Tuesday, April 27, 2021

औषधीय गुणों से भरपूर होता है पौष्टिक फल कैथा

  • कैथा एक अत्यंत पौष्टिक फल है। कैथा का पेड़ सामान्यत: सभी स्थानों पर देखने को मिलता है,परन्तु खास तौर पर यह शुष्क स्थानों पर उगने वाले फल हैं।   कैथा लगभग सभी तरह की मृदा (मिट्टी) में लगाया जा सकता है। सूखे क्षेत्रों में आसानी पूर्वक बढ़ जाता है। पौधा संभल जाने के बाद बहुत कम देखभाल की जरुरत पड़ती है।


कैथा के पेड़ में लटकते फल। 

कैथा फल पौष्टिकता के साथ-साथ औषधीय  द्रष्टि से भी बहुत अधिक लाभकारी है। मध्यभारत में इसके द्वारा तैयार खाद्य पदार्थो को अच्छा व पौष्टिक माना जाता है। इसके द्वारा तरह-तरह के खाद्य पदार्थ तैयार किये जाते है जैसे जैम,जेली,अमावट,शर्बत,चोकलेट और चटनी आदि जो क़ि  ग्रामीण स्तर पर व्यवसाय का एक अच्छा साधन साबित हो सकता है।

लेकिन कठोर आवरण वाला फल कैथा अब बहुत कम देखने को मिलता है। आज से दो-तीन दशक पहले कैथा के पेड़ बहुतायत में पाए जाते थे। लेकिन विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और इसके फलों के प्रति लोगों की उपेक्षा ने कैथा को विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया है। कैथा का वानस्पतिक नाम फ़िरोनिया लिमोनिया (Feronia limonia) है और अंग्रेजी में इसे वुड ऐपल अथवा मंकी फ्रूट के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि अंग्रेजों ने शायद बंदरों को कैथा खाते देखा होगा, इसलिए इसका नाम मंकी फ्रूट रख दिया। कैथा के पेड़ पर्णपाती होते हैं और जंगलों में भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। 

वर्ल्ड एग्रोफॉरेस्ट्री सेंटर के अनुसार, कैथा के पत्तों से निकाले गए तेल का इस्तेमाल खुजली के उपचार सहित अन्य कई प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए औषधि के तौर पर सदियों से किया जाता रहा है। पके हुए कैथा के गूदे का स्वाद खट्टा-मीठा होता है और इसके बीज गूदे से ही लगे होते हैं। दक्षिण भारत में कैथा के गूदे को ताल मिसरी और नारियल के दूध के साथ मिलाकर खाया जाता है। कैथा के पेड़ की लकड़ी हल्की भूरा, कठोर और टिकाऊ होती है, इसलिए इसका इस्तेमाल इमारती लकड़ी के तौर पर भी किया जाता है।

औषधीय गुणों का भंडार है कैथा 


कैथा फल। 

कैथा औषधीय गुणों का भंडार है, जिसकी पुष्टि विभिन्न समय में कई अध्ययनों द्वारा की गई है। 1996 में प्रकाशित द एनसाइक्लोपीडिया ऑफ मेडिसिनल प्लांट्स के अनुसार, कैथा में पाए जाने वाले अम्ल, विटामिन और खनिज लिवर टॉनिक का काम करते हैं और पाचन प्रक्रिया को उद्दीप्त करते हैं। 2006 में प्रकाशित पुस्तक फ्लोरा ऑफ पाकिस्तान के अनुसार, कैथा के कच्चे फल के गूदे का इस्तेमाल दस्त के उपचार में किया जा सकता है। रिसर्च जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल, बायोलॉजिकल एंड केमिकल साइंसेस में वर्ष 2010 में प्रकाशित शोध में भी इस बात का जिक्र है। ट्रॉपिकल जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल रिसर्च में जून 2012 के अंक में प्रकाशित शोध के अनुसार, कैथा में स्तन कैंसर की कोशिकाओं को फैलने से रोकने की क्षमता है। वर्ष 2009 में डेर फार्मासिया लेत्ते नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि कैथा में मधुमेह की रोकथाम की भी क्षमता है।

कैथा के पेड़ की कहानी, दाहिया जी की जुबानी 


बाबूलाल दाहिया जी। 

सुप्रसिद्ध बघेली कवि व प्रगतिशील कृषक बाबूलाल दाहिया जी कैथा के पेड़ की रोचक दास्तान सुनाते हुए बताते हैं कि हमने अपने खेत में बहुत तरह के पेड़ लगा रखे हैं। उनमें अगर एक वर्ष के अंतर से फल देने वाले आम के पेड़ हैं तो हर वर्ष फल देने वाला एक पेड़ कैथा भी है।

आम का हमारे लोक जीवन में बहुत महत्व है। जब हमारे यहां आम की ब्यावसायिक खेती नहीं आई थी, तब उसे पुत्र का दर्जा प्राप्त था। बकायदे आम का विवाह होता था और लगाने वाला तब तक उसके फल को नहीं खाता था, जब तक उसका विवाह न कर दे ? पर विवाह ऐसा वैसा उत्सव नहीं बल्कि, एक यज्ञ और पूरे क्षेत्र का भंडारा था, जिसे आज के परिभाषा में कहा जाय तो 2 -3 लाख रुपये का खर्च।

 आम को हमारे पिता जी और परिवार के चाचा ताऊ के बन्धु बांधव ने बड़े धूम धाम के साथ लगाया था । तब अपन 5 वर्ष के थे। किंतु कैथा  हमारे परिवार की नहीं किसी सुअर, तोता या  गिलहरी के मेहनत का फल होगा। क्योंकि प्रकृति के ओर से वह हाथी का भोजन है और उसी का दायित्व है कि उसे खाकर उसके बीज को दूर दूर फैलाए। 

किन्तु जब कैथा ऊपर से गिर कर दरक जाता है तो सुअर, गिलहरी और तोता भी उसके हार्ड आवरण को तोड़ कुछ बीज फैला देते हैं। इन्ही तोता, गिलहरी या सुअर ने उसके आवरण को तोड़ा होगा, जिससे बीज जमीन में बिखरा और  बाद में  पानी से बह कर या उनके मल द्वारा हमारे खेत तक आया एवं इस स्थान में जम गया होगा।

इसके विकास में अपनी तो मात्र इतनी ही भूमिका है कि बकरी पालकों को उसे काटने नही दिया। बाकी सुरक्षा के लिए वह खुद आत्म निभर है। क्योंकि उसने अपने शरीर मे कांटे उगा रखे है। पर आम और कैथा में यह अंतर है कि आम एक साल के अन्तराल में हमे मध्य अप्रैल से जून तक  मात्र ढाई माह ही पना, टहुआ, बगजा और सांह के रूप में अपने फल खिलाता है। किन्तु कैथा हर वर्ष सितम्बर से पकना शुरू होता है तो जून तक प्रति दिन सुबह और शाम अपने 3 -4 फल देता रहता है।

अगर उसका अचार बनाना चाहें तो आम की तरह अचार बना साल भर खाया जा सकता है। पर इसके लिए दिसम्बर में कच्चे फलों को तोड़ गूदे को छोटे-छोटे टुकड़े कर सुखा लें और तेल मसाले के साथ लेट वह भी बन सकता है। 4-5 पके कैथा प्रति दिन बहुत होते हैं। जब कि चटनी हेतु परिवार के लिए उसका एक ही फल पर्याप्त होता है। लेकिन इससे हमे यह लाभ है कि हम अपने आगन्तुक मित्रो, परिचितों और रिस्तेदारों तक को इसके फल बांटते रहते हैं।

 जब किसी को कैथा फल भेट करते हैं तो उसके चेहरे में जो खुसी झलकती है, उसे शब्दो मे  ब्यक्त नही  किया जा सकता। क्योंकि कैथा आम की तरह बाजार में थोक में बिकने वाला फल नही दुर्लभ फल है।

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