Sunday, September 8, 2024

अनूठी पुस्तक 'दि गाॅस्पेल ऑफ़ रामकृष्ण'

श्री रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य 'महेंद्रनाथ' जिन्होंने यह पुस्तक लिखी। 

छठवें नंबर के लिए मेरी पसंद एक अद्भुत आदमी की पुस्तक है। वे अपने आप को 'एम' नाम से पुकारते थे। मुझे उनका असली नाम मालूम है, लेकिन उन्होंने कभी भी किसी को अपना असली नाम मालूम नहीं होने दिया। उनका नाम है महेंद्रनाथ। वे एक बंगाली थे, रामकृष्ण के शिष्य थे। 

महेंद्रनाथ अनेक वर्षों तक रामकृष्ण के चरणों में बैठे, और अपने सद्गुरु के आस-पास जो कुछ भी घटित हो रहा था, उसे लिखते रहे। पुस्तक का नाम है : 'दि गाॅस्पेल ऑफ़ रामकृष्ण'--जिसे 'एम' ने लिखा है। वे कभी भी अपने का खुलासा करना नहीं चाहते थें, वे अनाम बने रहना चाहते थे। यही एक सच्चे शिष्य का ढंग है। उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से मिटा डाला था। 

तुम्हें जान कर हैरानी होगी कि जिस दिन रामकृष्ण की मृत्यु हुई, उसी दिन 'एम' की भी मृत्यु हो गई। अब उनके लिए अधिक जीने का कोई अर्थ नहीं रह गया था। मैं समझ सकता हूं... रामकृष्ण की मृत्यु के बाद 'एम' के लिए मरने की तुलना में जीना कहीं अधिक मुश्किल था। अपने सद्गुरु के बिना जीने के बजाय मृत्यु कहीं अधिक आनंददायी थी। 

सद्गुरु तो अनेक हो चुके हैं लेकिन 'एम' जैसा शिष्य कभी नहीं हुआ जिसने अपने सद्गुरु के बारे में इतना सही-सही लिखा हो। वे कहीं भी बीच में नहीं आते हैं। उन्होंने ज्यूं का त्यूं लिखा है--अपने और रामकृष्ण के संबंध में नहीं, बल्कि केवल रामकृष्ण के संबंध में।‌ सद्गुरु के सान्निध्य में उनका अस्तित्व ही नहीं रहता। मैं इस व्यक्ति से और उनकी पुस्तक से, और खुद को मिटा देने के उनके अथक प्रयास से प्रेम करता हूं।‌ 'एम' जैसे शिष्य मिलना दुर्लभ है। रामकृष्ण इस मामले में जीजस से कहीं अधिक भाग्यशाली थे। मुझे उनका नाम मालूम है, क्योंकि मैंने बंगाल में यात्रा की है।‌ रामकृष्ण पिछली सदी के अंत तक जीवित थें, इसलिए मैं जान सका कि उनका नाम 'महेंद्रनाथ' है।

ओशो : मेरी प्रिय पुस्तकें 

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