Tuesday, June 11, 2019

आदिवासियों के लिए कल्प वृक्ष से कम नहीं है महुआ का पेड़

  •   महुआ फूल व फलों से आदिवासियों को होती है आय
  •   वनोपज संग्रहण व जल संरक्षण पर ग्रामीणों से हुई चर्चा




  अरुण सिंह   

पन्ना। जल, जंगल और जमीन का संरक्षण आज की सबसे बड़ी जरूरत है। बिगड़ते पर्यावरण और तापमान में लगातार हो रही वृद्धि से आम जन जीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। जल संकट के चलते मौजूदा समय हर तरफ त्राहि-त्राहि मची हुई है। इन हालातों में जंगल और पानी की महत्ता का अहसास लोगों को होने लगा है। 

जिले के आदिवासी बहुल जंगल से लगे ग्रामों में वनोपज संग्रहण आज भी जीवन का एक मात्र सहारा हैं। आदिवासी समुदाय के लिये महुआ का वृक्ष किसी वरदान से कम नहीं है। इस वृक्ष को आदिवासी समाज कल्प वृक्ष की संज्ञा देता है क्योंकि यह वृक्ष उनकी आय का प्रमुख जरिया है।

उल्लेखनीय है कि महुये का फूल ही नहीं इसके फल और बीज भी बेहद उपयोगी और औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। आदिवासी परिवार मार्च से अप्रैल तक महुये का फूल बीनते हैं और जून में इन्हीं गुच्छों में फल लटकने लगते हैं। महुआ के इन फलों से तेल निकाला जाता है। 

औषधीय गुणों से भरपूर महुआ के एक वृक्ष से हर सीजन में औसतन 5 हजार रू. तक की आय हो जाती है। कल्दा पठार के आदिवासियों का यह वृक्ष जीवन का प्रमुख आधार है। पठार के जंगल में महुआ के वृक्ष बहुतायत से पाये जाते हैं। यहां के आदिवासी मार्च से लेकर अप्रैल तक महुआ फूल का संग्रहण करते हैं और जून के महीने में जब महुआ के फल पक जाते हैं तो महुआ बीज (गोही) भी एकत्रित करते हैं। अकेले महुआ फूल और गुली  से ही आदिवासियों का पूरे सालभर गुजारा होता है। 


कल्दा पठार की ही तरह जिले के अन्य दूसरे वन क्षेत्र के ग्रामों में रहने वाले लोगों के लिये भी महुआ के पेड़ आय के प्रमुख साधन हैं। ग्राम पंचायत रहुनिया के ग्राम पाठा में जल व पर्यावरण संरक्षण के संबंध में जब ग्रामीणों से चर्चा की गई तो ग्रामीणों ने जंगल की हो रही बेतहाशा कटाई पर चिन्ता जताते हुये कहा कि पानी का संकट जंगल की कटाई का ही नतीजा है। महुआ के महत्व पर चर्चा करते हुये ग्रामीणो ने अपने अनुभव बताये। 

ग्रामीणों ने बताया कि महुआ के पेड़ में इन दिनों डोरी (गुली) भरपूर लगी हुई है। महुआ के फू ल की खुशबू अभी गई नही कि डोरी की खुशबू आने लगी। इसके फल को खाया भी जा सकता है। डोरी का तेल खाने के काम आता है। इसके अलावा मुहआ की डोरी बेंच कर प्रत्येक परिवार 4 से 5 हजार रू. कमा लेता है। 

पाठा निवासी कल्याण ङ्क्षसह आदिवासी ने बताया कि हमारे खेत में 20 महुआ के पेड़ हैं जिससे हमें सालाना 40 से 50 हजार रू. मिल जाते हैं। इस कृषक ने बताया कि आगे हमें और महुआ एवं फलदार पौधे लगाने हंै। ग्रामीणों ने गाँव में 150 पौधे लगाने एवं उनकी सुरक्षा करने की बात कही। पानी से जूझ रहे ग्रामीणो ने तलैया गहरी करण पर विचार किया और आगे काम करने की बात कही है।

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स्टार समाचार सतना में प्रकाशित आलेख 

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