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अपने आशियाने से बाहर की तरफ झांकती गौरैया। |
इन दिनों हमारे घर का आंगन नन्ही सी चिड़िया गौरैया की चहचहाहट से गुलजार है। पिछले दिनों आंगन में ऊपर दीवार पर गौरैया के लिए एक छोटा सा आशियाना बनाकर कील में टांग दिया था। कुछ दिन यह आशियाना सूना पड़ा रहा, लेकिन जल्दी ही दो गौरैयों को यह पसंद आ गया। अब तीन-चार दिनों से इस आशियाने को घास फूस से दोनों सजाने और संवारने में जुटी हुई हैं।
सुबह से इन नन्ही चिड़ियों का आँगन में लगे आशियाने पर घास-फूस चोंच में लेकर आने और फिर से वही प्रक्रिया करने का शिलशिला शुरू हो जाता है। उनका यह कार्य पूरे दिन तक़रीबन 4 बजे तक चलता है। उनके श्रम को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आशियाने को उन्हें जल्द से जल्द सजा संवारकर तैयार करना है। सुबह चाय पीते हुए आँगन में इन पक्षियों की धमाचौकड़ी देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।
मालुम हो कि हर साल 20 मार्च को घर-आंगन में दिन उगने के साथ ही इधर - उधर फुदकने वाली नन्हीं चिडिय़ा गौरैया के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए गौरैया दिवस मनाया जाता है। क्योंकि डेढ़ दो दशक पहले तक घरों के आसपास बहुलता से नजर आने वाली नन्हीं चिडिय़ा गौरैया की चहचहाहट अब गुम सी हो रही है। गौरैया की घटती संख्या को देखते हुए ही इसके संरक्षण के लिए "विश्व गौरैया दिवस" पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया।
बीते 20 मार्च विश्व गौरैया दिवस के मौके पर फेसबुक में मैंने एक पोस्ट लिखी, इस पोस्ट को पढ़कर मेरी पत्नी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सिर्फ लिखने भर से गौरैया वापस आने वाली नहीं है। इसके लिए कुछ सार्थक पहल और प्रयास करते हुए गुम हो रही गौरैयों को प्रेम से बुलाना होगा। पत्नी की यह बात जमी और मैंने उसी दिन गत्ते का एक छोटा सा आशियांना बड़े जतन से बनाया और ऊसे आँगन की दीवार में ऊपर सुरक्षित जगह पर कील के सहारे टांग दिया।
कई दिन यह टंगा रहा, लेकिन चार-पांच दिन पूर्व गौरैयों का एक जोड़ा आया और जायजा लेकर चला गया। फिर क्या दूसरे ही दिन से इस आशियाने को अपने अनुकूल बनाने का सिलसिला इन्होने शुरू कर दिया जो अभी भी जारी है। मैं अत्यधिक खुश और संतुष्ट हूँ की मेरा छोटा सा प्रयास व प्रेमपूर्ण आमंत्रण सार्थक हुआ। गौरैयों ने आमंत्रण को स्वीकार कर लिया है।
गौरैया चिडिय़ा बहुत ही संवेदनशील पक्षी है, मोबाइल फोन तथा उनके टावर्स से निकलने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशन से भी उनकी आबादी पर असर पड़ रहा है। विकास के नाम पर प्रकृति और पर्यावरण से हो रहे खिलवाड़ के बावजूद प्रकृति ने हर जीव को विपरीत परिस्थितियों में जिन्दा रहने की क्षमता प्रदान की है, यही वजह है कि गौरैया की चहक आज भी हम सुन पा रहे हैं। लेकिन यह चहक हमेशा बनी रहे इसके लिये सजगता और संवेदशीनता जरूरी है।
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