Friday, October 2, 2020

जैविक खेती की पाठशाला बना पन्ना का जनवार गांव

  •  जंगल की लकड़ी बेचने वाले आदिवासी अब कर रहे खेती
  •  जनवार गांव की सब्जी ने बदला जायका, बढ़ रही मांग

पन्ना जिले के जनवार गांव में अपने खेत पर काम करता आदिवासी कृषक। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्य प्रदेश के जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित आदिवासी बहुल जनवार गांव जैविक खेती के मॉडल विलेज के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। कुछ वर्षों पूर्व तक इस छोटे से गांव के गरीब आदिवासी जंगल से लकड़ी काटकर किसी तरह अपना जीवन यापन करते थे, वे अब जैविक खेती अपनाकर न सिर्फ सब्जी उगा रहे हैं अपितु आम और अमरुद जैसे फलदार वृक्ष लगाकर लाभ अर्जित कर रहे हैं। परंपरागत जैविक खेती अपनाने से न सिर्फ उनकी जिंदगी में बदलाव आया है बल्कि वे धरा के साथ-साथ लोगों की सेहत बेहतर बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। देसी पद्धति से उगाई जा रही जनवार गांव की सब्जी का जायका ही कुछ ऐसा है कि यहां की सब्जी हाथों-हाथ बिकती है। जनवार गांव की सब्जी, फल विशेषकर अमरूद की मांग पन्ना जिले के बाहर भी बढ़ी है।

 

उन्नतशील कृषक लखनलाल कुशवाहा खेत में लगी लौकी दिखाते हुये। 

विगत कई दशकों से सब्जी की खेती करने वाले जनवार गांव के कृषक लखनलाल कुशवाहा 68 वर्ष ने बताया कि वे बचपन से जब 12 वर्ष के थे, तब से सब्जी उगा रहे हैं। लेकिन अब खेती के तौर-तरीकों में बदलाव कर सब्जी के साथ फलों का भी उत्पादन कर रहे हैं, जिससे पहले के मुकाबले आय कई गुना बढ़ गई है। लखनलाल ने अपना अमरूद का बगीचा दिखाते हुए मीठे और स्वादिष्ट अमरूद भी खिलाये और बताया कि उद्यान विभाग के सहायक संचालक महेंद्र मोहन भट्ट से तरह-तरह का तकनीकी मार्गदर्शन व सलाह मिलता है, जिससे उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ फल व सब्जी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। प्रतिदिन पांच से सात हजार रुपये कमाने वाले लखनलाल ने बड़े ही गर्व से बताया कि 68 साल की उम्र में भी वे जवानों की तरह खेत में काम करते हैं। मेहनत करने से उन्हें अच्छी भूख भी लगती है और चूल्हे की बनी 10-12 रोटी अकेले ही खा जाते हैं। इस उम्र में भी हर तरह की बीमारियों से मुक्त लखनलाल खेत में ही झोपड़ा बनाकर परिवार के साथ रहते हैं। उनके 3 पुत्र, बहुयें तथा नाती व नातिनें सभी खेत में हाथ बटाते हैं। लखनलाल के चार नाती पन्ना के अच्छे स्कूल में पढ़ते भी हैं और खाली समय में खेत पर काम भी करते हैं।

सतना के व्यापारी ने शुरू की थी जैविक खेती

   

जैविक कीटनाशक 

जनवार गांव को जैविक खेती के मामले में राष्ट्रीय पहचान सतना के व्यापारी लक्ष्मणदास सुखरामानी ने दिलाई। इस कामयाब व्यापारी ने जनवार गांव में तकरीबन ढाई एकड़ जमीन खरीदकर यहां बेहद उन्नत तरीके से ऑर्गेनिक खेती करनी शुरू की। कुछ ही सालों में इनके द्वारा उत्पादित सब्जी व फलों की ख्याति फैल गई और दूर-दूर से लोग इनके पास जैविक खेती सीखने के लिए आने लगे। इस तरह से जनवार गांव जैविक खेती की पाठशाला बन गया। गांव के तकरीबन 40 आदिवासी परिवार जंगल से लकड़ी काटकर बेचने का काम छोड़ अपने खेतों में सब्जी उगाने का काम करने लगे हैं। मौजूदा समय यह सभी आदिवासी परिवार खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का बिना उपयोग किये जैविक खेती करने वाले उन्नत कृषक लक्ष्मणदास सुखरामानी को राष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। वे ढाई एकड़ के अपने खूबसूरत फार्म में विविध फलों सहित सब्जियां तो उगाते ही हैं, डेयरी फार्म भी चलाते हैं। इनकी डेयरी का दूध शहर में ₹70 प्रति लीटर की दर से बिकता है। सहायक संचालक उद्यान महेंद्र मोहन भट्ट ने बताया कि लक्ष्मण दास की जमीन सोना है। कहीं भी आप मिट्टी निकालो नीचे केंचुये मिलेंगे। वे जिस तरह सेआर्गेनिक खेती कर रहे हैं उससे हासिल सर्टिफिकेट के जरिए 50 से भी अधिक देशों में अपना ऑर्गेनिक उत्पाद निर्यात कर सकते हैं।

 आदिवासियों के खेतों में लहलहा रही धान की फसल 

जनवार गांव के आदिवासियों ने इस साल सब्जी के साथ-साथ धान की फसल भी लगाई है, जो खेतों में लहलहा रही है। लखनलाल कुशवाहा के ठीक बाजू में मिठाईलाल आदिवासी, फूला आदिवासी तथा करीमा आदिवासी के खेत हैं। इन्होंने अपने खेत में अमरूद का बगीचा लगा रखा है, आम के भी कई उन्नत किस्म वाले पौधे इस साल लगाये हैं। फूला आदिवासी ने बताया कि उसने खेत में भिंडी, करेला, खीरा, सेम व कुम्हड़ा की सब्जी लगाई थी, जिसे पन्ना ले जाकर बेचते हैं। इन आदिवासियों के खेत में जैसे ही हम पहुंचे, फूला आदिवासी (बेवा) तुरंत अपने झोपड़े से नई प्लास्टिक वाली कुर्सियां निकालकर पेड़ के नीचे छांव में रख दी। हम इन कुर्सियों में जब बैठ गये तब सहज, सरल और स्वाभाविक जीवन जीने वाले आदिवासियों ने बड़े ही रोचक ढंग से अपनी जीवन गाथा को सुनाया। फूला आदिवासी ने बताया कि मेरे खेत में बोर नहीं है, बगल वाले पानी नहीं दे रहे जिससे धान में पानी नहीं लग पा रहा है। उसने कहा कि यदि सरकार से मदद मिल जाये और उसके खेत में भी बोर हो जाये तो उसकी सारी समस्या दूर हो जायेगी। 


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