Friday, August 6, 2021

पन्ना जिले के दुर्गम गांव जहां पहुंचना आसान नहीं

  • मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में ऐसे दुर्गम ग्रामों की संख्या दर्जनों में है जहाँ बारिश के मौसम में पहुंचना आसान नहीं है। यहाँ बारिश के चार महीने ग्रामीणों की जिंदगी मुश्किलों से भरी होती है। किसी के बीमार पडऩे पर मरीज को खाट में लिटाकर ग्रामवासी कीचड़ भरे रास्ते से पहाड़ी नालों को पार करते हुए अस्पताल पहुंचाते हैं।

अजय गढ़ क्षेत्र के कुडरा गांव की गर्भवती महिला इस दुर्गम मार्ग पर चलकर 7 किलोमीटर दूर धरमपुर गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में टीका लगवाने जा रही है। उसके साथ में परिवार की लड़की भी है। 


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बारिश के इस मौसम में मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में ऐसे दर्जनों गांव है जहां पहुंचना यदि नामुमकिन नहीं तो आसान भी नहीं है। इन ग्रामों तक पहुंचने के लिए कीचड़ भरे रास्तों से पैदल पहाड़ी नालों को पार करना पड़ता है। गांव में यदि कोई बीमार हो जाता है तो उसे चारपाई में लिटाकर ग्रामीण कई किलोमीटर पैदल कंधे में रखकर सड़क मार्ग तक लाते हैं। गर्भवती महिलाओं को बारिश के इन चार महीनों के दौरान विकट परिस्थितियों से जूझना पड़ता है।

 जिला मुख्यालय पन्ना से तकरीबन 105 किलोमीटर दूर पवई ब्लाक की ग्राम पंचायत फतेहपुर के ग्राम कंचनपुरा से अभी हाल ही में जो तस्वीर सामने आई है वह विकास के तमाम दावों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। आदिवासी ग्राम मक्केपाला के मजरा कंचनपुरा निवासी प्रेम सिंह धुर्वे के 36 वर्षीय पुत्र बबलू सिंह धुर्वे की गत 3 अगस्त को अचानक जब तबीयत बिगड़ गई। तो ऐसी स्थिति में इस बीमार युवक को गांव में उपचार की कोई सुविधा ना होने के चलते उसे चारपाई में लिटा कर कीचड़ भरे रास्ते से 3 किलोमीटर दूर सड़क तक ले जाना पड़ा। 


कंचनपुरा गांव के आदिवासी बीमार युवक को खाट में लिटा कर नाला पार करते हुए। 

ग्राम पंचायत फतेहपुर के पूर्व सरपंच प्रेम सिंह परस्ते ने  बताया की बारिश के दिनों में यहां के हालात बदतर हो जाते हैं। सड़क न होने से बारिश के सीजन में यहां बीमार को चारपाई पर लिटा कर पैदल ले जाने के अलावा और कोई चारा नहीं है। बबलू सिंह धुर्वे को भी इसी तरह कीचड़ भरे रास्ते व नाले को पार कर झालाडुमरी तक ले जाया गया। यहां से बस के द्वारा पड़ोसी जिला कटनी पहुंचकर युवक का इलाज कराया गया। इस क्षेत्र के समाजसेवी अशोक जैन ने बताया कि "पवई क्षेत्र के आदिवासी बहुल ग्रामों की हालत अत्यधिक दयनीय है। ग्राम मक्के पाला में शत प्रतिशत आदिवासी रहते हैं। इस गांव के मजरा कंचनपुरा के आदिवासी बुनियादी सुबिधाओं को भी मोहताज हैं। आलम यह है कि लगभग डेढ़ सौ की आबादी वाली इस बस्ती के लोग नाले का ही पानी पीते हैं।" 

मामले के संबंध में पूंछे जाने पर तहसीलदार रैपुरा राम प्रताप सिंह कहते हैं कि "खाट पर मरीज को ले जाने की सूचना मिली है। आपने बताया कि गांव में सड़क बनाने के लिए ग्राम पंचायत में प्रस्ताव डाला जायेगा। यहां सड़क पर कुछ वन विभाग की आपत्ति हैं, कुछ क्षेत्र वन क्षेत्र में है। ऐसे में निराकरण कर नाले पर पुलिया व सड़क बनाने के लिए प्रयास करेंगे।" 

 टापू में तब्दील हो जाता है अजयगढ़ क्षेत्र का कुड़रा गाँव 


गर्भवती महिलाकुड़रा-धरमपुर मार्ग के नाले को इस तरह से पार किया। 


पन्ना जिले के ही अजयगढ़ जनपद के ग्राम कुड़रा की तस्वीर भी कंचनपुरा से अलहदा नहीं है। यह गांव बारिश के चार महीने पूरी तरह से टापू में तब्दील हो जाता है, जहाँ पहुँच पाना आसान नहीं है। बुनियादी और आवागमन सुविधाओं से वंचित ग्रामों की फेहरिस्त में अजयगढ़ जनपद क्षेत्र का कुडऱा गाँव भी शामिल है, जहां के रहवासियों की जिन्दगी कठिनाईयों और मुसीबतों की पर्याय बन चुकी है। अजयगढ़ जनपद क्षेत्र में आने वाली धरमपुर ग्राम पंचायत के राजस्व ग्राम कुडऱा के निवासी आज भी आवागमन की सुविधा के लिये तरस रहे हैं। वर्षों से ग्रामवासी कुडऱा से धरमपुर तक सुगम सड़क मार्ग के निर्माण की माँग करते आ रहे हैं, लेकिन उनकी यह माँग आज तक पूरी नहीं हो सकी है। 

जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 52 किमी. दूर अजयगढ़ जनपद की सबसे बड़ी पंचायत धरमपुर के अन्तर्गत आने वाले कुडरा गांव की आबादी तकरीबन 600 है। धरमपुर तक तो पक्का सड़क मार्ग है तथा यात्री बसों का भी अवागमन होता है, लेकिन धरमपुर से कुडरा गांव तक 7 किमी. की दूरी तय करना आसान नहीं है। बारिश के मौसम में इस 7 किमी. लम्बे मार्ग को पार करना एवरेस्ट में चढ़ने जैसा है। पूरा मार्ग कीचड़ और फिसलन से भरा तो है ही, मार्ग में 7 पहाड़ी नाले भी हैं जो बारिश में खतरनाक हो जाते हैं। 


कीचड़ से भरे रास्ते में बाइक चला पाना भी आसान नहीं होता। 

धरमपुर क्षेत्र के संजय सिंह राजपूत बताते हैं कि पहाड़ी नाले बरसात के मौसम में आपस में मिलकर इस गांव को टापू में तब्दील कर देते हैं, जिससे यहां के लोगों का आवागमन लगभग बंद हो जाता है। गांव के लोग गांव में ही कैद होकर रह जाते हैं। आपने बताया कि गत  5 अगस्त 2021 को कुड़रा गांव की एक गर्भवती महिला टीका लगवाने के लिए 7 किलोमीटर के दलदल और नालों को पैदल पार करते हुए धरमपुर पहुंची, क्योंकि इस मार्ग पर वर्तमान में मोटर साइकिल से सफर करना भी खतरे से खाली नहीं है। एंबुलेंस तो यहां साधारण मौसम में भी पहुंचना संभव नहीं है। ग्रामीणों के मुताबिक कई पीढय़िों से हर साल बारिश के 4 माह हम लोग गांव में ही कैद होकर रह जाते हैं, जिससे ये चार माह हमारे लिए काला पानी की सजा की भांति है।

ग्रामीणों की असुविधा और परेशानी यहीं खत्म नहीं होती, बुनियादी सुविधाओं के अभाव व सड़क मार्ग न होने के कारण इस गाँव के युवक कुंवारे ही रह जाते हैं। इस गांव में दूसरे गांव के लोग अपने बेटी या बेटे का विवाह नहीं करना चाहते, जिससे यहां का सामाजिक ताना बाना भी प्रभावित हो रहा है। लोग इस गाँव के पहाड़ी पथरीले मार्गों को देख कर ही डर जाते हैं और रिश्ता होने से पहले ही टूट जाता है।                                                                       

आठवीं के बाद नहीं पढ़ पाते बच्चे 

कुड़रा गांव में सिर्फ आठवीं कक्षा तक के लिए स्कूल है, इसलिए गांव के लड़के व लड़कियां आठवीं तक पढ़ाई कर लेते हैं, लेकिन आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते। ग्रामवासी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं लेकिन मजबूरी ऐसी है कि चाहकर भी वे पढ़ा नहीं पाते। पक्की सड़क न होने से बारिश के मौसम में पैदल जाना मुश्किल हो जाता है। कुडरा से धरमपुर तक 7 किमी. लम्बे मार्ग पर सात नाले पड़ते हैं जिन्हें बारिश में पार करना कठिन हो जाता है। ठंड के मौसम में भी बच्चे जंगली रास्ते से होकर नहीं जा पाते, जिससे आगे की पढ़ाई थम जाती है। गांव के कुछ बच्चों ने साहस दिखाते हुए उच्च शिक्षा हासिल करने का प्रयास भी किया है, कई अन्य युवक भी शिक्षा हासिल करना चाहते हैं लेकिन हालात इतने विपरीत हैं कि उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाती। 

इलाज के अभाव में हो जाती है मौत 

स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर कुडरा गांव में कुछ भी नहीं है। गांव में किसी के बीमार पडऩे पर उसे धरमपुर या फिर अजयगढ़ ले जाना पड़ता है। लेकिन बारिश के मौसम में यहां की स्थिति बेहद चिन्ताजनक हो जाती है। बीमार व्यक्ति को चारपाई पर उठाकर ले जाना पड़ता है। संजय सिंह राजपूत बताते हैं कि इलाज के अभाव में हर साल गांव में कईयों की मौत हो जाती है। कई बार तो धरमपुर भी नहीं पहुंच पाते, रास्ते में ही लोग दम तोड़ देते हैं। दशकों से सड़क की मांग करने के बाद भी सुनवाई नहीं होने पर विगत लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान ग्रामीणों द्वारा मतदान का बहिष्कार भी किया जा चुका है। तब अधिकारियों द्वारा ग्रामीणों को समझाइश देकर शीघ्र सड़क निर्माण का आश्वासन दिया गया था, इसके बावजूद ग्रामीणों को अभी तक सड़क नसीब नहीं हुई। 

अनगिनत समस्यायें फिर भी नहीं होता विवाद 

 उ.प्र. की सीमा से लगा पन्ना जिले का कुडऱा गांव जंगल और पहाड़ों के बीच बसा है। इस गांव में लोधी, पाल, ब्राम्हण, प्रजापति, कुशवाहा, गोंड व बसोर जाति के लोग हैं, लेकिन सभी मिल जुलकर रहते हैं। जात - पात व छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई का भी इस गांव में कोई वजूद नहीं है। यही वजह है कि गांव में ग्रामीणों के बीच किसी भी तरह के कोई मतभेद और मनभेद नहीं हैं। यदि कभी कभार कोई बात होती भी है तो गांव में ही हम मिल बैठकर उसे सुलझा लेते हैं, कभी थाने जाने की नौबत नहीं आती। कुडरा गांव में आपसी प्रेम और भाईचारे की कई दशकों से चली आ रही यह अनूठी परंपरा आज भी कायम है और नई पीढ़ी के लोग भी बड़े बुजुर्गों की इस परंपरा का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। गांव के लोगों को दंश इस बात का है कि कुडरा गांव आता तो पन्ना जिले में है लेकिन वह जिले से अलग - थलग है। इस गांव की कभी कोई खोज खबर नहीं ली जाती। 

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