Sunday, August 13, 2017

दुर्लभ वन्यजीव पेंगोलिन की सुरक्षा को लेकर उठ रहे सवाल

  •   मानव आबादी वाले असुरक्षित वन क्षेत्र में छोडऩे से निर्मित हुई यह स्थिति
  •   स्वच्छन्द विचरण हेतु छोडऩे से पूर्व सक्षम अधिकारियों की अनुमति जरूरी
  •   लापरवाह वन अमले ने डीएफओ तक को नहीं दी मामले की जानकारी



अरुण सिंह,पन्ना। दक्षिण वन मण्डल पन्ना के सलेहा वन परिक्षेत्र अन्तर्गत बौलिया के जंगल में स्वच्छन्द विचरण हेतु छोड़े गये दुर्लभ वन्य जीव पेंगोलिन की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची एक में दर्ज यह विलुप्त प्राय प्राणी पिछले दिनों सलेहा वन परिक्षेत्र के जोधनटोला गाँव में ग्रामवासियों को मिला था। इस विचित्र जीव को देख ग्रामीणों ने तुरन्त पुलिस को सूचना दी, फलस्वरूप सलेहा थाना पुलिस पेंगोलिन को उठाकर थाने ले गई। यहां पर वन अमले की मौजूदगी में तमाशबीनों द्वारा पेंगोलिन के ऊपर पानी की मोटी धार डालकर सताया जाता रहा। दूसरे दिन इस वन्य प्राणी को बेहद असुरक्षित इलाके में स्वच्छन्द विचरण के लिये छोड़ दिया गया और इसके लिये सक्षम अधिकारियों से अनुमति लेना तो दूर उन्हें मामले की जानकारी तक नहीं दी गई।
उल्लेखनीय है कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की प्रथम अनुसूची में जो भी वन्य प्राणी आते हैं, उनसे संबंधित रेस्क्यू, उपचार व स्वतंत्र विचरण हेतु छोडऩे के लिये स्थल चयन जैसे सभी कार्य बावत मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक (पीसीसीएफ) की अनुमति जरूरी है। चूंकि पेंगोलिन न सिर्फ अनुसूची एक में आता है अपितु यह दुर्लभ और विलुप्त प्राय भी है। ऐसी स्थिति में पेंगोलिन जैसे वन्यजीव को सक्षम अधिकारियों की अनुमति के बिना मानव आबादी वाले असुरक्षित इलाके में छोड़ा जाना वन अमले की लापरवाही, संवेदनहीनता और अज्ञानता को दर्शाता है। जानकारों का कहना है कि स्वच्छन्द विचरण हेतु छोडऩे से पूर्व यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि वन्य प्राणी पूर्ण रूप से स्वस्थ है या नहीं। छोडऩे के उपरान्त स्वच्छन्द विचरण करने में स्वास्थ्य की दृष्टि से उसको कोई व्यवधान तो नहीं होगा। इस हेतु वन्य प्राणी चिकित्सक का स्वास्थ्य प्रमाण पत्र होना अनिवार्य है। अनुसूची एक में शामिल वन्य प्राणी को स्वच्छन्द विचरण हेतु छोडऩे से पूर्व स्थल का चयन करने में पूरी सावधानी बरती जाती है। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि चयनित स्थल वन्य प्राणी के लिये अनुकूल रहवास स्थल है या नहीं, स्थल का चयन सही न होने पर वन्य प्राणी की मृत्यु हो सकती है।

पेंगोलिन के लिये सुरक्षित नहीं बौलिया का जंगल

पेंगोलिन जैसे दुर्लभ और विलुप्त प्राय वन्य प्राणी के लिये सलेहा वन परिक्षेत्र का जंगल किसी भी दृष्टि से सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। इस पूरे इलाके में जहां मानव आबादी व भारी चहल-पहल है, वहीं बड़ी संख्या में यहां पर पत्थर की खदानें भी संचालित होती हैं। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में पेंगोलिन की अत्यधिक माँग व उसकी भारी-भरकम कीमत को देखते हुये इस वन्य जीव की व्यापक पैमाने पर तस्करी होती है। जाहिर है कि तस्करों की नजर हमेशा इस प्राणी पर रहती है। असुरक्षित इलाके में खुला छोड़ दिये जाने से यह वन्य प्राणी कभी भी तस्करों व शिकारियों के हत्थे चढ़ सकता है। यदि सलेहा वन परिक्षेत्र के कर्मचारी मामले को गंभीरता से लेते और उच्च वन अधिकारियों को पेंगोलिन के मिलने की जानकारी देते तो निश्चित रूप से उसे बौलिया के जंगल में छोडऩे के बजाय सर्वाधिक सुरक्षित व अनुकूल वन क्षेत्र का चयन होता जहां यह वन्य प्राणी सुरक्षित माहौल में स्वच्छन्द रूप से विचरण करता, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ।

पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल में अनुकूल रहवास

पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल पेंगोलिन के लिये अनुकूल और उत्तम रहवास स्थल है जहां उसकी सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है। ऐसा सुरक्षित वन क्षेत्र जिले में ही होने के बावजूद पेंगोलिन को कैसे बेहद असुरक्षित वन क्षेत्र में छोड़ दिया गया यह आश्चर्यजनक है। बाघ पुनस्र्थापना योजना को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिलब्ध पन्ना टाईगर रिजर्व में हर तरह के विशेषज्ञ मौजूद हैं। जो अपनी सेवायें म.प्र. के अन्य पार्कों सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में देते हैं। पन्ना टाईगर रिजर्व में न केवल अपने देश के वन अधिकारी अपितु रूस, केन्या, वितनाम, चीन व कम्बोडिया आदि देशों के अधिकारी भी प्रशिक्षण प्राप्त करने व यहां की सफलता को देखने के लिये आते हैं। अनेकों ऐसे देश हैं जो पन्ना मॉडल को अपने यहां अपना रहे हैं। इतनी सुविधाओं की सहज उपलब्धता के रहते हुये ऐसी लापरवाही चिन्ताजनक व वन्य प्राणियों की सुरक्षा को लेकर खतरनाक है।

इनका कहना है...

0  क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व विवेक जैन ने जागरण को बताया कि सलेहा क्षेत्र के जोधनटोला गाँव में पेंगोलिन के मिलने की जानकारी उन्हें नहीं है। आपने कहा कि यदि पेंगोलिन वहां मिला है तो उसे पन्ना टाईगर रिजर्व में ही छोड़ा जाना चाहिये था, क्योंकि यहां का जंगल इस वन्य प्राणी के लिये अनुकूल है। यहां पर पेंगोलिन पाये जाते हैं जिनकी तस्वीरें कैमरा ट्रेप पर भी प्राप्त हुई हैं।
विवेक जैन, क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व
0  नवागत वन मण्डलाधिकारी दक्षिण पन्ना से पेंगोलिन के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि मुझे इसकी जानकारी नहीं है। इसके संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर मैं आपको स्थिति से अवगत कराऊंगी। आपने बताया कि पेंगोलिन अनुसूची एक का प्राणी है जिसकी सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं होना चाहिये।
श्रीमति मीना कुमारी मिश्रा, वन मण्डलाधिकारी दक्षिण पन्ना
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Friday, August 11, 2017

पन्ना के जोधनटोला गाँव में मिला दुर्लभ जीव पेंगोलिन

  •   औषधि में उपयोग होने के कारण विलुप्त होने का मंडरा रहा संकट
  •   भारत में यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची प्रथम में दर्ज
  •   खतरे का आभास होते ही गेंद की तरह हो जाता है गोल



पेंगोलिन विचरण करते हुये।

अरुण सिंह,पन्ना। अत्यधिक दुर्लभ और संकटग्रस्त वन्यजीवों में शामिल पेंगोलिन म.प्र. के पन्ना जिले में मिला है। दक्षिण वन मण्डल पन्ना अंतर्गत सलेहा वन परिक्षेत्र के गाँव जोधनटोला में इस दुर्लभ और विचित्र जीव को जब ग्रामीणों ने देखा तो वे हैरान रह गये। क्योंकि इसके पूर्व उन्होंने ऐसा जीव पहले कभी नहीं देखा था। इस विचित्र स्तनपायी वन्यजीव को पेंगोलिन कहते हैं। चीटियों को बड़े ही चाव से खाने वाला यह दुर्लभ प्राणी औषधि व जादू-टोने में प्रयोग किये जाने के कारण संकटग्रस्त जीवों की प्रजातियों में आ गया है।
पन्ना टाईगर रिजर्व के वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि इसके शरीर पर बालों के गुच्छे(कैरेटाइन) सख्त होकर सेल में रूपांतरित हो जाते हैं और रक्षा कवच बनाते हैं। भारत में यह प्रजाति संरक्षित है, इसे वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची प्रथम में रखा गया है। यह बंगलादेश, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल, ताइवान, थाईलैण्ड और वियतनाम में राष्ट्रीय और उपराष्ट्रीय कानूनों से संरक्षित है। लगभग 100 सेमी. की लम्बाई वाला यह प्राणी खतरे का आभास होते ही अपने शरीर को गेंद की तरह गोल बनाकर निर्जीव की तरह पड़ा रहता है। इस शक्ल में पेंगोलिन ऐसा प्रतीत होता है मानो जमीन में भूरे या पीले रंग का कोई गोल पत्थर पड़ा है। वन अधिकारियों के मुताबिक पेंगोलिन का पूरा शरीर एक-दूसरे पर चढ़े हुये पीले भूरे रंग के शल्कों से ढँका रहता है। अत्यधिक कठोर ये शल्क पेंगोलिन के लिये रक्षा कवच साबित होते हैं। लभग 5 से 9 किग्रा. वजन वाले इस दुर्लभ प्राणी का शरीर सिर, गर्दन, धड़ व पूँछ में विभक्त रहता है। अत्यधिक चौकन्ना होकर धीमी चाल से जब पेंगोलिन चलता है तो उसकी पीठ ऊपर उठी रहती है। इस अनूठे वन्यजीव का उपयोग सेक्सुअल पावन बढ़ाने की दवाईयां बनाने में उपयोग होने के चलते तस्करों की नजर इस पर बनी रहती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक पेंगोलिन के अंगों की कीमत लाखों में होती है, अत्यधिक माँग के चलते यह वन्यजीवन विलुप्ति की कगार पर जा पहुँचा है।

अनोखा है भोजन करने का तरीका


पेंगोलिन एक रात्रिचर प्राणी है जिसका मुख्य आहार चीटियां, दीमक व उनके अण्डे हैं। इस विचित्र जीव का भोजन करने का तरीका भी अनोखा है। यह अपनी लगभग 30 सेमी. लम्बी चिपचिपी जीभ को चीटियों व दीमक के घरों में डालकर चुपचाप पड़ा रहता है। जब चीटियां व दीमक इसकी जीभ में चिपक जाते हैं तो यह जीभ को मुँह के भीतर खींचकर उन्हें चट कर जाता है। जानकार यह बताते हैं कि गठिया बात, बबासीर व भगंदर जैसे असाध्य रोगों के लिये भी पेंगोलिन के अंगों का उपयोग किया जाता है। भूत-प्रेत की छाया से बचने के लिये भी इसकी हड्डियों की अंगूठी पहनने का रिवाज है। ऐसी अवैज्ञानिक धारणाओं और अंधविश्वास के चलते ही यह अद्भुत प्राणी अब दुर्लभ हो गया है।

वन अमले ने बौलिया के जंगल में छोड़ा


जोधनटोला गाँव में मिले पेंगोलिन के साथ पुलिस व वनकर्मी।

वन परिक्षेत्राधिकारी सलेहा एस.पी. सिंह बुन्देला ने जानकारी देते हुये आज बताया कि सोमवार की रात्रि में जोधनटोला गाँव के लोगों ने इस विचित्र जीव को जब देखा तो उन्होंने इसे मगरमच्छ समझकर तत्काल पुलिस को सूचना दी। पुलिस इस जीव को थाना ले गई जहां वन अमले को बुलाकर इसे उनके हवाले कर दिया गया। फारेस्ट गार्ड जे.पी. सोनकर व कृष्ण कुमार गुप्ता द्वारा इस दुर्लभ और संकटग्रस्त वन्यजीव को दूसरे दिन पास के ही बौलिया जंगल में छोड़ दिया गया, जो सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। पेंगोलिन को वरिष्ठ वन अधिकारियों की देखरेख में पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल में छोड़ा जाना चाहिये था, क्योंकि इस दुर्लभ वन्यजीव को यहां पर अनुकूल प्राकृतिक रहवास व भोजन के साथ-साथ सुरक्षा भी उपलब्ध होती।

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