Tuesday, January 30, 2024

आदिवासी परिवार की महिलाएं मुर्गीपालन गतिविधि से बनेंगी आत्मनिर्भर

  • क्षेत्रीय विधायक ने श्यामगिरि वुमेन पोल्ट्री प्रोड्यूसर कम्पनी कल्दा का किया शुभारंभ 

  •  प्रथम चरण में 100 महिलाओं के साथ मुर्गीपालन से आजीविका की गतिविधि शुरू की गई


पन्ना। जिला प्रशासन द्वारा आदिवासी परिवार की महिलाओं को मुर्गीपालन गतिविधि से जोड़कर आजीविका का अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कल्दा पठार क्षेत्र की ग्राम पंचायतों में मंगलवार को प्रथम चरण में 100 महिलाओं के साथ मुर्गीपालन से आजीविका की गतिविधि शुरू की गई। क्षेत्रीय विधायक प्रहलाद लोधी ने ग्राम गुर्जी में श्यामगिरि वुमेन प्रोड्यूसर कंपनी कल्दा का शुभारंभ किया और हितग्राही परिवार की महिलाओं से चर्चा की। 

उन्होंने जिला प्रशासन की इस पहल को अभिनव और सराहनीय बताते हुए कहा कि अब महुआ एवं लकड़ी एकत्र कर आजीविका के साधन जुटाकर जीवनयापन करने वाली महिलाओं को स्थानीय स्तर पर ही मुर्गीपालन की गतिविधि से आजीविका का अवसर उपलब्ध हो सकेगा। इससे महिलाओं की आमदनी भी बढ़ेगी। आगामी 3 वर्ष में 500 आदिवासी परिवार की महिलाओं को आजीविका से जोड़े जाने का लक्ष्य है। शुभारंभ कार्यक्रम में जिला पंचायत अध्यक्ष मीना राजे सहित जनपद पंचायत अध्यक्ष मोहिनी मिश्रा, जिला पंचायत सीईओ संघ प्रिय, अतिरिक्त सीईओ अशोक चतुर्वेदी, परियोजना अधिकारी संजय सिंह परिहार भी उपस्थित थे।


इस योजना के फलीभूत होने में तत्कालीन कलेक्टर संजय कुमार मिश्र सहित वर्तमान कलेक्टर हरजिंदर सिंह, विधायक प्रह्लाद लोधी, जिला पंचायत अध्यक्ष मीना राजे परमार, जिला पंचायत, आजीविका मिशन, जनपद पंचायत पवई, शाहनगर और संबंधित ग्राम पंचायत की टीम का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। साथ ही प्राथमिक एवं माध्यमिक शाला कल्दा के प्रधानाध्यापक, एमपीडब्ल्यू पीसीएल संस्था के सीईओ डॉ. हरेकृष्ण डेका, मैनेजर दीपक तुशीर, धनीराम, परियोजना सहायक रमेश वर्मा का भी अभूतपूर्व सहयोग रहा।

जिला पंचायत सीईओ संघ प्रिय ने बताया कि एमपीडब्ल्यू पीसीएल संस्था और आजीविका मिशन की टीम द्वारा कल्दा पठार क्षेत्र के पवई एवं शाहनगर जनपद अंतर्गत कल्दा, घुटेही, सर्रा, मैन्हा ग्राम पंचायतों के गुर्जी, महुआडोल, बौलिया, सर्रा व टिकुलपोंड़ी ग्रामों में आजीविका मिशन से जुड़ी अत्यंत गरीब आदिवासी महिलाओं को गतिविधि शुरू करने के लिए चिन्हित किया गया था तथा सभी हितग्राहियों के साथ बैठक कर आवश्यक प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया। सभी हितग्राहियों को कटनी जिले के ढ़ीमरखेड़ा में 7 दिवस का प्रशिक्षण भी दिया गया है।

12 करोड़ 40 लाख रूपए में तैयार होगा मुर्गी शेड

मनरेगा योजना से ग्राम एवं जनपद पंचायत की टीम द्वारा 500 हितग्राहियों के लिए 12 करोड़ 40 लाख रूपए लागत से मुर्गी शेड बनवाए जा रहे हैं। प्रति हितग्राही शेड की लागत 2 लाख 48 हजार रूपए निर्धारित है। सभी ग्राम पंचायतों की टीम द्वारा समय सीमा में शेड का निर्माण किया गया है। प्रथम चरण में 2 करोड़ 48 लाख रूपए की राशि से 100 मुर्गी शेड तैयार कर 30 जनवरी से गतिविधि प्रारंभ कर दी गई है। इसके अलावा जिला खनिज प्रतिष्ठान मद की राशि से भी प्रति हितग्राही को 30 हजार रूपए के मान से 100 हितग्राहियों के लिए 30 लाख रूपए की राशि गतिविधियों के लिए प्रदान की गई है।

संस्था उपलब्ध कराएगी चूजे, विक्रय भी करेगी

आजीविका गतिविधि के लिए प्रत्येक मुर्गी शेड में लगभग 600 चूजे रखे जाएंगे। एमपीडब्ल्यू पीसीएल संस्था द्वारा चूजे प्रदान किए जाएंगे और 35 दिवस बाद विक्रय के लिए ले जाया जाएगा। मुर्गी शेड की आदिवासी महिला द्वारा 35 दिनों की अवधि में प्रत्येक दिन मुर्गी को तीन बार दाना पानी खिलाने सहित साफ-सफाई करेगी। खरीदी, बिक्री और दाना प्रदान करने की जिम्मेदारी संस्था की होगी। संपूर्ण वर्ष में प्रत्येक शेड में 6 से 7 चक्र में चूजे रखे जाकर गतिविधि की जाएगी। प्रत्येक चक्र में मुर्गी के वजन अनुसार एक महिला को 5 से 8 हजार रूपए की अतिरिक्त आय होगी। इस प्रकार वार्षिक 50 से 70 हजार रूपए तक की अतिरिक्त आमदनी हो सकेगी। महिला को केवल वर्ष में लगभग 250 दिन 2 से 3 घण्टे मुर्गी शेड में मुर्गी को दाना पानी और साफ-सफाई के लिए समय देना होगा।

उल्लेखनीय है कि जिले में लगभग 16 प्रतिशत आदिवासी समुदाय की जनसंख्या है। इनकी मुख्य आबादी कल्दा पठार क्षेत्र की ग्राम पंचायतों में निवासरत है। क्षेत्र के आदिवासी परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने और मुख्यतः जंगल उत्पादों से आजीविका के साधन जुटाकर जीवन यापन करने के कारण तथा महिलाओं की सुरक्षा के गंभीर खतरे की संभावना के कारण जिला प्रशासन द्वारा वर्ष 2022-23 में आदिवासी परिवार की महिलाओं को मुर्गी पालन गतिविधि शुरू कर आजीविका से जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इसके लिए एमपीडब्ल्यू पीसीएल संस्था से अनुबंध कर सर्वे कराया गया।

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Saturday, January 27, 2024

वन मेला : दुर्लभ जड़ी-बूटियों की विशाल संपदा देख लोग हुए अभिभूत

  • वन मंत्री के निर्देश पर वन उपज संग्रहण करने वाले परिवारों की आय बढ़ाने के लिए तैयार की जा रही कार्य योजना 


वन मेला में मध्य प्रदेश की विशाल वन संपदा का दर्शन कर लोग अभिभूत हो गए। औषधीय महत्व के दुर्लभ पौधों, बेलों, जड़ों, पत्तियों को प्रत्यक्ष देख मेले में आये लोगों को सोने चांदी से कीमती वनोपज के बहुमूल्य खजाने पर गर्व का अनुभव हुआ.

भोपाल हाट में चल रहे वन मेले में वनोपज से बनी औषधियों और व्यंजनों को भरपूर पसंद किया. हर्रा, बहेड़ा, आंवला, महुआ के उत्पादों के अलावा कुछ ऐसी जड़ी बूटियां मेले में प्रदर्शित है जो अब दुर्लभ होती जा रही है. वन क्षेत्र गहरी वन क्षेत्र के भीतर रहने वाले जनजाति परिवार उनकी रक्षा करते हैं और उनकी उन्हें उनकी गहरी पहचान होती है. वही इनका संग्रहण करते है. वन मंत्री श्री नागर सिंह चौहान के निर्देश पर वन उपज संग्रहण करने वाले परिवारों की आय बढ़ाने के लिए कार्य योजना तैयार की जा रही है।

मेले में वच, विदारीकंद, सिंदूरी, सप्तपर्णी, निर्गुंडी पुनर्नवा, ब्राह्मी, चमेली, अश्वगंधा, अर्जुन,अपराजिता, आमी हल्दी, काली हल्दी, जंगली प्याज, जंगली अदरक, कचनार कालमेघ, हड़जोड़, गूगुल, गोखरू, गिलोय शंखपुष्पी के अलावा शतावरी जैसी दुर्लभ होती जा रही वन उपज भी प्रदर्शित है।

हालांकि शतावरी मध्य भारत में बहुतायत से मिलती है लेकिन अब इसके ऊपर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के खतरे मंडरा रहे हैं. शास्त्रों में इसका वर्णन आता है कि यह आयुर्वेद में एक रसायन के रूप में और रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने वाली है. याददाश्त बढ़ती है और तनाव को दूर करती है. पाचन क्षमता को भी मजबूत बनाती है. इसका उपयोग नवजात शिशुओं की माताओं को पौष्टिक आहार बढ़ाने के लिए टॉनिक की तरह किया जाता है. इसकी जड़ों का उपयोग किया जाता है. जानवरों की खांसी को भी इससे दूर किया जाता है. शतावरी का पौधा 4 मीटर तक लंबा होता है. इसकी पत्तियां नोकदार होती हैं और इनका हरापन विशेष चमक लिए होता है. इसके फूल अपने शैशव अवस्था में सुगंधित होते हैं।

तीखुर का नाम ज्यादातर लोग जानते हैँ लेकिन कई ने देखा नहीं. यह प्रदेश के विंध्य क्षेत्र के वनों में मिलता है. यह कंदिल जैसे दिखने वाला शाक है। इसके पत्ते 30-45 सेमी लम्बे, नोंकदार और गहरे हरे होते हैं। इसके फूल पीले रंग के होते हैं जो सफ़ेद और हरी पत्तियों के बीच लगे रहते हैं। इसके फल अण्डाकार, तीन कपाटों में खुलते हैं तथा बीज अनेक और छोटे होते हैं। इसका प्रकन्द मूल छोटा, लम्बे गूदेदार रेशे से भरा होता है। इसका जुलाई में फूलता और नवम्बर में फलता है।

तीखुर मधुर, शीत तथा पित्तशामक होता है।यह सुगन्धित, बलकारक होता है। इसका उपयोग क्षय रोग दूर करने रक्त विकार, श्वास विकार, बुखार दूर करने, मूत्र सम्बन्धी विकारों को दूर करने में उपयोगी होता है।

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Friday, January 26, 2024

पन्ना में 75वां गणतंत्र दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया गया

 

मुख्य अतिथि कलेक्टर हरजिंदर सिंह ध्वजारोहण कर परेड की सलामी लेते हुए 

पन्ना। देश का 75वां गणतंत्र दिवस समारोह पन्ना जिले में भी हर्षोल्लास एवं गरिमामय ढंग से मनाया गया। जिला स्तरीय गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन पुलिस लाइन ग्राउण्ड पन्ना में किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि कलेक्टर हरजिंदर सिंह ने सुबह 9 बजे ध्वजारोहण कर परेड की सलामी ली। इस दौरान राष्ट्रगान की धुन बजाई गई और हर्ष फायर किया गया। 

ध्वजारोहण के पश्चात कलेक्टर श्री सिंह ने खुली जिप्सी में पुलिस अधीक्षक सांई कृष्ण एस थोटा के साथ परेड का निरीक्षण किया। रक्षित निरीक्षक खिलावन सिंह कंवर भी साथ थे। मुख्य अतिथि ने नागरिकों के नाम संबोधित मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के संदेश का वाचन कर आकाश में गुब्बारे छोड़े। समारोह में परेड की विभिन्न टुकड़ियों द्वारा आकर्षक मार्च पास्ट का प्रदर्शन किया गया। इसके बाद अतिथियों ने टोली नायकों से परिचय प्राप्त किया। इस मौके पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों व प्रजातंत्र रक्षकों का सम्मान भी किया गया।


गणतंत्र दिवस के जिला स्तरीय कार्यक्रम में विभिन्न स्कूल के बच्चों ने देश भावना से ओत-प्रोत सांस्कृतिक कार्यक्रमों की आकर्षक प्रस्तुतियां दीं। अपार उत्साह के साथ बच्चों द्वारा सामूहिक पीटी प्रदर्शन भी किया गया। गणतंत्र दिवस के मुख्य कार्यक्रम में शासकीय विभागों की अलग-अलग थीम पर केन्द्रित झांकियां भी आकर्षण का केन्द्र रहीं। कार्यक्रम उपरांत उत्कृष्ट परेड और सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए पुरस्कार वितरित किए गए। सशस्त्र परेड में एसएएफ 10वीं वाहिनी की टुकड़ी को प्रथम, जिला पुलिस बल की टुकड़ी क्रमांक 01 को द्वितीय और जिला पुलिस बल की टुकड़ी क्रमांक 02 को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ, जबकि गैर शस्त्र परेड में शासकीय छत्रसाल स्नातकोत्तर महाविद्यालय पन्ना की एनसीसी सीनियर डिवीजन की टुकड़ी को प्रथम, एनसीसी सीनियर डिवीजन महिला की टुकड़ी को द्वितीय और वन विभाग के उत्तर वनमंडल की टुकड़ी को तीसरा स्थान मिला। 


इसी तरह सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति में वरिष्ठ वर्ग में शासकीय मनहर कन्या उ.मा. विद्यालय पन्ना को प्रथम, लिस्यू आनंद हायर सेकेण्डरी स्कूल पन्ना को द्वितीय और सरस्वती उ.मा. विद्यालय पन्ना को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ, जबकि जूनियर विंग में जवाहर नवोदय विद्यालय रमखिरिया को प्रथम, चिल्ड्रन पब्लिक स्कूल पन्ना को द्वितीय तथा महारानी दुर्गा राजलक्ष्मी स्कूल पन्ना को तृतीय स्थान मिला। गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि द्वारा उत्कृष्ट कार्य तथा दायित्वों के बेहतर निर्वहन के लिए अधिकारी-कर्मचारियों को भी सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम में जिला कलेक्टर की धर्मपत्नी डॉ. शैली जोशी सहित नपाध्यक्ष मीना पाण्डेय, नपा उपाध्यक्ष आशा गुप्ता एवं अन्य जनप्रतिनिधि, जिला पंचायत सीईओ संघ प्रिय, अपर कलेक्टर नीलाम्बर मिश्र, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक आरती सिंह, एसडीएम अशोक अवस्थी, शासकीय सेवक, गणमान्य नागरिक और पत्रकारगण उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. विनय श्रीवास्तव एवं प्रमोद अवस्थी द्वारा किया गया।

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     गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर 

      पन्ना जिले के समस्त नागरिकों सहित देशवासियों को

 

         हार्दिक शुभकामनाएं 

                       

                 " पन्ना विधान सभा क्षेत्र का चहुंमुखी विकास हमारा लक्ष्य "

       

        निवेदक : बृजेन्द्र प्रताप सिंह विधायक पन्ना एवं पूर्व मंत्री मध्यप्रदेश शासन। 

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Friday, January 19, 2024

क्या सच में इतिहास बन जायेंगी पन्ना की हीरा खदानें ?

  •  धीरे-धीरे यहां सिमट रही है हीरों की तिलस्मी दुनिया 
  •  हीरा कार्यालय में बीते साल जमा हुए सिर्फ 22 नग हीरे

पन्ना जिले की उथली हीरा खदान क्षेत्र का नजारा 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। सदियों से देश और दुनिया में वेशकीमती हीरों के लिए प्रसिद्ध मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में अब धीरे-धीरे हीरों का तिलस्मी संसार सिमट रहा है। कुछ दशकों पूर्व तक पन्ना शहर के आसपास जिन इलाकों में सैकड़ो की संख्या में उथली हीरा खदानें चला करती थीं, जहां हजारों लोग हीरों की तलाश करते थे। अब उन इलाकों में सन्नाटा पसरा रहता है। हीरा खदानों में काम करने वाले मजदूर काम की तलाश में महानगरों की तरफ रुख करने लगे हैं।

उल्लेखनीय है कि पूर्व में अधिकांश हीरा खदानें वन क्षेत्र में संचालित होती थीं। वन संरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद से वन क्षेत्र में चलने वाली हीरा खदानें वैधानिक रूप से बंद कर दी गई हैं। हीरों की उपलब्धता वाली शासकीय राजस्व भूमि बहुत कम है, इन हालातो में अब ज्यादातर हीरा खदानें निजी पट्टे की भूमि में ही संचालित हो रही हैं। वन क्षेत्र में चोरी छिपे जो खदानें चलती हैं, वहां से प्राप्त होने वाले हीरों को हीरा कार्यालय में जमा नहीं किया जाता। जाहिर है कि इन हीरों की बिक्री अवैध रूप से की जाती है, जिससे शासन को राजस्व की हानि होती है।

पन्ना में हीरों के तिलस्मी संसार के सिमटने का आलम यह है कि वर्ष 2023 में यहां अधिकृत रूप से हीरा कार्यालय में सिर्फ 22 नग हीरे ही जमा हुए हैं। पन्ना के इतिहास में यह पहला अवसर है जब इतने कम हीरा यहां जमा हुए हैं। हीरा कार्यालय में पदस्थ हीरा पारखी अनुपम सिंह बताते हैं कि पूर्व में यहां औसतन हर साल तीन-चार सौ नग हीरे जमा होते रहे हैं, लेकिन अब लगातार गिरावट हो रही है। आपने बताया कि वर्ष 2022 में 214 नग हीरा जमा हुए थे, लेकिन वर्ष 2023 में यह आंकड़ा घटकर 22 हो गया। इसकी वजह पूछे जाने पर आपने बताया कि हीरा धारित क्षेत्र अब नहीं बचा, जहां हीरा है वह इलाका वन क्षेत्र में है। ऐसी स्थिति में अब उथली हीरा खदानों के पट्टे भी पहले भी तुलना में कम बन रहे हैं। वर्ष 2023 में कुल 260 पट्टे बने थे।

देश का इकलौता हीरा कार्यालय बंद होने की दहलीज पर



हीरा धारित ककरू (चाल) में हीरों की तलाश करते मजदूर, इन पर नजरें गड़ाये खड़े खदान संचालक।   

जिला मुख्यालय पन्ना में स्थित देश के इकलौते हीरा कार्यालय पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। शासन की अनदेखी और उपेक्षा के चलते पन्ना स्थित हीरा कार्यालय मौजूदा समय महज एक कमरे में संचालित हो रहा है। इटवांखास व पहाड़ीखेरा में संचालित होने वाले उप कार्यालय भी बंद हो चुके हैं। पिछले कई वर्षों से इस कार्यालय में कर्मचारियों के रिटायर होने पर उनकी जगह किसी की पदस्थापना नहीं हुई, फलस्वरूप इस कार्यालय के ज्यादातर पद खाली पड़े हैं। आलम यह है कि देश के इस इकलौते हीरा कार्यालय का वजूद सिर्फ नाम के लिए रह गया है। 

पूर्व में पन्ना स्थित हीरा कार्यालय में जहाँ हीरा अधिकारी की पदस्थापना होती थी वहीं अब खनिज अधिकारी के पास हीरा कार्यालय का प्रभार है। नवीन कलेक्ट्रेट भवन में हीरा अधिकारी का चेंबर तक नहीं है, हीरा कार्यालय एक छोटे से कमरे में संचालित हो रहा है। हीरा पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि पहले पन्ना जिला मुख्यालय के साथ-साथ इटवांखास व पहाड़ीखेरा में उप कार्यालय हुआ करते थे जो अब बंद हो चुके हैं। उस समय उथली हीरा खदानों की निगरानी व खदानों से प्राप्त होने वाले हीरों को जमा कराने के लिए तीन दर्जन से भी अधिक सिपाही और हीरा इंस्पेक्टर पदस्थ थे। लेकिन अब सिर्फ दो सिपाही बचे हैं जो अपने रिटायरमेंट की राह देख रहे हैं।

पन्ना जिले में हीरा धारित पट्टी का विस्तार लगभग 70 किलोमीटर क्षेत्र में है, जो मझगवां से लेकर पहाड़ीखेरा तक फैली हुई है। हीरे के प्राथमिक स्रोतों में मझगवां किंबरलाइट पाइप एवं हिनौता किंबरलाइट पाइप पन्ना जिले में ही स्थित है। यह हीरा उत्पादन का प्राथमिक स्रोत है जो पन्ना शहर के दक्षिण-पश्चिम में 20 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां अत्याधुनिक संयंत्र के माध्यम से हीरों के उत्खनन का कार्य सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) द्वारा संचालित किया जाता रहा है। मौजूदा समय उत्खनन हेतु पर्यावरण की अनुमति अवधि समाप्त हो जाने के कारण यह खदान 1 जनवरी 21 से बंद है। एनएमडीसी हीरा खदान बंद होने से हीरों के उत्पादन का ग्राफ जहाँ नीचे जा पहुंचा है वहीं शासन को मिलने वाली रायल्टी में भी कमी आई है।

राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने इसी माह किया था हीरा खदान का भ्रमण 



राज्यपाल मंगुभाई पटेल ग्राम चौपरा स्थित हीरा खदान का अवलोकन करते हुए, साथ में सांसद व अधिकारीगण।  

मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल विगत 13 जनवरी को पन्ना विकासखण्ड अंतर्गत ग्राम पंचायत सकरिया के ग्राम चौपरा में आयोजित विकसित भारत संकल्प यात्रा के कार्यक्रम में जब शामिल हुए, उसी दौरान उन्होंने ग्राम चौपरा स्थित हीरा खदान का भी भ्रमण किया था। हीरा अधिकारी रवि पटेल ने बताया कि महामहिम राज्यपाल हीरा खदान का अवलोकन किया तथा हीरों की तलाश कैसे की जाती है इसकी पूरी प्रोसेस को समझा। लेकिन इस दौरान राज्यपाल महोदय को शायद हीरा खदानों व हीरा कार्यालय में मंडरा रहे संकट के संबंध में नहीं बताया गया। 

बीते 10 माह से पन्ना में हीरों की नीलामी नहीं हुई, जिससे जिन हीरा धारकों के हीरे जमा हैं उनकी बिक्री नहीं हो सकी। ऐसी हालत में अब लोग हीरा कार्यालय में हीरा जमा करने से कतरा रहे हैं। यही वजह है कि बीते साल नाम मात्र के हीरे ही जमा हुए, जो अब तक के इतिहास में सबसे कम हैं। हीरों की नीलामी न होने बावत हीरा अधिकारी का कहना है कि मौजूदा समय डायमण्ड का मार्केट बहुत डाउन है, इसलिए मार्च के बाद से हीरों की नीलामी नहीं हुई। जहाँ तक हीरा कार्यालय में कर्मचारियों की कमी का मामला है, उसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जा रही है। 

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Saturday, January 13, 2024

यहाँ पर है वनवासी राम की सबसे प्राचीन प्रतिमा !

  • धार्मिक महत्व का यह प्राचीन स्थल उपेक्षा का शिकार
  • पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकता है यह स्थल

इस समय पूरे देश में एक ही गूंज सुनाई पड़ रही है और वह है अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर की। न्यूज़ चैनलों और अखबारों में भी इसी बात की चर्चा हो रही है। लेकिन यहां हम चर्चा कर रहे हैं भगवान राम के वनवासी रूप की। वनवास के दौरान भगवान राम, सीता व लक्ष्मण अयोध्या से प्रयागराज होते हुए चित्रकूट पहुंचे थे। फिर सतना होते हुए भगवान राम पन्ना जिले के अगस्त मुनि के आश्रम भी पधारे थे। यह आश्रम घने जंगल के बीच स्थित है, जहां पर भगवान श्री राम के वनवासी रूप की पाषाण प्रतिमा मौजूद है। बताया जाता है कि वनवासी राम की यह प्रतिमा सर्वाधिक प्राचीन है, जो धनुष की प्रत्यंचा को चढ़ाने वाली मुद्रा में है। इस अनूठी प्रतिमा की मौजूदगी के बावजूद यह प्राचीन स्थल अभी भी उपेक्षित है।

पन्ना जिले के सिद्धनाथ मन्दिर परिसर में मौजूद वनवासी राम की पाषाण प्रतिमा


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बुन्देलखण्ड अंचल के पन्ना जिले में धार्मिक व पुरातात्विक महत्व के अनेकों स्थल हैं, ऐसा ही एक अनूठा स्थल सलेहा के निकट सिद्धनाथ है जो ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सिद्धनाथ मन्दिर परिसर में भगवान श्रीराम के वनवासी रूप की दुर्लभ पाषाण प्रतिमा मौजूद है। यह स्थान जिला मुख्यालय पन्ना से 60 किमी दूर विन्ध्य पहाडिय़ों के बीच स्थित है। पुराविदों का यह दावा है कि देश में अब तक प्राप्त भगवान श्रीराम की पाषाण प्रतिमाओं में यह सबसे अधिक प्राचीन है। कहा जाता है कि दुर्गम पहाडिय़ों के बीच स्थित इस स्थान पर अगस्त मुनि का आश्रम रहा है।

उल्लेखनीय है कि इस पूरे परिक्षेत्र में 10वीं और 11वीं शताब्दी की दुर्लभ पाषाण प्रतिमायें व मन्दिरों के अवशेष बिखरे पड़े हैं। राम वन गमन पथ सर्वेक्षण यात्रा में बुद्धिजीवियों व पुराविदों का दल जब इस प्राचीन स्थल पर पहुँचा तो वनवासी राम की दुर्लभ और प्राचीन प्रतिमा को देख आश्चर्यचकित रह गया। जिस छोटी सी कुटिया में वनवासी वेश वाली भगवान श्रीराम की जटाजूटयुक्त पाषाण प्रतिमा रखी है, उसी के निकट सिद्धनाथ मन्दिर है जिसे खजुराहो के मन्दिरों से भी अधिक प्राचीन बताया जाता है।

दुर्लभ पाषाण प्रतिमा में वनवासी राम धनुष की प्रत्यंचा खींचे हुये वीर भाव में दृष्टिगोचर हो रहे हैं जो लक्ष्य भेदने को तत्पर हैं। अंचल के ग्रामीणों की यह मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम वनवासी वेष में चित्रकूट से चलकर यहां अगस्त मुनि के आश्रम में आये थे। यहीं से होते हुये वनवासी राम पंचवटी पहुँचे। इस प्राचीन दुर्गम स्थान का दौरा कर चुके पुराविदों का कहना है कि इस स्थल का वर्णन बाल्मीक रामायण में है।

वनवासी राम की पाषाण प्रतिमा को अत्यधिक प्राचीन और दुर्लभ बताया गया है। इस प्रतिमा के यहां मिलने से यह स्पष्ट होता है कि उस काल में यह क्षेत्र राममय रहा होगा। सदियों से उपेक्षित पड़ी इस दुर्लभ पाषाण प्रतिमा में धनुष खण्डित है, लेकिन जटाजूटयुक्त वनवासी राम का वीर भाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। इस दुर्लभ पाषाण प्रतिमा के संबंध में पुराविदों द्वारा अध्ययन किया जा रहा है ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह कितनी प्राचीन है।

खजुराहो से अधिक प्राचीन है यह मन्दिर



पन्ना के सिद्धनाथ मन्दिर की स्थापत्य कला देखने काबिल है। पुराविदों के मुताबिक सिद्धनाथ मन्दिर खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मन्दिरों से भी अधिक प्राचीन है। समुचित देखरेख के अभाव व संरक्षण हेतु अपेक्षित उपाय न होने के कारण पुरा सम्पदा से समृद्ध यह इलाका उपेक्षित पड़ा है। किसी जमाने में यहां पर खजुराहो की ही तरह मन्दिरों की पूरी श्रृंखला थी लेकिन समय के थपेड़ों में अधिकांश मन्दिरों का वजूद खत्म हो गया है। इन मन्दिरों के अवशेष जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े हैं। यदि इस स्थल का समुचित विकास हो जाये तथा यहां की पुरा सम्पदा व मन्दिर का संरक्षण हो तो यह इलाका पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकता है।

भगवान के वनवासी वेश वाली दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन करने दक्षिण भारत से हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु सिद्धनाथ आते हैं। इस धार्मिक महत्व के मनोरम स्थल में पहुँचकर वे अपने आपको धन्य समझते हैं। धार्मिक आस्था का केन्द्र होने के बावजूद इस प्राचीन स्थल तक अभी भी सुगम मार्ग नहीं है। ऐंसी स्थिति में यहां आने वाले श्रद्धालुओं को भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।

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Friday, January 5, 2024

बर्फीली हवाओं और शीतलहर से ठिठुरा मंदिरों का शहर पन्ना

  • पूरे दिन घना कोहरा होने के कारण सूर्य देव के दर्शन हुए दुर्लभ
  • रिमझिम बारिश ने बदला मौसम का मिजाज, ठण्ड का प्रकोप 

घने कोहरे की चादर के बीच मंदिरों के शहर पन्ना के बाईपास व चौपड़ा मंदिर मार्ग का नजारा। 


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मंदिरों का शहर पन्ना इन दिनों  भीषण शीत लहर और घने कोहरे की चपेट में है। आज शाम को रिमझिम बारिश होने के साथ ही मौसम का मिजाज तेजी से बदला और ठण्ड ने कहर ढाना शुरू कर दिया। मौजूदा समय जिले का अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान औसत से नीचे बना हुआ है। तेज ठण्ड तथा कोहरे के कारण आम जनजीवन प्रभावित हुआ है। बीते कई दिनों से घना कोहरा होने के कारण सूर्य देव के दर्शन दुर्लभ हो गये हैं। पूरे दिन सर्द हवाओं के कारण ठण्ड का प्रकोप कायम रहता है, जिससे लोग रजाई के भीतर दुबकने को मजबूर हैं। कोहरे का आलम यह है कि दिन में भी वाहनों को लाइट जलाकर चलना पड़ रहा है। सुबह के समय तो 10 मीटर दूर का भी साफ दिखाई नहीं देता। 

उल्लेखनीय है कि पन्ना शहर इन दिनों शीत लहर की चपेट में है। बर्फीली हवाओं के चलने से ठण्ड के तेवर आक्रामक हो रहे हैं, जिससे आम जन जीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। भीषण ठण्ड व घने कोहरे के चलते सुबह जल्दी उठने वाले लोग भी नौ बजे के पहले रजाई नहीं छोड़ रहे। सबसे बुरी दशा रोज कमाने वाले गरीब मजदूरों की है, जिन्हें इस हाड़ कंपा देने वाली शीत लहर में ठिठुरना पड़ रहा है। 



नया साल शुरू होने के पहले से ही ठण्ड का यह दौर शुरू हुआ है जो निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। अब तो ठण्ड भीषण शीतलहर में तब्दील हो चुकी है, फलस्वरूप दिन में भी ठिठुरन बनी रहती है। इस शीतलहर का घरेलू कामकाजी महिलाओं की दिनचर्या में जहां खासा असर पड़ा है, वहीं सरकारी कामकाज भी ठण्ड से प्रभावित हो रहा है। बर्फीली हवाओं के तीखे तेवरों का असर सुबह की सैर के सौखिनों पर भी पड़ा है। सुबह ५ बजे से ताजी हवा खाने व चहल कदमी करने के लिये सैर पर निकलने वाले लोग अब कम ही नजर आते हैं। 

शीतलहर से बचाव के लिए एडवायजरी जारी

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा वर्तमान मौसम में शीतलहर के दृष्टिगत सुरक्षा के उपाय के संबंध में एडवायजरी जारी की गई है। सर्दी के मौसम में शीतलहर से बचाव के लिए बताया गया है कि जितना संभव हो घर के अंदर रहना चाहिए। ठंडी हवा से बचने के लिए कम से कम यात्रा करें। अपने शरीर को सुखाकर रखें। कपडे़ गीले होने पर तुरंत बदलना चाहिए, जिससे शरीर की उष्मा बनी रहे। मौसम की ताजा जानकारी के लिए संचार माध्यमों के उपयोग सहित नियमित रूप से गर्म पेय पीने और बुजुर्गों एवं बच्चों का विशेष ख्याल रखने की सलाह दी गई है। 


यह भी बताया गया है कि शीतदंश के लक्षणों जैसे उंगलियों, पैर की उंगलियों, कानों की लोब और नाक की नोक पर सुन्नता, सफेदी या पीलेपन के प्रति सजग रहें। शीतदंश से प्रभावित हिस्से की मालिश न करें। इससे अधिक नुकसान हो सकता है। इसके अलावा शीतदंश से प्रभावित शरीर के हिस्सों को गुनगुने पानी में डालें और कंपकंपी को नजरअंदाज न करें। यह एक महत्वपूर्ण अग्रिम संकेत है कि शरीर गर्मी खो रहा है। कंपकंपी महसूस होने पर तुरंत घर लौटें।

प्राधिकरण द्वारा हाइपोथर्मिया की स्थिति में बचाव के बारे में अवगत कराया गया है कि व्यक्ति को गर्म स्थान पर ले जाकर कपड़े बदलना चाहिए और शरीर को सूखे कम्बलों, कपड़ों, तौलियों या चादरों से गर्मी दें। शरीर के तापमान को बढ़ाने में मदद करने के लिए गर्म पेय पिलाएं। मादक पेय के सेवन से बचना चाहिए। इसके साथ ही जितनी जल्दी हो सके, व्यक्ति को उचित चिकित्सा उपलब्ध कराना चाहिए। शीतलहर से पहले सुरक्षा के उपाय के बारे में बताया गया है कि सर्दियों के कपड़े पर्याप्त मात्रा में रखें। कपड़ों की कई परतें पहनना भी लाभदायक रहता है। आपातकालीन आपूर्तियों के लिए सभी सामान तैयार रखना चाहिए।

कार्ययोजना तैयार करने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त

जिला कलेक्टर द्वारा जिले में शीतलहर के प्रकोप के दृष्टिगत इससे होने वाली क्षति को कम करने के लिए विभागीय और जिला स्तर पर आवश्यक कार्यवाही तथा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के संशोधित दिशा निर्देश अनुसार कार्ययोजना तैयार करने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। जिला तहसील और विकासखण्ड स्तर पर शीतलहर प्रबंधन के लिए भी नियुक्त लोकसेवकों एवं नोडल अधिकारी को दायित्व सौंपा गया है।

संयुक्त कलेक्टर एवं राहत शाखा के प्रभारी अधिकारी कुशल सिंह गौतम को जिला स्तरीय नोडल अधिकारी बनाया गया है, जबकि समस्त अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को अनुभाग स्तरीय, तहसीलदार को तहसील स्तरीय सहायक नोडल अधिकारी, जनपद क्षेत्र में जनपद पंचायत सीईओ को जनपद स्तरीय सहायक नोडल अधिकारी, नगरीय क्षेत्र में नगरीय निकायों के सीएमओ को नगरीय निकाय स्तरीय सहायक नोडल अधिकारी का दायित्व सौंपा गया है। नोडल अधिकारियों को शासन तथा प्राधिकरण के निर्देशानुसार शीतलहर से बचाव के लिए जारी एडवायजरी और निर्देशों का क्रियान्वयन सुनिश्चित कराने के निर्देश दिए गए हैं। संबंधित विभागीय अधिकारियों को भी आवश्यक दायित्व सौंपा गया है।

 शीतलहर से पशुओं का करें बचाव

पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा वर्तमान में ठण्ड के मौसम के दृष्टिगत शीतलहर से पश्ुाओं के बचाव के लिए सलाह जारी की गई है। विभाग के उप संचालक डा. डी.पी. तिवारी ने बताया कि पशुपालक एवं गौशाला संचालक गौवंश के बचाव एवं रखरखाव का विशेष ध्यान रखें। गौवंश को सर्दी से बचाव के लिए यह ध्यान रखा जाए कि आवास सूखा एवं सुविधाजनक हो तथा गौवंश के लिए पर्याप्त चारा-भूसा की उपलब्धता हो। गौवंश को मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए आवश्यक उपचार और टीकाकरण के लिए भी कहा है।

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शिक्षा और पर्यटन के विकास से बढ़ सकता है पन्ना का गौरव !

  • बाघों की धरती में खुले जैव विविधता महाविद्यालय व प्रशिक्षण संस्थान 
  • यहाँ की आबोहवा शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना हेतु अत्यधिक अनुकूल

बाघों की धरती कहे जाने वाले पन्ना टाइगर रिज़र्व के खूबसूरत जंगल का नजारा।  ( फ़ाइल फ़ोटो ) 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। प्रकृति के अनुपम उपहारों से समृद्ध पन्ना जिले में पर्यटन विकास की असीम संभावनायें मौजूद हैं। यहॉ की प्रदूषण रहित और कोलाहल से मुक्त नैसर्गिक आबोहवा शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना के लिए अत्यधिक अनुकूल है। इस दिशा में यदि सार्थक व रचनात्मक पहल हो तो विकास की दृष्टि से पिछड़े पन्ना जिले की तक़दीर व तस्वीर दोनों बदल सकती है।  

आज से तक़रीबन 10 वर्ष पूर्व इस ओर शासन व प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराते हुए मैंने एक खबर लिखी थी जो नवभारत में 21 जुलाई 2013 के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित भी हुई थी। उसके बाद पन्ना में पर्यटन विकास के क्षेत्र में कुछ पहल जरूर हुई लेकिन पन्ना की जो संभावनाएं हैं वे अभी तक मूर्त रूप नहीं ले सकी हैं। यहाँ अभी बहुत कुछ करना जरुरी है ताकि प्रकृति प्रदत्त सौगातों का पन्ना के हित में बेहतर व रचनात्मक उपयोग हो सके। पन्ना में वन्य जीव से संबंधित स्नातक, स्नातकोत्तर, डिप्लोमा एवं सार्टीफिकेट कोर्स की मांग अभी भी प्रतीक्षित है। इस दिशा में ठोस और सार्थक पहल की दरकार है ताकि पन्ना की खूबियों के अनुरूप यहाँ का विकास हो सके। 

उल्लेखनीय है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र में पन्ना जिले का जंगल बाघों का उत्तम रहवास है। बाघ पुर्नस्थापना योजना को मिली अभूतपूर्व कामयाबी के बाद पन्ना टाइगर रिजर्व की ख्याति देश ही नहीं विदेशों में भी फैल चुकी है। दुनिया भर के वन्य जीव विशेषज्ञ व वैज्ञानिक पन्ना की कामयाबी को बड़े कौतूहल से देख व समझ रहे हैं। पन्ना की यह सफलता की कहानी अब पूरे म.प्र. की उपलब्धि बन गई है। इस पूरे अवसर का बेहतर उपयोग करते हुए यदि पन्ना टाइगर रिजर्व तथा यहां की नैसर्गिक व सांस्कृतिक धरोहरों को शिक्षा से जोड़ दिया जाय तो यहां आजीविका के बेहतर अवसरों का भी सृजन होगा। 


पूरे देश में वन्य जीव से संबंधित स्नातक, स्नातकोत्तर, डिप्लोमा एवं सार्टीफिकेट कोर्स मात्र भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून, बंगलौर व अलीगढ़ विश्वविद्यालय में उपलब्ध है। जैव विविधता के क्षेत्र में रोजगार के अवसर असीमित हैं। इस असीमित जैव विविधता आधारित शिक्षा को स्थानीय तौर पर वैकल्पिक स्थायी आजीविका के रूप में तब्दील करने की दिशा में जैव विविधता महाविद्यालय व प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना हर दृष्टि से बेहतर होगा।  

मालुम हो कि विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल व भारत की सांस्कृतिक धरोहर खजुराहो से पन्ना अत्यधिक  निकट है। पूरी दुनिया के पर्यटक खजुराहो की अद्भुत शिल्प कला को निहारने आते हैं, जिन्हें सहजता से पन्ना की तरफ भी आकृष्ट किया जा सकता है। प्रदेश के मुख्यमंत्री यदि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के इस पिछड़े जिले की बेहतरी के लिए यहां पर्यटन के विकास तथा जैव विविधता महाविद्यालय व प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना हेतु रूचि लेते हैं तो यह इस क्षेत्र के लिए उनके द्वारा दी गई अनुपम सौगात होगी। इससे पन्ना ही नहीं बल्कि समूचे प्रदेश का गौरव बढ़ेगा। 

जैव विधिता पर आधारित कोर्स उपयोगी 

बाघ पुनर्स्थापना योजना के शिल्पी तथा पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक रहे आर.श्रीनिवास मूर्ति का कहना है कि जैव विविधता विषय पर आधारित बी.एस.सी., एम.एस.सी., डिप्लोमा व सार्टीफिकेट कोर्स संचालित किया जाना अत्यधिक उपयोगी व जिले के  हित में होगा। संस्थान के लिए एमएमडीसी के खली पड़े अतिरिक्त भवन लिए जा सकते हैं। प्रस्तावित कोर्सों के संचालन हेतु प्रयोगशाला के रूप में पन्ना टाइगर रिजर्व का उपयोग हो सकता है। 


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Thursday, January 4, 2024

पन्ना में एक ऐसी नदी जिसने सैकड़ो लोगों को बना दिया है रंक से राजा

  •  कंकड़ और पत्थरों के बीच मिल जाते हैं वेशकीमती हीरे
  •  बड़ी संख्या में आज भी यहाँ लोग करते हैं हीरों की तलाश 

पन्ना जिले से प्रवाहित होने वाली बाघिन नदी का द्रश्य जहाँ वेशकीमती हीरे मिलते हैं।  

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में एक नदी ऐसी भी है, जिसने अब तक सैकड़ो लोगों को रंक से राजा बना दिया है। इस नदी में कंकर और पत्थरों के बीच वेशकीमती हीरे मिलते हैं। यदा कदा जिस किसी के हाथ हीरे लग जाते हैं, उसकी किस्मत चमक जाती है। पल भर में रंक से राजा बना देने वाली रत्नगर्भा बाघिन नदी के आसपास आज भी बड़ी संख्या में लोग हीरों की तलाश करते हैं।

इस अनूठी नदी की उत्पत्ति सुतीक्ष्ण मुनि की तपोभूमि सारंगधर मंदिर के निकट हुई है। यहां से यह नदी इटवां, सिरस्वाहा, बृजपुर, रमखिरिया, गहरा, गजना धर्मपुर होते हुए बृहस्पति कुंड में गिरती है। हैरत की बात यह है कि बाघिन नदी जिले में जहां-जहां से होकर प्रवाहित होती है, उस पूरे इलाके में हीरा मिलता है। बाघिन नदी के कछार में चलने वाली पतालिया, जमुनिहाई, चांदा डबरी, सिरसा द्वारा की खदानें प्रसिद्ध रही हैं। यहां की उथली हीरा खदानों से हर साल करोड़ों रुपए कीमत के हीरे निकलते हैं। 

बाघिन नदी के किनारे रमखिरिया गांव के पास विगत चार दशक पूर्व तक एनएमडीसी द्वारा भी हीरों का उत्खनन कराया जाता रहा है। वर्तमान में इस जगह पर अब जवाहर नवोदय विद्यालय संचालित है। लगभग तीन दशक तक एनएमडीसी द्वारा बाघिन नदी के ऊपर संयंत्र चलाया जाता रहा है, जहां से लाखों कैरेट हीरों का उत्पादन हुआ है। 90 के दशक में एनएमडीसी का रमखिरिया प्लांट बंद कर दिया गया और मझगवां में नया संयंत्र स्थापित किया जाकर वहां हीरों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाने लगा। मौजूदा समय मझगवां स्थित एनएमडीसी प्लांट भी बंद है। 

नदी के किनारे कंकर और पत्थरों के बीच हीरों की तलाश करते ग्रामीण। 

जानकारों का कहना है कि रमखिरिया हीरा खदान में एनएमडीसी द्वारा बाघिन नदी के पानी का उपयोग किया जाता रहा है। फलस्वरुप एनएमडीसी के हीरे इस नदी में बह जाया करते थे। नदी में बहे यही हीरे लोगों को मिलते रहे हैं। बाघिन नदी की धार में अब तक कितने लोगों की किस्मत चमकी है, इसकी सही व प्रमाणिक संख्या किसी के भी पास नहीं है। लेकिन इतना तय है कि यह संख्या सैकड़ो में है। 

जानकार बताते हैं कि बाघिन नदी का कछार हीरा प्राप्ति के लिए काफी प्रसिद्ध है। इस नदी के पतालिया, जमुनिहाई, चांदा डबरी व सिरसा द्वारा की खदानों में अच्छी किस्म के हीरे निकलते हैं। लेकिन यहां से प्राप्त होने वाले ज्यादातर हीरों की बिक्री चोरी छुपे कर दी जाती है, प्राप्त होने वाले हीरों को हीरा कार्यालय में जमा नहीं किया जाता। ऐसी स्थिति में खदानों से प्राप्त होने वाले हीरों की सही जानकारी नहीं मिल पाती।

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Tuesday, January 2, 2024

पानी की टपकती बूंदें जो हर चीज को बना देती हैं पत्थर

  • बेधक कुंड के वियाबान जंगल में प्रकृति का अद्भुत नजारा 
  • पेट की बीमारी व चर्मरोग के लिए यह पानी रामबाण औषधि

वियाबान जंगल में स्थित वह स्थल जहाँ वृक्ष की जड़ों से टपकता है रहस्यमय पानी।  

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। रहस्य और रोमांच से लबरेज़ पन्ना जिले के जंगलों में प्रकृति के ऐसे-ऐसे अद्भुत नजारे देखने को मिलते हैं, जो लोगों को विस्मय बिमुग्ध कर देते हैं। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 40 किलोमीटर दूर सालिकपुर सेहा के वियाबान जंगल में एक ऐसा स्थान है, जहां पेड़ की जड़ों से टपकने वाला पानी हर चीज को कठोर पत्थर में तब्दील कर देता है। इस रहस्यमय पानी के संपर्क में आने वाले वृक्ष, जड़ें व सूखी लकड़ियां कुछ समय के अंतराल में पत्थर बन जाती हैं। ऐसा क्यों होता है, सैकड़ो वर्षों से यह रहस्य बना हुआ है।

गौरतलब है कि बृजपुर थाना क्षेत्र के ग्राम बरहों कुदकपुर के निकट घनघोर जंगल में यह अनूठा स्थान है, जिसे बेधक कुंड के नाम से जाना जाता है। रहस्यों से परिपूर्ण इस वन क्षेत्र में चारों तरफ ऊंचे पहाड़ व गहरे सेहे हैं, जहां दिन के उजाले में भी जाने से लोग खौफ खाते हैं। यहां पर गहरे कुंडों की एक पूरी श्रृंखला है। जिनमें बृहस्पति कुंड, सूरजकुंड, पतालिया कुंड व हत्यारा कुंड सहित सात ऐसे कुंड हैं, जिनके बारे में अंचल के लोग जानते हैं। इन सभी कुंडों के पीछे कोई ना कोई गाथा जुड़ी हुई है। इन्हीं में से एक बेधक कुंड है, जहां कठपीपल की पहाड़ से झूलती विशालकाय जड़ों से हमेशा पानी टपकता रहता है। 

भीषण गर्मी के दिनों में भी इस स्थान पर गजब की शीतलता का अनुभव होता है। पहाड़ की चट्टानों पर चारों तरफ मधुमक्खियां के बड़े-बड़े छत्ते नजर आते हैं। कुंड के आसपास सुरंग नुमा कई गुफाएं भी हैं, जो भालुओं के अलावा कई तरह के वन्य जीवों का रहवास स्थल हैं। तराई अंचल का यह वन क्षेत्र साधु सन्यासियों व तपस्वियों के अलावा डकैतों को भी अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। पूर्व में बेधक कुंड भी डकैतों की पसंदीदा शरण स्थली रही है। घनघोर जंगल व गहरे सेहे में स्थित बेधक कुंड तक पहुंचना आसान नहीं है। दुर्गम व खतरनाक जंगली रास्तों से होते हुए जो कोई भी इस मनोरम स्थल पर पहुंचता है, वह प्रकृति की अद्भुत कारीगरी को देखकर मंत्र मुग्ध हो जाता है।

पानी के संपर्क में आने से पेड़ पौधों की जड़ों का स्वरुप इस तरह का हो गया है, ऐसा क्यों हुआ यह रहस्य है।  

हैरत की बात तो यह है कि पूरे इलाके में कहीं भी पानी की एक बूंद नजर नहीं आती, पहाड़ रुखा सूखा दिखता है। फिर भी इस स्थान पर वृक्ष की जड़ों से रहस्यमय पानी की बूंदे अनवरत रूप से टपकती रहती हैं। यह पानी कहां से और कैसे जड़ों में पहुंचता है, तमाम खोजबीन के बाद भी इसकी गुत्थी आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है। यहां जड़ों से टपकने वाला पानी हर किसी के लिए अचरज का विषय बना हुआ है। 

ग्रामीणों का कहना है कि इस स्थान के बारे में उन्होंने अपने पुरखों से भी यही सुना था कि यहां पानी टपकता है और यह पानी जिस किसी चीज के भी संपर्क में आता है वह पत्थर बन जाता है। यह चमत्कार यहां पर आज भी उसी तरह घटित होता है। पानी के गुणधर्म में किसी भी तरह का कोई बदलाव नहीं आया।

आश्चर्य चकित कर देने वाली बात यह है की कठपीपल के जिस वृक्ष की जड़ से यह रहस्यमय पानी नीचे टपकता है, उस वृक्ष की जड़ें पत्थर की तरह कठोर हो चुकी हैं। पहाड़ से लटकने वाली लताएं व वृक्षों की जड़ें भी इस पानी के सतत संपर्क में रहने के कारण पत्थर की शक्ल अख्तियार करके अनूठी कलाकृतियों की तरह नजर आती हैं। प्रकृति का यह सृजन अचंभित कर देने वाला है। 

अंचल के ग्रामीण तथा ग्राम बरहों कुदकपुर के आदिवासी बताते हैं कि बेधक कुंड में जड़ों से टपकने वाले पानी में औषधीय गुण भी मौजूद हैं। बताया जाता है कि इस पानी का सेवन करने से पेट से संबंधित बीमारियां दूर हो जाती हैं। चर्म रोग के लिए बेधन कुंड के पानी को रामबाण औषधि कहा जाता है। अंचल के ग्रामीण औषधि के रूप में यहां के चमत्कारिक जल का उपयोग करते हैं और उन्हें फायदा भी होता है।

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