Monday, October 19, 2020

धरती को विषाक्त बनाने की दास्तान है : मानव युग


।। अरुण सिंह ।।

हमारी धरती दिनों दिन इस कदर विषाक्त होती जा रही है कि भविष्य में यहां जीवन कठिन हो जायेगा। हमने अभी तक पृथ्वी से सिर्फ लिया है, उसका भरपूर दोहन किया है उसे वापस कुछ भी नहीं लौटाया, जिससे प्रकृति का संतुलन तहस-नहस हो गया है। प्रकृति और पर्यावरण की बिना परवाह किये हम जंगलों को उजाड़ रहे हैं, नदियों के नैसर्गिक स्वरूप को बिगाड़ कर उन्हें प्रदूषित कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि अब मौसम का क्रम बदलने लगा है और जंगल कटने से ऑक्सीजन की कमी के कारण फेफड़ों की बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। मनुष्य अपनी भौतिक उपलब्धियों से इस कदर बौराया हुआ है कि अपने को वह सर्वोपरि मानने लगा है। वह प्रकृति के शाश्वत नियमों की अनदेखी कर रहा है, जो अत्यधिक खतरनाक और विनाशकारी है।

डाउन टू अर्थ पत्रिका ने हाल ही में एक विशेषांक प्रकाशित किया है, जिसमें एंथ्रोपोसीन यानी मानव युग पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला गया है। इस पत्रिका ने उल्लेख किया है कि मौजूदा समय को हम भले ही कलयुग का नाम दें लेकिन वैज्ञानिक भाषा में इसे मानव युग यानी एंथ्रोपोसीन कहा जा रहा है। लेकिन यह हमारे लिए खुश होने की बात नहीं है। दरअसल यह युग 450 करोड़ साल पुरानी धरती पर हमारे अत्याचारों का परिणाम है। मौजूदा समय धरती पर कोई भी जड़ या चेतन ऐसा नहीं है जिसे हमने नुकसान न पहुंचाया हो। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस नये युग की शुरुआत 1950 में हुई थी। ठीक इसी समय पृथ्वी पर "ग्रेट एक्सेलेरेशन" नामक एक घटना हुई। आर्थिक विकास और उसके फल स्वरुप लगातार बढ़ती आबादी ने धरती को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। वर्ष 2007 में क्रूटजेन ने इसे "ग्रेट एक्सेलेरेशन" के नाम से परिभाषित किया। वायु, जल एवं भूमि प्रदूषण, अधा धुंध कटते जंगल, विलुप्त होती प्रजातियां, जलवायु परिवर्तन और ओजोन परत में छेद इन बदलावों में से प्रमुख हैं। रेडियो न्यूक्लाइडस परमाणु परीक्षणों के अवशेष होते हैं और यह हजारों वर्षों तक वातावरण में बने रह सकते हैं। अत: ये एंथ्रोपोसीन के आगमन को दर्शाने वाले सबसे अहम संकेत हैं।

मानव युग के मौजूदा काल को कुछ विचारशील लोग इलेक्ट्रॉनिक युग के रूप में भी परिभाषित करते हैं। इस संबंध में अमृत साधना अपने एक आलेख में कहती हैं कि इलेक्ट्रॉनिक जाल ने मनुष्य के जीवन को ऑक्टोपस की भांति पूरी तरह से जकड़ लिया है। घर, बाहर, दफ्तर में या बाजार में हर जगह कदम-कदम पर हम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आधीन हो गये हैं। कंप्यूटर, उपग्रह, डेटाबेस, टीवी, मोबाइल, टेलीफोन, ईमेल, व्हाट्सएप, फेसबुक - इनके अंतरजाल ने मनुष्य के आम जीवन को घेर लिया है। आज उनके द्वारा उपलब्ध की हुई सुविधाओं से हम इतने सम्मोहित हैं कि उन्ही के पीछे छिपे हुए खतरों के प्रति हम बिलकुल मूर्छित हैं।  अमृत साधना कहती हैं हर युग का अपना "पासवर्ड" होता है जो उस युग का प्रतीक बनता है। आज के युग का पासवर्ड : तनाव है। हर मनुष्य इस तनाव को ढो रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इतनी सुविधायें, इतनी संपत्ति, इतनी स्वतंत्रता मनुष्य के पास कभी नहीं थी, जितनी कि इस समय है। लेकिन इसी के साथ इतना तनाव भी उसके जीवन में कभी नहीं रहा, जितना कि आज है। आखिर इसकी वजह क्या है? यदि हम स्वयं का ईमानदारी के साथ बिना किसी पूर्वाग्रह के निरीक्षण करें तो पायेंगे कि इस तनाव के लिए हम खुद ही जिम्मेदार हैं। हमने प्रकृति से अपना नाता तोड़ लिया है और अपने को सर्वशक्तिमान समझने की गलतफहमी पाल ली है। जबकि अस्तित्व गत सच्चाई यही है कि पृथ्वी में जो कुछ भी है वह सब एक दूसरे से जुड़ा और परस्पर निर्भर है। किसी भी चीज को खत्म करने या नुकसान पहुंचाने की कोई भी कोशिश खतरनाक है। पृथ्वी पर जो कुछ भी है वह हमारे लिए सहोदर के समान है। हमें सह-अस्तित्व का सम्मान करते हुए उन सबके साथ जीने का सलीका सीखना होगा।

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