोज फल लगते हैं और चिड़ियों के खाने के लिए रोज उनके फल पकते भी हैं।  कहने का आशय यह कि पेड़ तभी होंगे जब चिड़ियां रहेंगी और चिड़िया भी तभी रहेंगी जब पेड़ रहेंगे। क्योकि बृक्षों को अस्सी प्रतिसत चिड़ियां ही उगाती हैं। मनुष्य की उनके ऊपर यही कृपा पर्याप्त है कि उनके ऊपर अपनी कुल्हाड़ी न चलाए।

जी हां कुछ पौधों का परागण चिड़ियों द्वारा भी  होता है

अमूमन पेड़ पौधों का परागण तितली, भौरा य मधु मक्खियों द्वारा ही होता है। पर यह जान कर आश्चर्य होगा कि कुछ फूलों में परागण का कार्य चिड़िया भी करती हैं। बहुत सारे जीवों और बनस्पतियों का ऐसा समन्वय है कि अगर एक न रहे तो दूसरा भी समाप्त हो जायगा। इसलिए स्वस्थ धरती के लिए उसमें सभी तरह के जीवों का रहना आवश्यक है।

अब तो (प्रधान मुख्य वन संरक्षक) पद से रिटायर होकर माननीय श्री बी.बी.सिंह साहब लखनऊ में रहते हैं। पर बात शायद 2008-09 की है जब वे मुख्य  वन संरक्षक जबलपुर हुआ करते थे। उनकी एक विशेषता यह भी रही है कि वे  जहां भी रहे सब से हट कर कुछ नवाचार अवश्य करते थे जिससे तमाम लोग उनसे जुड़ जाते थे।और उसी के तहद उनने जबलपुर में जड़ी बूटियों का एक बहुत बड़ा मेला लगबाया हुआ था जिसमें मंडला, जबलपुर, कटनी,बालाघाट आदि स्थानों के तमाम जड़ी बूटी विशेषज्ञ शामिल हुए थे।

उसमें उनने अपने अनेक जिलों के पूर्व परिचितों और मित्रों को भी आमंत्रित किया था। जिनमें एक मैं भी था । बांकी सभी आगंतुक तो हास्टल में ठहरे थे पर मुझे एवं प्रो. श्याम बोहरे सर को कुछ चर्चा करने केलिय अपने बंगले में ही ठहराया था। श्री श्याम बोहरे जी नहा धो रहे थे पर मैं फुर्सत होकर उन्ही के पास बाहर लान में आगया था।

उनके उस बंगले में फूलों की एक लता फैली हुई थी जिसमें करीब 2 इंच लम्बे ठीक उसी तरह के फूल लगे थे जैसे आइपोमिया के पौधे में लगते हैं। तभी मेरी निगाह एक काले मटमैले रंग की चिड़िया पर गई जो देखने में तो छोटी थी पर उसकी चोंच अपेक्षाकृत अधिक लम्बी थी। मैंने कहा "सर यह चिड़िया बार -बार इस फूल में अपनी चोंच क्यो डाल रही है ?"

बीबी सिंह साहब ने कहा " वह परागण कर रही है।" मैंने कहा " चिड़िया परागण कर रही है?" उनने कहा  "हां ? " और उस लता के  एक फूल को तोड़ एवं चीर कर बताया कि " देखिए इसमें तितली भौरे के बैठने के लिए  कोई चेम्बर ही नही है तो वह कैसे परागण करेंगे ? परन्तु यह लता बड़ी चालक है। इसने अपने फूल में एक मीठा चिपचिपा पदार्थ जमा कर रखा है जिसे खाने के लालच में  यह चिड़िया बार - बार  कभी इस फूल में तो कभी उस फूल में अपनी  चोंच डालती है  जिससे उसे वह मीठा पदार्थ खाने को भी मिल जाता है और उसी से उस पौधे के फूलों में  परागण भी हो जाता है। पर आश्चर्य तो यह हैं कि उसी अनुपात से उसकी चोंच भी लम्बी है जिस से सिद्ध है कि यह चिड़िया मात्र इसी के सम्बर्धन के लिए बनी है।"

कहने का आशय यह कि पेड़ पौधे वनस्पतियों के सम्बर्धन केलिए प्रकृति ने किसे क्या दायित्व सौंप रखा है ? यह बड़ा जटिल रहस्य है। इसलिए धरती की हरीतिमा बचाने केलिए सभी जीवों का रहना आवश्यक है। पता नही कौंन सा जीव किस वनस्पति का संरक्षक है और कौंन सा नियंत्रक ?

एक  बार एक भोपाल की कार्यशाला में  बाहर से आए विद्वान ने बताया था कि "अफ्रीका के जंगलों में एक बेल की तरह कड़े आवरण का फल होता था जिसे तोड़ कर  ( डोडा) नामक वहां का एक स्थानीय पक्षी ही  खा सकता था। और आफ्रिकन लोग उस पक्षी का परम्परगत ढंग से शिकार करके उसका मांस भी खाते थे।पर आधुनिक बन्दूकों के प्रचलन के पश्चात  जब उस पक्षी को पूरी तरह ही समाप्त कर दिया गया तो वह कड़े आवरण के फलों वाला बृक्ष भी समाप्त हो गया। क्योकि अन्य कोई जीव उसे तोड़ कर उसका बीज नही निकाल सकते थे। इसलिए प्रकृति के नियमों में बंधे इस जीव जगत के बारे में हमें बहुत गहराई से सोचने समझने की जरूरत है।

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