Monday, April 19, 2021

टमाटर और आलू नहीं है हमारे देश की सब्जी

  • यह चेरी टमाटर अग्रेजों के आने के पहले का तो नहीं ?
  • बाबूलाल दाहिया जी ने बताया जंगली टमाटर की खूबी 

जंगली टमाटर 'चेरी' जिसे कहीं मारू कहीं भेजरा तो कहीं टमटरी भी कहा जाता है। 

पन्ना। मौजूदा दौर में आलू और टमाटर की जो अहमियत है, वह अन्य दूसरी सब्जियों की नहीं है। लेकिन यह बात शायद कम लोगों को ही पता होगी कि आलू और टमाटर हमारे देश की सब्जी नहीं है। बाजार में जो बड़े आकार के टमाटर बिकते हैं जिनका उपयोग ज्यादातर लोग करते हैं, वह देशी प्रजाति नहीं है।  हां जंगली या चेरी टमाटर के बारे में जरूर यह कहा जाता है कि टमाटर की यह प्रजाति यहाँ के जंगलों में प्राकृतिक रूप से पाई जाती रही है। जाहिर है कि अंग्रेजों के आने से पूर्व इस टमाटर का अपने देश में वजूद रहा है। इसी देशी टमाटर के बारे में कृषक बाबूलाल दाहिया ने अपनी समझ को साझा किया है,  जिन्होंने देशी अनाजों के संरक्षण तथा जैविक खेती को बढ़ावा देने में अतुलनीय कार्य किया है। इस योगदान के लिए आपको पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।  

श्री दाहिया कहते हैं कि यह सुनिश्चित है कि टमाटर और आलू हमारे देश की सब्जी नहीं है। यह दोनों अग्रेजों के आने के बाद ही भारत में आये और यहां की प्रमुख सब्जी का स्थान ले लिया। शायद यही कारण है कि आयुर्वेद ग्रन्थों में इनका कहीं उल्लेख नहीं पाया जाता। सब से बड़ा ऐतिहासिक उदाहरण तो आईने अकबरी है। कहते हैं 1555 में जब बादशाह हुमायु दोबारा बादशाह बने और अपने सरदारों एवं रिआया को भोज दिया, उसमे सभी तरह की तरकारियां लौकी, भिंडी, करेला, परवल, गिलकी, कद्दू ,घुइयां, बरवटी आदि  राधी गई। किन्तु यह टोमैटो, पोटैटो उनमें शामिल नहीं है।

इससे सिद्ध है कि तम्बाकू की तरह इन्हें भी अंग्रेज अपने साथ लाए जो बाद मे समूचे देश की लोकप्रिय सब्जी बन गए। किन्तु यह समूचे उत्तर और मध्य भारत मे नैसर्गिक ढंग से उगने वाला जंगली टमाटर 'चेरी' जिसे कहीं मारू कहीं भेजरा तो कहीं टमटरी भी कहा जाता है ? क्या यह भी अग्रेजों द्वारा लाया गया होगा ? या यह पहले से इसी तरह जंगलो में उगता रहा होगा ? यह विद्वानों के लिए विचारणीय बात है। क्योंकि इसका चरित्र उन बड़े टमाटरों से अलग सा लग रहा है।

हमारे देश में ब्यावसायिक रूप से लगाये जाने वाले कई तरह के टमाटर हैं। कुछ देश मे हरित क्रांति आने के पहले के टमाटर हैं जो खाने में खट्टापन लिए जायके दार हैं। जिन्हें देसी टमाटर कहा जाता है तो कुछ हाईब्रीड भी। यह हाईब्रीड देखने मे तो आकर्षक है किन्तु स्वाद में दो कौड़ी के नहीं, लेकिन बाजार इन्ही से पटा रहता है। पर इन दोनों से अलग एक वह चेरी या जंगली टमाटर भी हैं, जिसमे खाद, बीज, निराई, सिचाई ,कीट नाशक आदि किसी में कुछ भी पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं। बस तोड़िए और चटनी या सब्जी में उपयोग कीजिए।

न तो उसमे पत्ती सिकुड़न रोग लगता है, न कोई कीट ब्याधि ? वह अपने आप गाँव, घरों  के आस पास बिखरे कूड़े करकट, खेतो की मेड़ो या बगीचे, सार्वजनिक स्थानों में जमेगा और क्वार से पकना शुरू होगा तो फागुन तक मुफ्त में सब्जियां खिलाएगा, जिसमें किसी का स्वामित्व भी नहीं। चाहे जो तोड़ता खाता रहे ? और पत्ते में ऐसा कषैलापन कि मजाल क्या कि कोई पशु मुँह मार सके ? किन्तु यदि इसके दो चार फल भी उस स्वाद रहित हाईब्रीड टमाटर के सब्जी में डाल दिया जाय तो उसे भी इसका खट्टापन स्वादिष्ट बना दे।

लेकिन इसका हम मनुष्यो का मात्र स्वार्थ का ही नाता है। इसके वंश परिवर्धन के लिए बीज फैलाने का काम तो चिड़ियां करती हैं। शायद इसीलिए उनके अनुरूप उसने अपने फल का आकार छोटा रखा है।

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