- रहस्य, रोमांच और जुदाई की घटनाओं से परिपूर्ण पूरे बीस माह तक पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे दो सुपरस्टार बाघ शावकों की कहानी बेहद रोचक है। स्थानीय ग्रामीणों ने इन दोनों भाइयों का नाम हीरा और पन्ना रखा था, जो पर्यटकों के बीच भी खासा लोकप्रिय रहा है।
सुपरस्टार ब्रदर्स का रुतबा हासिल कर चुके दोनों भाई ( नर बाघ ) विश्राम करते हुए। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। बारिश के इस मौसम में जब प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व पर्यटकों के भ्रमण हेतु बंद हैं, उस समय मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व का अकोला बफर देश व प्रदेश के पर्यटकों का पसंदीदा स्थल बन चुका है। जुलाई के महीने में यहां चार सौ से अधिक पर्यटक गाड़ियां पहुंची हैं। बफर क्षेत्र का यह खूबसूरत जंगल 20 माह के हो चुके दो बाघ शावकों का घर रहा है, जहां वे पर्यटकों को सहजता के साथ विचरण करते नजर आते रहे हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व की बाघिन पी-234 की ये दोनों संतान यहां आने वाले पर्यटकों के बीच सुपर स्टार ब्रदर्स का रुतबा हासिल कर चुके हैं।
क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि अकोला बफर के जंगल में जन्मे दो नर बाघ पी234-31 व पी 234-32 जिन्हें हीरा और पन्ना के नाम से भी जाना जाता है, वे दोनों सुपरस्टार भाइयों के रूप में प्रसिद्ध हो चुके हैं। श्री शर्मा के मुताबिक बाघिन पी-234 ने नवंबर 2019 में तीन शावकों को जन्म दिया था। जिनमें दो नर व एक मादा शावक थी। लेकिन दुर्भाग्य से मादा शावक पी234-33 की ठीक दीपावली के दिन 14 नवंबर 2020 को सड़क हादसे में मौत हो चुकी है। बहन के अचानक इस तरह से बिछड़ जाने के बाद दोनों भाई एक साथ इस जंगल में रहते रहे हैं।
लगभग 7000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले अकोला बफर के जंगल को पन्ना-दमोह राज्य मार्ग दो भागों में विभाजित करता है। उत्तम कुमार शर्मा आगे बताते हैं कि कई गांव से घिरा यह क्षेत्र पूर्व में मवेशियों का चारागाह रहा है। लेकिन स्थानीय ग्रामीणों के समर्थन और सहयोग तथा प्रबंधन के प्रयासों से यह उजड़ा हुआ वन क्षेत्र बाघों का पसंदीदा रहवास बन चुका है। मौजूदा समय अकोला बफर में बाघिन पी-234 के अलावा दो अन्य प्रजनन करने वाली बाघिनों पी234-22 एवं पी234-23 के यहां रहने का दावा किया जा रहा है।
पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक ने बताया कि एनटीसीए और राज्य सरकार ने अक्टूबर 2020 में पन्ना लैंडस्केप के 14 बाघों को रेडियो कॉलर करने की अनुमति दी थी। भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के साथ आयोजित की जाने वाली यह एक शोध परियोजना है, जो पन्ना लैंडस्केप के बाघों की आवाजाही और प्रसार के बारे में डाटा एकत्र करेगी। पन्ना लैंडस्केप 15000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करता है, जो विंध्य पर्वतमाला में स्थित है। यह उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिला से मध्य प्रदेश के सागर, छतरपुर, दमोह, पन्ना व सतना जिले से होते हुए चित्रकूट उत्तर प्रदेश तक जाता है। जिन 14 बाघों को रेडियो कॉलर किया गया है, उनमें 4 बाघ कोर-बफर सीमा व चार बफर क्षेत्र में घूम रहे हैं। जबकि 6 बाघ लैंडस्केप में फैले हैं।
अब दोनों भाइयों को तलाशना होगा अपना इलाका
अकोला बफर के जंगल में 20 माह गुजार चुके दोनों भाइयों को अब अपने लिए उपयुक्त क्षेत्र की खोज में निकलना होगा। जहां वे स्वच्छंद रूप से विचरण करते हुए अपनी वंश वृद्धि कर सकें। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि नर बाघ के व्यवहार की समझ के मुताबिक यह अनुमान लगाया गया था कि दोनों भाई पीटीआर से बाहर पन्ना लैंडस्केप में कहीं अपने लिए क्षेत्र की तलाश करेंगे। क्योंकि पीटीआर में इनके लिए कोई भी ऐसा इलाका नहीं है जहां ये स्थापित हो सकें। अकोला बफर में पहले से ही तीन सशक्त नर बाघ टी-7, पी-111 और पी-234 (21) का कब्जा है। अब इस इलाके में किसी अतिरिक्त नर बाघ के लिए जगह नहीं बची। ऐसी स्थिति में या तो दोनों भाइयों को यहां स्थापित नर बाघों से संघर्ष करके उन्हें यहां से भगाना होगा या फिर अपने लिए नए इलाके की खोज में बाहर निकलना पड़ेगा।
दोनों में से एक बाघ का हो चुका है रेडियो कॉलर
नर बाघ पी 234-31 को रेडियो कॉलर पहनाते हुए पन्ना टाइगर रिज़र्व की रेस्क्यू टीम। |
अनुसंधान परियोजना के तहत दोनों भाइयों में से एक भाई पी234-31 का रेडियो कॉलर 6 जनवरी 21 को किया जा चुका है। चूंकि दोनों भाई हर समय एक साथ रहते रहे हैं, इसलिए इनमे से किसी का भी रेडियो कॉलर करना अत्यधिक मुश्किल व जोखिम भरा था। जब रेडियो कॉलर किया गया, उस दौरान मां (बाघिन) पी-234 ने अपने से अलग नहीं किया था। दूसरे भाई पी234-32 को भी 11 और 26 जनवरी 21 को कॉलर लगाने का प्रयास किया गया, लेकिन दोनों ही प्रयास विफल साबित हुए। दोनों भाइयों को अलग करने की हर संभव कोशिश हुई, लेकिन सफलता नहीं मिली। तब पार्क प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया कि पी234- 32 को रेडियो कॉलर नहीं लगाया जाए।
सात माह पूर्व दोनों हुए थे मां से अलग
पर्यटकों के चहेते बन चुके दोनों भाई दिसंबर 2020 तक मां के साथ ही नजर आते थे। लेकिन जनवरी 2021 के मध्य में पहली बार इन दोनों को मां (पी-234) से अलग देखा गया। पूरे 15 दिनों तक बाघिन पी-234 इनसे दूर नर बाघ टी-7 के साथ रही। तब तक दोनों भाई स्वतंत्र रूप से रहना व शिकार करना नहीं सीखा था। जाहिर है कि मां से अलग होने पर दोनों कई दिनों तक भूखे रहे। मैदानी वन कर्मचारियों के मुताबिक अचानक एक दिन बाघिन पी- 234 इनके पास पहुंची और शिकार करके उनके खाने की व्यवस्था कर फिर चली गई। फरवरी 2021 में मां पी- 234 फिर इनके पास लौटी। इस बीच दोनों भाई शिकार करने में दक्षता हासिल कर ली और स्वतंत्र रूप से शिकार करना शुरू कर दिया। तब से यह दोनों भाई अकोला बफर क्षेत्र में नियमित रूप से नजर आते रहे हैं। यही वजह है कि दोनों भाई पर्यटकों के न सिर्फ चहेता बन गए अपितु सुपर स्टार ब्रदर्स के रूप में भी प्रसिद्ध हो चुके हैं।
अब नए इलाके की खोज हेतु अलग हुए दोनों भाई
नये इलाके की तलाश में अकोला बफर क्षेत्र से अकेले बाहर जाता बाघ पी 234-31 |
वयस्क हो चुके दोनों भाई अब अपने लिए नए इलाके की खोज हेतु प्रथक-प्रथक दिशा में निकल चुके हैं। विगत 23 जुलाई को पी234-31 को पूर्व दिशा में अकेले जाते हुए देखा गया है। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 24 जुलाई को 20 माह का नर बाघ पी234-31 अकोला बफर की सीमा के बाहर उत्तर वन मंडल के जंगल में प्रवेश कर चुका था। इसके साथ दूसरा भाई पी234-32 नहीं देखा गया। क्योंकि दूसरे भाई को रेडियो कॉलर नहीं लगा, इसलिए उसका मूवमेंट किस दिशा व किस क्षेत्र में हुआ है इसकी जानकारी नहीं मिल सकी।
ऐसा प्रतीत होता है कि पूरे 20 माह तक एक साथ रहने वाले दोनों भाइयों ने अलग-अलग रास्ते में जाने का फैसला किया है। अब अकोला बफर में इन दोनों सुपरस्टार ब्रदर्स की गैरमौजूदगी पर्यटकों को जहां खल रही है, वहीं उनकी सतत निगरानी करने वाले वनकर्मी भी दु:खी हैं। क्योंकि इन दोनों को नियमित रूप से चहल कदमी करते हुए देखते थे, जिसके कारण इनसे आत्मिक लगाव हो गया था। लेकिन जंगल का यही नियम है, यहां अपना वजूद कायम रखने के लिए प्रत्येक नर बाघ को अपनी प्रथक टेरिटरी बनानी होती है और ये दोनों भाई अब यही करने निकले हैं।
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