Friday, December 5, 2025

पन्ना टाइगर रिजर्व के नर बाघ पी-243 के सिर पर गहरा घाव

  • वन्य जीव विशेषज्ञों की देखरेख में चल रहा है उपचार
  • विगत 8 माह पूर्व भी आपसी संघर्ष में हुआ था घायल 

जख्मी बाघ का उपचार करने के लिए उसे ट्रेंकुलाइज करते हुए डॉ संजीव कुमार गुप्ता। 
 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों की संख्या बढऩे के साथ ही उनके बीच इलाके में आधिपत्य को लेकर आपसी संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी हैं। बाघों के बीच होने वाली इस टेरिटोरियल फाइट (आपसी संघर्ष) में कई बार बाघ बुरी तरह से जख्मी हो जाते हैं। अभी हाल ही में पन्ना टाइगर रिजर्व का 11 वर्षीय बाघ पी-243 आपसी संघर्ष में बुरी तरह जख्मी हुआ है, इस बाघ के सिर में गहरा घाव है। यह वही प्रसिद्ध नर बाघ है, जिसने चार अनाथ शावकों की परवरिश की थी, जिनकी मां बाघिन पी-213(32) की मौत मई 2021 में हो गई थी। 

उल्लेखनीय है कि इसी साल अप्रैल 2025 में भी यह बाघ आपसी संघर्ष में बुरी तरह से जख्मी हो गया था। इस बाघ के सिर में गहरा घाव हो गया था जो प्राकृतिक रूप से ठीक नहीं हो पा रहा था। बाघ की दिनोंदिन बिगड़ती हालत को देखते हुए वन्य जीव स्वास्थ्य अधिकारी पन्ना टाइगर रिज़र्व द्वारा  ट्रेंकुलाइज किया जाकर उसके घाव का उपचार किया गया। अब तक़रीबन 8 माह बाद आपसी संघर्ष में फिर इस बाघ के सिर में उसी जगह पर गहरा घाव हो गया है।   

उपसंचालक टाइगर रिजर्व  मोहित सूद ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बाघ पी- 243 कुछ दिनों पूर्व घायल हो गया था, जिसका उपचार चल रहा है। वन्य जीव विशेषज्ञों व डॉ संजीव कुमार गुप्ता वन्य जीव स्वास्थ्य अधिकारी की देखरेख में चल रहे उपचार से घाव तेजी से सूख रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि सतत निगरानी व उपचार से इस बाघ का घाव जल्दी ही भर जायेगा और वह स्वस्थ होकर पूर्व की तरह जंगल में स्वच्छंद रूप से विचरण करेगा। 

अनाथ शावकों की बाघ पी-243 ने की थी परवरिश   

पन्ना टाइगर रिज़र्व का नर बाघ पी-243 अपने भारी भरकम डील डौल के चलते जहाँ आकर्षण का केंद्र रहता है वहीं इस बाघ में कुछ ऐसी विशिष्टताएं भी देखी गई हैं जो दुर्लभ है। चार वर्ष पूर्व  मई 2021 में बाघिन पी 213-32 की अज्ञात बीमारी के चलते मौत हो गई थी, उस समय इस बाघिन के तक़रीबन 7-8 माह के चार शावक थे जो मां की असमय मौत होने पर अनाथ हो गए। ऐसे समय जब इन अनाथ व असहाय शावकों के बचने की कोई सम्भावना नहीं थी उस समय इसी नर बाघ ने इन शावकों को न सिर्फ सहारा दिया बल्कि मां की तरह उनकी परवरिश भी की। इसका परिणाम यह हुआ कि चारो नन्हे शावक खुले जंगल में चुनौतियों के बीच अपने को बचाने में कामयाब हुए।   


नर बाघ पी-243 का व्यवहार शावकों के प्रति बहुत ही प्रेमपूर्ण और अच्छा था। वह अपने इलाके में घूमते हुए इन शावकों पर भी कड़ी नजर रखता था। खास बात यह थी कि बाघिन (जीवन संगिनी) की मौत के एक माह गुजर जाने पर भी नर बाघ ने शावकों की परवरिश के लिए जोड़ा नहीं बनाया। बाघ का इलाका चूँकि काफी बड़ा और फैला हुआ था, जिसकी वह सतत निगरानी भी करता रहा। लेकिन दो दिन से ज्यादा वह शावकों के रहवास स्थल से दूर नहीं रहता था। नर बाघ की गतिविधि पर नजर रखने वाले मैदानी वन कर्मियों के मुताबिक वह शावकों की देखभाल करने में पूरी रुचि लेता था। बाघ पी-243 शावकों के क्षेत्र में शिकार करके उनके भोजन का भी इंतजाम करता था। बाद में चारो शावक बड़े होकर दक्ष शिकारी बन जंगल में चुनौतियों और खतरों के बीच जीने में सक्षम हो गए। 

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