Sunday, December 31, 2023

शान्ति के टापू पन्ना जिले की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण जरूरी

  •  रत्नगर्भा धरती की प्राकृतिक संपदा पर गहरा रहे संकट के बादल
  •  जल, जंगल और जमीन पर टिकी हुई हैं माफियाओं की निगाहें

मंदिरों का शहर पन्ना, जिसमें प्रणामी धर्मावलम्बियों की आस्था का केन्द्र श्री प्राणनाथ जी मंदिर की झलक है।   


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। नए वर्ष के स्वागत और बीते साल की विदाई की तैयारियां हर तरफ जोर शोर के साथ चल रही हैं। ऐसे समय जब वर्ष 2023 गुजर चुका है और नया साल 2024 आने को है उस समय यह जरुरी है कि हम अपना मूल्यांकन करें। गुजरे साल में हमने क्या पाया और क्या खोया यह देखना भी आवश्यक है। हमारे जीवन की दिशा शांति और समृद्धि की ओर हमें ले जा रही है या हम अशांति और गरीबी की ओर ढकेले जा रहे हैं। यदि हमने इस पर विचार नहीं किया और उचित निर्णय नहीं लिया तो हमारे जीवन की दिशा कोई और तय करेगा जिसका परिणाम सुखद नहीं हो सकता।   

आइये हम विचार करें रत्नगर्भा मंदिरों की धरती पन्ना पर जिसका बड़ा ही गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले को शान्ति का टापू कहा जाता है, लेकिन शान्ति के इस टापू की सांस्कृतिक विरासत व प्राकृतिक अस्मिता पर अब संकट के बादल मंडराने लगे हैं। जल, जंगल व जमीन के लुटेरोंं की व्यवसायिक निगाहें यहां गड़ गई हैं, जो यहां की अकूत वन व खनिज संपदा का दोहन कर मालामाल होना चाहते हैं। इस अंचल के लोगों की खुशहाली के लिये प्राकृतिक समृद्धि के इस टापू को बचाना व उसका संरक्षण जरूरी है।

वन व खनिज संपदा से समृद्ध पन्ना जिले की वैभवपूर्ण सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विरासत रही है। इस अनूठी विरासत को सहेजने व संरक्षण से ही खुशहाली का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। लेकिन दुर्भाग्य से किसी भी राजनीतिक दल व सरकारों ने पन्ना जिले के समग्र विकास व यहां के लोगों की खुशहाली और समृद्धि के लिये योजना बनाने में कोई रूचि नहीं ली। जो योजनाएं बानी भी वे फाइलों में ही कैद होकर रह गईं, मूर्त रूप नहीं ले सकीं। परिणाम यह हुआ कि आजादी के बीते 7 दशक बाद भी यह जिला जस का तस है। 

पन्ना शहर का सुप्रसिद्ध बल्देव जी का भव्य मंदिर। 

अकूत वन संपदा व बेशकीमती रत्न हीरा की उपलब्धता के बावजूद यहां के वाशिंदे मूलभूत और बुनियादी सुविधाओं के लिये तरस रहे हैं। यहां की खनिज व वन संपदा पर कुछ मुट्ठी भर लोगों का कब्जा है जबकि अधिसंख्य आबादी गरीब और फटेहाल है। इनकी हैसियत व पहचान कुछ भी नहीं है, अपना व परिवार का भरण पोषण करने के लिये खदानों में हाड़तोड़ मेहनत करते हैं और सिलीकोसिस जैसी जानलेवा बीमारी की गिरफ्त में आकर असमय काल कवलित हो जाते हैं। 

यह कितनी विचित्र बात है कि जो लोग यहां की वन व खनिज संपदा के असली हकदार हैं, उन्हें ही उनके हक से बेदखल कर दिया गया है, उनकी नासमझी, अशिक्षा और भोलेपन का फायदा उठाकर अंगुलियों में गिने जा सकने वाले लोग इस जिले की संपदा को लूट रहे हैं और शासन व प्रशासन मूक दर्शक की भूमिका निभा रहा है। अब आगे और इस तरह से लूट की इजाजत नहीं दी जा सकती अन्यथा यहां की प्राकृतिक, सांस्कृतिक अस्मिता पर संकट के बादल और गहरा जायेंगे। 

पन्ना जिले की वन व खनिज सम्पदा जिस पर माफियाओं की गिद्ध द्रष्टि है। 

पन्ना जिले की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुये यहां के समग्र विकास का मॉडल एक समृद्ध प्राकृतिक सांस्कृतिक तीर्थ व परम्परागत वन क्षेत्र के रूप में ही हो सकता है। इसके लिये अलग समझ, आस्था व ईमानदारी की जरूरत है। मौजूदा समय यहां पर प्राकृतिक संसाधनों की जिस तरह से खुली लूट हो रही है उससे हर कोई वाकिफ है। व्यवसायिक निगाहें पन्ना जिले की जमीन, पानी, जैव विविधता को लूटने के लिये टिकी हुई हैं। 

कुछ प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग भी इस जिले में पैर जमा चुके हैं और कुछ जमाने की फिराक में हैं। इन्होंने यहां देखा कि इस जिले में जमीन बहुत सस्ती है और जमीन के भीतर अकूत खजाना है, जिसका दोहन आसानी से किया जा सकता है। उन्होंने यह विशेषता भी देखी कि प्रदूषण और कचरा फैलाने पर भी यहां कोई बोलने वाला नहीं है क्योंकि अधिसंख्य आबादी गरीब-गुरबा और असहाय है। 

इन्हीं गरीबों की जमीनें हथियाकर उन्हें भूमिहीन बनाने व दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर करने की साजिशें रची जा रही हैं। इस खतरनाक साजिश में सफेदपोश भी शामिल हैं। जिले के कई हिस्सों में सैकड़ों एकड़ जमीन पर व्यवसायिक घरानों ने कब्जा भी जमा लिया है। संकट के इस दौर में यह समझना जरूरी हो गया है कि पन्ना जिले की समृद्धि का रास्ता प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों और खनन से नहीं निकल सकता। 

जिले के विकास व यहां के वाशिंदों की खुशहाली के लिये समग्र योजना बनाने की महती आवश्यकता है, जिसके लिये सरकार व जनप्रतिनिधियों को विवश करना होगा। वनोपज व हस्त कौशल आधारित कुटीर, स्थानीय जैव विविधता का सम्मान करने वाले सघन वन, चारागाह, जैविक खेती, ईको टूरिज्म व शिक्षा की समृद्धि से ही समग्र विकास का सटीक रास्ता निकल सकता है।

अवैध उत्खनन से छलनी हो रहा केन नदी का सीना


नदी की धारा से रेत निकालती मशीन, आखिरकार जीवनदायिनी केन नदी को कब मिलेगा न्याय ?  

पन्ना जिले से प्रवाहित होने वाली जीवनदायिनी केन नदी का सीना रेत माफिया छलनी किये दे रहे हैं। नदी के प्रवाह क्षेत्र से प्रतिदिन सैकड़ों ट्रक अवैध रेत का उत्खनन होने से केन नदी का ईको सिस्टम तहस-नहस हो रहा है। प्रशासनिक आला अधिकारियों को अवैध रूप से चल रही रेत खदानों की जानकारी रहने के बावजूद भी केन सहित उसकी सहायक नदियों में रेत माफियाओं व उनके गुर्गों की हुकूमत चल रही है। बन्दूक की नोंक पर रेत की खुलेआम हो रही इस लूट से अंचल में भय और दहशत का माहौल है। 

ओवरलोड ट्रकों और डम्फरों की धमाचौकड़ी से अजयगढ़ क्षेत्र की सड़कें ध्वस्त हो रही हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि रेत माफियाओं की मनमानी और गुण्डागर्दी पर प्रभावी रोक लगाने के बजाय प्रशासनिक अधिकारी खानापूर्ति के लिये यदा कदा सिर्फ दिखावे के लिए ही कार्यवाही करते हैं। केन नदी में व्यापक पैमाने पर हो रहे रेत के उत्खनन पर यदि अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में अंचलवासियों को इसका पर्यावरणीय दुष्परिणाम भोगना पड़ सकता है।

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