- प्रणामी धर्मावलम्बियों के सबसे बड़े तीर्थ पन्ना धाम में पिछले लगभग चार सौ सालों से पृथ्वी परिक्रमा करने की परंपरा चली आ रही है जो आज भी जारी है। शरद पूर्णिमा के ठीक एक माह बाद कार्तिक पूर्णिमा को पृथ्वी परिक्रमा होती है, जिसमें देश के विभिन्न प्रान्तों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। समूचे विश्व में भारत इकलौता देश है जहाँ सदियों पूर्व बसुधैव कुटुंबकम की उद्घोषणा की गई थी। यह इस देश की खूबसूरती है कि यहाँ पर विविध धर्मावलम्बियों की धार्मिक आस्थाओं व परम्पराओं को न सिर्फ पूरा सम्मान मिलता है अपितु उन्हें पल्लवित और पुष्पित होने का अवसर व अनुकूल वातावरण भी सहज उपलब्ध होता है। यही वजह है कि हमारे देश में हर धर्म और हर जाति के लोगों की अलग-अलग परंपराएं और मान्यताएं मौजूद हैं। ऐसी ही एक अनूठी परंपरा बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना शहर में लगभग चार सौ सालों से चली आ रही है। प्राचीन भव्य मंदिरों के इस शहर पन्ना में प्रणामी धर्मावलम्बियों की आस्था का केंद्र श्री प्राणनाथ जी का मंदिर स्थित है, जो प्रणामी धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है।
इसी प्रणामी संप्रदाय के अनुयाई और श्रद्धालु शरद पूर्णिमा के ठीक एक माह बाद कार्तिक पूर्णिमा को देश के कोने कोने से यहां पहुंचते हैं। यहाँ किलकिला नदी के किनारे व पहाड़ियों के बीचों बीच बसे समूचे पन्ना नगर के चारों तरफ परिक्रमा लगाकर भगवान श्री कृष्ण के उस स्वरूप को खोजते हैं, जो कि शरद पूर्णिमा की रासलीला में उन्होंने देखा और अनुभव किया है। अंतर्ध्यान हो चुके प्रियतम प्राणनाथ को उनके प्रेमी सुन्दरसाथ भाव विभोर होकर नदी, नालों, पहाड़ों तथा घने जंगल में हर कहीं खोजते हैं। सदियों से चली आ रही इस परम्परा को प्रणामी धर्मावलम्बी पृथ्वी परिक्रमा कहते हैं।
मंदिरों की नगरी पन्ना में मंगलवार 8 नवम्बर को पृथ्वी परिक्रमा में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु (सुन्दरसाथ) पन्ना पहुँचे, जिससे आज पूरे दिन मंदिरों के शहर पन्ना में पृथ्वी परिक्रमा की धूम रही। पूरे भक्ति भाव और उत्साह के साथ पन्ना पहुंचे ये श्रद्धालु परम्परानुसार पृथ्वी परिक्रमा में भाग लिया। चापा छत्तीसगढ़ से पन्ना धाम पहुंचीं कमला शर्मा (60 वर्ष) ने बताया कि पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होने से जो शांति व सुकून मिलता है, उसे कह पाना कठिन है। वे बताती हैं कि चौथी बार पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होने पन्ना आई हैं। यह अनूठी परम्परा हमें प्रकृति से प्रेम करने की सीख देती है।
हरकुंडी गांव गुजरात से पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होने सपरिवार पन्ना आये रश्मि भाई भट्ट (67 वर्ष) बताते हैं कि पन्ना पुण्य भूमि है और इस भूमि की परिक्रमा करना सौभाग्य की बात है। नदी, नालों, पहाड़ों और घने जंगलों से होकर पूरे पन्ना धाम की परिक्रमा गाते-बजाते करना सुखद अनुभव है। कार्तिक पूर्णिमा को सुबह 6 बजे से ही सैकड़ों फिट गहरे कौआ सेहा से लेकर किलकिला नदी के प्रवाह क्षेत्र व चौपड़ा मंदिर हर कहीं प्राणनाथ प्यारे के जयकारे सुनाई देते हैं। रोमांचित कर देने वाले आस्था एवं श्रद्धा के इस सैलाब से पवित्र नगरी पन्ना का कण-कण प्रेम और आनंद से सराबोर हो उठता है।
मालुम हो कि प्रकृति के निकट रहने तथा विश्व कल्याण व साम्प्रदायिक सद्भाव की सीख देने वाली इस अनूठी परम्परा को प्रणामी संप्रदाय के प्रणेता महामति श्री प्राणनाथ जी ने आज से लगभग 398 साल पहले शुरू किया था, जो आज भी अनवरत् जारी है। इस परम्परा का अनुकरण करने वालों का मानना है कि पृथ्वी परिक्रमा से उनको सुखद अनुभूति तथा शान्ति मिलती है। महामति श्री प्राणनाथ जी मंदिर पन्ना के पुजारी देवकरण त्रिपाठी ने बताया कि पवित्र नगरी पन्ना में कार्तिक पूर्णिमा को हजारों की संख्या में देश के कोने-कोने से आये सुंदरसाथ व स्थानीय जनों द्वारा पृथ्वी परिक्रमा करने की परंपरा है, जिसका निर्वहन आज भी हो रहा है। उन्होंने बताया कि कार्तिक शुक्ल की पूर्णमासी पर प्रात: 6 बजे से चारों मंदिरों की परिक्रमा के साथ पृथ्वी परिक्रमा का शुभारम्भ होता है।
प्रणामी संप्रदाय की इस अनूठी परंपरा के बारे में पं. दीपक शर्मा (55 वर्ष) बताते हैं कि श्री प्राणनाथ जी मंदिर से पृथ्वी परिक्रमा की शुरुवात सुबह ६ बजे से हो जाती है जो देर रात्रि तक चलती रहती है। श्री त्रिपाठी बताते हैं कि सर्वप्रथम आये हुये श्रद्धालु पन्ना नगर में स्थित श्री प्राणनाथ जी मंदिर, गुम्मट जी मंदिर, श्री बंगला जी मंदिर, सद्गुरू धनी देवचन्द्र जी मंदिर, बाईजूराज राधिका मंदिर में पूरी श्रद्धा के साथ सिर नवाते हैं, तदुपरांत धूमधाम के साथ यात्रा शुरू करते हैं। पूरी परिक्रमा लगभग 30 किमी. की हो जाती है, जिसमें महिला, पुरुष, बच्चे व बुजुर्ग भी बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ शामिल होते हैं। मंदिर ट्रस्ट व नगरवासियों द्वारा परिक्रमा मार्ग पर जगह - जगह चाय, पानी व खाने का इंतजाम रहता है जिसे श्रद्धालु प्रसाद की तरह ग्रहण करते हैं। परिक्रमा में शामिल लोग रास्ते में बच्चों को टाफियां व मिठाई आदि भी बड़े प्रेम भाव से बांटते हैं तथा गरीबों को पैसा व सामग्री भेंट करते हैं।
प्रणामी संप्रदाय में श्रद्धालुओं को सुन्दरसाथ कहा जाता है
हजारों की संख्या में श्रद्धालु जिन्हे प्रणामी संप्रदाय में सुन्दरसाथ कहा जाता है वे नाचते गाते, झूमते और तरह - तरह के वाद्य यन्त्र बजाते हुए चलते हैं। जंगल के रास्ते से होते हुये श्रद्धालुओं की टोलियां जब प्राकृतिक व रमणीक स्थल चौपड़ा मंदिर पहुंचतीं तो यहां पर प्रकृति के साथ संबंध स्थापित करते हुये कुछ देर विश्राम कर प्रसाद आदि ग्रहण करतीं हैं और फिर अपनी अल्प थकान को मिटाकर आगे की यात्रा पर निकल पड़तीं हैं। पं. दीपक शर्मा बताते हैं कि इस साल पृथ्वी परिक्रमा में गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश के दमोह, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, इन्दौर व उज्जैन आदि जिलों से 15 से 20 हजार सुन्दरसाथ पन्ना पहुंचे हैं। पडोसी देश नेपाल से भी अनेकों सुन्दरसाथ पृथ्वी परिक्रमा में भाग लेने पन्ना धाम आये हैं।
नेपाल (ललितपुर) से पन्ना आये उद्धव खांडकर (60 वर्ष) ने बताया कि उनकी पत्नी ईश्वरी खांडकर भी साथ में आई हैं। पृथ्वी परिक्रमा में शामिल होने का यह उनका दूसरा अवसर है, यहाँ आकर शांति और आनंद की अनुभूति होती है। श्री खांडकर बताते हैं कि इस वर्ष नेपाल से बड़ी संख्या में लोग आये हैं जबकि उनकी टोली में 33 लोग हैं।
नदी, पहाड़ और गहरे सेहा से होकर गुजरते हैं श्रद्धालु
पृथ्वी परिक्रमा में नदी, पहाड़ और गहरे सेहा से श्रद्धालु जब जयकारे लगाते हुए गुजरते हैं, तब यह नजारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है। कौआ सेहा की गहराई, चारो तरफ फैली हरीतिमा तथा जल प्रपात का कर्णप्रिय संगीत और जहाँ-तहाँ चट्टानों पर बैठकर विश्राम करती श्रद्धालुओं की टोली, सब कुछ बहुत ही मनभावन लगता है। जानकारों के मुताबिक इस परिक्रमा की दूरी करीब 27 से 30 किलोमीटर के आसपास होती है। पहाड़ी को पार करते हुये मदार साहब, धरमसागर व अघोर होकर यह विशाल कारवां खेजड़ा मंदिर पहुंचता है। यात्रा में रंग विरंगे कपड़े पहने मुस्कुराते बच्चे, सुन्दर परिधानों से सुसज्जित महिलायें, युवा, युवतियाँ व वृद्धजन अपने-अपने विशिष्ट अंदाज में दिखते हैं। खेजड़ा मंदिर पहुंचने पर वहां महाआरती व प्रसाद वितरण होता है। तत्पश्चात सभी सुन्दरसाथ उसी स्थान पर पहुंचते हैं जहां से परिक्रमा शुरू की गई थी।
देखने जैसा है कौवा सेहा का अप्रतिम सौंदर्य
पन्ना शहर से बमुश्किल तीन-चार किलोमीटर दूर स्थित कौवा सेहा का अप्रतिम सौंदर्य देखने जैसा है। यदि इस प्राकृतिक सेहा तक सुगम मार्ग व यहां सुरक्षा के जरूरी इंतजाम करा दिए जाएं तो मानसून सीजन के अलावा भी पूरे वर्ष भर यह स्थल पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है। गुजरात से आये रश्मि भाई भट्ट बताते हैं कि प्रकृति की इस अद्भुत रचना के सौंदर्य को यहां जाकर ही अनुभव किया जा सकता है। किलकिला नदी का पानी इस गहरे सेहा में जब सुमधुर संगीत के साथ सैकड़ों फीट नीचे गिरता है, तो उसे सुनकर मन प्रफुल्लित हो जाता है। कौवा सेहा के चारों तरफ पृथ्वी परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं का हुजूम नजर आता है। राकेश शर्मा (58 वर्ष) निवासी पन्ना बताते हैं कि सामान्य दिनों में यहां सन्नाटा पसरा रहता है और झरने के सुुुमधुर संगीत के बीच वृक्षों में कुल्हाड़ी चलने की आवाजें गूंजती हैं, जिससे यहां का माहौल बेहद डरावना प्रतीत होने लगता है। यदि यह स्थल विकसित हो जाए तो अवैध कटाई सहित अन्य गैरकानूनी गतिविधियों पर जहां रोक लग सकती है, वहीं उपेक्षा के चलते उजड़ रहा यह स्थल अप्रतिम सौंदर्य को पुन: प्राप्त हो सकता है।
किलकिला नदी को प्रणामी संप्रदाय की कहा जाता है गंगा
पन्ना शहर के निकट से प्रवाहित होने वाली किलकिला नदी जंगल से गुजर कर कौवा सेहा में गिरती है और आगे चलकर केन नदी में मिल जाती है। प्रणामी संप्रदाय में किलकिला नदी का वही महत्व है जो हिंदुओं के लिए गंगा नदी का है। यही वजह है कि किलकिला को प्रणामी संप्रदाय की गंगा कहा जाता है। लेकिन यह नदी इस कदर दूषित और विषाक्त है कि इसका पानी हाथ धोने के लायक भी नहीं है। पन्ना शहर की पूरी गंदगी इस नदी में पहुंचती है, जो इसे विषाक्त बनाए हुए है। नदी के प्रवाह क्षेत्र में दोनों तरफ कचरा और पॉलिथीन के ढेर जमा हैं। नदी किनारे स्थित वृक्षों के तने पॉलीथिन से पटे हुए हैं।
रश्मि भाई भट्ट कहते हैं कि पन्ना के विकास व सौंदर्यीकरण की बात करने वाले जनप्रतिनिधि व अधिकारी यदि किलकिला नदी को साफ स्वच्छ बनाने व कौवा सेहा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में सार्थक पहल करें तो निश्चित ही यह पन्ना शहर पर न सिर्फ बहुत बड़ा उपकार होगा अपितु इससे रोजगार के नए अवसरों का सृजन व पर्यावरण का संरक्षण भी होगा।
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