Wednesday, September 23, 2020

आप हमें कभी भूल नहीं पायेंगे !



अपनी पत्नी के साथ आर. श्रीनिवास मूर्ति। 

।। अरुण सिंह।। 

खूबियां इतनी तो नहीं हममें कि तुम्हें याद आयेंगे, पर इतना तो भरोसा है हमें खुद पर, आप हमें कभी भूल नहीं पायेंगे। यह पंक्तियां किसकी है मुझे यह तो नहीं मालूम लेकिन इस बात का इल्म जरूर है कि याद उन्हें किया जाता है जिन्हें विस्मृत कर दिया गया हो, भुला दिया गया हो। पर जो भूले ही न हों उन्हें भला कैसे याद किया जाये। मई 2009 से जून 2015 के दरम्यान तकरीबन 6 वर्ष के कार्यकाल में कोई व्यक्ति कुछ ऐसा कर गुजरता है जिसे करिश्मा कहा जाता है। जी हां वह व्यक्ति हैं पन्ना टाइगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर श्रीनिवास मूर्ति, इनके जीवन में 23 सितंबर का खास महत्व है क्योंकि यह तारीख उनका जन्म दिवस है। आज उस समय के हालात चलचित्र की तरह एक बार फिर घूम गये हैं। 
 देश और दुनिया में बदनाम और पूरी तरह से बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से आबाद करने के  चुनौतीपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी सरकार ने सीधे, सरल और सादगी पसंद इसी वन अधिकारी आर श्रीनिवास मूर्ति को सौंपी थी। उस समय किसी को भी भरोसा नहीं था कि पन्ना के जंगल में वनराज की दहाड़ सुनाई देगी तथा नन्हें शावक अपनी मां के साथ चहल- कदमी करते हुए नजर आयेंगे। लेकिन जो असंभव सा दिखता हो वह संभव हो जाये, उसी को तो करिश्मा कहते हैं जो पन्ना में घटित हुआ। लेकिन इसके पीछे गहरी समझ, ईमानदार प्रयास और पन्ना के गौरव को फिर हासिल करने का जज्बा था। इसी जज्बे का ही प्रभाव था कि विपरीत माहौल अनुकूल बनता चला गया। किसी व्यक्ति का जीवन जब सच्चाई, ईमानदारी और जनकल्याण के लिए समर्पित हो जाता है तो वह जो बोलता और करता है उसका लोगों पर जादुई असर होता है। श्री मूर्ति के संदर्भ में मैंने तो ऐसा ही कुछ महसूस किया। उन्होंने अधिकारियों व मैदानी अमले में ऊर्जा का संचार करने के लिए "जय हिंद" के उदघोष की शुरुआत की। जब भी वनकर्मी व अधिकारी मिलते या फिर विदा होते तो जय हिंद बोलते थे। यह परंपरा अभी भी चल रही है लेकिन शब्दों में जब प्रांण और जीवंतता न हो तो शब्द मुर्दा हो जाते हैं। जो उद्घोष उस समय लोगों में उत्साह और ऊर्जा का संचार कर देता था वह अब सिर्फ परंपरा और आदत का हिस्सा बन गया है। जंगल वही, लोग भी वही लेकिन अब हालात बदले - बदले से हैं। प्रकृति ने पन्ना में सृजन की अनूठी मिसाल पेश की है लेकिन हम प्रकृति की लय के अनुरूप चलने के बजाय विपरीत दिशा में यात्रा करने लगे हैं। नतीजतन एक बार फिर 10 वर्ष पूर्व वाले हालात दिखने लगे हैं। श्री मूर्ति व उनकी उस समय की टीम ने सफलतापूर्वक अपना काम पूरा कर न सिर्फ पन्ना को आबाद किया अपितु देश व दुनिया में इस अनोखी उपलब्धि के लिए पन्ना को प्रसिद्धि भी मिली। अब जब एक बार फिर बाघों व वन्यजीवों की सुरक्षा व संरक्षण पर खतरा मंडराने लगा है, उस समय पन्ना के जागरूक व समझ रखने वाले लोगों का यह दायित्व और जिम्मेदारी है कि वह पन्ना के गौरव (बाघ) को बचाने के लिए आगे आयें और अनुकूल वातावरण बनायें। जय हिंद !
 00000

No comments:

Post a Comment