Tuesday, August 20, 2024

गांवों में क्यों बोई जाती हैं कजलियां, आखिर क्या है राज ?

 



 ।। बाबूलाल दाहिया ।।

कजलियां का पर्व ग्रामीण इलाकों में राखी के दूसरे दिन मानाने की परंपरा है, जिसमें खेतों से लाई गई मिट्टी को बर्तनों में भरकर उसमें गेहूं बोएं जाते हैं। उन गेंहू के बीजों में रक्षा बंधन के दिन तक गोबर की खाद और पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है। यह प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा पर्व है। लेकिन इस पर्व को मानाने के पीछे की असल वजह क्या हो सकती है, यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि हमारे पुरखों की सोच कितनी तर्कसंगत व वैज्ञानिक रही होगी।  

प्राचीन समय में कजलियों के बोने के पीछे शायद बीज परीक्षण का लॉजिक रहा होगा कि "हमारे घर का बीज  कैसा है ? उसमें कोई फफूंद या रोग तो नहीं लगा है ?"  परन्तु बाद में उसका वैज्ञानिक पक्ष तो पीछे छूट गया और परम्परा आंगें हो गई।

यह हमारे घर की कजलियां हैं जो पूरी तरह फफूंद रहित परिपुष्ट लगती हैं। इनमें एक विशेषता यह भी है कि यह हमारे परम्परागत अनाज बीजों की हैं। कुछ समय पश्चात इन्हें तालाब में ले जाकर विसर्जित कर दिया जायगा। और फिर एक रश्म होगी हमारे एकता और भाईचारे की। जब गांव के युवक और किशोर घर- घर जाकर अपने बड़े बूढ़ों के संमुख कजलियां प्रस्तुत कर के चरण स्पर्श करेंगे और उनसे आशिर्वाद लेंगे। 

उधर ससुराल से आईं बहन बेटियां भी घर- घर जाकर अपनी बड़ी बूढ़ी चाची, ताई एवं सखी सहेलियों से भेंट करेंगी, जिनसे भेंट करने की मनमें कब से कजलियों का इंतजार रहा होगा ? मुझे अपनी गांव की इस संस्कृति पर नाज है कि यह अपने अंदर कितना बड़ा भाईचारा और एकता समेट कर चलतीं थी।

  

पन्ना जिले में धूमधाम से मनाया गया कजलियां उत्सव 

मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा में बागै नदी के तट पर बसे पन्ना जिले के ऐतिहासिक एवं धार्मिक ग्राम खोरा में हर त्यौहार बड़े  ही धूमधाम से एवं हर्षोल्लाह से मनाए जाते हैं। लेकिन बात जब पारंपरिक कजलियां उत्सव की आती है तो बुजुर्गों, युवाओं और महिलाओं से लेकर बच्चों तक में खुशी और उत्साह देखते ही बनता है। 

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी रक्षाबंधन के दूसरे दिन 20 अगस्त 2024 को कजलियां उत्सव बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लाह से मनाया गया। सैकड़ों युवा, बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे बागै नदी में पहुंचे, जहां कजलियां खोंट कर एवं नौका विहार उपरांत एक दूसरे को कजलियां भेंट कर एकता प्रेम भाईचारा एवं खुशहाली की शुभकामनाएं दी। सदियों से चली आ रही इस परंपरा का निर्वहन हर वर्ष इसी प्रकार किया जाता है।

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