Thursday, August 8, 2024

किसानों का एक एयर कंडिश्नर आवास घोपा !


।। बाबूलाल दाहिया ।।

जी हां यह किसानों का एयर कंडिश्नर आवास घोंपा है। कहीं-कहीं लोग इसे मैरा या (छतुरा ) भी कहते हैं। प्राचीन समय में जब गांव के समीप जंगल हुआ करते थे, तब प्रायः हर खेत में यह घोपा बनाना पड़ता था। एक ही किसान कई-कई घोंपा बनाता। क्योकि अक्सर धान एवं ज्वार के खेत में जंगली सुअर एवं चना अरहर की फसल को सांभर,चीतल, हिरण आकर उजाड़ देते थे।

यह तो जमीन में रखा हुआ है जो दिन में खेत ताकने, वही भोजन बनाने वा ग्रहस्ती का सामान रखने के लिए उपयुक्त है। किन्तु रात्रि की बसाई के लिए इसे  लकड़ी की लगभग 5 हाथ लम्बी 4 थून्ही में टगाकर वहीं खाट भी बांध दी जाती थी। ताकि कोई जंगली जानवर बसने वाले ब्यक्ति के ऊपर आक्रमण न कर सके। इसकी एक मर्यादा थी कि बाघ, तेंदुआ, गुलबाघ आदि हिंसक जन्तु इसमें बसे हुए ब्यक्ति पर कभी आक्रमण नहीं करते थे। हो सकता है उनके पुरखे इस फिदरती मनुष्य के फिदरत से डरते रहे हों, जिसका भय उनके गुण सूत्र में पहले से ही फीड हो कि  " यह मनुष्य हमें इसमें फंसाकर कही बन्द करने के लिए तो नहीं लगा रखा ?"

इसमें एक विशेषता और थी कि यहाँ बसने वाले को न तो गर्मी में गर्मी महसूस होती थी न ठंडी में ठंडी। हमने युवावस्था में इसमें खूब बसाई की है, क्योकि आज से 40-50 साल पहले बिना तकाई किए खेती बच ही नहीं सकती थी। एक खेत में बड़े भइया बसने जाते और एक खेत में हम। साथ ही कभी-कभी तीसरे खेत में एक माह के लिए तकवाह भी लगाना पड़ता।

इसे बनाने की तकनीक भी बड़ी सरल थी। मकोय य सिरकिंन नामक बेल वाले 7-7 फीट लम्बे छड़नुमा 8 डंठल काट उनके दोनों सिरे गोल घेरे में गड़ा दिए जाते। और एक-एक फीट के अंतराल से दूसरे चार-पांच डंठलों की बाती बांध दी जाती बस घोंपे का ढांचा तैयार। रही बात छबाई के लिए कांश नामक घास की तो वह वहीं खेत में ही उग आता था। बस 14-15 पूरा काट कर घोपा की छबाई कर ली जाती।

पर अब तो ऐसा जमाना आगया हैं कि न तो गाँव के आस पास जंगल बचा न कोई वन्य जीव। इसलिए यह अब किसानों के वस्तुओं के संग्रहालय में आदिम पुरखों का पुरावशेष बनाकर संरक्षण की स्थिति में पहुँच चुका है।

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