Wednesday, September 11, 2024

कितनी खूबसूरत लगती है काकुन की बालें ?

  • खेत में काकुन के दानों को चुगने वाली एक चिड़िया की मार्मिक लोककथा ! 

      

    

।। बाबूलाल दाहिया ।।

जी हां प्रकृति ने काकुन को इस प्रकार मात्र डेढ़ माह की फसल बनाया है कि कितना भी पानी गिरे इसका पका हुआ दाना कभी खराब नहीं होता। क्योंकि यह बरसात के झड़ी के बीच ही हर साल पकता है। शायद इसीलिए अपने को जल रोधी बना लिया है। 

पक जाने पर किसान इसकी बाल को पकड़-पकड़ काट लेते हैं और बाद में जुताई कर देने से पौधा सड़कर खाद बन जाता है। और फिर उसी खेत में चने या  गेहूं की फसल बो देते हैं। जब काकुन में दाने आ जाते हैं तो यह अपनी खूबसूरती बिखेर देता है, जिसे देख यही कहा जा सकता है।          

   काकुन की दिखने लगी,

            सुघर सलोनी बाल।

   खा खा कर अब होंयगी,

            चिड़ियां सब खुशहाल।।

हमारे लोक साहित्य में काकुन के दानों को चुगने वाली एक चिड़िया की बड़ी ही ह्रदय को छू लेने वाली मार्मिक लोककथा है। उस बघेली लोककथा के अनुसार एक चिड़िया किसी भांट के खेत में काकुन के दानें चुगने जाती है और वह उसे पकड़ कर घर ले जा रहा होता है। परन्तु उसे जो भी रास्ते में मिलता उससे वह गुहार लगाते हुए कहती कि -

ए गइल के चलबइया भइया ?

मैं भांट कय खायव काकुन,

मोहि भाँट धरे लइजाय।

गंगा तीर बसेरा,

मोर मरिहैं रोय गदेला।।

रट चूं- चूं।

उसे अपनी जान की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी अपने दाने चुग्गे के इंतजार में पाल में बैठे नोनिहालों की। रास्ते से घोड़े के सवार, ऊंट के असवार सभी निकले पर किसी ने उसे नही छुड़ाया।  

अंत में उसी रास्ते हाथी में सवार वहां के राजा निकले। चिड़िया ने उनसे भी गुहार लगाई कि,

ओ हाथी के चढ़बइया भइया ?

और उपरोक्त वही अपने बच्चों वाली बात दुहराई। राजा को चिड़िया पर दया आ गई। उनने भाँट को कुछ रुपये देकर उससे चिड़िया ले ली और उसे मुक्त कर दिया, जिससे वह अपने गदेलों (बच्चों ) के पास चली गई।

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