- कुछ ही दिन पूर्व तक नजर आ रही थी रूखी - सूखी और बेजान
- नदी किनारे खड़े अर्जुन के पेड़ जलधार के साथ करने लगे नृत्य
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चौपड़ा मंदिर के निकट से प्रवाहित हो रही किलकिला नदी का दृश्य। फोटो - अरुण सिंह
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अरुण सिंह,पन्ना। चार दिन पूर्व तक रूखी - सूखी और बेजान सी दिखने वाली किलकिला नदी हल्की बारिश होने के साथ ही जीवंत हो उठी है। जिस नदी के प्रवाह क्षेत्र में सन्नाटा पसरा रहता था वहां अब उत्सवी माहौल है। नदी के प्रवाह क्षेत्र में खड़े विशालकाय अर्जुन के वृक्षों की उदासी भी अब दूर हो गई है और वे नदी की जलधार के साथ झूम - झूम कर नृत्य करने लगे हैं। पन्ना शहर के निकट से गुजरी यह छोटी सी नदी बड़ी देवी मंदिर के पास से गुजरती हुई चोपड़ा मंदिर से होते हुए लगभग ढाई - तीन किलोमीटर लंबा सफर तय कर कौवा सेहा की गहराई में समा जाती है। प्रणामी धर्मावलंबियों की धार्मिक आस्था से जुड़ी किलकिला नदी को प्रणामी संप्रदाय की गंगा कहा जाता है लेकिन सतत उपेक्षा और गंदगी के कारण धार्मिक महत्व वाली यह नदी बारिश के अलावा शेष महीनों में गंदा नाला बन जाती है। बताया जाता है कि प्रणामी धर्म के प्रणेता महामति प्राणनाथ जी जब अपने 5000 अनुयायियों के साथ किलकिला नदी के किनारे रुके थे उस समय भी इस नदी का पानी दूषित और विषाक्त था। लेकिन महामति के इस स्थल पर प्रवास करने का असर यह हुआ कि विषाक्त और दूषित किलकिला नदी का पानी स्वच्छ और निर्मल हो गया। महामति की अलौकिक देशना और उपदेश आज भी यहां की आबोहवा में महसूस की जा रही है, लेकिन उनके अशरीरी होने के बाद इस नदी के दुर्दिन फिर शुरू हो गए जो अभी तक नहीं सुधरे। नदी के निकट ही प्रणामी धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र चोपड़ा मंदिर है जहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। महामति के अनुयायियों की संख्या हजारों से लाखों में पहुंच गई है लेकिन किलकिला नदी को अपने पुनरुद्धार के लिए एक बार फिर महामति प्राणनाथ जैसे किसी अलौकिक पुरुष का इंतजार है जो उसे स्वच्छ और निर्मल बना सके।
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दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर |
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