- मध्य प्रदेश के पन्ना शहर में स्थित प्रणामी धर्मवलंबियों की आस्था के केंद्र महामति श्री प्राणनाथ जी मंदिर में घंटा बजाने की अनूठी परंपरा साढ़े तीन सौ सालों से चली आ रही है। घंटे की तेज ध्वनि से पुराने जमाने में लोगों को जहां समय का बोध होता था, वहीं इसके पीछे धार्मिक व सांस्कृतिक कारण भी रहे हैं।
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महामति श्री प्राणनाथ जी मंदिर का वह घंटा जो वर्ष 1864 में लंदन से आया था। (फोटो : राकेश शर्मा) |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। मंदिरों का शहर पन्ना अपनी अनूठी परपरम्पराओं और रीति रिवाजों के लिए भी जाना जाता है। पुराने ज़माने में जब अधिकांश लोगों के पास घड़ियां व समय मापने के अन्य कोई उपकरण उपलब्ध नहीं थे, उस दौर में समय का बोध लोगों को पन्ना शहर में स्थित महामति श्री प्राणनाथ जी मंदिर के ऊपर गुम्मद में टंगे विशाल घण्टे की ध्वनि से होता रहा है। इसके अलावा उस ज़माने में बड़े बुजुर्ग सूर्य की किरणों व उसकी छाया से प्रहर और समय का अंदाजा लगा लिया करते थे। कितना समय हुआ इससे अवगत होने के लिए मंदिर के घण्टे की ध्वनि की उपयोगिता अब से तक़रीबन चार दशक पूर्व तक रही है। लेकिन अब यह उपयोगिता नहीं रही, क्योंकि अब ज्यादातर लोगों के पास घडी व मोबाइल है।
उल्लेखनीय है कि श्री प्राणनाथ जी मंदिर में ऊपर एक विशाल घंटा लगा था, जिसे हर घंटे नियम से बजाने के लिए व्यक्ति तैनात रहता था। इस घण्टे के ध्वनि की गूंज पूरे पन्ना शहर में सुनाई देती थी। रात्रि के सन्नाटे में तो पन्ना से लगे हुए आसपास के गांवों तक घण्टे की आवाज सुनाई देती थी। इस घण्टे की ध्वनि से ही पन्ना शहर व आसपास ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों को समय का पता चलता था और उसी के अनुरूप उनकी दिनचर्या संचालित होती थी। लेकिन अब वह पुराना जमाना सिर्फ स्मृतियों में शेष है, अब तो सबके पास घड़ी या मोबाइल उपलब्ध है। लेकिन श्री प्राणनाथ जी मंदिर में सदियों से चली आ रही घंटा बजाने की परंपरा का निर्वहन अभी भी अनवरत रूप से हो रहा है।
बीते रोज सपत्नीक मंदिर दर्शन करने आए ग्वालियर निवासी रिटायर जज अवधेश श्रीवास्तव ने अपनी पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया कि चार दशक पूर्व 1982 से 1984 तक जब वे पन्ना जिला न्यायालय में जज थे, उस समय हमारे पास घड़ी नहीं होती थी। तब हम लोग प्राणनाथ जी मंदिर के घंटे को सुनकर अपनी दिनचर्या शुरू करते थे। उनकी पत्नी श्रीमती गिरिजा श्रीवास्तव ने भी बताया कि मंदिर के घंटे से ही समय का पता चलता था और पूरे दिन की दिनचर्या इसी हिसाब से चलती थी। उन्होंने पुरानी स्मृतियों को याद करते हुए बताया कि जब कहीं जाना होता था तो मंदिर के ही घंटे की आवाज का इंतजार रहता था कि कितना बजा है।
प्रणामी समाज के प्रतिष्ठित साहित्यकार अश्वनी दुबे बताते हैं कि श्री प्राणनाथ जी मंदिर के अलावा देश के अन्य मंदिरों खासकर दक्षिण भारत में मंदिरों के गुंबद में ऊपर बड़ा घंटा लगाने तथा हर घंटे में उसे बजाने की प्राचीन और महत्वपूर्ण परंपरा है। यह परंपरा कई सदियों से चली आ रही है, इसके पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक कारण भी हैं। दक्षिण भारत में मुख्य रूप से तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इस परंपरा के अनुसार मंदिर के गुंबद पर एक बड़ा घंटा लगाया जाता है, जिसे हर घंटे में बजाया जाता है।
प्रणामी धर्मावलम्बियों की आस्था का केन्द्र पन्ना स्थित महामति श्री प्राणनाथ जी का मंदिर। |
श्री दुबे बताते हैं कि श्री प्राणनाथ जी मंदिर में बजने वाले घंटे से प्रहर का भी बोध होता रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार 24 घंटे को 8 प्रहर में बांटा जाता है तथा प्रत्येक प्रहर 3 घंटे का होता है। पहला प्रहर सूर्योदय से 3 घंटे बाद तक रहता है, इस तरह हर तीन घंटे में प्रहर बदलता है। प्रहर बदलने पर मंदिर का घंटा डबल बजता है।
गुम्मद में ऊपर लगे घंटे की ध्वनि जहाँ पूरे शहर में गूंजती है, वहीं मंदिर में जो घंटी लगी होती है उसकी ध्वनि सिर्फ मंदिर व आसपास ही सुनाई देती है। कोई व्यक्ति जब मंदिर जाता है तो प्रवेश करने से पहले घंटी बजाता है। घंटी की ध्वनि से मन में चलने वाले विचारों की श्रंखला टूट जाती है, इस विचार शून्यता की भाव दशा में जब पूजा होती है तो शांति और आनंद की अनुभूति होती है। मंदिरों में घंटी लगाने की परम्परा के पीछे यह खास वजह है। इतना ही नहीं घंटी की आवाज़ शांति और एकता का प्रतीक भी मानी जाती है, इससे शांति और सौहार्द की भावना बढ़ती है।
1864 में लंदन से आया था विशाल घंटा
श्री प्राणनाथ जी मंदिर ट्रस्ट के सचिव राकेश कुमार शर्मा बताते हैं कि अष्टधातु से निर्मित कई विशाल घण्टे वर्ष 1864 में लंदन से भारत लाये गए थे। इन्ही अति विशिष्ट घण्टों में से एक पन्ना के श्री प्राणनाथ जी मंदिर में आया था, जिसे उस समय मंदिर के ऊपर गुम्मट में टंगवाया गया था। लंदन में बने घंटे का उपयोग कई दशकों तक लोगों को समय की जानकारी देने हेतु किया जाता रहा, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व इस घंटे में दरार आने से इसकी आवाज में बदलाव हो गया था। तब इस घंटे को भारत के प्रमुख शहरों में ले जाकर उसकी मरम्मत कराने का भरपूर प्रयास हुआ लेकिन वह पूर्व की तरह ठीक नहीं हो पाया। ऐसी स्थिति में मंदिर ट्रस्ट द्वारा भारत में ही निर्मित एक विशाल घंटा लाकर मंदिर में लगवाया गया। जिसका उपयोग अनवरत जारी है।
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