Sunday, April 30, 2023

आखिर क्यों होती हैं गंभीर बीमारियाँ, क्या इनसे बचाव संभव है ?

  • कार्डियक हेल्थ, मेन्टल हेल्थ एवं स्पिरिचुअल हेल्थ पर आयोजित हुई कार्यशाला 
  • सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. अरूण जैन ने गंभीर बीमारियों से बचाव के बताये उपाय 

कार्यशाला को संबोधित करते हुए डॉ. अरूण जैन साथ में पुलिस अधीक्षक पन्ना धर्मराज मीना। 

पन्ना। कार्डियक हेल्थ, मेन्टल हेल्थ, सोशल हेल्थ एवं स्पिरिचुअल हेल्थ विषय पर पुलिस कान्फ्रेंस हाँल पन्ना में शनिवार 29 अप्रैल को एक कार्यशाला आयोजित हुई। जिसमें सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. अरूण जैन ने प्रमुख वक्ता के रूप में उपस्थित होकर पुलिस अधिकारियों एवं कर्मचारियों को गंभीर किस्म की जानलेवा बीमारियों से बचाव बावत उपयोगी जानकारी प्रदान की। 

उन्होंने बड़े ही प्रभावी ढंग से कार्डियक हेल्थ, मेन्टल हेल्थ, सोशल हेल्थ एवं स्पिरिचुअल हेल्थ के बारे में समझाया। डॉ. अरूण जैन ने बेहद सरल भाषा में यह बताया कि हमारा हार्ट किस प्रकार काम करता है। आपने बताया कि कार्डियक अरेस्ट, हार्ट अटैक, हार्ट फेलियर, हार्ट ब्लॉक, आदि में क्या अन्तर है तथा  ब्लड प्रेशर, बी.पी. जैसी गंभीर बीमारियाँ किन कारणों से होती हैं। इन गंभीर किस्म की  बीमारियों से अपना बचाव हम किस तरह की जीवनचर्या व खानपान को अपनाकर करें।   

उन्होने बताया कि बी.पी., शुगर, हार्ट अटैक आदि बीमारियों का प्रमुख कारण हमारी वर्तमान अव्यवस्थित लाईफ स्टाईल है। जंकफूड, नियमित नींद ना लेना , व्यायाम ना करना तथा  मादक पदार्थों और शराब का अधिक सेवन करना इन बीमारियों का प्रमुख कारण है। इसके साथ ही उन्होने बताया कि हम किस प्रकार इन बीमारियों से बच सकते हैं।  कार्डियक हेल्थ के लिए क्या-क्या करना होगा। उन्होने लाँफ थैरेपी का महत्व बताते हुए प्रतिदिन इसे करने हेतु बताया । जंकफूड के स्थान पर मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, कुटकी, कोदो खाने की सलाह दी, साथ ही संतुलिंत आहार लेने की बात पर जोर दिया। 

पुलिस अधीक्षक पन्ना धर्मराज मीना ने भी समस्त अधिकारियों व कर्मचारियों को संतुलिंत दिनचर्या अपनाने हेतु प्रेरित किया। उन्होने कहा कि संतुलित दिनचर्या निश्चित ही हमें स्वास्थ्य रखती है और विविध बीमारियों से भी बचाती है। पुलिस अधीक्षक द्वारा बताया गया कि  समस्त अधिकारी एवं कर्मचारी अपने स्वास्थ्य को लेकर हमेशा सजग और सचेत रहें। संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, योग, प्राणायाम करें एवं समस्त प्रकार के व्यसनो से दूर रहें। साथ ही साल में एक बार अपना एवं अपने परिवार का स्वास्थ्य परीक्षण अवश्य कराऐं। ताकि किसी भी बीमारी को प्रारम्भिक स्तर पर ही डिटेक्ट कर उसका ईलाज प्रारम्भ किया जा सके। कार्यक्रम में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक पन्ना श्रीमति आरती सिहं, रक्षित निरीक्षक श्रीमति देविका सिहं बघेल तथा पुलिस अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहे। 

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Thursday, April 13, 2023

डॉ. अम्बेडकर कांग्रेस के पूरक हैं : राजा पटेरिया



डॉ. भीमराव अम्बेडकर भारत में दलित चेतना, दलित उत्थान और दलित समाज को राष्ट्रीय मुख्य धारा से जोड़ने वाले अग्रणी महापुरुष हैं और भारत की संविधानसभा में संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने देश के सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और समान अवसर की गारन्टी देने का जो महान और अभिनव कार्य किया है, उसके लिये हम सदा उनके आभारी रहेंगे ।

लेकिन आज अम्बेडकर जयंती के अवसर पर डॉ. अम्बेडकर को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कुछ तथ्यपरक जानकारी आपके समक्ष रखना जरूरी समझता हूँ क्योंकि लोकतंत्र में "वोट बैंक की राजनीति के जोर पकड़ने के साथ ही हमने महापुरुषों का बंटवारा कर लिया । यह तो एक अच्छी बात है और एक हद तक राजनैतिक मजबूरी है कि राष्ट्रपिता गांधी को आज देश के सभी राजनैतिक दल आदरपूर्वक मानते हैं जबकि भाजपा और संघ परिवार को हमेशा गांधी को राष्ट्रपिता मानने में आपत्ति रही है, लेकिन आज वे भी बढ़चढ़कर गांधी का स्तुतिगान कर रहे हैं। डॉ. अम्बेडकर के मामले में भी भाजपा और संघ परिवार का दृष्टिकोण अभी-अभी बदला है वरना हिन्दूवादी संगठनों और नेताओं ने कभी भी उन्हें महापुरुष नहीं माना ।

दूसरी ओर कुछ जनाधारहीन दलित नेता अम्बेडकर पर अपना एकाधिकार जमाते हुए उन्हें कांग्रेस खिलाफ और कांग्रेस नेताओं के विरोधी के रूप में स्थापित करने का प्रयास करते रहे हैं और कई अधकचरे अपढ़ कांग्रेसजन भी अम्बेडकर के प्रति पूर्वाग्रह रखते रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन और उसके बाद के दौर में डॉ. भीमराव अम्बेडकर वास्तव में कांग्रेस के पूरक तत्व के रूप में देश हित में और देश के नव निर्माण में काम करते रहे कुछ हल्के नीतिगत और कार्यक्रमगत मतभेदों के कारण अम्बेडकर कांग्रेस से अलग "रिपब्लिकन पार्टी" बनाकर काम करते रहे । लेकिन मूल रूप से वे कांग्रेस को दिशा और मार्गदर्शन देने का काम ही करते रहे । 

डॉ. अम्बेडकर के भारतीय राष्ट्रीय परिदृश्य पर उमरने से बहुत पहले ही देश में स्वतंत्रता आंदोलन की चेतना जागृत हो चुकी थी और इससे भी पहले देश के नव निर्माण के लिये और नये समाज के निर्माण के लिये समाज सुधार के कार्य होने लगे थे । राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा उन्मूलन और स्त्रियों को नागरिक अधिकार देने के लिये जनचेतना जगाई अंग्रेजी शासन के जरिये सती प्रथा उन्मूलन का कानून बनवाने में सफलता पाई, तो गोपालकृष्ण गोखले और महादेव रानाडे ने विधवा विवाह को मान्यता देने और विवाह की न्यूनतम आयु तय कराने के कानून बनवाये । 

ज्योतिबा फुले ने स्त्री शिक्षा, अछूतोद्धार और मानव मात्र में समानता और भाईचारे के लिये रचनात्मक कार्य किये । दक्षिण भारत में अछूतों के मंदिर प्रवेश के आंदोलन हुये और इसके बाद जब महात्मा गांधी राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरे तो उन्होंने आजादी से पहले समूचे भारतीय समाज में एकता, समानता और समान अधिकार के लिये आवाज बुलंद की। गांधी जी ने साफ सफाई और पाखाना साफ करने जैसे काम स्वयं किये और इन कामों में लगे दलितों को समझाया कि मेहनत और श्रम किसी स्थिति में हैय या कमतर नहीं है । इसी तरह ऊंची जाति के लोगों को भी समझाया कि काम करने के कारण किसी को अछूत या कमतर नहीं माना जा सकता। गांधी जी ने भी अछूतों के मंदिर प्रवेश के आंदोलनों का संचालन किया । 

राजस्थान के प्रसिद्ध नाथद्वारा मंदिर में गांधी जी ने जो आंदोलन किया उसके बाद राजस्थान के कई मंदिरों में दलितों के लिये मंदिर प्रवेश की सुविधा दी गई। इसी तरह केरल और महाराष्ट्र में भी गांधी जी ने मंदिर प्रवेश आंदोलन संचालित किये। दलितो को शिक्षा और स्वदेशी उद्योग में तरक्की करने के अवसर देने के लिये भी गांधी जी ने अभिनव कार्य किये। इसी दौर में इंग्लैण्ड से शिक्षा प्राप्त कर लौटे और मुम्बई में बैरिस्टर के रूप में कार्य कर रहे डॉ. अम्बेडकर ने दलित बस्तियों और दलितों की दुर्दशा देख उनके हित और उनके हक में आवाज उठाई। दलितों ने अपने बीच के ही एक उच्च शिक्षित व्यक्ति को पाकर उसे अपना नेता और मुक्तिदाता माना, जिससे भारतीय समाज में एकीकरण की प्रक्रिया को बल मिला। यह अम्बेडकर के प्रयासों की ही देन कहा जाएगा कि कांग्रेस के आंदोलनों में, 7 विशेषकर मुम्बई के मजदूर आंदोलन और दीगर आंदोलनों में दलितों की भागीदारी अच्छी खासी रहा करती थी। 

बाद में विदर्भ और देश के दूसरे क्षेत्रों में भी दलित समाज कांग्रेस से जुड़ा बिहार, उत्तरप्रदेश और पंजाब के शिक्षित युवक कांग्रेस संगठन में जिले से लेकर राष्ट्र स्तर तक महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी संभालने लगे । बाबू जगजीवनराम ने इसी दौर में बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में दलित चेतना जगाने और दलितों की समस्या को लेकर आंदोलन चलाए । भोला पासवान शास्त्री, बाबू दयाल राम, संकटाप्रसाद भी इसी दौर के दलित नेता हैं । कांग्रेस या गांधी जी से अम्बेडकर के मतभेदों को अनावश्यक और गलत तरीके से प्रचारित किया जाता है। पूना पैक्ट और उस पर हुई बहस एक सोची समझी रणनीति के तहत की गई, ताकि विदेशी सरकार और देश के सवर्ण समाज की भावना उजागर कर दलितों के हित में फैसले कराये जा सकें ।

आजादी के बाद संविधान निर्माण में डॉ. अम्बेडकर की भूमिका, कांग्रेस के सहयोग के बिना असंभव थी। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि सन 1946 में जो संविधानसभा बनी, उसके लिये अम्बेडकर तत्कालीन मुम्बई प्रांत या सीपीएण्ड बरार से चुने नहीं गये थे । आप सब 1946 की संविधानसभा के सदस्यों की सूची देख सकते हैं। डॉ. अम्बेडकर को उनके कानून के ज्ञान के कारण गांधी-नेहरु ने बंगाल से जिताया था। डॉ. अम्बेडकर के लिये पण्डित नेहरु के आग्रह पर नेताजी सुभाष बोस के छोटे भाई शरद बोस ने सीट खाली की और उनके रिक्त स्थान पर डॉ. अम्बेडकर को संविधानसभा में चुना गया। देश विभाजन के कारण जब अगस्त 1947 में बंगाल का एक बड़ा हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान में चला गया, तब फिर से चुनाव हुए और तब डॉ. अम्बेडकर को सीपीएण्ड बरार से चुने जाने के लिये सरदार पटेल ने रविशंकर शुक्ल और तत्कालीन मुख्यमंत्री खेर साहब को जवाबदारी सौंपी थी और ये चुने भी गए। 

इसके बाद जहां तक संविधानसभा में प्रारूप समिति में अध्यक्ष पद का सवाल है, पहले अल्लादी कृष्णन अध्यक्ष थे लेकिन वृद्धावस्था के कारण वे इस पद की जिम्मेदारी नहीं संभाल सकते थे, इसीलिये उनकी सिफारिश पर अम्बेडकर को अध्यक्ष बनाया गया था। डॉ. अम्बेडकर ने भी संविधान प्रारूप सभा को सौंपते हुए अपने भाषण में कांग्रेस की सदाशयता और अनुशासन की जो तारीफ की है और कांग्रेस नेतृत्व की तारीफ की है. उससे लगता है कि कांग्रेस और अम्बेडकर में कोई मूल मतभेद नहीं रहे बल्कि सहयोगी भाव ही रहे हैं।

( इस आलेख के लेखक राजा पटेरिया मध्यप्रदेश शासन के पूर्व मंत्री व  म.प्र. कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हैं। ) 

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Monday, April 10, 2023

यह चेरी टमाटर कहीं अग्रेजों के आने के पहले का तो नहीं ?

  • देखने में बेहद आकर्षक हाईब्रीड टमाटर सब्जी बाजार में 5 से 10 रुपये किलो बिक रहा है, जबकि देशी चेरी टमाटर 40 रुपये किलो बिकता है। इसकी वजह चेरी टमाटर का स्वाद है जो हाईब्रीड टमाटर में नहीं मिलता। कहा जाता है कि टमाटर और आलू हमारे देश की सब्जी नहीं है लेकिन चेरी टमाटर प्राकृतिक रूप से इस देश की मिट्टी व आबोहवा में ही पनपा है। 

 

।। बाबूलाल दाहिया ।।

प्रायः यह सुनिश्चित है कि टमाटर और आलू हमारे देश की सब्जी नहीं है। यह दोनों अग्रेजो के आने के बाद ही भारत में आये और यहां की प्रमुख सब्जी का स्थान ले लिया। शायद यही कारण है कि आयुर्वेद ग्रन्थों में इनका कहीं उल्लेख नहीं पाया जाता। सब से बड़ा ऐतिहासिक उदाहरण तो (आईने अकबरी) है। कहते हैं 1555 में जब बादशाह हुमायु दोबारा बादशाह बने और अपने सरदारों एवं रिआया को भोज दिया उसमें सभी तरह की तरकारियां लौकी, भिंडी, करेला, परवल, गिलकी, कद्दू, घुइयां, बरवटी आदि  राधी गई। किन्तु यह (टोमैटो-पोटैटो) उन सब्जियों मे शामिल नहीं है। इससे सिद्ध है कि तम्बाकू की तरह इन्हें भी अंग्रेज अपने साथ लाए जो बाद में समूचे देश की लोकप्रिय सब्जी बन गए। 

किन्तु यह समूचे उत्तर और मध्य भारत में  नैसर्गिक ढंग से उगने वाला जंगली टमाटर चेरी जिसे कहीं मारू कहीं भेजरा तो कहीं टमटरी भी कहा जाता है, क्या यह भी अग्रेजों द्वारा लाया गया होगा ? या यह पहले से इसी तरह उगता रहा होगा ? यह विद्वानों के लिए विचारणीय बात है। क्योकि इसका चरित्र उन बड़े टमाटरों से अलग सा लग रहा है। 

व्यावसायिक रूप से लगाये जाने वाले कई तरह के टमाटर हैं। कुछ देश में हरित क्रांति आने के पहले के टमाटर हैं जो खाने में खट्टापन लिए जायकेदार हैं । अस्तु उन्हें देसी टमाटर कहा जाता है, तो कुछ हाईब्रीड भी हैं। यह हाईब्रीड देखने मे तो आकर्षक हैं किन्तु स्वाद में दो कौड़ी के भी नहीं। लेकिन बाजार इन्ही से पटा रहता है। इन दोनों से अलग एक वह चेरी य जंगली टमाटर भी है, जिसमें खाद, बीज, निराई, सिचाई, कीटनाशक आदि किसी में कुछ भी पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं। बस तोड़िए और चटनी य सब्जी में उपयोग कीजिए।

न तो उसमें पत्ती सिकुड़न रोग लगता है, न कोई कीट ब्याधि ? वह अपने आप गाँव, घरों के आस पास बिखरे कूड़े करकट, खेतो की मेड़ो य बगीचे, सार्वजनिक स्थानों में जमेगा और सितम्बर से पकना शुरू होगा तो अप्रैल तक मुफ्त में सब्जियां खिलाएगा, जिसमें किसी का स्वामित्व भी नहीं। चाहे जो तोड़ता खाता रहे ? और पत्ते में ऐसा कषैलापन कि मजाल क्या कि कोई पशु मुँह भी मार सके ? किन्तु यदि इसके दो चार फल भी उस स्वाद रहित हाईब्रीड टमाटर के सब्जी में डाल दिया जाय तो उसे भी इसका खट्टापन स्वादिष्ट बना दे।

लेकिन इसका हम मनुष्यो का मात्र स्वार्थ का ही नाता है। इसके वंश परिवर्धन के लिए बीज फैलाने का काम तो चिड़ियां करती हैं। शायद इसीलिए उनके अनुरूप उसने अपने फल का आकार छोटा रखा है।

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Friday, April 7, 2023

विश्व स्वास्थ्य का दिवस है, कहते हैं सब आज। बीज बैंक में देखिए, विश्व स्वास्थ्य का राज।।

 


।। बाबूलाल दाहिया ।।                

मित्रो! कहते हैं आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है। कोई भी दिवस मनाने का एक मकसद होता है। उसका सीधा सा अर्थ है कि लोग उसके प्रति सजग हों। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय समय-समय पर अनेक दिवसों की याद दिलाता रहता है। मनुष्य का स्वास्थ्य से बहुत प्राचीन रिश्ता है । जब हम छोटे-छोटे थे तभी से सुनते आ रहे हैं कि 

  प्रथम सुख्ख निरोगी काया।

  दूसर सुख हो घर में माया।।

यानी स्वास्थ्य पहले धन बाद में। परन्तु हम देखते हैं कि लोगो की औसत उम्र तो बढ़ी है पर औसत तीन ब्यक्तियों में एक ब्यक्ति रक्तचाप, मोटापा य डायबिटीज का मरीज भी हुआ है। और मैं इस आधार पर कहता हूं कि जितने लोग हमारा मियूजियम य बीज बैंक देखने आते हैं तो हर तीसरा ब्यक्ति कहता है कि  "दाहिया जी बगैर शक्कर की चाय बनवाइयेगा ?"  लेकिन ऐसा क्यो है? वह इसलिए है कि सभी ने परम्परागत अनाजों को खाना छोड़ दिया है। वे परम्परागत अनाज थे ( कोदो, कुटकी, सांवा, काकुन, ज्वार, मक्का, बाजरा, जौ, चना, गेहूं, चावल ) साथ ही कई प्रकार की दालें भी।

पर हरित क्रांति आने के पश्चात हमारा  भोजन अब तीन अनाजों में ही सिमट कर रह  गया है। वे हैं (गेहूं, चावल, दाल) और वह भी सभी रसायन से पके हुए? जब कि पहले हमारे  भोजन में  दश-बारह अनाज शामिल थे, जो पूर्णतः रसायन रहित और उनमे रोगों से लड़ने की क्षमता तो थी ही पर उनसे हमें अनेक तरह के पोषक तत्व भी मिलते थे।


मोटे अनाजो में एक विशेषता यह भी थी कि उनको यदि 100 ग्राम भी खाया जाए यो उनके साथ दो हिस्सा दाल, सब्जी, दूध, मट्ठा कुछ न कुछ अवश्य खाना पड़ता था। अस्तु उनसे भोजन पोष्टिक भी हो जाता था दूसरी ओर उपरोक्त बीमारियां नहीं होती थी। हमने अपने दश-बारह अनाजो में गेंहू चावल भी बताया है। आप कहते होंगे कि" गेहूं चावल ही तो हम खाते हैं ? " पर हाईब्रीड और परम्परागत में अन्तर है। परम्परागत कुदरती है लेकिन हाईब्रीड कृत्रिम। परम्परागत का तना बड़ा होता है अस्तु वह रसायनिक खाद बर्दास्त नहीं करता। साथ ही तना बड़ा होने से उसे तीन स्टेज में जमने वाला नीदा नहीं दबा पाता अस्तु वह स्वाभाविक रसायन रहित होता है। उसके विपरीत आज बाजार से खरीद कर जो अनाज दालें य सब्जियां लोग खाते हैं वे पूर्णतः रसायन स्नान किए हुए ही होते हैं।

इसी तरह यदि कीटों को देखा जाय तो रसायनिक खाद न पड़ने से देसी का पौधा अधिक हरा नही होता अस्तु उसमे उतने ही कीट आते हैं जिन्हें चिड़िया, गिरगिट, मकड़ी, लखाडी एवं अन्य मांसाहारी कीट कंट्रोल कर सके। अस्तु उनमे रसायनिक कीटनाशी डालने की जरूरत नही पड़ती । इसलिए विश्व स्वास्थ्य की असली दवा तो हमारे बीज बैंक में ही 200 प्रकार की परम्परागत धान, 15 प्रकार के देसी गेहूं, कोदो,कुटकी, सांवा काकुन, बाजरा आदि के रूप में  हैं जिन्हें किसान ले जाएँ और खेतों में उगाकर परिवार समेत खाएं तथा दूसरों को भी खिलाएं।

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