Monday, September 9, 2019

सीईसी की रिपोर्ट से केन-बेतवा लिंक परियोजना पर लगा गृहण

  •   सर्वोच्च न्यायालय को सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी ने सौंपी विस्तृत रिपोर्ट
  •   पर्यावरणीय क्षति को देखते हुये परियोजना के औचित्य पर उठाये सवाल
  •   लिंक परियोजना से बाघों के रहवास व पारिस्थितिकी तंत्र की होगी अपूर्णीय क्षति


 नदी के ईको सिस्टम का जायजा लेती सीईसी टीम। (फाइल फोटो)

 अरुण सिंह,पन्ना। केन्द्र सरकार की बहुप्रतीक्षित महत्वाकांक्षी केन-बेतवा लिंक परियोजना एक बार फिर चर्चा में है। शुरूआती दौर से ही विवादों के घेरे में रही इस परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) ने अभी हाल ही में जो रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी है, उससे इस परियोजना के भविष्य पर प्रश्र चिह्न खड़ा हो गया है। मालुम हो कि केन-बेतवा लिंक परियोजना से बाघों के रहवास, पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र की होने वाली अपूर्णीय क्षति की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुये मनोज मिश्रा द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी। जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि पर्यावरणीय अध्ययन में क्षति का सही आँकलन नहीं किया गया है। इस याचिका में उठाये गये सवालों तथा परियोजना की जमीनी हकीकत जानने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर उसे मौके पर जाकर जाँचने और सत्यापन के आदेश दिये थे। यह कमेटी 27 मार्च से 30 मार्च 19 तक मौके का जायजा लेने के साथ ही पन्ना टाईगर रिजर्व के अधिकारियों, याचिकाकर्ता सहित अन्य लोगों से चर्चा कर हकीकत जानने का प्रयास किया। पूरे पाँच माह बाद सीईसी ने 93 पृष्ठ की विस्तृत रिपोर्ट 30 अगस्त को सौंपी है, जिसमें कमेटी ने यह माना है कि बेतवा बेसिन में पानी की कमी है लेकिन वहां के  लिये केन नदी और उसके पारिस्थितिकी तंत्र को तबाह नहीं किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि केन नदी म.प्र. स्थित कैमूर की पहाड़ी से निकलती है और 427 किमी की दूरी तय करने के बाद उ.प्र. के बांदा में यमुना नदी से मिल जाती है। वहीं बेतवा म.प्र. के रायसेन जिले से निकलती है और 590 किमी की दूरी तय करने के बाद उ.प्र. के हमीरपुर जिले में यमुना से मिल जाती है। दोनों नदियों की यदि तुलना की जाये तो बेतवा नदी की लम्बाई केन नदी से 2.19 गुना अधिक है। दोनों नदियों के कछार के क्षेत्रफल में भी काफी अन्तर है। केन का 28,058 वर्ग किमी है जबकि बेतवा का कछार 46,580  वर्ग किमी है जो केन की तुलना में 1.66 गुना बड़ा है। यहां पर यह मौलिक प्रश्र उठता है कि क्या छोटी नदी से बड़ी नदी में पानी को ले जाना तकनीकी रूप से सही है? केन-बेतवा लिंक परियोजना के संबंध में प्रस्तुत की गई पर्यावरणीय अध्ययन रिपोर्ट भी भ्रामक और तथ्यों से परे है। जिसको लेकर पन्ना टाईगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति  ने विरोध दर्ज कराते हुये वास्तविक तथ्यों से अवगत कराया था। मालुम हो कि पर्यावरणीय अध्ययन में डूब क्षेत्र में आने वाले पीटीआर के 41 वर्ग किमी में 32,900 पेड़ों की गिनती हुई थी, जो कि एक हेक्टेयर में लगभग 8 पेड़ के बराबर है। जब क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिज़र्व श्री मूर्ति के संज्ञान में यह बात आई तो पेड़ों की दुबारा गिनती कराई गई, फलस्वरूप पेड़ों की संख्या बढ़कर 14 लाख पहुँच गई जो पर्यावरणीय अध्ययन रिपोर्ट की संख्या से 43 गुना अधिक है।

केन नदी के किनारे विश्राम करता बाघ परिवार।

बुन्देलखण्ड क्षेत्र के शुष्क वनों में बाघों का एक मात्र शोर्स पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व है, जिसका क्षेत्रफल महज 542 वर्ग किमी है। यह सर्व विदित है कि वर्ष 2009 में यह वन क्षेत्र बाघ विहीन हो गया था, फलस्वरूप यहां पर बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई। इस योजना को चमत्कारिक सफलता मिली और पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल बाघों से फिर आबाद हो गया। पन्ना का गौरव वापस लौटाने से म.प्र. का खोया हुआ गौरव भी हासिल हो गया है। म.प्र. को टाईगर स्टेट का दर्जा दिलाने में पन्ना की अहम भूमिका रही है। अब बाघों से आबाद हो चुके पन्ना टाईगर रिजर्व के भरे-पूरे संसार को फिर से उजाड़े जाने की कोई भी गतिविधि किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कही जा सकती। केन-बेतवा गठजोड़ से डाउन स्ट्रीम के केन घडिय़ाल अभ्यारण्य का जहां वजूद मिट जायेगा वहीं दर्जनों प्रजाति के वन्य प्राणियों व हजारों हेक्टेयर में फैला जंगल भी नष्ट हो जायेगा। पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र की होने वाली इस क्षति की भरपाई कर पाना संभव नहीं है। नदियों के प्राकृतिक प्रवाह के साथ छेड़छाड़ करने का मतलब पारिस्थितिकीय आपदा को बुलाना है।

सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी की रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु


पन्ना टाईगर रिजर्व के मध्य से प्रवाहित केन नदी का दृश्य।

0  केन-बेतवा लिंक परियोजना के अन्तर्गत डूब में आने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का जंगल पारिस्थितिकी तंत्र और संरचना की दृष्टि से अनूठा है। जैव विविधता के मामले में भी यह क्षेत्र अत्यधिक समृद्ध है। इस तरह के पारिस्थितिकी तंत्र को पुन: विकसित नहीं किया जा सकता।
0  सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि परियोजना के लिये 6017 हेक्टेयर वन भूमि जो अधिगृहित की जा रही है, वह पन्ना टाईगर रिजर्व का न सिर्फ कोर क्षेत्र है अपितु बाघों का प्रिय रहवास भी है। इस वन क्षेत्र के डूब में आने से 10,500 हेक्टेयर वन क्षेत्र और प्रभावित होगा। यह वन क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व से पृथक होकर दो टुकड़ों में बँट जायेगा, जिससे वन्य प्राणियों का आवागमन बाधित होगा।
0  परियोजना पर जितना पैसा खर्च होगा उससे प्रति हेक्टेयर सिंचाई  में 44.983 लाख रू. व्यय आयेगा। यदि स्थानीय स्तर पर गाँव के पानी को गाँव में ही रोकने के लिये छोटी परियोजनाओं व जल संरचनाओं पर ध्यान दिया जाये तो कम खर्च में न सिर्फ कृषि भूमि सिंचित हो सकती है अपितु जंगल, बाघ व वन्य प्राणियों के रहवास को भी बचाया जा सकता है।
0  सीईसी ने नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ द्वारा केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के लिये सहमति प्रदान करने के निर्णय पर प्रश्र चिह्न लगाते हुये कहा है कि वन्य प्राणियों के रहवास, अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता को अनदेखा किया गया है। डूब क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर एरिया है, इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया।
0 सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी ने रिपोर्ट में  द्रढता के साथ यह बात कही है कि किसी भी विकास परियोजना को देश  में बचे इस तरह के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और बाघों के अति महत्वपूर्ण रहवासों को नष्ट करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिये। बेहतर यह होगा कि इस तरह की परियोजनाओं को  संरक्षित वन क्षेत्रों से प्रथक रखा जाय। संरक्षित वन क्षेत्रों में इस तरह की विकास परियोजनायें न तो वन्य प्राणियों  के हित में हैं और न ही लम्बे समय तक समाज के हित में है।
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