- पत्रकारिता में रवीश होने के लिये झंझावातों से गुजरकर निखरना पड़ता है
पत्रकारिता में रवीश हो जाना हर युवा पत्रकार की ख्वाहिश हो सकती है, लेकिन इस ख्वाहिश को हकीकत बनाना आसान नहीं होता। इसके लिए झंझावातों से गुजरना पड़ता है, न सहन होने वाली गालियों और धमकियों को भी सहज भाव से झेलना पड़ता है तब कहीं जाकर बेजुबानों को आवाज देने वाले तथा सत्ता सिंहासन में बैठे लोगों से तीखे सवाल पूछने वाले रवीश का जन्म होता है। नोबेल पुरस्कार का एशियाई संस्करण कहा जाने वाला रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिलने से आज रवीश कुमार के माध्यम से उन सभी पत्रकारों को संबल और प्रेरणा मिली है जो जन सरोकार वाली सकारात्मक पत्रकारिता के न सिर्फ पक्षधर हैं अपितु उसी राह पर चल भी रहे हैं। पत्रकारिता को गौरव और नया आयाम प्रदान करने वाले रवीश कुमार को इस उपलब्धि के लिए बधाई!
अवार्ड फाउंडेशन ने पुरस्कार के लिए चयनित किए गए पत्रकार रवीश कुमार के बारे में क्या कहा है पढ़ें -
पिछले कुछ सालों में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आजाद और ज़िम्मेदार पत्रकारिता के स्पेस को सिकुड़ते देखा है। इसके पीछे कई सारे कारण हैं। नई सूचना प्रोद्योगिकी के कारण बदलता मीडिया का स्वरूप, खबर और रायशुमारी का बाजारीकरण, सरकार का बढ़ता नियंत्रण और सबसे चिंताजनक है लोकप्रिय अधिनायकवाद और धार्मिक-जातीय-राष्ट्रवादी कट्टरपंथियों का अपने सतत विभाजनकारी, असहिष्णु और हिंसक तरीके से उभार।
इन बढ़ते खतरों के विरोध में भारत में एक अहम आवाज हैं टीवी पत्रकार रवीश कुमार। हिंदीभाषी राज्य बिहार के जितवापुर गांव में पैदा हुए और पले-बढ़े रवीश ने अपने शुरुआती रुझान के मुताबिक अपनी परास्नातक डिग्री दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास और पब्लिक अफेयर्स में ली। 1996 में उन्होंने एनडीटीवी ज्वाइन किया और एक फील्ड रिपोर्टर के तौर पर शुरुआत की। देश की 42 करोड़ हिंदी भाषी जनता के बीच एनडीटीवी ने जब अपना हिंदी चौनल एनडीटीवी-इंडिया लॉंच किया तो रवीश कुमार का अपना शो शुरु हुआ - प्राइम टाइम। आज एनडीटीवी के सीनियर एक्सीक्यूटिव एडीटर के तौर पर रवीश कुमार, देश के सबसे प्रभावशाली टीवी पत्रकारों में से एक हैं।
हालांकि उनकी सबसे बड़ी विशेषता वो पत्रकारिता है, जिसका वो प्रतिनिधित्व करते हैं। एक ऐसे मीडिया के माहौल में, जो एक दखलअंदाज सत्ता से डरा हुआ है, जो कट्टर राष्ट्रवादी ताकतों और ट्रोल्स से जहरीला हो गया है और फेक न्यूज से भरता जा रहा है और जहां बाजार की रेटिंग्स ने सारा दांव मीडिया शख्सियतों, पीत पत्रकारिता और दर्शकों को लुभाने वाली सनसनी पर लगा रखा है, रवीश पत्रकारिता की सभ्य, संतुलित और तथ्य आधारित रिपोर्टिंग शैली को ही पेशेवर पत्रकारिता बनाए रखने पर अड़े हुए हैं। एनडीटीवी पर उनका कार्यक्रम प्राइम टाइम ताजातरीन सामाजिक मुद्दों को उठाता है, गंभीर बैकग्राउंड रिसर्च करता है और मुद्दे को एक या उससे भी अधिक एपीसोड्स में एक बहुआयामी चर्चा के साथ सामने रखता है। इस कार्यक्रम में मुद्दे असल ज़िंदगी में आम लोगों की अनकही दिक्कतों की बात करते हैं - जो सीवर में नंगे हाथ-पैर उतरने वालों और रिक्शाचालकों से लेकर सरकारी कर्मचारियों और किसानों की तकलीफ से अर्थाभाव से जूझते सरकारी स्कूलों और अकर्मण्य रेलवे तंत्र तक हो सकते हैं। रवीश सरलता से गरीब जनता से संवाद करते हैं, खूब यात्राएं करते हैं और अपने दर्शकों से संपर्क में रहने के लिए सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल करते हैं और इसके जरिए भी अपने कार्यक्रम के लिए स्टोरीज तैयार करते हैं। जन-आधारित पत्रकारिता की लगातार कोशिश करते हुए, वो अपने न्यूजरूम को जनता का न्यूजरूम कहते हैं।
रवीश भी कई बार कुछ नाटकीयता का सहारा लेते हैं क्योंकि उनका मानना है कि ये प्रभावी तरीका है। उन्होंने 2016 में एक अनोखे ढंग के शोर में नाटकीय ढंग से बताया था कि कैसे टीवी न्यूज शोज में बहस का स्तर कितना गिर चुका है। शो की शुरुआत में स्क्रीन पर आते हुए रवीश बताते हैं कि कैसे टीवी न्यूज शोज गुस्सैल और कानफो़ड़ू आवाजों के अंधेरे जगत में बदल गए हैं। उसके बाद स्क्रीन काली हो जाती है और अगले एक घंटे तक स्क्रीन काली रहती है और पीछे से असल टीवी शोज के कर्कश ऑडियो, जहरीली धमंकियां, बौखलाहट भरी रट, साउंडबाइट्स और दुश्मन का खून बहाने को तत्पर भीड़ का शोर सुनाई देते रहते हैं। रवीश के मुताबिक उनके लिए हमेशा संदेश अहम है, जिसे दिया जाना ही चाहिए।
एक एंकर के तौर पर रवीश हमेशा भद्र हैं, संतुलित हैं और सूचना से सुसज्जित रहते हैं। वो अपने अतिथि पर हावी नहीं होते बल्कि उनको अपनी बात कहने का मौका देते हैं। वो चिल्लाते नहीं, लेकिन सबसे ऊंचे शक्ति की ज़िम्मेदारी भी गिनाते हैं और देश में सार्वजनिक-विमर्श में भूमिका के लिए मीडिया की भी निंदा कर डालते हैं, इस वजह से उनको लगातार अलग-अलग तरह की कट्टर शक्तियों की धमकिय़ों और खतरों का सामना करना पड़ता रहा है। इन सारी मुश्किलों और बाधाओं के बावजूद भी रवीश एक समीक्षात्मक, सामाजिक तौर पर जवाबदेह मीडिया के स्पेस को बढ़ाते रहने के अपने प्रयासों में लगे रहे हैं। एक ऐसी पत्रकारिता में भरोसा रखते हुए, जिसके केंद्र में आम लोग हैं, रवीश पत्रकार के तौर पर अपनी भूमिका को मूलभूत रूप से परिभाषित करते हैं, अगर आप लोगों की आवाज बन सकते हैं, तो ही आप पत्रकार हैं।
2019 के रेमन मैगसेसे पुरस्कार के लिए रवीश कुमार का चुनाव करते हुए, बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज उनके उच्चतम कोटि के तिक पत्रकारिता के प्रति अडिग समर्पण को ध्यान में रखता हैरू उनका नैतिक साहस जिसके दम पर वो सच के लिए खड़े होते हैं, उनकी ईमानदारी, आजादी और उनके उस सैद्धांतिक विश्वास को सम्मानित करता है, जिसके मुताबिक पत्रकारिता लोकतंत्र की उन्नति में अपना सबसे आदर्श लक्ष्य तब हासिल करती है, जब वो सच को साहस से बोलती है, बेआवाजों की आवाज को सत्ता के सामने ताकत देती है, लेकिन अपनी भद्रता नहीं खोती...
( रेमन मैगसेसे पुरस्कार की वेबसाइट से, अनुवाद - मयंक सक्सेना )
No comments:
Post a Comment