- खुले जंगल में स्वच्छंद रूप से विचरण करने वाले बाघों के बीच टेरिटोरियल फाइट (आपसी संघर्ष) होने व अन्य प्राकृतिक कारणों से जख्मी होने पर क्या उनका उपचार दवाइयों से होना चाहिए? मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ पी-243 के जख्मी होने पर उठ रहे हैं सवाल? राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की क्या है गाइडलाइन तथा क्या कहते हैं वन अधिकारी, जानने के लिए पढ़ें यह रिपोर्ट।
पन्ना टाइगर रिजर्व का 6 वर्षीय युवा बाघ पी-243 जिसके माथे पर घाव साफ नजर आ रहा। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना (मध्यप्रदेश)। टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश के जंगलों में बाघों की संख्या बढऩे के साथ ही उनके बीच इलाके में आधिपत्य को लेकर आपसी संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी हैं। बाघों के बीच होने वाली इस टेरिटोरियल फाइट में कई बार बाघ बुरी तरह से जख्मी हो जाते हैं। अभी हाल ही में पन्ना टाइगर रिजर्व का 6 वर्षीय युवा बाघ पी-243 आपसी संघर्ष या फिर शिकार करते समय जख्मी हुआ है, इस बाघ के माथे में घाव है। यह वही प्रसिद्ध नर बाघ है जिसने चार अनाथ शावकों की परवरिश की है, जिनकी मां बाघिन पी-213(32) की मौत मई 2021 में हो गई थी। यह बाघ अनाथ शावकों का पिता है। पिछले दिनों पर्यटकों ने जब इस जख्मी बाघ की तस्वीर ली तब पता चला कि वह जख्मी है। इस जख्मी युवा नर बाघ का पार्क प्रबंधन द्वारा समुचित इलाज न कराए जाने से पर्यटकों व वन्यजीव प्रेमियों ने चिंता जाहिर की है।
सोशल मीडिया में बाघ की वायरल हुई फोटो तथा उठ रहे सवालों की ओर पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा का ध्यान आकृष्ट कराए जाने पर उन्होंने बताया कि जहां भी बाघों की पापुलेशन अधिक है, वहां उनके बीच आपसी संघर्ष होना स्वाभाविक है। श्री शर्मा बताते हैं कि मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व में लगभग 70 बाघ हैं तथा प्रतिवर्ष यहां 12 से 18 शावक जन्म लेते हैं। इन परिस्थितियों में सीमित जंगल होने के कारण नये युवा बाघ अपने लिए टेरिटरी स्थापित करने के लिए या तो बाहर निकल जाते हैं या फिर स्थापित बुजुर्ग बाघों से लड़ाई करते हैं। जब कोई बाघ या बाघिन आपसी संघर्ष या किल करते समय घायल हो जाते हैं तब उन परिस्थितियों में यह प्रश्न उठता है कि घायल हुए बाघ का उपचार करना चाहिए अथवा नहीं?
क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने प्रतिप्रश्न करते हुए कहा कि घायल बाघों का उपचार कर कहीं हम प्रकृति के विरुद्ध तो नहीं जा रहे? वे आगे बताते हैं कि जंगल का नियम है "सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट"। यानी जो फिट और ताकतवर है वहीं रह सकता है। जो अनफिट व कमजोर है उसे या तो मरना पड़ता है या फिर उस इलाके को छोड़कर भागना पड़ता है। घायल बाघ को दवाई देकर उपचार करके उसे बचाने का तात्पर्य यह होगा कि हम प्रकृति के विरुद्ध जा रहे हैं। वे बताते हैं कि बाघ को उपचार कर बचाने से प्रत्यक्ष लाभ यह होगा कि बाघों की संख्या स्थिर रहेगी परंतु हानि यह है कि युवा बाघ इलाके की तलाश में बाहर चले जाएंगे। असुरक्षित इलाकों में जाने से कई बार वे हादसों का शिकार हो जाते हैं, जैसा पन्ना के ही युवा नर बाघ पी-234 (31) हीरा के साथ पडोसी जिले सतना के वन परिक्षेत्र सिंहपुर अंतर्गत अमदरी बीट के जंगल में हुआ।
क्षेत्र संचालक श्री शर्मा बताते हैं कि टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र बाघों के रहवास हेतु सबसे उपयुक्त और सुरक्षित स्थान होता है। लेकिन सीमित वन क्षेत्र होने के कारण यहां बाघों की एक निश्चित संख्या ही रह सकती है। धारण क्षमता से अधिक संख्या होने पर अतिरिक्त बाघों को अपने लिए बाहर जाकर इलाके की खोज करनी होती है। इन परिस्थितियों में यदि हमने प्रकृति के विरुद्ध जाकर घायल व कमजोर बाघों को बचाया तो कोर क्षेत्र में वृद्ध बाघों की संख्या अधिक हो जाने से शावकों की जन्मदर व संख्या धीरे-धीरे कम होना प्रारंभ हो जाएगी। इतना ही नहीं अच्छा और मजबूत "जीन" कोर क्षेत्र से बाहर चला जाएगा।
क्या कहती है एनटीसीए की गाइडलाइन
बाघ अभयारण्यों व संरक्षित क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने जो गाइडलाइन निर्धारित की है उसके मुताबिक बाघ जैसे वन्य जीवों के प्राकृतिक रहवास स्थलों में संतुलन को कायम रखने तथा उनके लिए उपयुक्त परिस्थितियों को बढ़ावा देने के लिए न्यूनतम मानव हस्तक्षेप जरूरी है। सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट के द्वारा प्राकृतिक तरीके से वृद्ध व कमजोर आबादी का उन्मूलन होता है। इसलिए वृद्ध, कमजोर व घायल जंगली बाघों को कृत्रिम भोजन देकर प्राकृतिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। ऐसा करने से मानव वह वन्यजीवों के बीच संघर्ष के हालात बन सकते हैं। वृद्ध व अक्षम जंगली बाघों की लंबी उम्र सुनिश्चित करने के लिए कृत्रिम आहार देना वन्य जीव संरक्षण के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जाता है, इसलिए ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। सिर्फ विशेष परिस्थितियों में जब किसी वृद्ध या घायल बाघ से मानव बाघ संघर्ष के हालात बने, तो इन परिस्थितियों में ऐसे बाघों को किसी मान्यता प्राप्त चिडय़िाघर में पुनर्वास किया जाना चाहिए।
पूर्व में बाघों का किया जाता रहा है उपचार
मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व पन्ना, छतरपुर व दमोह जिले के 1598 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसका कोर क्षेत्र 576 वर्ग किलोमीटर व बफर क्षेत्र 1022 वर्ग किलोमीटर है। वर्ष 2009 में यह टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था, तब यहां बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई थी। कान्हा, बांधवगढ़ व पेंच टाइगर रिजर्व से संस्थापक बाघ व बाघिनों को यहां लाया गया। इस योजना को यहां चमत्कारिक सफलता मिली और पन्ना टाइगर रिजर्व फिर बाघों से आबाद हो गया।
बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत पूर्व में यहां बाघों की जहां चौबीसों घंटे सघन मॉनिटरिंग की जाती रही है, वहीं जख्मी होने या अन्य कोई समस्या आने पर ट्रेंकुलाइज कर उनका उपचार भी किया जाता था। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि पूर्व में यहां बाघ ढूंढने पर भी देखने को नहीं मिलते थे लेकिन अब एक ही सफारी यात्रा में पर्यटकों को कई बाघ दिख जाते हैं।
पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि यह सच है कि पूर्व में घायल बाघों का उपचार किया जाता था। लेकिन उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए यह जरूरी था, ताकि बाघों को बचाया जा सके। लेकिन अब हालात दूसरे हैं, हम घायल बाग पी-243 पर नजर रख रहे हैं लेकिन उसे कृत्रिम रूप से किसी भी प्रकार का इलाज नहीं दिया जा रहा। हम इंतजार कर रहे हैं कि बाघ का घाव प्राकृतिक रूप से भर जाए।
जंगल में सम्मानजनक मौत या फिर कैदी जैसा जीवन
पन्ना टाइगर रिजर्व के नर बाघ पी-243 के जख्मी होने पर यह बहस शुरू हो गई है कि उसका एंटीबायोटिक और दर्द निवारक दवाओं से उपचार किया जाना चाहिए या प्राकृतिक रूप से जंगल में विचरण करते हुए घाव के ठीक होने का इंतजार करना चाहिए? क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा का कहना है कि खुले जंगल में पले बढ़े जंगली बाघ को जंगल में ही सम्मान पूर्वक रहने देना है या फिर उसे बचाने के जोश व उत्साह में उसे कैदी जैसा जीवन जीने को विवश करना है, इस पर विचार किया जाना आवश्यक हो गया है। वे कहते हैं कि घायल बाघ का दवाओं से उपचार करने का मतलब उसके नैसर्गिक जीवन में खलल डालना तथा उसे सीमित दायरे (चिडय़िाघर) में रहने को मजबूर करना है। ऐसी स्थिति में यदि कोई बाघ अपनी प्राकृतिक जीवन शैली में घायल होता है (मानवीय दखलंदाजी से नहीं) तो क्या उसका इलाज दवाओं से किया जाना चाहिए?
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