Saturday, May 27, 2023

क्या आपने भी देखा और जिया है गांव की यह जिंदगी ?


यदि आपने :

बखरी की कोठरी के ताखा में जलती ढेबरी देखी है।

दलान को समझा है।

ओसारा जानते हैं।

दुवारे पर कचहरी (पंचायत) देखी है।

राम राम के बेरा दूसरे के दुवारे पहुंच के चाय पानी किये हैं।

दतुअन किये हैं।

दिन में दाल-भात-तरकारी

खाये हैं।

संझा माई की किरिया का मतलब समझते हैं।

रात में दिया और लालटेम जलाये हैं।

बरहम बाबा का स्थान आपको मालूम है।

डीह बाबा के स्थान पर गोड़ धरे हैं।

तलाव (ताल) के किनारे और बगइचा के बगल वाले पीपर और स्कूल के रस्ता वाले बरगद के भूत का किस्सा (कहानी) सुने हैं।

बसुला समझते हैं।

फरूहा जानते हैं।

कुदार देखे हैं।

दुपहरिया मे घूम-घूम कर आम, जामुन, अमरूद खाये हैं।

बारी बगइचा की जिंदगी जिये हैं।

चिलचिलाती धूप के साथ लूक के थपेड़ों में बारी बगइचा में खेले हैं।

पोखरा-गड़ही किनारे बैठकर लंठई किये हैं।

पोखरा-गड़ही किनारे खेत में बैठकर ५-१० यारों की टोली के साथ कुल्ला मैदान हुए हैं।

गोहूं, अरहर, मटरिया  का मजा लिये हैं

अगर आपने जेठ के महीने की तीजहरिया में तीसौरी भात खाये हैं,

अगर आपने सतुआ का घोरुआ पिआ है,

अगर आपने बचपन में बकइयां घींचा है।

अगर आपने गाय को पगुराते हुए देखा है।

अगर आपने बचपने में आइस-पाइस खेला है।

अगर आपने जानवर को लेहना और सानी खिलाते किसी को देखा  है।

अगर आपने ओक्का बोक्का तीन तलोक्का नामक खेल खेला है।

अगर आपने घर लिपते हुए देखा है।

अगर आपने गुर सतुआ, मटर और गन्ना का रस के अलावा कुदारी से खेत का कोन गोड़ने का मजा लिया  है।

अगर आपने पोतनहर से चूल्हा पोतते हुए देखा है।

अगर आपने कउड़ा/कुंडा/ सिगड़ी/ कंडा  तापा है।

अगर आप ने दीवाली के बाद दलिद्दर खेदते देखा है।

तो समझिये की आपने एक अद्भुत ज़िंदगी जी है, और इस युग में ये अलौकिक ज़िंदगी ना अब आपको मिलेगी ना आने वाली  पीढ़ी को  क्योंकि आज उपरोक्त चीजें विलुप्त प्राय होती जा रही हैं या हो चुकी हैं।

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Tuesday, May 23, 2023

महाकाल लोक की तर्ज पर पन्ना में बनेगा जुगल किशोर सरकार लोक

  •  पन्ना गौरव दिवस पर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री चैहान ने की घोषणा 
  •  धरमसागर तालाब में महाराजा छत्रसाल की प्रतिमा स्थापित होगी

पन्ना गौरव दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री को तलवार भेंट करते मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। उज्जैन के महाकाल लोक की तर्ज पर मंदिरों की नगरी पन्ना में जुगल किशोर सरकार लोक बनेगा। इस आशय की घोषणा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने सोमवार की रात्रि बुन्देल केसरी महाराजा छत्रसाल की जयंती के अवसर पर पन्ना गौरव दिवस के आयोजन में की। पन्ना को पवित्र धार्मिक नगरी बताते हुए उन्होंने कहा कि जुगल किशोर सरकार लोक में चारों मंदिर परिसर सम्मिलित किए जाएंगे। सुझाव और सलाह लेकर बनाया जाएगा जुगल किशोर लोक। स्थानीय छत्रसाल स्टेडियम में आयोजित गौरव दिवस समारोह में केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री  कमल पटेल, खनिज साधन एवं श्रम मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह, सांसद विष्णुदत्त शर्मा सहित अनेक जनप्रतिनिधि उपस्थित थे।

मुख्यमंत्री श्री चैहान ने लोगों को महाराजा छत्रसाल से प्रेरणा लेने और उनके आदर्शों का अनुसरण करने के उद्देश्य से धर्मसागर तालाब में उनकी प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा भी की। मुख्यमंत्री श्री चैहान ने पन्ना जिले के विकास के लिए 178.51 करोड़ के विभिन्न निर्माण कार्यों का भूमिपूजन एवं लोकार्पण गौरव दिवस समारोह के अवसर पर किया। जनप्रतिनिधियों की मांग पर श्री चैहान ने कहा कि जब 10 लाख तक की आबादी वाले शहरों/जिलों में मेडिकल काॅलेज खोले जाने का फैसला होगा, तब उसमें पन्ना को भी शामिल किया जाएगा। श्री चैहान ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार पन्ना के विकास में कोई कसर शेष नहीं छोड़ेगी। उन्होंने बताया कि पन्ना को आज विकास की कई सौगातें दी गई हैं। वर्ष 2018 में कृषि महाविद्यालय की मांग की गई थी, बाद में उसे तत्कालीन सरकार द्वारा अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसे अब पन्ना में पुनः वापिस लाया गया है।


महाराजा छत्रसाल की गौरव गाथा का जिक्र करते हुए श्री चैहान ने कहा कि वह महान योद्धा थे जो कभी पराजित नहीं हुए। उनके राज्य की सीमाएं विशाल थीं। पन्ना को अद्भुत शहर बताते हुए उन्होंने कहा कि यहां के त्यौहार, मेले, लोक कलाएं, व्यंजन, संस्कृति और सभ्यता विशिष्ट है। हीरे की चमक की तरह हमें पन्ना की पहचान यथावत बनाए रखना होगी। राज्य सरकार रोजगार और स्वरोजगार देने के साथ ही सभी विकास कार्य कर रही है साथ ही लोगों का जीवन स्तर भी सुधार रही है। इसके लिए अनेक योजनाएं चल रही हैं। मुख्यमंत्री ने कलेक्टर को निर्देश दिए कि जांच के बाद जुगल किशोर मंदिर के कार्य में गडबड़ी करने वालों को बख्शा नहीं जाए। समारोह में लाड़ली बहनों ने मुख्यमंत्री को 51 मीटर की चुनरी और एक बड़ी राखी भेंट की तथा उन्हें राखी भी बांधी। श्री चैहान ने नगर की अनेक प्रतिभाओं को सम्मानित भी किया।

मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री का छत्रसाल जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करने पर आभार माना तथा धरमसागर तालाब में महाराजा छत्रसाल की प्रतिमा स्थापित करने की मांग की। उन्होंने कहा कि महाराजा छत्रसाल का हृदय विशाल था। उन्होंने अनेक युद्ध किए पर कभी हारे नहीं। बुन्देलखण्ड को मुगलों से मुक्त कराया। सांसद विष्णुदत्त शर्मा ने कहा कि कृषि महाविद्यालय की स्थापना होने से अब कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान हो सकेगा। रेलवे स्टेशन प्रारंभ होने से पन्ना के विकास के नये आयाम स्थापित होंगे। उन्होंने कहा कि हम सब मिल कर पन्ना का विकास करेंगे। प्रारंभ में मुख्यमंत्री श्री चैहान ने कन्यापूजन एवं महाराजा छत्रसाल के चित्र पर माल्यार्पण कर समारोह का शुभारंभ किया। मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री व अन्य अतिथियों को साफा बांध एवं तलवार भेंट कर स्वागत किया। कार्यक्रम को श्रीमती मीना पाण्डेय ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर प्रसिद्ध गायिका सुश्री कविता पौडवाल द्वारा सुमधुर गीतों की प्रस्तुति की गई।

178.51 करोड़ के निर्माण कार्यों का हुआ भूमिपूजन और लोकार्पण



मुख्यमंत्री श्री चैहान ने आज पन्ना में कुल 178 करोड़ 51 लाख 48 हजार रुपए के 14 विभिन्न कार्यों का शिलान्यास एवं लोकार्पण किया। उन्होंने 6 करोड़ रुपए की लागत के नवीन कृषि महाविद्यालय एवं 25 करोड़ लागत के नवीन रेलवे स्टेशन के निर्माण कार्य के शिलान्यास के अलावा गौरव दिवस के कार्यक्रम में 2.89  करोड़ के अजयगढ़-कुंवरपुर-राजापुर मार्ग,  डुबकी में 40.81 लाख के करहिया-डुबकी मार्ग, 1 करोड़ 2 लाख 80 हजार  के कल्याणपुर से सरकोहा मार्ग, 33.06 लाख  से वार्ड 11 के मुक्तिधाम में विभिन्न विकास कार्य, 26.04 लाख से वार्ड क्रमांक 3 के मुक्तिधाम में विभिन्न विकास कार्य, 53.96 लाख के वार्ड 18 में सागर तालाब के विकास कार्यों का लोकार्पण किया। मुख्यमंत्री ने 2 करोड़ 27 लाख 55 हजार लागत से ग्राम पंचायत बहिरवारा के ग्राम रतनपुरा से मुख्य मार्ग(3.50 किमी), 50 लाख से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अजय गढ़  में  पब्लिक हेल्थ यूनिट के निर्माण, 20 करोड़ से महेंद्र भवन पैलेस का हेरिटेज होटल के रूप में उन्नयन, 46.42 करोड़ से अमृत 2.0  के अंतर्गत जल प्रदाय एवं वाटर बॉडी रिजुविनेशन के विकास कार्य, 15 करोड़ लागत से सकरिया रोड स्थित हवाई पट्टी का पुनर्निर्माण, 3.86 करोड़ से निर्मित होने वाले जुगल किशोर इंडोर स्टेडियम का शिलान्यास भी किया।

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Sunday, May 21, 2023

पन्ना की पुकार : हीरे, मंदिर और जंगल, अब चाहिए "मंगल" !

भव्य प्राचीन मंदिरों और हीरा की खदानों के लिये प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में प्रकृति ने सृजन के विविध रूपों को जिस तरह से प्रकट किया है वह  मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। पहली बार जो कोई भी यहाँ आता है, इस रत्नगर्भा धरती के अतुलनीय सौन्दर्य को निहारकर मंत्रमुग्ध हो जाता है। लेकिन प्रकृति के अनुपम सौगातों का पन्ना के विकास की दिशा में रचनात्मक उपयोग नहीं हो सका। पर्यटन विकास की असीम संभावनायें मौजूद होने के बावजूद अभी तक यह जिला पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र नहीं बन सका है। 



।। अरुण सिंह ।।   

पन्ना। यहां प्राचीन भव्य मन्दिरों के अलावा ऐतिहासिक महत्व के स्थलों, खूबसूरत जल प्रपातों व प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण मनोरम स्थलों की भरमार है। इनका समुचित ढंग से प्रचार-प्रसार न होने के कारण देशी व विदेशी पर्यटक इस जिले की खूबियों से अनभिज्ञ हैं। यही वजह है कि पर्यटकों को आकर्षित  करने की खूबियों के बावजूद पन्ना पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं हो सका। लेकिन अब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विशेष रूचि प्रदर्शित करते हुए जिस तरह से बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल की जयंती को गौरव दिवस के रूप में मनाने की अभिनव पहल की है उससे मन्दिरों के शहर पन्ना को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किये जाने की उम्मीद जागी है।

उल्लेखनीय है कि पन्ना जिला विन्ध्य की ऊँची-नीची पर्वत श्रंखलाओं पर बसा हुआ हैै। जिले की सीमायें हरी-भरी, मनमोहक वादियों से आच्छादित हैं। सीमा में प्रवेश होते ही कलकल निनाद करती नदियां, झरझर के स्वर बिखेरते प्रपात एवं पक्षियों की चहचहाट सप्तस्वर लहरियां बिखेर देती हैं। तब ऐसा प्रतीत होता है कि मार्गों के दोनों तरफ वृक्षों की टहनियां हवा में लहराकर आगंतुकों का स्वागत कर रही हैं। यहां के मन्दिर लोगों को अनायाश ही अपनी ओर खींच लेते हैं जो भी मन्दिर परिसर में पहुँच जाता है वह इन मन्दिरों की स्थापत्य कला व भव्यता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है। इतना ही नहीं इस जिले मेें अनेकानेक प्राकृतिक स्थल, धार्मिक स्थल, ऐतिहासिक इमारतें और विश्व प्रसिद्ध हीरा की खदानें स्थित हैं। यहां की प्रकृति और इमारतें सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुये हैं। वनवास के दौरान मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम पन्ना जिले से होकर गुजरे थे, जिसके चिह्न यहां आज भी मौजूद हैं। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 16 किमी दूर सुतीक्षण आश्रम तथा सलेहा के निकट स्थित अगस्त ऋषि आश्रम भगवान राम के वन पथ गमन की यादों को अपने जेहन में आज भी संजोये हुये है। धार्मिक  महत्व के इन प्राचीन स्थलों का यदि योजनाबद्ध तरीके से विकास किया जाये तो ये स्थल पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकते हैं। इस पुण्य भूमि में अनेकों ऋषि मुनियों ने भी अपने जीवन का लम्बा समय बिताया है, जिसके चलते इस भूमि को यदि तपोभूमि कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं है।

पन्ना में मानसून पर्यटन के विकास की विपुल संभावनाएं



प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व में पन्ना प्रवास के दौरान यह घोषणा की थी कि पन्ना शहर के आस-पास स्थित प्राकृतिक मनोरम स्थलों व जल प्रपातों का विकास कर यहां मानसून पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये प्रयास किये जायेंगे ताकि बारिश के मौसम में जब पन्ना टाईगर रिजर्व के गेट पर्यटकों के भ्रमण हेतु बंद हो जायें, उस समय भी पर्यटक यहां आकर प्रकृति के अद्भुत नजारों का आनन्द ले सकें। इससे यहां पर रोजगार के नये अवसरों का जहां सृजन होगा, वहीं मन्दिरों के शहर पन्ना को एक खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकेगा। मुख्यमंत्री जी की इस सोच व घोषणा की पन्नावासियों ने सराहना की थी, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई सार्थक पहल व प्रयास नहीं हुये। मालुम हो कि पन्ना शहर के आस-पास 10 किमी के दायरे में प्राकृतिक व ऐतिहासिक महत्व के ऐसे अनेकों स्थल व जल प्रपात हैं, जिनको यदि पर्यटकों की दृष्टि से विकसित कर दिया जाये तो ये स्थल आकर्षण का केन्द्र बन सकते हैं।

जिला मुख्यालय पन्ना से 10 किमी. की दूरी पर सड़क मार्ग के निकट स्थित लखनपुर सेहा का घना जंगल तथा ऊँची मीनार जैसा नजर आने वाला यहां का मशरूम राक देखने जैसा है। गौरतलब है कि पन्ना जिले को प्रकृति ने अनुपम सौगातों से नवाजा है। यहां के हरे-भरे घने जंगल, अनूठे जल प्रपात व गहरे सेहे देखकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं कि यहां इतना सब है फिर भी यह इलाका उपेक्षित और पिछड़ा क्यों है? पन्ना शहर में जहां प्राचीन भव्य व विशाल मन्दिर हैं वहीं इस जिले में ऐतिहासिक महत्व के स्थलों की भी भरमार है। प्रकृति तो जैसे यहां अपने बेहद सुन्दर रूप में प्रकट हुई है। यदि इन सभी खूबियों का सही ढंग से क्षेत्र के विकास व जन कल्याण में रचनात्मक उपयोग हो तो इस पूरे इलाके का कायाकल्प हो सकता है। 

पन्ना शहर के बेहद निकट स्थित लखनपुर का सेहा एक ऐसा स्थान है जो इस जिले को पर्यटन के क्षेत्र में सम्मानजनक स्थान दिलाने की क्षमता रखता है। लखनपुर सेहा के अलावा पन्ना शहर के ही निकट गौर का चौपड़ा, खजरी कुड़ार गाँव के पास चरही, कौआ सेहा, बृहस्पति कुण्ड सहित अनेकों स्थल हैं जो उपेक्षित पड़े हैं। यदि इन मनोरम स्थलों को विकसित किया जाकर सही तरीके से प्रस्तुत किया जाये तो पर्यटक यहां खिंचे चले आयेंगे। इन सभी स्थलों को चिह्नित करते हुये वहां तक सुगम मार्ग व बुनियादी सुविधायें यदि उपलब्ध करा दी जायें तो ये स्थल बारिश के मौसम में पर्यटकों से गुलजार हो सकते हैं।

 जर्जर हो चुकी धरोहरें बदल सकती हैं पन्ना जिले की तकदीर



सदियों पुराने जर्जर और बदहाल हो  चुके किले पन्ना जिले की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल सकते  हैं। यदि इन प्राचीन धरोहरों का सही  ढंग से कायाकल्प कराकर सुनियोजित विकास किया जाए तो ये देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकते  हैं। इस जिले में भव्य और अनूठे मन्दिरों की पूरी श्रृंखला व प्राकृतिक मनोरम स्थलों की भरमार है, फिर भी पन्ना पर्यटन की दृष्टि से अपनी पहचान बना पाने में कामयाब नहीं हो सका है। पन्ना टाईगर रिजर्व की दम पर खजुराहो  में पर्यटन उद्योग खूब फल फूल रहा  है और सब कुछ रहते हुए भी पन्ना आज भी उपेक्षित और दीनहीन बना हुआ है।

किसी समय चन्देल राजाओं के शक्ति का केन्द्र रहा पन्ना जिले का ऐतिहासिक अजयगढ़ दुर्ग स्वाधीनता के बाद प्रशासनिक उपेक्षा के चलते खण्डहर में तब्दील होता जा रहा  है। जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी की दूरी पर विन्ध्यांचल की दुर्गम पर्वत श्रेणियों पर स्थित यह अजेय दुर्ग अपने जेहन में भले ही वीरता की अनेकों गौरव गाथायें सहेजे है, लेकिन इसके बावजूद यहां  भूले भटके भी पर्यटक दिखाई नहीं देते। चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित इस दुर्ग की वास्तुकला के अवशेषों का अवलोकन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि खजुराहो और कालींजर के विश्व प्रसिद्ध शिल्प के शिल्पियों के हांथ में इतनी पैनी छैनियां नहीं थीं, जितनी की अजयगढ़ दुर्ग के वास्तुकारों के पास थीं। वास्तव में अजयगढ़ का किला वास्तु शिल्प की दृष्टि से अधिक कलात्मक, अनूठा और बेजोड़ है।

खजुराहो शिल्प में यक्ष-यक्षिणी की मैथुन मुद्राओं को पाषाण पर उकेर कर जहाँ  जीवंत रूप प्रदान किया गया है , वहीँ  अजयगढ़ की शिल्पकला सत्यं शिवम सुन्दरम् की गरिमा से युक्त है । राजाओं और महाराजाओं के उत्थान एवं पतन के इतिहास को अपने जेहन में समेटे अजयगढ़ दुर्ग का प्राकृतिक सौन्दर्य चिरस्थायी है। पर्वत शिखरों से फूटते झरने, नागिन सी बल खाती घाटियां, मनोरम गुफायें, गहरी खाईयां, विशाल सरोवर व श्याम गौर चïट्टानें दर्शकों का मन मोह लेती हैं। इसके बावजूद इस अनूठे दुर्ग की लगातार घोर उपेक्षा हुई है, जिससे यह अभी तक पर्यटन के मानचित्र से ओझल बना हुआ है । 

गौरतलब है  कि चन्देल राजाओं द्वारा निर्मित इस भव्य दुर्ग के निर्माण में पत्थरों का तो प्रयोग किया गया है  किन्तु उनको जोडऩे में कहीं भी मसाले का प्रयोग नहीं  हुआ । जानकारों का कहना है कि इसके निर्माण में गुरूत्वाकर्षण के सिद्धातों के आधार पर कोणीय संतुलन विधि का प्रयोग किया गया है । प्राकृतिक झंझावातों, प्रकोपों, मानवीय युद्धों के विध्वंशक प्रहारों तथा अभिशापों को झेलने वाला यह दुर्ग अपनी भव्यता, अद्वितीयता और सुदृढ़ता का परिचय दे रहा है, जो निश्चित ही खजुराहों तथा अन्य ऐतिहासिक स्थलों से किसी भी दृष्टि से कम नहीं है।

जेमोलॉजी पर केंद्रित शैक्षणिक संस्थान की हो स्थापना




विश्व प्रसिद्ध हीरा खदानों के लिए पन्ना जाना जाता है। यहां पर उत्तम गुणवत्ता वाले हीरे निकलते हैं। सदियों से पन्ना की खदानों से हीरा निकाला जाता रहा है जो आज भी जारी है। लेकिन इसका अपेक्षित लाभ पन्ना को नहीं मिला। मौजूद समय पन्ना में डायमंड म्यूजियम खोले जाने की खासी चर्चा है, म्यूजियम खोलना अच्छी बात है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। पन्ना में ऐसे शिक्षण संस्थान खुलने चाहिए जिससे यहां हीरा व्यवसाय को बढ़ावा मिले तथा रोजी रोजगार के नए अवसर पैदा हों। इसके लिए जेमोलॉजी पर केंद्रित शैक्षणिक संस्थान की स्थापना उपयोगी साबित होगी। क्योंकि यहां पर हीरा निकलता है इसलिए पन्ना इसके लिए उपयुक्त स्थल है। 
उल्लेखनीय है कि रत्नों की पहचान, मूल्यांकन की कला, पेशा और विज्ञान को जेमोलॉजी कहा जाता है। जेमोलॉजी के अंतर्गत रत्नों की पहचान करना तथा रत्नों की कटिंग, सॉर्टिंग (छटाई), ग्रेडिंग, वैल्यूएशन (मूल्य निर्धारण), डिजाइनिंग के बारे में बताया जाता है। देश में जेमोलॉजि विषय के बहुत ही कम से शैक्षणिक संस्थान हैं, जो कि महानगरों में स्थित हैं। लेकिन जहां हीरा निकलता है वहाँ इससे संबंधित कोई शिक्षा संस्थान नहीं है। यदि इसकी स्थापना हो जाए तो देश भर के विद्यार्थी यहाँ पढऩे आएंगे, इसी के साथ यहां पर हीरों की कटिंग, पॉलिसिंग व ज्वेलरी निर्माण का काम भी होगा। जिससे हीरा व्यवसाय को पंख लग जाएंगे और इसका लाभ निश्चित ही स्वाभाविक तौर पर पन्ना को मिलेगा।

बाघ पुनर्स्थापना रिसर्च व ट्रेनिंग सेंटर जरूरी




पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने के लिए वर्ष 2009 में शुरू की गई बाघ पुनर्स्थापना योजना को चमत्कारी सफलता मिली है। मौजूदा समय यहाँ पर 70 से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। पन्ना के बाघों ने आसपास के इलाकों में भी अपना आशियाना बनाया है, जिससे वहां भी बाघों की आबादी फल फूल रही है। पन्ना की इस अनूठी कामयाबी को वैश्विक ख्याति मिली है तथा अनेकों देश पन्ना में हुए इस सफलतम प्रयोग से सीख लेकर बाघों के कुनबे को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। इस बात को द्रष्टिगत रखते हुए पन्ना में बाघ पुनर्स्थापना सेंटर के साथ-साथ वन अधिकारियों के प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना होनी चाहिए। ऐसा होने से पन्ना की जहां एक नई पहचान बनेगी वहीं रोजी रोजगार के अवसरों का भी सृजन होगा। इसके लिए हिनौता अनुकूल व उपयुक्त जगह है। इसको मूर्त रूप देने में एनएमडीसी हीरा खनन परियोजना की भी मदद ली जा सकती है।
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धूमधाम से मनाएं गौरव दिवस एवं छत्रसाल जयंती महोत्सव : बृजेंद्र प्रताप सिंह

पन्ना। 22 मई 2023 का दिन पन्ना जिले के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण है। पन्ना नगर के गौरव दिवस एवं बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल जी की जयंती का भव्य आयोजन प्रदेश के मुखिया माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी, केंद्रीय मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर जी, प्रदेश अध्यक्ष खजुराहो सांसद श्री बी.डी. शर्मा जी, कृषि मंत्री श्री कमल पटेल जी, जिले के प्रभारी मंत्री श्री रामकशोर नानो कावरे जी के मुख्य आतिथ्य में संपन्न होने जा रहा है।  

मेरी सभी जिलेवासियों से अपील है कि इस गौरव दिवस के अवसर पर सभी अपने घरों के बाहर दीपक जलाकर एवं रोशनी करके अपनी सहभागिता निभाएं।  हम सभी के लिए यह गौरव का पल है। माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा पूर्व में जिले को कई सौगातें दी हैं। कृषि महाविद्यालय की स्थापना, जिला चिकित्सालय का 300 बिस्तर में उन्नयन, 220 केवीए पावर स्टेशन, रूंझ-मंझगाय परियोजनाओं के लिए 1100 करोड़ रुपए की स्वीकृति, डायमंड पार्क, इनडोर स्टेडियम, पन्ना नेशनल पार्क का अकोला गेट और भी कई ऐसे कार्य हैं जिनका क्रियान्वयन भी प्रारंभ हो चुका है।  और मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस ऐतिहासिक दिन पर पधार रहे हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जी जिले को ऐसी सौगातें देंगे जो न सिर्फ पन्ना जिले के विकास के पहिए को और गति प्रदान करेंगे बल्कि पन्ना जिला भी प्रदेश के अव्वल जिलों में शामिल होगा।  

सभी जिले वासियों को गौरव दिवस एवं महाराज छत्रसाल जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं



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पन्ना गौरव दिवस के रूप में मनाई जा रही छत्रसाल जयन्ती, 22 मई को आयेंगे मुख्यमंत्री

 


पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में बुन्देल केशरी महाराजा छत्रसाल जयन्ती को पन्ना गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान छत्रसाल जयंती पर 22 मई को स्थानीय छत्रसाल स्टेडियम, नगरबाग ग्राउण्ड पन्ना में शाम 6 बजे से आयोजित मुख्य कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे। सांसद विष्णुदत्त शर्मा कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे। खनिज साधन एवं श्रम मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल होंगे। इस मौके पर मुम्बई की प्लेबैक सिंगर कविता पौडवाल द्वारा आकर्षक प्रस्तुति भी दी जाएगी।

उल्लेखनीय है कि इतिहास में ऐसे कई नाम हैं जिनकी गौरव गाथा को वह स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं। ऐसे नामों में सबसे प्रमुख एक नाम बुंदेलखंड के रियल हीरो बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल का भी है। भारतीय इतिहासकारों ने बहुमुखी प्रतिभा के धनी इस अप्रतिम योद्धा के व्यक्तित्व को जनमानस के सामने लाने में कोताही की है, न्याय नहीं किया। यही वजह है कि जीवन पर्यंत मुगलों से संघर्ष करते हुए विजय पताका फहराने वाले महा पराक्रमी योद्धा को इतिहास में वह स्थान नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिये। मुगलों के अन्याय व अत्याचार के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंकने वाले बुंदेलखंड के इस योद्धा की शौर्य गाथा को जनमानस के सामने लाने की अभिनव पहल प्रदेश सरकार ने की है, जिसकी सराहना हो रही है।

कार्यक्रम के सम्बन्ध में मिली अधिकृत जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान सोमवार 22 मई को पन्ना प्रवास के दौरान छत्रसाल जयंती के मुख्य कार्यक्रम में शिरकत करने के साथ आयोजित होने वाले अन्य कई कार्यक्रमों में भी शामिल होंगे। छत्रसाल जयंती सोमवार 22 मई को महेन्द्र भवन से छत्रसाल पार्क तक सुबह 7 बजे गौरव मैराथन आयोजित की जाएगी। शाम 5 बजे प्राणनाथ मंदिर से छत्रसाल पार्क तक छत्रसाल गौरव यात्रा भी निकाली जाएगी। छत्रसाल स्टेडियम में शाम 6 बजे मुख्य कार्यक्रम होगा और नगर में घर-घर दीपक जलाकर दीपोत्सव का आयोजन किया जाएगा। कार्यक्रमों की जोर शोर के साथ तैयारियां की जा रही हैं, इसके लिए अधिकारियों को कार्यपालिक मजिस्ट्रेट के रूप में कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए ड्यूटी निर्धारित की गई है।

मुख्यमंत्री कृषि विज्ञान मेला में होंगे शामिल

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के मुख्य आतिथ्य में 22 मई को लक्ष्मीपुर पैलेस, कृषि महाविद्यालय प्रांगण में जिला स्तरीय कृषि विज्ञान मेला आयोजित किया जाएगा। इसके साथ विभागीय विकास कार्यों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी। जिला कलेक्टर द्वारा संबंधित विभाग के अधिकारियों को प्रदर्शनी मेला प्रांगण में विभागीय विकास कार्यों की प्रदर्शनी लगवाने की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया है। साथ ही मेला में हितग्राही व कृषकों की सहभागिता और विभागीय योजनाओं के लाभांवित हितग्राहियों के अनुदान राशि के चेक व सामग्री का वितरण कराने के लिए आवश्यक व्यवस्थाओं के संबंध में निर्देश दिए गए हैं।

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Tuesday, May 16, 2023

पन्ना स्थित देश का इकलौता हीरा कार्यालय बंद होने की दहलीज पर !

 बेशकीमती हीरों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में स्थित देश के इकलौते हीरा कार्यालय पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। शासन की अनदेखी और उपेक्षा के चलते पन्ना स्थित हीरा कार्यालय मौजूदा समय महज एक कमरे में संचालित हो रहा है। इटवांखास व पहाड़ीखेरा में संचालित होने वाले उप कार्यालय भी बंद हो चुके हैं। पिछले कई वर्षों से इस कार्यालय में कर्मचारियों के रिटायर होने पर उनकी जगह किसी की पदस्थापना नहीं हुई, फलस्वरूप इस कार्यालय के ज्यादातर पद खाली पड़े हैं। आलम यह है कि देश के इस इकलौते हीरा कार्यालय का वजूद सिर्फ नाम के लिए रह गया है। 



।। अरुण सिंह ।।   

पन्ना। हर इलाके की अपनी खूबियां और पहचान होती है। बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना जिले की पहचान हीरा की खदानों, खूबसूरत हरे-भरे जंगलों तथा यहां विचरण करने वाले वन्य प्राणियों विशेषकर बाघ, जंगल के बीच से प्रवाहित होने वाली जीवनदायी केन नदी एवं यहां स्थित प्राचीन भव्य मंदिरों से है। लेकिन इन अनगिनत खूबियों का अपेक्षित लाभ पन्ना जिलावासियों को नहीं मिल सका है। अब तो हालात ऐसे बन रहे हैं कि इस जिले की पहचान पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं। हीरा खदानें, नदी, जंगल व बाघ सभी पर संकट मंडरा रहा है। एशिया महाद्वीप की इकलौती मैकेनाइज्ड एनएमडीसी खदान विगत 1 जनवरी 2021 से जहाँ बंद है, वहीं जिला मुख्यालय पन्ना स्थित हीरा कार्यालय भी बंद होने की कगार पर है। 

उल्लेखनीय है कि पूर्व में पन्ना स्थित हीरा कार्यालय में जहाँ हीरा अधिकारी की पदस्थापना होती थी वहीं अब खनिज अधिकारी के पास हीरा कार्यालय का प्रभार है। नवीन कलेक्ट्रेट भवन में हीरा अधिकारी का चेंबर तक नहीं है, हीरा कार्यालय एक छोटे से कमरे में संचालित हो रहा है। हीरा पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि पहले पन्ना जिला मुख्यालय के साथ-साथ इटवांखास व पहाड़ीखेरा में उप कार्यालय हुआ करते थे जो अब बंद हो चुके हैं। उस समय उथली हीरा खदानों की निगरानी व खदानों से प्राप्त होने वाले हीरों को जमा कराने के लिए तीन दर्जन से भी अधिक सिपाही और हीरा इंस्पेक्टर पदस्थ थे। लेकिन अब सिर्फ दो सिपाही बचे हैं जो अपने रिटायरमेंट की राह देख रहे हैं। हीरा कार्यालय की एकमात्र हीरा इंस्पेक्टर नूतन जैन वर्षों से अपनी सेवाएं खनिज विभाग में दे रही हैं।

 

जिला मुख्यालय पन्ना स्थित हीरा कार्यालय जो महज एक छोटे से कमरे में संचालित है। 

गौरतलब है कि पन्ना स्थित देश के इकलौते हीरा कार्यालय में हीरा अधिकारी सहित हीरा पारखी एक सीनियर व तीन जूनियर, इंस्पेक्टर के तीन पद, ऑफिस सुपरिटेंडेंट एक पद, लिपिक चार पद, हवलदार तीन पद, सिपाही तीस पद, मेठ तीन पद, क्षेत्रीय सहायक एक पद, ड्राइवर एक पद, चौकीदार दो पद तथा भृत्य के दो पद स्वीकृत हैं। लेकिन मौजूदा समय इस ऑफिस में हीरा पारखी सहित कुल पांच कर्मचारी बचे हैं जो किसी तरह एक कमरे में सिमट चुके हीरा कार्यालय को चला रहे हैं। पूर्व में हीरा कार्यालय महेन्द्र भवन में संचालित होता था जहाँ हीरा अधिकारी का पृथक से चेंबर था वहीं ऑफिस के लिए भी पर्याप्त जगह थी। लेकिन नवीन कलेक्ट्रेट भवन में हीरा कार्यालय के लिए महज एक छोटा सा कमरा आवंटित हुआ है जिसमें बैठने तक को जगह नहीं है। हालात ये हैं कि हीरा कार्यालय का आधे से भी अधिक सामान महेन्द्र भवन स्थित पुराने ऑफिस में पड़ा हुआ है।         

लगभग 70 किमी. क्षेत्र में है हीरा धारित पट्टी का विस्तार

पन्ना जिले में हीरा धारित पट्टी का विस्तार लगभग 70 किलोमीटर क्षेत्र में है, जो मझगवां से लेकर पहाड़ीखेरा तक फैली हुई है। हीरे के प्राथमिक स्रोतों में मझगवां किंबरलाइट पाइप एवं हिनौता किंबरलाइट पाइप पन्ना जिले में ही स्थित है। यह हीरा उत्पादन का प्राथमिक स्रोत है जो पन्ना शहर के दक्षिण-पश्चिम में 20 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां अत्याधुनिक संयंत्र के माध्यम से हीरों के उत्खनन का कार्य सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) द्वारा संचालित किया जाता रहा है। मौजूदा समय उत्खनन हेतु पर्यावरण की अनुमति अवधि समाप्त हो जाने के कारण यह खदान 1 जनवरी 21 से बंद है। एनएमडीसी हीरा खदान बंद होने से हीरों के उत्पादन का ग्राफ जहाँ नीचे जा पहुंचा है वहीं शासन को मिलने वाली रायल्टी में भी कमी आई है। यदि निकट भविष्य में एनएमडीसी हीरा खदान चालू नहीं हुई और हीरा कार्यालय की हालत नहीं सुधरी तो हीरों से जो पन्ना की पहचान थी वह भी ख़त्म हो सकती है। एनएमडीसी खदान में वर्ष 1968 से लेकर अब तक लगभग 13  लाख कैरेट हीरों का उत्पादन किया जा चुका है। इस खदान में अभी भी 8.5 लाख कैरेट हीरों का उत्पादन होना शेष है। ऐसी स्थिति में खदान संचालन की अनुमति यदि नहीं मिलती तो अरबों रुपए कीमत के हीरे जमीन के भीतर ही दफन रह जाएंगे।

पन्ना जिले की मझगंवा स्थित एनएमडीसी हीरा खदान जो विगत 28 माह से बंद है।    

परियोजना के बंद होने से यहां सैकड़ों कर्मचारी जहां चिंतित हैं, वहीं इस परियोजना के आसपास स्थित ग्रामों के निवासी जिन्हें परियोजना से शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल सहित अन्य बुनियादी सुविधाएं मिलती हैं, वे भी परेशान हैं। गौरतलब है कि जंगल व खनिज संपदा से समृद्ध पन्ना जिले में ऐसी कोई बड़ी परियोजना व उद्योग स्थापित नहीं हुए जिनसे इस पिछड़े जिले के विकास को गति मिलती। यहां पर सिर्फ एनएमडीसी हीरा खनन परियोजना है, जिससे पन्ना की पहचान है।  इस परियोजना के कारण ही पन्ना शहर को देश व  दुनिया में डायमंड सिटी के रूप में जाना जाता है। यदि परियोजना को पर्यावरण महकमे से उत्खनन की अनुमति नहीं मिली और परियोजना स्थाई रूप से बंद हो जाती है तो हीरों की रायल्टी के रूप में शासन को प्रतिवर्ष मिलने वाले करोड़ों रुपए के राजस्व की जहां हानि होगी, वहीं डायमंड सिटी के रूप में पन्ना की जो पहचान है उस पर भी ग्रहण लग जाएगा।

सिर्फ दो क्षेत्र में दिए जा रहे हीरा खदानों के पट्टे


पटी खदान क्षेत्र में हीरा धारित चाल की धुलाई करते ग्रामीण। 

पन्ना स्थित हीरा कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक वर्तमान में सिर्फ दो राजस्व क्षेत्र हैं जहाँ हीरा खदानों के पट्टे जारी किये जा रहे हैं  इनमें पटी (कल्याणपुर) व सकरिया चौपरा हीरा खदान क्षेत्र हैं। हीरा कार्यालय से सेवा निवृत्त हो चुके लिपिक सूरजदीन सिंह ने बताया कि वर्ष 1981 में जब वे सेवा पर आये उस समय सभी पद भरे थे, लेकिन अब गिनती के चार-पांच लोग ही बचे हैं। सूरजदीन बताते हैं हैं कि पहले जिन क्षेत्रों में हीरा की खदाने संचालित होती थी उनमें पन्ना सर्किल, इटवा सर्किल तथा पहाड़ीखेरा सर्किल की खदानें हैं। पन्ना सर्किल के अंतर्गत महुआटोला, मनौर, महलाने का सेहा, सकरिया, खिन्नी घाट, कमलाबाई, भुतियाऊ, नरेंद्रपुर, पुखरी, हर्रा चौकी, बरम की कुईयां, दहलान चौकी, पटी, जनकपुर, सरकोहा, मोहार, रानीपुर, रानीपुर नाला तथा राधापुर खदान क्षेत्र हैं। जबकि इटवा सर्किल में बाबूपुर, किटहा, पाली, बगीचा, हजारा, हजारा मुढ्ढा, मडफा, भरका, रमखिरिया व गोंदी खदान क्षेत्र हैं। पहाड़ीखेरा सर्किल में बरहों कुदकपुर, सेहा सालीकपुर,  महतेन तथा सिरसा द्वारा क्षेत्र में खदानों के पट्टे जारी किए जाते थे। प्रभारी हीरा अधिकारी रवि पटेल के मुताबिक अब तक तकरीबन आधा सैकड़ा हीरा खदानों के पट्टे जारी हुए हैं।

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Thursday, May 11, 2023

ऐसी खेती मत करो प्यारे चतुर किसान, धन धरती अरु स्वास्थ का जिसमें है नुकशान



।। बाबूलाल दाहिया ।।           

प्रकृति का एक नियम था वह था हर वस्तु के उत्पादन के साथ संतुलन। हमने देखा है कि अगर हमारी धान में कीट दिखे तो मकड़ियां समस्त खेत मे जाल बुन सैकड़ो बच्चे पैदा कर देती हैं, जो उन्हें पकड़- पकड़ कर खा जाते हैं। जंगल मे यदि सुअर बढ़े तो अपने आप वहां तेंदुआ पहुच जाते हैं। यहां तक कि मौसम में भी संतुलन। 

अभी लगातार दो माह से बादल बूदी का मौसम था, अस्तु गर्मी कम थी पर मई जून में हर वर्ष अधिकतम 40-45 डिग्री सेल्सियस तक ताप क्रम बढ़ जाता है।  सपोज करिए कि अगर वह 50-55 तक हो जाय तो क्या कोई जीव जन्तु य बनस्पति बच पाएगी? इस तरह प्रकृति हर जगह अपना संतुलन बनाकर रखती है।

प्रकृति की जो भी नैसर्गिक ढंग से उत्पादित बनस्पति है, वह बीज सम्बर्धन के लिए है न कि ब्यापार सांस्कृति के लिए? अब उसी में थोड़ा श्रम लगा लोग कुछ अधिक उपज ले लेते तो उनके उपयोग के लिए भी होजाता। पर अगर उत्पादन चित्र वाले खीरा य टमाटर की तरह जरूरत से अधिक हो जाय तो क्या किसान को उससे लाभ होगा य बाजार में मारा मारा फिरेगा?

हमने लड़कपन में देखा है कि हमारे गाँव की गोधनिया फूफू और बोटा काका कुशवाहा अपने आधा-आधा बिगहा की कोलिया (बाड़ी) में सब्जी लगा अपनी जिंदगी काट लिए। उन्हें कही किसी के यहां काम के तलास में नही जाना पड़ा था। क्योकि भाव का संतुलन था तो उन्हें उतनी ही भूमि में अपने श्रम का पूरा - पूरा मूल्य मिल जाता था।

पर अब नई खेती और इस प्रकार की भरपूर पैदावार देने वाली सब्जियों ने ऐसे हजारों 5-7 एकड़ बाले किसानों तक को गाँव निकाला की सजा देदी है। जबकि उसी भूमि में उन किसानों के पिता और पितामह खेती किसानी य सब्जी के बूते ही अपने बेटे बेटियों का विवाह भी कर लेते थे और कुछ लोग तो चारोधाम तीर्थाटन कर यज्ञ भंडारा भी कर लेते । साथ ही ग्रहस्ती भी चलती रहती थी।

लेकिन 50 वर्ष में ही इस खेती ने देश की क्या हालत करदी? ऐसी खेती में यदि लाभ है तो मात्र बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को जिनका टर्न ओभर भारत के वार्षिक बजट से भी अधिक है। बाकी इस असंतुलित ह्रदय हीन खेती ने गाय, बैल, श्रमिक, कृषि उद्द्मियों, कृषक पुत्रो सभी को गाँव से निकाल बाहर कर दिया है।

क्योकि अर्थशास्त्र का सिद्धांत है कि ( उत्पादन बढ़ेगा तो मूल्य घटेगा)  और जब मांग से अधिक पूर्ति हो जाएगी यो वस्तु फेंकी- फेंकी फिरेगी ही। पर अब वह भाव 10 गुना तो घट ही चुका है आगे न जाने और कितना घटता जायगा? पहले किसानों के बीच एक मान्यता थी कि "जिस साल आम में बौर अधिक आती है उस साल प्याज सस्ती बिकती है। और जिस वर्ष कम आम में फल आये उस साल महंगी।"  इसी के आधार पर प्याज उत्पादक खेती करते थे।

लेकिन अब तो हर वर्ष ही किसान महंगा बीज, खाद, कीटनाशक ,नीदा नाशक डाल कर ऐसा उत्पादन लेता है कि बाद में समूची ट्रेक्टर ट्राली की प्याज ही सड़क में डाल कर घर लौट आना पड़ता हैं। ७० के दशक में कृषि विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों को एक मंत्र पढ़ाया गया था अधिक उत्पादन जाप का। अब नया मंत्र गुणवत्ता पूर्ण संतुलित उत्पादन में बदल जाना चाहिए। पर वे हैं कि आज भी उसी का जाप करते जा रहे हैं।

जो कृषि और उद्यानिकी कर्मचारी अधिकारी इन तमाम चीजों के अभी प्रचारक बने हुए हैं तो क्या इस तरह उत्पादन असंतुलन के पश्चात उनके अनुसंधान की आगे कुछ गुंजाइश भी बचेगी? क्योकि चीज घटिया किस्म की आकर बाजार में पट जाती है जिससे न उत्पादक को लाभ होता न उपभोक्ता को गुणवत्ता पूर्ण वस्तु मिलती। इसलिए अब तो यह प्रश्न ही विचारणीय हो गया है कि--

ऐसी खेती मत करो, प्यारे चतुर किसान।

धन धरती अरु स्वास्थ का, जिसमें है नुकशान।।

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Monday, May 1, 2023

हमारी जैव विविधता वाटिका : बाबूलाल दाहिया

 


आज हम लोग अपनी जैव विविधता वाटिका घूमने गए, जहाँ पेड़ पौधों की सौ से अधिक प्रजातियां लगी हुई हैं। वहां अगर एक-एक पौधा आम,जामुन, महुआ, अमरूद, आंवला जैसे बाग वाले पौधों के हैं, तो एक-एक पौधा हर्र, बहेरा, कोशम, कैमा, दहिमन,खमार, कुल्लू के जंगल वाले भी हैं। 

कचनार,कैथा,करंज,मरोड़ फल में जहां नए पत्ते आ गये हैं, वही कुल्लू,ओदार,चिल्ला अभी पात विहीन हैं। कुछ पौधे तो ऊंचाई में मुझसे भी बड़े हो गए हैं। पर कैथा, कहुआ, केवड़ा, इमली, बेल और महुआ अभी एक हाथ के भी नहीं हुए। सिंदूरी मरोड़ फल शहतूत, दो वर्ष में ही युवा हो जहां फल फूल देने लगे हैं, वहीं अन्य पेड़ो का अभी बहुत दिन इंतजार करना पड़ेगा।

फल फूल आते रहेंगे जब आना होगा ? क्यो वह सभी अलग-अलग कुदरत के नियम में बंधे हैं । यू भी बाग वाटिका  एक पीढ़ी लगाती है लेकिन उससे अगली पीढियां ही लाभान्वित होती हैं। आगे हम रहें न रहें पर अभी हमें इसका फख्र जरूर है कि हम लोगों ने जो वाटिका तैयार कर दी है, वह अपने जैव विविधता प्रबंधन समिति की अवधारणा के अनुरूप ही है।

आज जब हम जैव विविधता प्रवंधन समिति के सदस्य गण अपनी इस बाटिका में  घूमने आते हैं, तो यह अवश्य लगता है कि हमने जीवन मे एक बेहतर काम किया है। क्योकि हमने इनके सिचाई के लिए सब मर्सिवल पम्प लगाए। चारों ओर सुरक्षा के लिए खम्भे और जालियां तथा गेट लगवाया, दो वर्ष तक निराई गुड़ाई तथा सिचाई की ब्यवस्था की। अब आगामी जुलाई से यह समस्त पौधे दो वर्ष के हो जाएंगे। तब हम इन्हें ग्राम पंचायत को हस्तगत कर समाज को सौप अपनी जिम्मेदारी से अलग हो जायेंगे। 

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