Tuesday, June 2, 2020

चिरौंजी दूर कर सकती है वनवासियों की आर्थिक विपन्नता

  •   पकने से पहले ही कच्चे आचार की हो जाती है तुड़ाई 
  •   वनोपज के अवैज्ञानिक दोहन से होता है भारी नुकसान
  •   प्रतिबंध के बावजूद अधाधुंध तुड़ाई की होड़ पर नहीं लगा अंकुश


पन्ना टाइगर रिज़र्व के बफर क्षेत्र में चिरौंजी के पेड़ से फल तोड़ती आदिवासी महिला। 

अरुण सिंह,पन्ना। वन सम्पदा से समृद्ध पन्ना जिले में वनोपज के संग्रहण की उचित प्रक्रिया न अपनाये जाने के चलते भारी नुकसान होता है। पकने से पहले अचार व आंवला जैसे वनोंपज को तोडने की होड़ से उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। फलस्वरूप वनोंपज की उचित कीमत नहीं मिल पाती। जिले में चिरौंजी संग्रह एवं प्रोसेसिग के क्षेत्र में स्वरोजगार व रोजगार की काफी संभावना है। अगर योजनाबद्ध तरीके से काम किया जाए, तो इससे हजारों लोगों को काम मिल सकता है, साथ ही अर्थोपार्जन के माध्यम से उनकी आमदनी भी बढ़ाई जा सकती है। चिरौंजी के बीजों में वनवासियों की आर्थिक विपन्नता दूर करने की क्षमता है।

उल्लेखनीय है कि विकास की दौड़ में पन्ना भले ही बहुत पीछे है पर प्राकृतिक रूप से पन्ना जिला बहुत समृद्ध है। प्रकृति ने पन्ना को कई अनुपम उपहार दिये हैं, जिनमें वनोपज भी शामिल है। कुल भू भाग के 47 फीसदी वनक्षेत्र वाले इस जिले में हर सीजन में प्रचुर मात्रा में वनोपज का उत्पादन होता है। वनों के आसपास स्थित सैकड़ों ग्रामों में लाखों परिवारों के लिए वनोपज संग्रहण आज भी अजीविका का मुख्य स्रोत है। तेंदूपत्ता और महुआ को छोड़ दें तो पिछले कुछ वर्षों में आंवला, अचार, तेंदू, हर्र तथा बहेरा आदि वनोपज के संग्रहण में वनवासियों को अब पहले जैसा लाभ नहीं मिल रहा है। जबकि आंवला, अचार, तेंदू, हर्र, बहेरा के मूल्य में लगातार वृद्धि हो रही है। वनोपज संग्रहण में अथक परिश्रम करने के बावजूद अपेक्षित लाभ न होने का मुख्य कारण वनोपज का अवैज्ञानिक विदोहन है। यानि कि अचार, तेंदू, आंवला के पकने से पहले उसकी तुड़ाई कर उसे संग्रहित किया जा रहा है। स्थिति यह है कि जिले में  उत्तर वनमण्डल, दक्षिण वनमण्डल एवं टाईगर रिजर्व के बफर जोन एरिया में कच्चे अचार की तुड़ाई को लेकर मई के महीने में होड़ सी मची रही। सुबह से बूढ़े, बच्चे, महिलायें और जवान हर कोई जंगल जाकर ज्यादा से ज्यादा अचार की तुड़ाई कर उसका संग्रहण करने में जुटें हुये थे। आंख मूंदकर कच्चे अचार को तोडने की वृत्ति का मुख्य कारण यह है कि यदि अचार के पकने का इंतजार किया तो कोई दूसरा उसे तोड़ ले जायेगा। अचार के संग्रहण में एक - दूसरे से आगे निकलने की इसी होड़ के कारण हाल के वर्षों में अचार का अवैज्ञानिक विदोहन बढ़ा है। परिणामस्वरूप कच्चा अचार तोड़कर वनोपज संग्राहक अपना ही आर्थिक नुकसान कर रहे हैं।

जंगल से कच्चे अचार तोड़कर घर के बाहर सुखाती आदिवासी युवती।

एक वनवासी महिला ने बताया कि पिछले वर्ष उसने 150 रूपये किलो की दर से अचार बेंचा था। इस बार उसे समय से पहले अचार तोडना पड़ा है। चूंकि अन्य लोगों ने अचार तोडना शुरू कर दिया था। अचार कच्चा होने से उसमें अच्छी तरह से चिंरौजी भी नहीं आ पाई है। इस महिला सहित अन्य संग्राहकों की मानें तो इस बार का अचार शायद ही कोई 50 रूपये किलो खरीदने के लिए कोई तैयार हो। चूंकि जो अचार तोड़ा जा रहा है उसमें से 80 फीसदी में चिंरौजी नहीं आ पाई है। वहीं अचार का आकार अभी छोटा है। संग्राहकों को यह भलीभांति पता है कि इस आग उगलती गर्मी में कठिन परिश्रम कर जंगल में वे जिस अचार को तोडने की होड़ में जुटे हैं उसकी बिक्री से उनकी मेहनत का वास्तविक मूल्य भी नहीं मिल पायेगा। पर विडम्बना यह है कि किसी में इतना धैर्य और संयम नहीं कि वह अचार सहित अन्य वनोपज की तुड़ाई के लिए उसके पकने तक का इंतजार करे। संग्राहकों के दिमाग में तो दिनरात एक ही बात चल रही है कि कैसे वे दूसरे से अधिक वनोपज की तुड़ाई कर उसका संग्रहण करने में सफल हों। इस अंधी होड़ में वनोपज संग्राहक अपना आर्थिक नुकसान करने के साथ-साथ जैव विविधता को तथा वनों को भी क्षति पहुंचा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि समय से पूर्व वनोजप की तुड़ाई कर उसका संग्रहण करना वनोपज (जैव विविधता का संरक्षण एवं पोषणीय कटाई) नियम 2005 के अंतर्गत प्रतिबंधित है। लेकिन प्रतिबंध प्रभावी तरीके से लागू न होने के कारण वनोपज संग्राहक इसका उल्लंघन कर रहे हैं।
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