Monday, July 29, 2024

मुर्गीपालन से कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं की जिंदगी में आया बदलाव

कल्दा पठार की आदिवासी महिलाओं को मुर्गीपालन हेतु प्रशिक्षित किया गया। 

पन्ना। कुछ माह पूर्व तक मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में दूरस्थ कल्दा पठार की जो आदिवासी महिलाएं मजदूरी और वनोपज के संग्रहण का कार्य करती थीं, वे अब मुर्गीपालन भी करने लगी हैं। मुर्गीपालन से अतिरिक्त आय होने के कारण इन गरीब महिलाओं की जिंदगी और रहन-सहन में चमत्कारिक बदलाव आया है।

उल्लेखनीय है कि जिला प्रशासन पन्ना के नवाचार व एमपीडब्ल्यूपीसीएल संस्था के सहयोग से मनरेगा योजना और डीएमएफ मद से फरवरी 2024 से कल्दा पठार क्षेत्र की गरीब आजीविका मिशन समूह की आदिवासी महिलाओं के लिए मुर्गी शेड बनवाकर मुर्गीपालन की गतिविधि शुरू की गई थी। पहले इन महिलाओं की आजीविका का मुख्य साधन वनोपज व मजदूरी थी। प्रत्येक महिला सदस्य को 500 मुर्गी की क्षमता का शेड बनवाया जा रहा है। अभी तक 100 शेड पूर्ण होकर 88 शेड में मुर्गी पालन आरंभ किया जा चुका है। 

महिला सदस्य द्वारा केवल 35 दिन के चक्र में प्रतिदिन 3 बार मुर्गी को दाना पानी खिलाकर साफ सफाई की जाती है। मुर्गी क्रय एवं विक्रय का कार्य संस्था के द्वारा किया जाता है। गतिविधि के सफल क्रियान्वयन के लिए महिलाओं द्वारा संयुक्त रूप से श्यामगिरी पोल्ट्री प्रोड्यूसर कंपनी खोली गई है। वर्ष के अंत में कंपनी को हुए मुनाफे को बोनस के रूप में भी सभी सदस्यों में वितरित किया जायेगा।

बताया गया है कि मुर्गीपालन गतिविधियों के तहत अब तक 88 महिलाओं को पांच माह में 13 लाख 28 हजार 144 रूपए प्राप्त हो चुके हैं। प्रत्येक महिला को एक 35 दिन के चक्र में मुर्गियों के वजन अनुसार 5 से 9 हजार रूपये की बचत हो रही है। महिलाऐं मुर्गीपालन गतिविधि के संचालन से काफी खुश हैं। अब उन्हें जंगल मे लकड़ी इकट्ठा करने एवं महुआ एकत्र करने की जरूरत नहीं पड़ रही है। 

गतिविधि के निरंतर विस्तार के लिए द्वितीय चरण में 107 मुर्गी शेड निर्माण का कार्य अंतिम चरण में है। सितम्बर माह तक 200 महिलाओं द्वारा मुर्गीपालन आरंभ कर दिया जाएगा। इसके अलावा 100 नवीन महिला सदस्यों का चिन्हांकन किया जा चुका है, जिनके मुर्गी शेड निर्माण का कार्य आरंभ किया जाएगा। आगामी 2 वर्ष में कल्दा क्षेत्र की कुल 500 आजीविका मिशन समूह महिलाओं को मुर्गी पालन गतिविधियों से लाभ दिया जाएगा। प्रत्येक महिला एक वर्ष में 250 दिन प्रत्येक दिन 3 घंटे कार्य कर गतिविधि से वर्ष में 50 हजार से 70 हजार रुपये तक की बचत कर सकेंगी।

00000

Friday, July 26, 2024

स्टेट बैंक मुख्य शाखा पन्ना के एटीएम में डकैती डालने की योजना बनाने वाले 5 आरोपी गिरफ्तार

स्टेट बैंक मुख्य शाखा पन्ना के एटीएम में डकैती की योजना बनाने वाले आरोपी जिन्हे पुलिस ने गिरफ्तार किया।  

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की पुलिस ने स्टेट बैंक मुख्य शाखा पन्ना के एटीएम में डकैती डालने की योजना बनाने वाले 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। आरोपियों के कब्जे से एक स्कॉरपियो कार, एक 38 बोर का देशी कट्टा, एक लोहे का चाकू, एक लोहे का बडा कटर, एक बड़ा पेचकश, एक लोहे का पाइप औजार, दो लोहे की रॉड सहित कुल मशरूका कीमती करीब 7 लाख 6 हजार एक सौ रूपये का जप्त किया गया।

पुलिस अधीक्षक पन्ना साई कृष्णा एस. थोटा ने जानकारी देते हुए बताया कि पन्ना पुलिस को मुखबिर से आरोपियों के बारे में सूचना मिलने पर तस्दीक हेतु त्वरित कार्यवाही किये जाने हेतु निर्देशित किया गया। पुलिस टीम द्वारा मुखबिर सूचना के आधार पर डकैती की योजना बना रहे 5 संदेही व्यक्तियों को सकरिया के पास घेराबंदी करके पुलिस अभिरक्षा में लिया गया। 

पुलिस द्वारा कड़ाई से पूँछताछ किये जाने पर उक्त व्यक्तियों द्वारा बताया गया कि हम लोग स्टेट बैंक पन्ना की मुख्य शाखा में लगे एटीएम में डकैती डालने के लिये औजार कार में रखकर डकैती डालने की योजना बना रहे थे। पुलिस टीम द्वारा उक्त औजारों सहित स्कॉरपियो कार को जप्त किया जाकर पाँचो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया एवं आरोपियों के विरूद्ध थाना कोतवाली पन्ना में अप.क्र. 755/24 धारा 310(4) 310(5) BNS 25/27, 25(बी) आर्म्स एक्ट का कायम किया जाकर आरोपियो को न्यायालय के आदेशानुसार जिला जेल भेजा गया है।

गिरफ्तार किये गए आरोपियों में सलीम पिता शमशेर उम्र 24 साल निवासी हट्टी गोदाम बादशाह मिठाई वाले के पास जबलपुर थाना हनुमानताल, नौसाद अली पिता इलियास अली उम्र 19 साल निवासी जबलपुर थाना आधारताल, अलताफ शाह पिता मकबूल शाह उम्र 20 साल निवासी मंडी मदार टेकरी जबलपुर थाना हनुमानताल, मोहम्मद शाहिद पिता मोहम्मद बाबू सलाम उम्र 27 साल निवासी मदार छल्ला शास्त्री वार्ड जबलपुर थाना हनुमानताल जबलपुर तथा शिवम कुशवाहा पिता गणेश कुशवाहा उम्र 23 साल निवासी जबलपुर थाना आधारताल जिला जबलपुर शामिल हैं। पुलिस अधीक्षक पन्ना द्वारा उक्त पुलिस टीम को पुरुस्कृत किये जाने की घोषणा की गई है।

00000

Wednesday, July 24, 2024

गरीब मजदूर को मिला मिला 19.22 कैरेट का बेशकीमती हीरा

हीरा धारक राजू गोंड पन्ना स्थित हीरा कार्यालय में खदान से प्राप्त हीरे को दिखते हुए। 

पन्ना । देश और दुनियां में बेशकीमती हीरों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में आज एक गरीब मजदूर को कृष्णा कल्याणपुर स्थित पटी उथली हीरा खदान में 19.22 कैरेट वजन का बेशकीमती हीरा मिला है। जेम क्वालिटी वाले इस हीरे की अनुमानित कीमत 80 लाख से एक करोड़ रुपये बताई जा रही है। हीरा धारक मजदूर राजू गोंड़ पिता चुनवादा गोंड़ आज अपने परिवार के साथ जिला मुख्यालय में संयुक्त कलेक्ट्रेट स्थित हीरा कार्यालय पहुंचा और हीरे का वजन करवाकर उसे विधिवत हीरा कार्यालय में जमा करा दिया है। 

हीरा पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि हीरा धारक राजू गोंड़ ने हीरा कार्यालय से पट्टा बनवाकर करीब दो माह पूर्व खदान लगाई थी। राजू मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करता था, इसके साथ ही बारिश के दिनों में हीरे की खदान भी लगाया करता था। राजू गोंड ने बताया कि वह करीब 10 सालों से हीरे की खदान लगाता आ रहा है, उसे विश्वास था कि एक न एक दिन उसे बड़ा हीरा जरूर मिलेगा। लम्बे समय के बाद ही सही लेकिन आज उसकी मुराद पूरी हो गई है तथा अब वह रंक से राजा बन गया है। राजू गोंड ने बताया कि हीरे की नीलामी से मिलने वाले पैसों से वह अपने बच्चों को पढ़ाएगा और  इसके साथ ही परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए जमीन भी खरीदेगा, जिसमें वह खेती करेगा। इसके अलावा उसके ऊपर करीब चार लाख रुपए का कर्ज भी है, जिसे वह अब पटा देगा। 

हीरा अधिकारी रवि पटेल का कहना है कि यह जेम क्वालिटी का हीरा है, जिसकी बाजार में अच्छी डिमांड होती है। इस हीरे को आगामी हीरा नीलामी में बिक्री के लिए रखा जाएगा। वहीं मजदूर को बड़ा हीरा मिलने पर पन्ना कलेक्टर सुरेश कुमार ने खुशी का इजहार करते हुए बताया कि ग्राम अहिरगुंवा के गरीब आदिवासी परिवार को उथली हीरा खदान में 19.22  कैरेट का हीरा प्राप्त हुआ है, जिसे आज पन्ना हीरा कार्यालय में जमा कराया गया है। बताया गया है कि इस वर्ष पन्ना की उथली हीरा खदानों से अब तक प्राप्त हीरों में यह सबसे बड़ा हीरा है, जो आयोजित होने वाली नीलामी में आकर्षण का केंद्र रहेगा। 

00000

Tuesday, July 23, 2024

मधुकामिनी : सुन्दर सफ़ेद फूलों से अलंकृत मनमोहक खुशबू वाला पौधा


पन्ना। मधुकामिनी के छोटे सफ़ेद फूल देखने में जितने खूबसूरत होते हैं, उससे भी कई गुना ज्यादा इसके फूलों की खुशबू मनमोहक होती हैं। मोगरा, बेला और रातरानी के बाद जो सबसे ज्यादा महक और फ्लावरिंग देता है, वह मधुकामिनी का ही पौधा है। यह एक परमानेंट सनलाइट प्लांट होता है जिसमे अप्रैल से नवंबर तक फ्लावरिंग बहुत ही अधिक मात्रा में  होती है। अगर बारिश नही होती, तो एक हप्ते तक फ्लॉवर ज्यों के त्यों खिले रहते हैं। घर में अगर एक बार आपने मधुकामिनी के फूल का पौधा लगा दिया, तो 4-5 वर्ष या इससे अधिक समय तक फूल आते रहेंगे। मनमोहक खुशबू के कारण इसे अपने घर की बालकनी में लगाना बहुत ही आसान है।

उल्लेखनीय है कि मधुकामिनी के पौधे को सबसे अच्छे इनडोर और आउटडोर पौधों में से एक माना जाता है। वास्तु के अनुसार यह प्लांट घर-आंगन को खुशियों से भर सकता है। जरूरी बात यह है कि यह कम रखरखाव वाला पौधा है और इसमें सुगंधित फूलों के गुच्छे होते हैं, जो सुंदर ति‍तलियों और चिड़ियों को बहुत आकर्षित करते हैं। मधुकामिनी फूल का वानस्पतिक नाम है मुराया पैनीकुलेटा है। यह एक सफेद रंग का फूल है जो घर की सज्जा के साथ औषधि के लिए भी प्रयोग किया जाता है

खूशबूदार फूलों में से मधुकामिनी दिन रात महकने वाला प्लांट है। यह एक सदाबहार झाड़ीनुमा पौधा है जिसका आकार 5-15 फिट तक होता है। नारंगी यानी संतरा जैसी सुगंध आने के कारण इसको ऑरेंज जैस्मीन नाम से भी जाना जाता है। इसके फूलों का रंग सफेद होता है। इसके फूलों की मनभावन सुगंध मानसिक तनाव को दूर करने वाली होती है। ऐसी मान्यता है कि जो तीन फूल स्वर्ग से आए हैं उसमें अपराजिता, पारिजात के साथ तीसरा फूल मधुकामिनी ही है। 

मेरे घर के आँगन में लगा मधुकामिनी का पौधा। 

कुछ लोगों की यह शिकायत होती है कि उनके पौधें पर फूल ही नहीं खिल रहे हैं या बहुत कम फ्लावरिंग हो रही है।गर्मी का मौसम मधुकामिनी के फ्लावरिंग का मौसम होता हैं। इस समय जिन भी लोगों के मधुकामिनी पर फूल नही खिल रहे होते हैं उन लोगों के द्वारा कहीं न कहीं कुछ गलतियां हो रही होती हैं। ऐसे में उन्हें कुछ टिप्स की जरूरत होती हैं. जिसे फॉलो करके वह अपने पौधें की अच्छे से देखभाल कर सकें। ये कुछ टिप्स हैं जिन्हें अपनाकर आप अपने मधुकामिनी पर बेसुमार फूल पा सकते हैं। 


पानी का रखें ध्यान 

इस पौधे को ज्यादा पानी की जरुरत नहीं होती है। जब आपकों लगे की पौधे की मिट्टी एक या दो इंच तक सूख चुकी है उस समय पानी दें। अप्रैल से लेकर जुलाई तक वाटरिंग पर ध्यान देने की जरूरत होती है। फिर जब बरसात का मौसम आ जाता हैं तो आप इसे बारिश में भीगने के लिए छोड़ देते हैं तो पानी देने की जरूरत नहीं होती है।

वेल ड्रेन मिट्टी में लगाएं 

कुछ लोग पौधें को लगाते समय मिट्टी तैयार करने में ही गलती कर देते है जिससे पौधें में ना अच्छी ग्रोथ हो पाती है और ना ही अच्छे से फ्लावरिंग हो पाती है । इस पौधें को लगाने के लिए वेल ड्रेन मिट्टी लें। मिट्टी को तैयार करने के लिए 50% गार्डेन मिट्टी, 30% रेती मिट्टी और 20% खाद ले लें। अगर आप चाहें तो इसमें धान की भी भूसी मिला सकते हैं। अगर मिट्टी अच्छी होगी तो पौधा अच्छे से सरवाइव करेगा।

सही समय पर खाद दें 

इस पौधें को साल में कम से कम दो बार खाद देना बहुत ही जरूरी होता है। एक बार फरवरी मे फ्लावरिंग टाइम आने से पहले और दूसरी बार अगस्त में बारिश के बाद क्योंकि पहले से जो भी खाद दी गई रहती हैं वह बारिश में धुल जाती है। आप चाहें तो सादे पानी की जगह 15 से 20 दिन के अंतराल पर लिक्विड फर्टिलाइजर जैसे वर्मी कम्पोस्ट या गोबर के उपले से तैयार दे सकते हैं।

पर्याप्त रोशनी व धूप मिले 

बहुत से लोगों की यह शिकायत रहती हैं मेरे पौधें पर अच्छे से फूल नही खिल रहा है।  तो उसका एक कारण यह भी हो सकता हैं कि पौधें को भरपूर मात्रा में धूप नही मिल रहा हो। इस पौधें को कम से कम 5 से 6 घंटे की धूप चाहिए होता है। अगर आप इसे गमले में लगाए हैं तो रोजाना सुबह की 5 से 6 घंटे धूप में रखें और दोपहर की तेज धूप में छाव में रख दें। अगर आप इस पौधें को गमले में ना लगाकर जमीन पर लगाएं हुए हैं तो पूरे दिन की धूप में भी छोड़ सकते हैं। इस तरह यदि मधुकामिनी के पौधे की समुचित देखरेख की गई तो उसमें निश्चित रूप से अच्छी फ्लॉवरिंग होगी, जिसकी मनमोहक खुशबू से आप प्रफुल्लित और तरोताजा महसूस करेंगे। 

00000 

Wednesday, July 17, 2024

वन विभाग की भूमि से अभियान चलाकर हटाया गया अतिक्रमण

 


पन्ना। वन विभाग द्वारा वन परिक्षेत्र में अतिक्रमण की रोकथाम के लिए अभियान चलाया जा रहा है। वन विभाग की भूमि पर ग्रामीणों द्वारा वर्षों से अतिक्रमण कर खेती की जा रही थी, जिसे जेसीबी की मदद से सख्ती से हटाया गया। साथ ही वन संरक्षण के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया गया। वहीं वन विभाग द्वारा अतिक्रमण हटाकर विभिन्न स्थानों पर पौधरोपण भी किया गया।

मुख्य वन संरक्षक संजीव झा एवं वन मण्डलाधिकारी पुनीत सोनकर के निर्देशन में चलाए गए अतिक्रमण हटाओ अभियान अंतर्गत मोहन्द्रा एवं पवई क्षेत्र की वन भूमि में ग्रामीणों द्वारा किए गए अतिक्रमण को हटाकर समझाइश दी गई। वहीं कुछ स्थानों पर ग्रामीणों द्वारा बाड़ लगाकर वन भूमि पर कब्जा किया गया था, जिसे जेसीबी की मदद से हटाया गया। विभिन्न क्षेत्रों में हटाए गए अतिक्रमण के स्थान पर कंटूर ट्रेंच बनाए गए एवं कंटीले बबूल के बीज की बुवाई की गई। 

इस अभियान के दौरान मोहन्द्रा एवं पवई वन परिक्षेत्र का स्टाफ भी मौजूद रहा। ज्ञात हो कि मानसून सीजन में ग्रामीणों द्वारा शासकीय वन भूमियों पर अतिक्रमण कर फसलों की बुवाई की जाती है जिसे टीम द्वारा दल बल के साथ जेसीबी से फसलों को नष्ट कर वन भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया। साथ ही ग्रामीणों को समझाइश दी गई कि वे शासकीय भूमि पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण न करें। वहीं वन विभाग एवं ग्रामीणों द्वारा पौधारोपण भी किया गया।

00000

Thursday, July 11, 2024

विलुप्त होने से बचीं, ये हमारी सुगन्धित धान की किस्में


।। बाबूलाल दाहिया ।।

आजादी के पहले एक अनुमान के अनुसार कहते हैं हमारे देश में परम्परागत धान की 1 लाख 10 हजार किस्में हुआ करती थीं। 22 हजार 8 सौ किस्में तो रायपुर यूनिवर्सिटी के एक मसहूर कृषि बैज्ञानिक डॉ. राधेलाल रिछारिया जी ने ही अविभाजित मध्यप्रदेश में खोज निकाला था। परन्तु दुःखद बात यह है कि अब समूचे भारत की एक लाख 10 हजार किस्मों  में एक लाख तो पूरी तरह समाप्त ही हैं यदि बची भी होंगी तो 10 हजार के अन्दर ही।

इसी तरह मध्यप्रदेश में अब 22 हजार 8 सौ में से यदि 800 मिल जांय तो बहुत हैं। 200 के आस पास हमारे पास हैं इसी तरह कुछ अन्य पर्यावरण प्रेमी धान संरक्षक और कुछ किसानों के पाश बची होंगी। परन्तु बिगत 50 वर्षो में परम्परागत धानों का इतनी मात्रा में विलुप्त हो जाना भर दुखद नही है ? बल्कि दुखद तो यह भी है कि उनके द्वारा हजारों वर्षों से यहां की परिस्थितिकी में रच बस और ढल कर जो भी गुणधर्म अपने गुणसूत्रों में उनने विकसित किए थे वह भी उनके साथ पूरे के पूरे तिरोहित हो गए।

इन तमाम धानों में बहुत सारी  तो सुगन्धित किस्में भी थीं। कुछ तो इतनी सुगन्धित हुआ करती थीं कि अगर मुहल्ले में एक घर में उनका चावल बनता तो आस पास के घरों में भी अपनी सुवास बिखेर देता। दक्षिण भारत में इस तरह की कितनी सुगन्धित धानें थी ? भाषा की दुरूहता के कारण जान पाना कठिन है। पर (उत्तर मध्य भारत) में उनके नाम इस तरह थे जिनमें कुछ अभी भी संरक्षित हैं। उनके वह स्थान भी दिए जा रहे हैं जहां वह उगाई जाती थीं।

1- जीरा शंकर-- सिवनी- बालाघाट (मप्र)

2- चिंनोर      ---    "          "

3- लोंहदी      --     "         "

4-  दिलबक्सा--  छत्तीशगढ़

5- विष्णुभोग    --    "

6- बादशाह भोग--   "

7- जीरा फूल          "

8- बादशाह परसन   "

9- बाँसमती             "

10- बाँसमुखी         "

11- तुलसी वास     "

12- लोकटी          "

13- भैंस पाट      "

14- शमलिया भोग  "

15- भांटा फूल     --      सीधी ( मप्र)

16-  गोबिंद भोग --    बंगाल

17-    काली मूँछ--    डबरा ( ग्वालियर  ) मप्र।

18- काला नमक---   बिहार

19- तिलसान   -- परसमनिया पठार (सतना) मप्र।

20- कमल श्री  --     "                       "

21- धनाश्री     --      "                      "

22- जिलदार    --  रीवा तराई क्षेत्र

23- तिन दनिया -- श्याम गिरि कल्दा ( पन्ना) मप्र

00000

Saturday, July 6, 2024

आकांक्षी विकासखण्ड योजना में अजयगढ़ शामिल, 39 संकेतकों में होगा सुधार

  • आकांक्षी विकासखण्ड के 6 मानकों में 15 अगस्त तक संपूर्णता सुनिश्चित करने के निर्देश 
  • मातृ मृत्यु दर तथा शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप करने चलेगा विशेष अभियान  



पन्ना। भारत सरकार के नीति आयोग द्वारा देश भर में पाँच सौ विकासखण्डों को आकांक्षी विकासखण्ड योजना में शामिल किया गया है। इसमें पन्ना जिले का अजयगढ़ विकासखण्ड भी शामिल है। विभिन्न मानकों के आधार पर अन्य ब्लॉक की तुलना में पिछड़े इन आकांक्षी विकासखण्डों में निर्धारित सूचकांकों में अपेक्षित प्रगति के लिए 7 जनवरी 2023 को आकांक्षी विकासखण्ड कार्यक्रम शुरू किया गया है। इन विकासखण्ड में आगामी 30 सितम्बर तक संपूर्णता अभियान चलाकर निर्धारित 6 सूचकांकों में नियत लक्ष्य की शत-प्रतिशत पूर्ति की जाना है। जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं नोडल अधिकारी संघ प्रिय ने यह बात शनिवार को अजयगढ़ में संपूर्णता अभियान के शुभारंभ अवसर पर कही।

जिपं सीईओ ने कहा कि निर्धारित विभागों के 39 संकेतकों में सुधार के लिए आवश्यक कार्यवाही की जाएगी, जिसके तहत आगामी 15 अगस्त तक कम चुनौतीपूर्ण ६ संकेतकों में शत प्रतिशत सेचुरेशन के लिए कार्ययोजना तैयार की गई है। स्वतंत्रता दिवस पर ग्राम पंचायतों में आयोजित ग्रामसभा के दौरान शत प्रतिशत लक्ष्य की उपलब्धि का संकल्प पारित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आकांक्षी विकासखण्डों की गतिविधियों की नीति आयोग द्वारा नियमित मॉनीटरिंग की जा रही है।

उन्होंने संबंधित विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों से गंभीरतापूर्वक आवश्यक कार्यवाही के लिए सामूहिक प्रयास का आह्वान करते हुए कहा कि आकांक्षी विकासखण्ड में शिशुओं तथा गर्भवती महिलाओं की देखभाल, पूरक पोषण आहार के वितरण तथा संपूर्ण टीकाकरण का लक्ष्य शत-प्रतिशत प्राप्त करें। शिविर में महिलाओं एवं शिशुओं के स्वास्थ्य जाँच की उचित व्यवस्था करें। अभियान के दौरान संपूर्ण टीकाकरण का लक्ष्य पूरा करें। बच्चों तथा गर्भवती महिलाओं को सही समय पर टीके लगाना सुनिश्चित करें। इसका विवरण ऑनलाइन अनिवार्य रूप से दर्ज कराएं। 

महिला स्वसहायता समूहों को सशक्त बनाने के लिए उन्हें चिन्हित गतिविधियों में ऋण और अनुदान देने के साथ बैकवर्ड तथा फारवर्ड लिंकेज का लाभ दें। सभी स्वसहायता समूहों को रिवाल्विंग फण्ड जारी कराएं। जिला प्रबंधक आजीविका मिशन, महिला स्वसहायता समूहों की प्रगति की मॉनीटरिंग कर हर सप्ताह रिपोर्ट प्रस्तुत करें। लगातार प्रयास करने पर ही स्वसहायता समूहों का सशक्तिकरण होगा।

इसी तरह जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास गर्भवती महिलाओं का शत-प्रतिशत पंजीयन कराकर पूरक पोषण आहार का वितरण कराएं। शिशुओं के टीकाकरण तथा पोषण आहार वितरण की भी समुचित व्यवस्था करें। इसमें लापरवाही बरतने वाले के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही करें। महिलाओं और बच्चों की उचित देखभाल होने तथा समय पर योजनाओं का लाभ मिलने पर ही मातृ मृत्यु दर तथा शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होगी। उप संचालक कृषि खेती में सुधार के लिए किसानों को उन्नत बीज वितरित कराएं। आकांक्षी विकासखण्ड के सभी किसानों के खेतों की मिट्टी का परीक्षण कराकर उन्हें स्वाइल हेल्थ कार्ड प्रदान करें। प्रत्येक किसान को अभियान चलाकर स्वाइल हेल्थ कार्ड प्रदान करें।

इस मौके पर नगर परिषद अजयगढ़ की अध्यक्ष सीता गुप्ता ने कहा कि संबंधित विभागों के अधिकारी-कर्मचारीगण संपूर्णता अभियान का व्यापक प्रचार-प्रसार कर शिविर आयोजन और जनजागरूकता गतिविधियां आयोजित करें। समय-सीमा में लक्ष्यपूर्ति पर जोर दें। जनपद पंचायत सीईओ सतीश नागवंशी द्वारा स्वागत उद्बोधन दिया गया। कार्यक्रम का संचालन खण्ड पंचायत अधिकारी शिवनारायण गर्ग द्वारा किया गया। इस अवसर पर नीति आयोग के आर्थिक अन्वेषक कपिल सैनी सहित एसडीएम संजय नागवंशी, जिला कार्यक्रम अधिकारी उदल सिंह ठाकुर, अन्य जनप्रतिनिधिगण, अधिकारी-कर्मचारी व नागरिकगण उपस्थित रहे।

नाटक मंचन कर दिया संदेश

शुभारंभ कार्यक्रम के अवसर पर स्कूली छात्र-छात्राओं द्वारा आकर्षक नाटक की प्रस्तुति भी दी गई। इस दौरान कुपोषण दूर करने का संदेश दिया गया। साथ ही शिक्षा की महत्ता पर प्रकाश डाला गया। नाटक मंचन करने वाले विद्यार्थियों और चित्रकला प्रतियोगिता में अव्वल विद्यार्थियों को पुरस्कार का वितरण भी किया गया। कार्यक्रम स्थल पर विभिन्न विभागों द्वारा स्टॉल भी लगाए गए। अतिथियों द्वारा स्टॉल और प्रदर्शनी का अवलोकन कर आवश्यक जानकारी ली गई। इसके अलावा शपथ वॉल पर हस्ताक्षर कर संकल्प व्यक्त किया गया। अतिथियों द्वारा उपस्थितजनों को अभियान के सभी इंडिकेटर्स को संतृप्त करने में योगदान देने और प्रेरणादायक ब्लॉक व जिला बनाने की दिशा में कार्य करने की प्रतिज्ञा भी दिलाई गई।  

रैली निकाल कर किया जागरूक

संपूर्णता अभियान के शुभारंभ कार्यक्रम के समापन उपरांत जनपद पंचायत कार्यालय परिसर से माधवगंज तिराहा तक जागरूकता रैली निकाली गई। जिला पंचायत सीईओ एवं जनप्रतिनिधियों सहित संबंधित विभाग के मैदानी कर्मचारी रैली में शामिल हुए। इस दौरान आमजनों से अभियान अवधि में अधिकाधिक संख्या में निर्धारित विभागों की सेवाएं प्राप्त करने की अपील की गई। रैली वापस जनपद पंचायत कार्यालय परिसर पहुंचकर समाप्त हुई।

00000

Thursday, July 4, 2024

पोषण पुनर्वास केंद्र में कुपोषित मनीष को मिला पुनर्जीवन

  • मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में कुपोषण की समस्या आज भी गंभीर बनी हुई है। भीषण गरीबी से जूझ रहे आदिवासी परिवारों के मासूम कुपोषण के सर्वाधिक शिकार हैं। कुपोषण को ख़त्म करने के लिए सरकारी प्रयासों के बावजूद अभी अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी । दूरदराज के आदिवासी बहुल इलाकों में मासूम बच्चों के साथ-साथ महिलाएं भी कुपोषण की समस्या से जूझ रही हैं।  

दो माह पूर्व अप्रैल में जब बालक को पोषण पुनर्वास केंद्र पन्ना में भर्ती कराया गया था तब की है यह तस्वीर। 

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर दूर स्थित मनौर गांव का गुडियाना टोला कुपोषण और सिलिकोसिस पीड़ितों के लिए जाना जाता है। इस गांव में कई लोगों की मौत सिलिकोसिस से हुई है। तकरीबन ढाई सौ घरों वाली इस आदिवासी बस्ती में 30 से अधिक विधवा महिलाएं हैं। भीषण गरीबी, कुपोषण व बेरोजगारी इस गांव की सबसे बड़ी समस्या है। मनौर गांव  वर्षीय आदिवासी बालक मनीष भी गंभीर रूप से कुपोषित था, जिसे पिछले दिनों पोषण पुनर्वास केंद्र पन्ना में भर्ती कराया गया। 

पोषण पुनर्वास केंद्र पन्ना में पदस्थ रश्मि त्रिपाठी ने बताया कि जब इस बच्चे को भर्ती करने के लिए पन्ना लाया गया, उस समय वह गंभीर रूप से कुपोषित था। इसका वजन महज 4 किग्रा के आसपास था, लेकिन पोषण पुनर्वास केंद्र में समुचित देखरेख और इलाज होने पर 22 दिनों में ही इस बालक की हालत में सकारात्मक सुधार  हुआ और वजन 4 किग्रा से बढ़कर 6.5 किग्रा हो गया। इस बालक की मां ने बताया कि उन्हें बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी कि हमारा यह बच्चा बीमारी (कुपोषण) से उबर पायेगा। हम लोग पूरी तरह से उम्मीद खो चुके थे, लेकिन पन्ना में इलाज होने और पौष्टिक खाना मिलने से मनीष अब अच्छा हो गया है।  

अब हालत बेहतर 

कुपोषण की यह समस्या सिर्फ मनौर गांव में हो ऐसा नहीं है, यहाँ आसपास जितने भी आदिवासी गांव हैं वहां कुपोषित बच्चे बड़ी तादाद में हैं। रश्मि त्रिपाठी ने बताया कि मनौर के अलावा पन्ना से लगे बड़ौर, मनकी, जरधोवा व सुनहरा आदि ग्रामों से भी कुपोषित बच्चे पोषण पुनर्वास केंद्र में आते हैं। देवेंद्रनगर क्षेत्र के आदिवासी बहुल ग्रामों में भी कुपोषण की समस्या गंभीर है। आपने बताया कि पोषण पुनर्वास केंद्र पन्ना में भर्ती कराए गए गंभीर कुपोषित बच्चे मनीष आदिवासी को पुनर्जीवन मिला है। अब मनीष पूरी तरह से स्वस्थ है और उसका वजन बढ़ने लगा है। मनीष की मां जयंती पोषण पुनर्वास केंद्र पन्ना में हुए इलाज के उपरांत बालक मनीष के पूरी तरह स्वस्थ होने पर बेहद खुश है। जो बालक कुछ दिनों पूर्व तक अत्यधिक कमजोरी के कारण लाचार और बेबस पड़ा रहता था, अब वह खेलने लगा है तथा उसका वजन भी बढ़ रहा है। 

रश्मि त्रिपाठी बताती हैं कि मनौर गांव के बालक मनीष आदिवासी को अप्रैल माह में पन्ना पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया था, उस समय उसका वजन मात्र 4 किलो था। सरकार के मापदंड और पोषण पुनर्वास केंद्र की व्यवस्थाओं के अनुसार उसे डॉक्टरी इलाज और पोषित भोजन दिया गया। जिससे बालक का वजन बढ़ने लगा, अब वह पूरी तरह तंदुरुस्त है। मनीष आदिवासी का वजन बढ़ाकर 4 किलो से साढ़े 6.5 किलो हो गया है। आपने ने बताया कि जब पहली बार पोषण पुनर्वास केंद्र में मनीष को लाया गया, तब कुपोषित मनीष आदिवासी के शरीर में मात्र एक ग्राम हीमोग्लोबिन बचा था। रश्मि त्रिपाठी ने बताया कि डेढ़ वर्षीय मनीष आदिवासी को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पोषण पुनर्वास केंद्र लेकर आई थी, साथ में उसकी मां जयंती आदिवासी थी। बालक का पिता आलू गोड़ मजदूरी करने दिल्ली गया हुआ था, जब उसे खबर मिली कि उनका बच्चा मनीष स्वस्थ होकर खेलने लगा है तो पिता अपने को रोक नहीं पाया और वह दिल्ली से बच्चे को देखने मनौर पहुँच गया।  

सिविल सर्जन डॉक्टर आलोक गुप्ता ने बताया कि मनीष की तरह अक्सर कुपोषित बच्चे पोषण पुनर्वास केंद्र में आते हैं, जिन्हें हम पोषित भोजन और इलाज देते हैं। यहाँ आने वाले अधिकांश कुपोषित बच्चे तंदुरुस्त होते हैं, मनीष आदिवासी एक उदाहरण है जिसकी बीमारी दूर हुई है और वजन तेजी से बढा है। डॉ.  गुप्ता ने अपील की है कि बरसात के सीजन में बीमारियों के फैलने का खतरा रहता है, लिहाजा मातायें अपने बच्चों को साफ सुथरा रखें और गंदगी से बचायें।   यदि कोई भी दिक्कत होती है तो अस्पताल लाकर डॉक्टरी इलाज अवश्य करायें।

00000

Monday, July 1, 2024

जीव - जन्तु और उनका अपना मौसम विज्ञान

 

आज के इस तकनीकी और वैज्ञानिक युग में मौसम की सटीक भविष्यवाणी करने में वैज्ञानिकों से भले ही चूक हो जाय, लेकिन पशु-पक्षियों में अन्तर्निहित नैसर्गिक क्षमता उन्हें इस बात का अहसास करा देती है कि आने वाला मौसम कैसा रहेगा। पक्षियों के संकेतों खासकर बया पक्षी के घोसले को देखकर अतीत में लोग अनुमान लगा लेते थे कि इस साल बारिश कैसी होगी।                  

।। बाबूलाल दाहिया ।।

मनुष्य ने हर क्षेत्रों में तरक्की की है। उसके दो अदद फुर्सत के हाथ और एक अदद विलक्षण बुद्धि ने जल, थल, अंतरिक्ष किसी को भी अपनी दखलन्दाजी से महफूज नहीं छोड़ा। उसका विज्ञान 24 य 48 घण्टे पहले ही बता देता है कि " समुद्र में तेज हवाएं आएंगी इसलिए नाविक गहरे समुद्र में मछली मारने मत जाए ?" कब वर्षा होगी या बर्फ पड़ेगी ? यह सब सटीक मौसम सम्बंधित ज्ञान प्रसारित कर वह लोगों को सचेत करता रहता है। आज ही उसकी एक भविष्यवाणी है कि 2 जून तक उत्तर भारत के अनेक प्रदेशों में भारी बारिश होगी।

परन्तु एक विज्ञान पशु पक्षियों में भी है जो उनके गुण सूत्रों में ही पीढ़ियों से मौजूद है। और समय - समय पर उनकी छठी इंद्री उन्हें निर्देश देती रहती है कि "तुम्हे यह करना है और यह नही करना ?"  हमें याद है कि 60 के दशक तक हमारे गाँव में जब खूब घना जंगल था तब अगर पहाड़ के खेतों की तरफ जुताई होती तो हल में चल रहे हमारे बैल सूर्यास्त होने के 2-3 घण्टा पहले से ही कान खड़ा कर बार -बार रुक जाते। जैसे हल चलाने वालों को इशारा देकर समझा रहे हों कि  " भाई अब तू अपना हल ढील और शीघ्र ही यहां से हमें ले चल। क्योकि बाघ तेंदुए के बिचरण का समय होने वाला है ?" और फिर जैसे ही हल ढिलता तो वे वहां से तुरन्त रवाना हो जाते। रास्ते में कितनी भी अच्छी घास लगी हो वह मुँह तक न मारते। इसके विपरीत जब वह गांव के मैदानी भाग वाले खेतों में होते तो हल से ढिल जाने के पश्चात भी रात्रि में घन्टों घास चरते रहते।

बया नामक पक्षी को देखिए अगर वह पेड़ की टहनी के बिल्कुल किनारे अपना घोंसला बनाए तो उसका संकेत है कि " इस साल वर्षा कम होगी।"  किन्तु वही बया पक्षी अगर टहनी के मध्य घने पत्तों के नीचे घोंसला बनाता है तो वह अधिक वर्षा का परिचायक होता है। नदियों के किनारे बसने वाले केवट लोग जिनकी आजीविका ही नदियों से जुड़ी रहती है हमेशा यह गुरज्ञान वे बया पक्षी से ही लेते हैं कि " इस वर्ष उन्हें नदी से कितनी ऊँचाई पर अपनी झोपड़ी बनाकर रहना चाहिए ?"  उनका घोंसला जितनी ऊँचाई तक होता है उसका अर्थ यह होगा कि " इस वर्ष नदी में इससे ऊपर बाढ़ नही आएगी।"


इसी तरह एक पक्षी टिटिहरी है जो उड़ तो सकता है पर उसके पैरों की बनावट पेड़ों में बैठने लायक नही होती, अस्तु वह जब भी बैठेगा तो जमीन में ही और जमीन में ही अपने अंडे भी देता है। किन्तु साँप या कौआ आदि कोई उसके अंडे को खा न पाए ? इसलिए वह  सूखे नाले के ठीक मध्य में पाल बना अपने अंडे रखता है। उसका अपना रंग तो मटमैला होता ही है किन्तु उसके अंडों का रंग  भी नाले के बालू या मिट्टी की तरह ही मटमैले रंग का  होता है। इससे कोई जन्तु वनस्पति रहित उस सूने नाले के मध्य नहीं जाते और अंडे से सुरक्षित बच्चे आराम से निकल आते हैं। परन्तु वह अंडे तभी देगा जब उसके मष्तिष्क का कम्प्यूटर बता रहा होता है कि  " अंडे से बच्चे निकल कर उड़ने तक अभी नाले में बहने लायक तेज बारिश नहीं होगी ?"

इस तरह सभी जीव जन्तु प्रकृति के नियमों में बंधे हैं। अगर कोई उसके नियमों को धता बता मनमानी रास्ते से चल रहा है तो वह  मनुष्य ही है। अस्तु मनुष्य को इन तमाम जीव जन्तुओं से शिक्षा लेनी चाहिए कि कम से कम ऐसा काम न करे जो समस्त जीव जगत को ही खतरे में डाल दे।

00000