Tuesday, October 6, 2020

नदियां कहां से लाओगे..भागीरथ तो नहीं हो !

 


अमूमन सुनते होंगे आप भी कि चुनावी सभाओं में नेताओं के अधपके बयानों के बीच वे नदियों को कहीं से कहीं ले जाने की बात करते हैं, दावा कर जाते हैं कि हम फलानी नदी का पानी आप तक पहुंचाएंगे, हम फलानी नदी से आपके क्षेत्र तक पानी पहुंचाएंगे....मैं पूछना चाहता हूं कि आप भागीरथ हैं, आप लाए हो नदी को... जो नदी या उसकी धारा को इधर से उधर ले जा सकते हैं...शर्म कीजिए...। नदी के पानी के लिए वादे करने के पहले हजार बार सोचिएगा क्योंकि नदी तुमने नहीं बनाई है, उसका पानी तुम्हारे श्रम से प्रवाहित भी नहीं होता, वो तुम्हारी सोच के अनुरुप बहती भी नहीं है, जब तुम्हारे हाथ न उसका पानी है, न जगह है, न मौसम है, न ही उसके सूखने का इलाज है तब कैसे तुम अपनी जीत के लिए नदी के पानी को कहीं भी ले जाने के वादों की बेतुकी फसल पका देते हो। प्रकृति और उससे जुडे़ हर तत्व पर किसी का हक नहीं हो सकता, वो केवल प्रकृति का हक है और वह ही उसे संचालित कर सकती है। हमारे हाथ नदियां आईं तो हमने अपनी झुलसी प्रतिभा से उनमें से अनेक को अब तक रसातल में पहुंचा दिया है। चुनाव में नदियों पर कोई वादे कैसे किए जा सकते हैं। सोचिएगा मैं तो देश की जनता से भी निवेदन करना चाहता हूं कि पानी मांग रहे हैं, नदियां का पानी मांग रहे हैं तो पहले नदियों को जीवित रहने लायक तो बनाईये। रही बात पानी के संकट की तो संकट पैदा करने और इस मौसम चक्र को तबाह करने  के पीछे हम मानवों का ही हाथ है, इसका उपाय ये कतई नहीं है कि हम अपने पानी के लिए किसी नदी के शरीर में खींचतान मचाएं। अपने  पानी को दोबारा मजबूत बनाएं, धरा को पानीदार करें...जो बिखर गया है वो संवारा जा सकता है लेकिन नदी का ये उपाय मेरे तो समझ से परे है कि जहां संकट आने लगा वहां नदी की धारा खींचकर ले जाईये। 

कोरोना आ गया तो गंगा जैसी कई नदियों को जीवन मिल गया। हमें सोचना होगा कि हम अपने स्वार्थ की अंगीठी में चुनावी रोटियों के बीच नदियों को कतई न लाएं क्योंकि नदियां हैं तो जीवन है। मुझे बहुत परेशानी हो जाती है तब भी किसी नेता का बयान देखता हूं कि हम फलानी नदी का पानी तुम तक पहुंचाएंगे...अरे आप केवल उसके पानी को उसकी धारा से जुदा कर एक और उसके बाद कई सारे रास्ते बना रहे हैं...वे रास्ते नदियों को जीवन नहीं बल्कि सूखे की ओर धकेलेंगे, उसकी धारा या उसकी राह को मोड़ने का अर्थ होता है कि आप बहुत कुछ बदल देते हैं, वर्तमान, भविष्य, भूगोल, नदी का जीवन और जलीय जीवों का जीवन भी...तो प्लीज...देश के नेताओं आपसे निवेदन है कि नदियों पर आप कोई बयान देने से पहले ये सोचा अवश्य करें। हमारी धरती पर नदियों की राह प्रकृति ने बनाई है और प्राकृतिक तरीकों से ही उसके जल का प्रवाह होता है, ऐसे बहुत से उदाहरण है जब नदी की राह बदली गई या उसके पानी को बेतरतीब ढंग से यहां वहां खींच लिया गया तब वो नदी ही खत्म हो जाती है...वैसे भी नदियां संकट के दौर में तो हैं...आप भागीरथ नहीं हैं, दोबारा धरती पर नदी नहीं ला पाएंगे इसलिए प्लीज...।

@संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन,

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