- वन योद्धाओं पर केंद्रित टेली फिल्म द फ्रंटलाइन वॉरियर ऑफ पन्ना की धूम
- प्रकृति व वन्य जीव प्रेमी टेलीफिल्म देखकर दे रहे उत्साहजनक प्रतिक्रियायें
अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की हरी-भरी वादियों, खूबसूरत घने जंगलों और पहाड़ों के बीच से प्रवाहित होने वाली जीवनदायिनी केन नदी की छटा निराली है। प्रकृति प्रदत्त यहां के अलौकिक व अनिवर्चनीय सौंदर्य को निहारकर सैलानी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यहां के जंगल आदिकाल से वन्य प्राणियों विशेषकर बाघों की शरण स्थली रही है। यही वजह है कि विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं से अलंकृत इस इलाके को रत्नगर्भा के साथ-साथ बाघों की धरती के नाम से भी जाना जाता रहा है। जैव विविधता से परिपूर्ण पन्ना जिले के विशाल वन क्षेत्र को तमाम तरह की चुनौतियों, व्यवधानों और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद काफी हद तक पन्ना जिलावासियों ने सहेज कर रखा है। इस कार्य में उन वन योद्धाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है, जिन्होंने कठिन चुनौतियों का मुकाबला करते हुए न सिर्फ अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया अपितु इस अनमोल धरोहर को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए अपने जीवन को भी दांव पर लगाने में पीछे नहीं रहे।
विषम परिस्थितियों के बीच रहकर अनगिनत चुनौतियों का सामना करते हुए जंगल तथा वहां विचरण करने वाले वन्यजीवों की सुरक्षा करने वाले इन्हीं कर्तव्यनिष्ठ वन योद्धाओं पर केंद्रित एक टेली फिल्म "वन योद्धा - द फ्रंटलाइन वॉरियर आफ पन्ना" का निर्माण प्रकृति और वन्य जीव प्रेमी अभिनव पांडेय व सुशील ने किया है। यह छोटी सी फिल्म जंगल की निराली दुनिया को जहां बड़ी खूबसूरती के साथ प्रकट करती है, वहीं वन योद्धाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और कठिनाइयों से भी रूबरू कराती है। निश्चित ही प्रकृति प्रेमी युवाओं की यह अभिनव पहल सराहनीय है। इस फिल्म को बीते दो माह में ही राष्ट्रीय पहचान मिली है तथा लोग इसे बेहद पसंद कर रहे हैं। इस फिल्म को देखकर सैकड़ों लोगों ने अपनी उत्साहजनक प्रतिक्रियायें भी दी हैं और वन्य प्राणियों की सुरक्षा करने वाले वन योद्धाओं को सलूट किया है। इस टेलीफिल्म की गुणवत्ता तो उच्च क्वालिटी की है ही लेकिन इसमें वन योद्धाओं के बारे में जो शब्द दिये गये हैं वह हकीकत को बयां करते हैं।
पन्ना टाइगर रिज़र्व के जंगल की निगरानी करते फ्रंटलाइन वनयोद्धा। |
तकरीबन 6रू30 मिनट की इस फिल्म की शुरुआत वन योद्धाओं की कठिन जिंदगी और पन्ना टाइगर रिजर्व के दिलकश नजारों को दिखाते हुए होती है। फिल्मांकन के बीच में ही कर्णप्रिय आवाज सुनाई देती है कि हिंदुस्तानी जंगलों की बात ही निराली है, दुनिया की 7 फीसदी जैवविविधता सिर्फ हमारी है। पर सवाल है कि इतने जंगलों को पालेगा कौन? मवेशी घुस आएंगे जंगलों में तो संभालेगा कौन? फिल्म में इन सवालों का जवाब कुछ इस तरह दिया जाता है। यह वही हैं जिन्हें जानवरों की जान खुद से ज्यादा प्यारी है, इनकी जंग हमेशा से जारी है। कभी मौसम बेमिजाज है तो कभी सामने जिद्दी शिकारी है। बचाते हमें जानवरों से और जानवरों को हमसे। नहीं यह भगवान तो नहीं लेकिन एक अकेले खुद के साथ परिवार दांव पर लगाना आसान तो नहीं। चलिए आप बताइए जंगल में जिंदगी बिताएंगे? रहेंगे तेंदुओं के सामने, आप दूसरों को बचाएंगे? एक वन रक्षक कहलाकर अपना सब कुछ लुटायेंगे? 24 घंटे की नौकरी और सिर्फ चलते जाना है, कितने संघर्षों के बाद भी इनसे अनजान जमाना है। आओ मिलकर कदम उठायें, अब इनकी पहचान हमें बनाना है।
काबिले गौर है की पन्ना टाइगर रिजर्व का मैदानी अमला निसंदेह सर्वश्रेष्ठ है। यह वही वन अमला है जिसने अथक श्रम और निष्ठा से काम करते हुए पन्ना को शून्य से इस मुकाम तक पहुंचाया कि पन्ना में जन्मे बाघ केन से लेकर सोन तक विचरण कर रहे हैं। दिक्कत और परेशानी तब शुरू होती है जब आला अधिकारियों के बीच निहित स्वार्थ और अहं को लेकर टकराव होता है जिसके चलते टीम वर्क की भावना को क्षति पहुंचती है। बीते कुछ महीनों के दौरान पन्ना टाइगर रिजर्व में जो कुछ हुआ वह ऐसे ही टकराव व टीम वर्क की भावना के तिरोहित हो जाने का नतीजा है। इससे सीख लेने की आवश्यकता है ताकि फिर इन गलतियों की पुनरावृत्ति न हो। जनसमर्थन से बाघ संरक्षण का नारा धरातल में नजर आये, इस दिशा में ठोस और कारगर पहल की जरूरत है। क्योंकि बिना जनसमर्थन के वन व वन्य प्राणियों की सुरक्षा संभव नहीं है। यदि हम इस दिशा में आगे कामयाब रहे तो यह अनमोल धरोहर जिसका हमने बहुत कुछ खोकर संरक्षण किया है, वह हमें सूद और व्याज के साथ खुशहाली लौटायेगा। इतना ही नहीं आने वाली पीढ़ियां भी हमारे इस अनूठे योगदान के लिए अनुग्रहित रहेंगी।
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