Tuesday, December 15, 2020

बड़ी संख्या में आखिर क्यों मर रहीं हैं मधुमक्खियां ?

  •  तेजी से मधुमक्खियों की संख्या घटना खतरनाक संकेत
  •  अनाज, फल व सब्जी के उत्पादन में पड़ेगा विपरीत असर

फूल का रसपान करती हुई मधुमक्खियां।  (फोटो इंटरनेट से साभार) 

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। फूलों के आसपास मंडराने वाली मधुमक्खियां तेजी से घट रही हैं। पन्ना शहर में पिछले कुछ दिनों से बड़ी संख्या में मधुमक्खियां घर की छतों व सड़कों पर मृत पड़ी नजर आ रही हैं। इतनी बड़ी संख्या में मधुमक्खियां आखिर क्यों मर रहीं हैं, इसकी वजह क्या है ? इस अहम सवाल पर हम विचार करें इसके पूर्व यह जान लें कि मधुमक्खियों के न रहने पर इंसानों की जिन्दगी पर क्या असर पड़ेगा। वैज्ञानिकों का तो यहाँ तक कहना है कि अगर मधुमक्खियां नहीं रहीं तो इस दुनिया पर इंसान भी नहीं बचेंगे। परागण क्रिया में मधुमक्खियों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इनके न होने से अनाज, फल व सब्जियों के  उत्पादन में कमी आयेगी। यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण न होगा कि मधुमक्खियों के बिना यह दुनिया बिना भोजन वाली दुनिया बनकर रह जायेगी।

उल्लेखनीय है कि आपकी थाली में जो भी खाना परोसा जाता है, वो मधुमक्खियों की ही देन है। मधुमक्खियां कृषि के अस्तित्व के लिए जो सबसे बड़ा काम करती हैं वह परागण है। पूरी दुनिया में खाने की आपूर्ति का एक तिहाई भाग मधुमक्खियों द्वारा परागित होता है। सीधे शब्दों में कहें तो मधुमक्खियां पौधों और फसलों को जीवित रखती हैं। मधुमक्खियों के बिना, मनुष्यों के पास खाने के लिए बहुत कुछ नहीं बचेगा। मधुमक्खियों के बिना अधिकांश फसलों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। चूँकि मधुमक्खियां हमारे अस्तित्व के लिए भी महत्वपूर्ण हैं इसलिए हमें उनकी रक्षा और संरक्षण के लिए हर संभव उपाय करना चाहिए। जिस तेजी के साथ मधुमक्खियां कम हो रही हैं और मर रही हैं, उससे साफ पता चलता है शहरी वातावरण और आबोहवा उनके अनुकूल नहीं है। मधुमक्खियों के गायब होने को लेकर काफी बहस चलती आ रही है। इस समस्या पर हुए अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि फसलों में अधाधुंध कीटनाशकों का उपयोग मधुमक्खियों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। मधुमक्खियां हमें जहरीले तत्व और कीटनाशक के अत्यधिक इस्तेमाल को लेकर भी आगाह करती रही हैं। अब यह समझा जाता है कि मधुमक्खी कालोनियों के ख़त्म होने के पीछे नियोनिक कीटनाशक जिम्मेवार हैं। नियोनिक एक ऐसा जहर है, जिसे इस तरह तैयार किया गया है कि ये कीटाणुओं के तंत्रिका कोष पर हमला करता है। संक्षेप में कीटनाशक पर्यावरण के लिए भयानक हैं और वे उन जीवों को भी मार रहे हैं जो दुनिया और मनुष्यों की मदद करते हैं।

हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एक अध्ययन में पाया गया कि ये कीटनाशक सीधे कॉलोनी कोलेप्स डिसऑर्डर (सीसीडी) नामक एक घटना में योगदान करते हैं। सीसीडी अनिवार्य रूप से वह सिस्टम है जिसके द्वारा हनी बी अपने पित्ती या छत्ते को छोड़ देते हैं। जब मधुमक्खियां नेओनिकोटिनोइड जैसे कीटनाशकों के संपर्क में आती हैं तो वे एक तरह से पागल हो जाती हैं और उन्हें घर वापस आने का पता नहीं होता। यह लगभग वैसा ही है जैसे इंसानों में अल्जाइमर होता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जहां कीटनाशक संभावित रूप से मधुमक्खियों को मार रहे हैं ऐसे कई और फैक्टर हैं जो ऐसा कर रहे हैं। यह एक जटिल समस्या है जिसकी दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिक अभी भी जांच कर रहे हैं। मधुमक्खियों को कई तरह से खतरा है लेकिन मुख्य रूप से मानव प्रथाओं के प्रभाव और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं के कारण ऐसा हो रहा है। सीधे शब्दों में कहें तो इंसान मधुमक्खियों के लिए भयानक होते जा रहे हैं। कीटनाशक, पर्यावरणीय गिरावट और प्रदूषण, सभी मधुमक्खी की मौतों की खतरनाक दर में योगदान कर रहे हैं।

मधुमक्खी प्राकृतिक संतुलन बनाने के लिये आवश्यक - कलेक्टर

 

पन्ना जिले में उद्यानिकी विभाग द्वारा गत दिवस एक दिवसीय मधुमक्खी पालन कृषक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कलेक्टर संजय कुमार मिश्र द्वारा किसानों को मधुमक्खी पालन के लिये प्रेरित किया गया। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिए मधुमक्खियां बहुत जरुरी हैं। इसी तारतम्य में दमोह जिले से मास्टर ट्रेनर के रूप में आये  हरीशंकर विश्वकर्मा द्वारा कृषकों को मधुमक्खी पालन का प्रषिक्षण दिया गया, साथ ही मधु मक्खी पालन से होने वाले लाभों के बारे में बताया गया। जैविक तकनीकी से खेती करने पर जोर देते हुये कहा गया कि जैविक रूप से मधुमक्खी पालन कर कृषक कम समय में अधिक आमदनी कमा सकता हैै। सहायक संचालक उद्यान महेन्द्र मोहन भट्ट द्वारा बताया गया कि मधुमक्खी पालन करके किसान किस तरह अपना स्वयं का लधु उद्योग स्थापित कर लाभ कमा कर आमदनी को दुगना कर सकते है। प्रशिक्षण में रासायनिक उर्वरकों तथा पेस्टीसाइडके अंधाधुंध उपयोग के प्रति किसानों को आगाह किया गया और बताया गया कि पेस्टीसाइड के प्रभाव से मधुमक्खियों की मौतें हो रही हैं। इसलिए पर्यावरण एवं मधुमक्खियों की सुरक्षा के लिए किसान भाई जैविक खेती अपनायें। 

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