Sunday, June 30, 2024

पन्ना में गाँजा तस्करों के कब्जे से 1 क्विंटल 7 किलो 500 ग्रा. गाँजा जप्त

  •  जप्त गाँजे की अनुमानित कीमत 21 लाख 50 हजार रू, तीन आरोपी गिरफ्तार 
  • आरोपियों द्वारा उक्त गाँजा उङीसा से सस्ते दामों में बिक्रय हेतु पन्ना लाया गया


पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में पुलिस द्वारा गाँजा तस्करों के कब्जे से 21 लाख 50 हजार रू. का 1 क्विंटल 7 किलो 500 ग्रा. गाँजा जप्त किया गया है। मामले में तीन लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जबकि दो आरोपी फरार हैं। गिरफ्तार आरोपियों के द्वारा बताया गया कि उक्त गाँजा उङीसा से 2 अन्य व्यक्तियों के साथ सस्ते दामों में बिक्रय हेतु पन्ना लाया गया है।

पुलिस अधीक्षक पन्ना साईं कृष्णा एस.थोटा ने आज पत्रकारों को बताया कि पुलिस द्वारा जिले में गाँजा तस्करों पर लगातार कार्यवाही की जा रही है। बीते 8 माह में पन्ना पुलिस द्वारा गाँजा तस्करों के विरुद्ध कुल 31 प्रकरण दर्ज कर 66 व्यक्तियों को गिरफ्तार करते हुए उनके कब्जे से 7 क्विंटल 45 कि.ग्रा. गाँजा कीमती करीब 1 करोङ 50 लाख रूपए का जप्त किया गया है। 

आपने बताया कि पन्ना जिले में मादक पदार्थ की खेती, भण्डारण, परिवहन एवं बिक्री करने वाले व्यक्तियों के विरूद्ध वैधानिक कार्यवाही किये जाने हेतु एक विशेष अभियान चलाया जा रहा है। इसी तारतम्य में थाना प्रभारी शाहनगर को गत 28 जून को मुखविर से सूचना प्राप्त हुई कि ग्राम कुपना में बहेलियों के एक घर में भारी मात्रा में अवैध मादक पदार्थ (गांजा) बेचने के उद्देश्य से छिपा कर रखा  हुआ है। 

यह सूचना मिलने पर पुलिस अधीक्षक पन्ना के निर्देशन में अनुभाग स्तर पर पुलिस टीम का गठन किया गया। पुलिस टीम बिना देरी किए मुखबिर के बताये स्थान पर पहुची जहाँ पुलिस टीम को देखकर दो व्यक्ति एवं एक बालिका भागने का प्रयास करने लगे जिन्हें घेराबंदी कर पकड़ा गया। आरोपियों के घर की तलाशी लेने पर आरोपियों के घर से 3 प्लास्टिक की बोरियों मे कुल अवैध मादक पदार्थ (गाँजा) 107 किलो 500 ग्राम कुल कीमती करीबन 21 लाख 50 हजार रूपये का होना पाया गया जिसे जप्त करते हुए आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। 

आरोपियों के विरूध्द थाना शाहनगर में अपराध क्रमांक 208/24 धारा 8/20 एन.डी.पी.एस. का कायम किया जाकर विवेचना में लिया गया। मामले में जिन आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है उनमें निरजेश बहेलिया 20 साल, किरकन बहेलिया 24 साल तथा एक विधिविरूद्ध बालिका सभी निवासी कुपनाघाट थाना शाहनगर जिला पन्ना हैं। मामले में फरार आरोपियों रखरू बहेलिया 25 साल तथा नजर बाई 23 साल निवासी कुपनाघाट थाना शाहनगर की पुलिस द्वारा सरगर्मी से तलाश की जा रही है। 

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Friday, June 28, 2024

पेड़ तभी होंगे जब चिड़ियां रहेंगी और चिड़िया भी तभी रहेंगी जब पेड़ रहेंगे

   


 

।। बाबूलाल दाहिया ।।

युवावस्था में मैंने एक आस्ट्रेलियन विद्वान ए. एल. बासम  की लिखी हुई पुस्तक ( अद्भुत भारत ) पढ़ी थी, जो अभी तक स्मरण में है। उनने भारत में लगभग 10 वर्ष रहकर यहां के वेद, उपनिषदों आदि के अध्ययन के पश्चात उस पुस्तक को लिखा था। अंग्रेजी में लिखी उस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद भी है। ए.एल. बासम उस पुस्तक में एक स्थान पर एक छात्र का उल्लेख करते हैं, जो किसी ऋषि के पास (जीव जगत ) की शिक्षा लेने आया था।

ऋषि ने कहा " तुम एक पीपल का फल लाओ ?" उसने कहा " जी लाया गुरुवर ?" और वह पीपल का फल लाकर उनके सामने रख देता है। ऋषि ने कहा" इसे तोड़ो?" उसने कहा " जी तोड़ा गुरुवर ! इसमें बहुत से छोटे-छोटे दाने दिख रहे हैं?" ऋषि ने कहा " इसके एक दाने को तोड़ो ?"  छात्र ने कहा " जी तोड़ा गुरुवर पर इसमें तो कुछ दिखाई नही देता ?" ऋषि ने कहा  "जिस पीपल के बीज में तुम्हे कुछ दिखाई नही देता उसमें तो अनंत पीपल बृक्ष उगने की संभावना छिपी है ?"

ऋषि का कथन सही था। उसमें हजारों पीपल बृक्ष के उगने की संभावना छिपी थी। पर वह फलीभूत तो तब होगी जब कोई चिड़िया उस पीपल फल को खायगी और उसका बीज उसकी आहार नली की हल्की-हल्की आंच से अंकुरण लायक परिपक्व हो जाएगा। उसके पश्चात जब वह चिड़िया किसी घर के मुंडेर, कुँए के पाट अथबा पेड़ के कोटर में बैठ कर बीट करेगी तब वह उगेगा। क्योकि पीपल बरगद और ऊमर के बृक्ष के नीचे अरबों खरबों के संख्या में बीज बिछे रहते हैं परन्तु एक में भी अंकुरण नही होता। अंकुरण उसी बीज में होगा जिसकी चिड़िया के खाने के पश्चात उस बीज की उसके पेट में बेदरिंग हो जायगी।

परन्तु पीपल बरगद आदि का एक समन्वय चिड़ियों से यह भी है कि इन बृक्षों में रोज फल लगते हैं और चिड़ियों के खाने के लिए रोज उनके फल पकते भी हैं।  कहने का आशय यह कि पेड़ तभी होंगे जब चिड़ियां रहेंगी और चिड़िया भी तभी रहेंगी जब पेड़ रहेंगे। क्योकि बृक्षों को अस्सी प्रतिसत चिड़ियां ही उगाती हैं। मनुष्य की उनके ऊपर यही कृपा पर्याप्त है कि उनके ऊपर अपनी कुल्हाड़ी न चलाए।

जी हां कुछ पौधों का परागण चिड़ियों द्वारा भी  होता है

अमूमन पेड़ पौधों का परागण तितली, भौरा य मधु मक्खियों द्वारा ही होता है। पर यह जान कर आश्चर्य होगा कि कुछ फूलों में परागण का कार्य चिड़िया भी करती हैं। बहुत सारे जीवों और बनस्पतियों का ऐसा समन्वय है कि अगर एक न रहे तो दूसरा भी समाप्त हो जायगा। इसलिए स्वस्थ धरती के लिए उसमें सभी तरह के जीवों का रहना आवश्यक है।

अब तो (प्रधान मुख्य वन संरक्षक) पद से रिटायर होकर माननीय श्री बी.बी.सिंह साहब लखनऊ में रहते हैं। पर बात शायद 2008-09 की है जब वे मुख्य  वन संरक्षक जबलपुर हुआ करते थे। उनकी एक विशेषता यह भी रही है कि वे  जहां भी रहे सब से हट कर कुछ नवाचार अवश्य करते थे जिससे तमाम लोग उनसे जुड़ जाते थे।और उसी के तहद उनने जबलपुर में जड़ी बूटियों का एक बहुत बड़ा मेला लगबाया हुआ था जिसमें मंडला, जबलपुर, कटनी,बालाघाट आदि स्थानों के तमाम जड़ी बूटी विशेषज्ञ शामिल हुए थे।

उसमें उनने अपने अनेक जिलों के पूर्व परिचितों और मित्रों को भी आमंत्रित किया था। जिनमें एक मैं भी था । बांकी सभी आगंतुक तो हास्टल में ठहरे थे पर मुझे एवं प्रो. श्याम बोहरे सर को कुछ चर्चा करने केलिय अपने बंगले में ही ठहराया था। श्री श्याम बोहरे जी नहा धो रहे थे पर मैं फुर्सत होकर उन्ही के पास बाहर लान में आगया था।

उनके उस बंगले में फूलों की एक लता फैली हुई थी जिसमें करीब 2 इंच लम्बे ठीक उसी तरह के फूल लगे थे जैसे आइपोमिया के पौधे में लगते हैं। तभी मेरी निगाह एक काले मटमैले रंग की चिड़िया पर गई जो देखने में तो छोटी थी पर उसकी चोंच अपेक्षाकृत अधिक लम्बी थी। मैंने कहा "सर यह चिड़िया बार -बार इस फूल में अपनी चोंच क्यो डाल रही है ?"

बीबी सिंह साहब ने कहा " वह परागण कर रही है।" मैंने कहा " चिड़िया परागण कर रही है?" उनने कहा  "हां ? " और उस लता के  एक फूल को तोड़ एवं चीर कर बताया कि " देखिए इसमें तितली भौरे के बैठने के लिए  कोई चेम्बर ही नही है तो वह कैसे परागण करेंगे ? परन्तु यह लता बड़ी चालक है। इसने अपने फूल में एक मीठा चिपचिपा पदार्थ जमा कर रखा है जिसे खाने के लालच में  यह चिड़िया बार - बार  कभी इस फूल में तो कभी उस फूल में अपनी  चोंच डालती है  जिससे उसे वह मीठा पदार्थ खाने को भी मिल जाता है और उसी से उस पौधे के फूलों में  परागण भी हो जाता है। पर आश्चर्य तो यह हैं कि उसी अनुपात से उसकी चोंच भी लम्बी है जिस से सिद्ध है कि यह चिड़िया मात्र इसी के सम्बर्धन के लिए बनी है।"

कहने का आशय यह कि पेड़ पौधे वनस्पतियों के सम्बर्धन केलिए प्रकृति ने किसे क्या दायित्व सौंप रखा है ? यह बड़ा जटिल रहस्य है। इसलिए धरती की हरीतिमा बचाने केलिए सभी जीवों का रहना आवश्यक है। पता नही कौंन सा जीव किस वनस्पति का संरक्षक है और कौंन सा नियंत्रक ?

एक  बार एक भोपाल की कार्यशाला में  बाहर से आए विद्वान ने बताया था कि "अफ्रीका के जंगलों में एक बेल की तरह कड़े आवरण का फल होता था जिसे तोड़ कर  ( डोडा) नामक वहां का एक स्थानीय पक्षी ही  खा सकता था। और आफ्रिकन लोग उस पक्षी का परम्परगत ढंग से शिकार करके उसका मांस भी खाते थे।पर आधुनिक बन्दूकों के प्रचलन के पश्चात  जब उस पक्षी को पूरी तरह ही समाप्त कर दिया गया तो वह कड़े आवरण के फलों वाला बृक्ष भी समाप्त हो गया। क्योकि अन्य कोई जीव उसे तोड़ कर उसका बीज नही निकाल सकते थे। इसलिए प्रकृति के नियमों में बंधे इस जीव जगत के बारे में हमें बहुत गहराई से सोचने समझने की जरूरत है।

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Wednesday, June 12, 2024

सावधान ! मानसून आ रहा है ?

 


।। बाबूलाल दाहिया ।।

यह मैं नही कह रहा बल्कि इन कन्दों का संकेत है। आप इस घुइयां के कन्द को कहीं भी रखें, बराही कन्द खनुआ कन्द पीडी कन्द को सात कमरे के भीतर रखें पर वह सभी 1-2 जून तक अंकुरित हो जाते हैं। 

आप मानें न मानें पर यह हम किसानों के कई पीढ़ियों से सचेतक रहे हैं। हमारे गर्मी से अलसाए पुरखे इन्ही से गुरुज्ञान प्राप्त कर खेतों के नाट मोघा की बंधाई, घर की छवाई एवं खेतों में घूर, खातू की डराई आदि शुरू करते थे। जिनके गायों के बछड़े तीन साल के नाटे हो जाते, उनका भी हल में चलने के लिए अभ्यास शुरू हो जाता था।


अन्य लोगों के वर्ष के शुरुआत के महीने भले ही जनवरी य चैत्र रहे हों पर हम किसानों के साल का प्रथम महीना तो हर वर्ष आषाढ़ ही होता है। इसीलिए यह तमाम कन्द आधे जेठ से ही हमें सचेत करने लगते थे कि -

आधा जेठ आषाढ़ कहावय।  

सजग रहय तउनय फल पाबय।।

और फिर इन्हें देख हमारे पुरखे एलर्ट हो जाते थे इस आषाढ़ के काम के बोझ को उतारने में। क्योंकि यदि दौगरा गिर गया तो फिर अन्य कहावत चरितार्थ होने लगती थी कि -

 तेरा कातिक तीन आषाढ़।

  चूक जाय ते जाय बाजार।।

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Thursday, June 6, 2024

रून्ज नदी को सदानीरा बनाये रखने की ली गई सपथ

  •  विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित हुआ कार्यक्रम 
  •  यहाँ अमावस्या के दिन दीपदान करने की है प्रथा


पन्ना। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर ग्राम पंचायत शाहपुरा अजयगढ़ में 5  जून को सरपंच महेन्द्र दीक्षित सहित ग्रामीणों द्वारा रून्ज नदी को सदानीरा बनाये रखने की सपथ ली गई। इस मौके पर पंचायत एवं समर्थन संस्था के संयुक्त तत्वाधन में विभन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। 

सर्व प्रथम रून्ज नदी के घाट पर सभी महिला पुरूष बच्चे एकत्र हुए, जहां नदी पूजन किया गया एवं नदी को साफ-सुथरी एवं सदानीरा बनाये रखने की सपथ ली गई। गांव में स्वच्छता एवं जल संरक्षण के नारे के साथ रैली निकालते हुए हाईस्कूल प्रागण में महुआ के पेड़ के नीचे चौपाल लगाकर बैठने का निर्णय लिया गया।

समर्थन संस्था के ज्ञानेन्द्र तिवारी ने कहा कि हमारी धरती मरूस्थल की ओर बढ़ रही है, पानी की कमी से खेती किसानी एवं सब्जी उत्पादन प्रभावित हो रही है। सरकार के अभियान अटल भू-जल चल रहे हैं, जनआन्दोलन से ही हमे पानीदार बनना है। ज्ज् नारी शक्ति, से जल शक्ति ज्ज् अभियान की चर्चा करते हुए पानी की एक एक बूॅंद बचाने का सलाह दिया। पौधो का पालन पोषण बच्चो जैसा ही करने की सलाह दी ताकि भविष्य खुसहाल हो सके।

किशोर एवं किशोरियो ने रून्ज नदी की बनाई पेन्टिंग 

बच्चो ने पेन्टिंग में रून्ज नदी पर घाट एवं पौधारोपण एवं सुन्दर पार्यटन के रूप में विकसित करने की कलाकृतियॉं तैयार की, जिसको सभी ग्रमीणो ने सराहा। संस्था ने अंजना पाल, लवकुश यादव, सीमापाल को पानी की बाटल दे कर सम्मानित किया। सभी बच्चो को स्केच पेन दी गई ओर सप्ताह में गांव में स्वच्छता अभियान चलाने की सहमति ली गई।

गांव के इच्छुक पांच सदस्यो ने अपनी इच्छा से आम,जामुन,आवला एवं पीपल के पौधे लिये, और उनकी समुचित देखरेख करने की जिम्मेदारी ली। कार्यक्रम में सचिव हरि गुप्ता, हाईस्कूल के आध्यापक, रोजगार सहायक रामनरायण, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता दिव्यावती दीक्षित, सहायिका बडडी वाई पाल, पंचायत मित्र सोनू ,समर्थन सें लखनलाल, विकास मिश्रा, फरीदा बी, रोहिणी सिंह, शुशील सेन, एवं अन्य ग्राम पंचायत से पंचायत मित्र शामिल हुए। कार्यक्रम का सफल संचालन टीम लीडर ज्ञानेन्द्र तिवारी ने किया।

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सीड बाल से होगा पर्यावरण सुरक्षित

  •  जीवन जीने के लिए स्वच्छ वातावरण जरुरी - रविकांत
  • 25 गाँव में 500 लोगों ने 3400 सीड बाल तैयार किये


पन्ना। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सामाजिक संस्था विकास संवाद के सहयोग से संचालित दस्तक परियोजना के अंतर्गत गठित दस्तक बाल समूह, युवा समूह एवं महिला समूह के साथियों द्वारा अपने-अपने गाँव में पर्यावरण सुरक्षा को देखते हुए, सीड बाल बनाने की प्रक्रिया पिछले कुछ दिनों से चलाई जा रही है। 25 गाँव में 500 लोगों के द्वारा 3400 सीड बाल तैयार किये हैं, जिसमें 14 से 15 विलुप्त हो रहे वृक्षों के बीजों को डाला गया। 

विकास संवाद के जिला समन्वयक रविकांत पाठक बताते हैं कि परियोजना क्षेत्र में यह सीड बाल बनाने की प्रक्रिया ने एक अभियान का रूप ले लिया है। यह प्रक्रिया इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि एक गाँव में लगभग 150 सीड बाल बनाई गई, जिनमें 20 बीज इमली, 25 बीज मुनगा, 14 बीज तेंदू, 20 बीज सागौन, 12 बीज कैथा, 18 बीज बैल, 30 बीज बैर, 40 बीज सिरसा, 30 बीज जंगल जलेबी, 5 आम गुठली, 25 बीज चरवा, 10 बीज नीबू, 20 बीज पपीता, 18 बीज अमरूद, 10 बीज रामफल एवं 22 बीज सीताफल के शामिल किये गए। कुल मिला कर 300 के ऊपर बीजों को बोया गया। श्री पाठक बताते हैं कि इस प्रक्रिया से जीवन का गहरा जुड़ाव है, इसलिए जीवन जीने के लिए स्वच्छ वातावरण जरुरी है।

सीड बाल बनाने की प्रक्रिया



बीजों को इकठ्ठा किया गया, तालाब या पेड़ के नीचे की मिटटी को लाया गया, इसके बाद मिटटी में हल्का पानी डाला गया और बीजों को डाला गया सभी ने मिलाया और गेंद का आकार दिया गया इसके बाद बाल को सुरक्षित रखने के लिए चुना या मिर्ची पाउडर का छिडकाव किया गया। 

5 जून पर्यावरण दिवस के अवसर पर 25 गाँव में बाल समूह के नेतृत्व में सीड बाल को डालने के लिए सुरक्षित जगह का चिन्हांकन किया गया एवं खेल खेल के माध्यम से जमीन में 3400 बाल के साथ 8000 बीजों को बोया गया एवं सुरक्षा की जिम्मेदारी का बंटवारा किया गया।  इस आयोजन में संस्था से छत्रसाल पटेल, रामविशाल, बबली, वैशाली, समीर एवं दस्तक समूहों से अरविन्द गौंड, दुर्गेश गौंड, बीरनगौंड ओतार सिंह मरावी, पार्वती सिंह और हल्की बाई शामिल रहे। 

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