पद्मश्री बाबूलाल दाहिया जी मक्का के भुट्टे दिखाते हुए। |
अरुण सिंह, पन्ना। घर, आँगन और खेत में हर कहीं उगने वाला मक्का जिसके दानों को आग में भूनकर हम सब बड़े चाव से खाते हैं, उसकी परागण क्रिया कितनी जटिल और रहस्यपूर्ण है यह जानना भी उतना ही दिलचस्प है। मक्का की जटिल परागण क्रिया को यदि पद्मश्री बाबूलाल दाहिया जी अपनी जुबानी बतायें तो उसका आनंद भी मक्का के स्वाद से कम नहीं है। आमतौर पर ठेठ बघेली में बतियाने वाले पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कृषक बाबूलाल दाहिया जी ने जैव विविधता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। इन्होने धान की अनेकों किस्मों को न सिर्फ संरक्षित किया है अपितु जैविक खेती को बढ़ावा देने व मोटे अनाजों को सहेजने का भी कार्य किया है। सतना जिले के पिथौराबाद गांव के निवासी श्री दाहिया बघेली के ख्यातिलब्ध कवि भी हैं। विंध्य और बुन्देलखण्ड क्षेत्र में कभी बहुलता में उगाये जाने वाले मोटे अनाजों के बारे में उनका परम्परागत ज्ञान अतुलनीय है। परंपरागत देशी धान की बिसरा दी गईं न जाने कितनी किस्मों को आपने बड़े जतन के साथ सहेजने और संरक्षित करने का जहाँ काम किया है वहीँ सावा, काकुन ,कुटकी, कोदो , ज्वार, बाजरा , मक्का जैसे मोटे अनाज अपने खेत में उगाकर खेती के पुराने परम्परागत ज्ञान की अलख जगाये हुये हैं। मोटे अनाजों की जैविक खेती का महत्व व इसका मानव जीवन और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस बावत भी दाहिया जी लोगों को जागरूक करते हैं।
दाहिया जी बताते हैं कि मेरे हाथ मे जो मक्के का भुट्टा है उसमें एक ही भुट्टे में तीन रंग हैं। सफेद, काला और पीला । बहुत से लोगों को यह न मालुम होगा कि एक ही भुट्टे में अलग-अलग रंग के दाने कैसे बन गये ? पर यह सब आप के मक्के में भी बन सकता है। दर असल मक्के के भुट्टे चार अलग अलग रंग के होते हैं ? वह रंग हैं सफेद, पीला, लाल और काला। मक्के की परागण क्रिया बड़ी जटिल है। आपने देखा होगा कि उसमें पुष्प तो पौधे के ऊपर आते हैं पर भुट्टे मध्य भाग में लगते हैं। जब ऊपर पुष्प आ रहे होते हैं तभी मध्य भाग में भुट्टे का आकार बन कर उसके ऊपर झालर नुमा सफेद ललामी युक्त रेशे भी दिखने लगते हैं।
भुट्टे के ऊपर लटक रहा वह हर रेशा भुट्टे में सम्भावित दाने के खाँचे से जुड़ा रहता है और जैसे ही परागण कण उस रेशे में पड़े वह उन्हें दाने के खाँचे तक पहुंचा देता है। यदि परागण उसी पौधे के कणों से हुआ तब तो दाने का रंग एक जैसा उसी प्रजाति के अनुरूप होगा। किन्तु अगर परागण कण पास ही उगे अन्य प्रजाति के लाल, काले आदि मक्का पौधों से आकर उस रेशे में पड़ेगा तो वह रेशा दाने के भ्रूण में अन्य प्रजाति के परागण को पहुंचा देगा। फलस्वरूप जितने किस्म के मक्के के पुष्प के परागण कण उसके रेशों में पड़ेंगे दाने का रंग मेरे हाथ में रखे भुट्टे की तरह कई रंग का हो जायेगा।
डॉ. बिनीता देवी लाल दाने वाले भुट्टों के साथ। |
सोसल मीडिया के खेती किसानी ग्रुप में दाहिया जी द्वारा दी गई इस जानकारी पर एकेएस यूनिवर्सिटी में जेनेटिक्स एण्ड प्लांट ब्रीडिंग विभाग की प्रमुख डॉ. बिनीता देवी ने रोचक और ज्ञानवर्धक प्रतिक्रिया दी है। जिसकी सराहना करते हुये दाहिया जी ने कहा है कि मैडम जी आपका काम बहुत ही अच्छा है। डॉ. बिनीता देवी ने लाल मक्का विकसित करने के लिये दाहिया जी को बधाई देते हुए इस सन्दर्भ में बताया है कि उन्होंने भी लाल मक्का विकसित करने का कार्य उस दौरान किया जब वे बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झाँसी में जेनेटिक्स एण्ड प्लांट ब्रीडिंग विभाग में पदस्थ थीं। आपने बताया कि वे मक्का की इस प्रजाति को व्यावसायिक खेती के अनुरूप विकसित करने के कार्य में लगी हैं। उनके इस कार्य की पद्मश्री दाहिया जी ने सराहना की है।
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