Sunday, December 31, 2023

शान्ति के टापू पन्ना जिले की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण जरूरी

  •  रत्नगर्भा धरती की प्राकृतिक संपदा पर गहरा रहे संकट के बादल
  •  जल, जंगल और जमीन पर टिकी हुई हैं माफियाओं की निगाहें

मंदिरों का शहर पन्ना, जिसमें प्रणामी धर्मावलम्बियों की आस्था का केन्द्र श्री प्राणनाथ जी मंदिर की झलक है।   


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। नए वर्ष के स्वागत और बीते साल की विदाई की तैयारियां हर तरफ जोर शोर के साथ चल रही हैं। ऐसे समय जब वर्ष 2023 गुजर चुका है और नया साल 2024 आने को है उस समय यह जरुरी है कि हम अपना मूल्यांकन करें। गुजरे साल में हमने क्या पाया और क्या खोया यह देखना भी आवश्यक है। हमारे जीवन की दिशा शांति और समृद्धि की ओर हमें ले जा रही है या हम अशांति और गरीबी की ओर ढकेले जा रहे हैं। यदि हमने इस पर विचार नहीं किया और उचित निर्णय नहीं लिया तो हमारे जीवन की दिशा कोई और तय करेगा जिसका परिणाम सुखद नहीं हो सकता।   

आइये हम विचार करें रत्नगर्भा मंदिरों की धरती पन्ना पर जिसका बड़ा ही गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले को शान्ति का टापू कहा जाता है, लेकिन शान्ति के इस टापू की सांस्कृतिक विरासत व प्राकृतिक अस्मिता पर अब संकट के बादल मंडराने लगे हैं। जल, जंगल व जमीन के लुटेरोंं की व्यवसायिक निगाहें यहां गड़ गई हैं, जो यहां की अकूत वन व खनिज संपदा का दोहन कर मालामाल होना चाहते हैं। इस अंचल के लोगों की खुशहाली के लिये प्राकृतिक समृद्धि के इस टापू को बचाना व उसका संरक्षण जरूरी है।

वन व खनिज संपदा से समृद्ध पन्ना जिले की वैभवपूर्ण सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विरासत रही है। इस अनूठी विरासत को सहेजने व संरक्षण से ही खुशहाली का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। लेकिन दुर्भाग्य से किसी भी राजनीतिक दल व सरकारों ने पन्ना जिले के समग्र विकास व यहां के लोगों की खुशहाली और समृद्धि के लिये योजना बनाने में कोई रूचि नहीं ली। जो योजनाएं बानी भी वे फाइलों में ही कैद होकर रह गईं, मूर्त रूप नहीं ले सकीं। परिणाम यह हुआ कि आजादी के बीते 7 दशक बाद भी यह जिला जस का तस है। 

पन्ना शहर का सुप्रसिद्ध बल्देव जी का भव्य मंदिर। 

अकूत वन संपदा व बेशकीमती रत्न हीरा की उपलब्धता के बावजूद यहां के वाशिंदे मूलभूत और बुनियादी सुविधाओं के लिये तरस रहे हैं। यहां की खनिज व वन संपदा पर कुछ मुट्ठी भर लोगों का कब्जा है जबकि अधिसंख्य आबादी गरीब और फटेहाल है। इनकी हैसियत व पहचान कुछ भी नहीं है, अपना व परिवार का भरण पोषण करने के लिये खदानों में हाड़तोड़ मेहनत करते हैं और सिलीकोसिस जैसी जानलेवा बीमारी की गिरफ्त में आकर असमय काल कवलित हो जाते हैं। 

यह कितनी विचित्र बात है कि जो लोग यहां की वन व खनिज संपदा के असली हकदार हैं, उन्हें ही उनके हक से बेदखल कर दिया गया है, उनकी नासमझी, अशिक्षा और भोलेपन का फायदा उठाकर अंगुलियों में गिने जा सकने वाले लोग इस जिले की संपदा को लूट रहे हैं और शासन व प्रशासन मूक दर्शक की भूमिका निभा रहा है। अब आगे और इस तरह से लूट की इजाजत नहीं दी जा सकती अन्यथा यहां की प्राकृतिक, सांस्कृतिक अस्मिता पर संकट के बादल और गहरा जायेंगे। 

पन्ना जिले की वन व खनिज सम्पदा जिस पर माफियाओं की गिद्ध द्रष्टि है। 

पन्ना जिले की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुये यहां के समग्र विकास का मॉडल एक समृद्ध प्राकृतिक सांस्कृतिक तीर्थ व परम्परागत वन क्षेत्र के रूप में ही हो सकता है। इसके लिये अलग समझ, आस्था व ईमानदारी की जरूरत है। मौजूदा समय यहां पर प्राकृतिक संसाधनों की जिस तरह से खुली लूट हो रही है उससे हर कोई वाकिफ है। व्यवसायिक निगाहें पन्ना जिले की जमीन, पानी, जैव विविधता को लूटने के लिये टिकी हुई हैं। 

कुछ प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग भी इस जिले में पैर जमा चुके हैं और कुछ जमाने की फिराक में हैं। इन्होंने यहां देखा कि इस जिले में जमीन बहुत सस्ती है और जमीन के भीतर अकूत खजाना है, जिसका दोहन आसानी से किया जा सकता है। उन्होंने यह विशेषता भी देखी कि प्रदूषण और कचरा फैलाने पर भी यहां कोई बोलने वाला नहीं है क्योंकि अधिसंख्य आबादी गरीब-गुरबा और असहाय है। 

इन्हीं गरीबों की जमीनें हथियाकर उन्हें भूमिहीन बनाने व दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर करने की साजिशें रची जा रही हैं। इस खतरनाक साजिश में सफेदपोश भी शामिल हैं। जिले के कई हिस्सों में सैकड़ों एकड़ जमीन पर व्यवसायिक घरानों ने कब्जा भी जमा लिया है। संकट के इस दौर में यह समझना जरूरी हो गया है कि पन्ना जिले की समृद्धि का रास्ता प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों और खनन से नहीं निकल सकता। 

जिले के विकास व यहां के वाशिंदों की खुशहाली के लिये समग्र योजना बनाने की महती आवश्यकता है, जिसके लिये सरकार व जनप्रतिनिधियों को विवश करना होगा। वनोपज व हस्त कौशल आधारित कुटीर, स्थानीय जैव विविधता का सम्मान करने वाले सघन वन, चारागाह, जैविक खेती, ईको टूरिज्म व शिक्षा की समृद्धि से ही समग्र विकास का सटीक रास्ता निकल सकता है।

अवैध उत्खनन से छलनी हो रहा केन नदी का सीना


नदी की धारा से रेत निकालती मशीन, आखिरकार जीवनदायिनी केन नदी को कब मिलेगा न्याय ?  

पन्ना जिले से प्रवाहित होने वाली जीवनदायिनी केन नदी का सीना रेत माफिया छलनी किये दे रहे हैं। नदी के प्रवाह क्षेत्र से प्रतिदिन सैकड़ों ट्रक अवैध रेत का उत्खनन होने से केन नदी का ईको सिस्टम तहस-नहस हो रहा है। प्रशासनिक आला अधिकारियों को अवैध रूप से चल रही रेत खदानों की जानकारी रहने के बावजूद भी केन सहित उसकी सहायक नदियों में रेत माफियाओं व उनके गुर्गों की हुकूमत चल रही है। बन्दूक की नोंक पर रेत की खुलेआम हो रही इस लूट से अंचल में भय और दहशत का माहौल है। 

ओवरलोड ट्रकों और डम्फरों की धमाचौकड़ी से अजयगढ़ क्षेत्र की सड़कें ध्वस्त हो रही हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि रेत माफियाओं की मनमानी और गुण्डागर्दी पर प्रभावी रोक लगाने के बजाय प्रशासनिक अधिकारी खानापूर्ति के लिये यदा कदा सिर्फ दिखावे के लिए ही कार्यवाही करते हैं। केन नदी में व्यापक पैमाने पर हो रहे रेत के उत्खनन पर यदि अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में अंचलवासियों को इसका पर्यावरणीय दुष्परिणाम भोगना पड़ सकता है।

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Friday, December 29, 2023

बर्ड वाचिंग (Bird Watching) के लिए जन्नत है पन्ना का जंगल

  •  तीन सौ से भी अधिक प्रजातियों के रंग-बिरंगे पक्षी मौजूद
  •  प्रवासी पक्षी व वल्चर बने पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र

नन्हे पर्यटक पन्ना के जंगल में रंग विरंगे पक्षियों व प्रकृति के अद्भुत नजारों को देखते हुए।

 ।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बर्ड वॉचिंग (Bird Watching) के शौकीनों के लिए पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल किसी जन्नत से कम नहीं है । लगभग 543 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस खूबसूरत जंगल तथा बीचों-बीच प्रवाहित होने वाली केन नदी में तीन सौ से भी अधिक प्रजातियों के रंग-बिरंगे पक्षी देखने को मिलते हैं। टाईगर रिजर्व के भ्रमण हेतु आने वाले पर्यटको में बर्ड वॉचिंग के शौकीनों की संख्या बढ़ी है। पक्षियों पर रिसर्च कर रहे विश्व स्तर के कई पक्षी विशेषज्ञ इन दिनों यहां डेरा डाले हुए हैं। 

गौरतलब है कि अभी तक पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र टाईगर हुआ करता था। पार्क भ्रमण के दौरान पर्यटकों को यदि टाईगर देखने को नहीं मिला तो वे बड़े निराश होकर यहां से जाते थे। पार्क प्रबंधन व मैदानी अमला भी सिर्फ टाईगर को लोकेट करने में ही लगा रहता था लेकिन अब प्रबन्धन व पर्यटक दोनों का ही रूझान बदला है। टाईगर के अलावा भी अब पर्यटक अन्य दूसरे वन्य प्राणियों, पक्षियों व वनस्पतियों के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहते हैं। 

विश्व प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञों के पन्ना टाईगर रिजर्व में अध्ययन हेतु आने से जंगल में बहुतायत से पाये जाने वाले विभिन्न प्रजातियों के रंग बिरंगे पक्षियों की ओर पर्यटकों की उत्सुकता बढ़ी है। आलम यह है कि पार्क भ्रमण हेतु आने वाले पर्यटकों को यदि टाईगर नहीं दिखा तो भी वे जंगल की खूबसूरती व यहां स्वच्छन्द रूप से विचरण करने वाले अन्य वन्य प्राणियों तथा पक्षियों की मौजूदगी का भरपूर लुत्फ उठाते हैं। बर्ड वॉचिंग का शौक रखने वाले पर्यटकों ने बताया कि पर्यटक अब लोकेट किये हुए टाईगर को देखना ज्यादा पसंद नहीं करते। जंगल में नेचुरल स्थिति में विचरण करते हुए यदि टाईगर नजर आता है तो पर्यटक यह नजारा देख रोमांचित होता है। 

टाईगर के अलावा भी पर्यटक पर्यावरण से संबंधित सब कुछ देखना व अनुभव करना चाहता है। पार्क भ्रमण हेतु पहुँची एक महिला टूरिस्ट ने बताया कि टाईगर रिजर्व में बहुत सारे प्रवासी पक्षी भी देखने को मिले। उन्होंने बड़े ही उत्साह के साथ बताया कि उसने किंग वल्चर को पहली बार नेस्ट में देखा है। धुंधुवा वाटर फाल की गहरी खाई में चट्टानों के बीच नेस्ट में यह विशालकाय पक्षी बैठा हुआ था। किंग वल्चर के अलावा क्रिस्टल सप्रेन्ट ईगल, पेरेग्रीन पेल्कन, पैराडाईज फ्लाईकेचर, सारस क्रेन, बूटेल ईगल, रेड ब्रेस्टेड फ्लाईकैचर जैसे अनेकों पक्षी दिखाई दिये। पन्ना टाईगर रिजर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर जंगल व पानी दोनों जगह पक्षी दिखते हैं। पर्यटकों का कहना है कि पन्ना टाईगर रिजर्व घूमने आने वाले पर्यावरण प्रेमियों को पक्षियों के बारे में सही जानकारी देने वालों की यहां कमी है। इससे बर्ड वॉचर्स को पक्षियों की जानकारी जुटाने में परेशानी उठानी पड़ती है। 


विदित हो कि म.प्र. में पाई जाने वाली गिद्धों की चार प्रजातियां किंग वल्चर, लांग विल्ड वल्चर, व्हाइट बैक्ड वल्चर तथा इजिप्सियन वल्चर पन्ना टाईगर रिजर्व में अच्छी संख्या में निवास करते हैं। लेकिन ठण्ड का मौसम आने पर गिद्धों की तीन प्रजातियां यहां प्रवास के लिए आते हैं । ये प्रवासी हिमालयन वल्चर पूरे ठण्ड के दिनों में यहां रूकते हैं और घोसला बनाकर बच्चे भी देते हैं। ठण्ड खत्म होने पर मार्च के महीने में हिमालयन वल्चर चले जाते हैं। वन अधिकारियों का कहना है  कि शीत ऋतु में यहां आने वाले प्रवासी वल्चरों में सिनरस वल्चर, यूरेशियन ग्रिफिन वल्चर तथा हिमालयन वल्चर प्रमुख हैं। बताया गया है  कि भारत में गिद्धों की 8 प्रजातियां पाई जाती हैं, इनमें 7 प्रजाति के गिद्ध पन्ना टाईगर रिजर्व में हैं जो निश्चित ही गर्व की बात है।

राज्य पक्षी दूधराज के भी होते हैं दर्शन


म.प्र. का राज्य पक्षी दूधराज (इंडियन फ्लाईकैचर)।

म.प्र. के राज्य पक्षी दूधराज (इंडियन फ्लाईकैचर) पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल में खूब नजर आता है। शानदार कलगी वाला यह खूबसूरत पक्षी देशी व विदेशी सभी पर्यटकों को खूब लुभाता है। इस पक्षी के दर्शन होते ही  पर्यटक खुशी से झूम उठते हैं। पन्ना टाईगर रिजर्व के प्रसिद्ध पाण्डव जल प्रपात की वादियों में दूधराज पक्षी सबसे अधिक देखने को मिलता है। यह स्थल राज्य पक्षी के लिए आदर्श रहवास है। दूधराज के अलावा भी पाण्डव जल प्रपात के आस-पास दुर्लभ प्रजाति के अनेकों पक्षी देखने को मिल जाते हैं। यही   वजह है कि बर्ड वॉचिंग के शौकीनों का यहां जमावड़ा लगा रहता है। इस स्थल की एक विशेषता यह भी है कि यह पर्यटकों के भ्रमण हेतु बारहो महीना खुला रहता है।

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Saturday, December 23, 2023

किसान दिवस : जल प्रबंधन व प्राकृतिक खेती अपनाने पर जोर

  • स्वयंसेवी संस्था समर्थन के तत्वाधान में आयोजित हुआ अनूठा कार्यक्रम 
  • प्राकृतिक खेती से मिट्टी का स्वास्थ्य सुधरेगा और लागत में आएगी कमी 

 

समर्थन संस्था के तत्वाधान में किसान दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मंचासीन अतिथिगण।  

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। किसान दिवस पर शनिवार को कृषि विज्ञानं केन्द्र पन्ना परिसर में स्वयंसेवी संस्था समर्थन के तत्वाधान व डब्लू.एच.एच के सहयोग से जल प्रबंधन व प्राकृतिक खेती पर केंद्रित अनूठा कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम की विशेषता यह रही कि इसमें बड़ी तादाद में महिला कृषकों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। इनमें ऐसी कई महिला कृषक भी थीं जो विगत कई वर्षों से प्राकृतिक खेती कर रही हैं। कार्यक्रम में उन्होंने प्राकृतिक खेती के अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि इससे न सिर्फ खेत की मिट्टी का स्वास्थ्य (उर्वरता) सुधरता है अपितु खेती की लागत भी घटती है। महिला कृषकों ने यह भी बताया कि अब किसानों का रुझान प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ रहा है। 

कार्यक्रम में जल प्रबंधन एवं स्वच्छता की महत्ता और आवश्यकता पर भी विषय विशेषज्ञों द्वारा प्रकाश डाला गया। कृषि वैज्ञानिक श्री जयसवाल ने बताया कि अनाज के उत्पादन में हम आत्मनिर्भर जरूर हो गए हैं, लेकिन अधाधुंध रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से प्राकृतिक असंतुलन भी पैदा हुआ है। मृदा (मिट्टी) का स्वास्थ्य बिगड़ा है, इस विकट स्थिति से उबरने के लिए प्राकृतिक खेती अपनाना जरुरी है। प्राकृतिक खेती से मिटटी का स्वास्थ्य सुधरेगा। कार्यक्रम में मौजूद अतिथियों द्वारा खेती में पानी की महत्ता को देखते हुए पानी के प्रबंधन व संरक्षण को बेहद जरुरी बताया तथा किसानों को इस बावत संकल्प भी दिलाया गया। 

कार्यक्रम में मौजूद विभिन्न ग्रामों की महिला कृषक व जल मित्र। 

कृषि विज्ञानं केंद्र पन्ना के वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री त्रिपाठी ने ग्लोबल वार्मिंग की आ रही विभीषिका से चेताया और कहा कि यदि प्राकृतिक संतुलन से खिलवाड़ जारी रहा तो आने वाला समय भयावह होगा। आपने कहा कि मौजूदा समय ज्यादातर किसान उन फसलों का उत्पादन कर रहे हैं जिनको उगाने में सर्वाधिक पानी की आवश्यकता होती है। इससे जमींन के अंदर संग्रहित रिज़र्व वाटर तेजी से घट रहा है, बदले में हम बारिश के पानी का संचय जमीं के भीतर करने हेतु कोई उपाय नहीं करते। सिर्फ खर्च करने का काम करते हैं जो चिंताजनक है।  

डा. त्रिपाठी ने किसानो को मिट्टी की उर्वरता बढ़ने तथा उसे बीमारी से बचाने हेतु प्राकृतिक खेती अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अधिक पानी वाली फसलों धान और गेंहूं के साथ किसानों को दलहनी व तिलहनी फसलों के रकबा को बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। इन फसलों में पानी कम लगता है और हमारी सेहत के लिए ये फसलें जरुरी हैं। आपने कहा कि गेंहूं के प्रचुर उत्पादन से हम रोटी की व्यवस्था तो कर लेते हैं लेकिन थाली से दाल नदारत है।  दाल के लिए हमें दूसरे देशों पर निर्भर होना पड़ता है। इसलिए जरुरी है कि दलहन व तिलहन के घटते रकबे में वृद्धि की जाय। 

पत्रकार अरूण सिंह ने कहा कि प्राकृतिक खेती आज की आवश्यकता है। आजादी के बाद अनेकों वर्षों तक हम पहले अनाज के लिए दूसरों पर निर्भर थे। फिर कृषि वैज्ञानिकों के प्रयासों से देश में हरित क्रांति हुई, तब हम अपने जरुरत का अनाज खुद पैदा करके आत्मनिर्भर हो गये। लेकिन यहीं पर रुक जाना ठीक नहीं है, आत्मनिर्भरता के लिए जो उपाय पहले जरुरी थे वे अब हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं। इसलिए अब हमें परस्पर निर्भरता की ओर कदम उठाना होगा क्योंकि परस्पर निर्भरता संतुलित पर्यावरण की बुनियाद है। कार्यक्रम को मुख्य अतिथि जिला पंचायत उपाध्यक्ष संतोष यादव तथा उपसंचालक कृषि एपी सुमन ने भी सम्बोधित किया और किसानों को महत्वपूर्ण व उपयोगी जानकारी दी। 

 महिला किसानों ने जैविक सब्जियों की लगाई प्रदर्शनी 


कार्यक्रम स्थल में महिला कृषकों द्वारा लगाई गई सब्जियों की प्रदर्शनी। 

इस आयोजन में सबसे आकर्षण का केन्द्र विभिन्न ग्रामों से आईं महिला किसानों की प्रदर्शनी थी जिसमे जैविक तरीके से किचेन गार्डेन में उगाई गई हरी-भरी सब्जियों को प्रदर्शित किया गया था। समर्थन संस्था के रीज़नल क्वार्डिनेटर व इस कार्यक्रम के आयोजन में महती भूमिका निभाने वाले ज्ञानेंद्र तिवारी ने बताया कि संस्था के प्रयासों से विभिन्न ग्रामों में महिलाओं ने अपने घरों में 740 किचेन गार्डन तैयार किये हैं। किचेन गार्डन से महिलाओं को परिवार के दैनिक उपयोग हेतु ताज़ी सब्जी मिल जाती है, जिससे आर्थिक बचत के साथ-साथ सेहत भी बढ़िया रहती है। प्रदर्शनी में इन्हीं किचेन गार्डन में उगाई जा रही सब्जियों को प्रदर्शित किया गया था जिसे अतिथियों ने बड़ी रूचि के साथ ख़रीदा। इस आयोजन में जल मित्रों के अलावा समर्थन से प्रीतम,चाली,कमल, सुरेन्द्र एवं लखन लाल का सराहनीय सहयोग रहा। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन समर्थन के ज्ञानेन्द्र तिवारी ने किया। 

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Tuesday, December 19, 2023

सिलिकोसिस पीड़ित परिवार की तिरसिया बाई गोंड के लिए सहारा बनी मशरूम की खेती

 

गाँधी ग्राम स्थित तिरसिया बाई के आँगन में बने शेड के भीतर लटकते मशरूम के बैग। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। हीरा और पत्थर की खदानों में काम करके अपनी जिंदगी खपा देने वाले आदिवासी परिवारों की मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में अनगिनत कहानियां हैं। दशकों तक हाड तोड़ मेहनत करने के बाद उनकी जिंदगी में खुशहाली तो नहीं आई, मुसीबत का पहाड़ जरूर टूट पड़ा। क्योंकि मेहनत करके परिवार की जरूरतों को पूरा करने वाला व्यक्ति सिलिकोसिस की गिरफ्त में आकर असमय काल कवलित हो गया। ऐसी ही कहानियों में एक कहानी तिरसिया बाई गोंड की है। 

जिला मुख्यालय पन्ना से 7 किलोमीटर दूर स्थित गांधीग्राम में एक टूटे से कच्चे घर में रहने वाली तिरसिया बाई (37 वर्ष) जो पैरों से विकलांग है और बड़ी कठिनाई से चल पाती है, उसके पति इमरतलाल की मौत 2 साल पहले सिलिकोसिस से पीड़ित होने के कारण हो गई थी। इसके ससुर की मौत भी फेफड़ों में होने वाली इसी बीमारी से हुई थी। इन परिस्थितियों में अपने तीन बच्चों की परवरिश करना तिरसिया बाई के लिए कठिन ही नहीं बेहद चुनौती पूर्ण था। लेकिन तिरसिया बाई हिम्मत नहीं हारी, वह अपने घर के सामने समाजसेवी संस्था पृथ्वी ट्रस्ट की मदद से शेड लगवा कर मशरूम उगाना शुरू किया। मशरूम की खेती अब इस गरीब आदिवासी परिवार का बहुत बड़ा सहारा है। यहां पर गांधी ग्राम सहित अन्य ग्रामों की महिलाओं को भी मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

अपने घर के सामने खड़ी तिरसिया बाई गोंड के लिए मशरूम की खेती सहारा बनी। 

गौरतलब है कि जिस इलाके की धरती में बेशकीमती रत्न हीरा निकलता हो, वहां रहने वाले आदिवासियों की जिंदगी में इसकी चमक दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आती। भीषण गरीबी, कुपोषण, पत्थर खदानों में मजदूरी करने के कारण जानलेवा बीमारी सिलिकोसिस और पलायन इनकी नियति बन चुकी है। इन हालातों के बीच समाज सेवी संस्था पृथ्वी ट्रस्ट की पहल व प्रयासों से पांच ग्रामों की गरीब आदिवासी महिलाएं मशरूम की खेती करना सीख रही हैं। इस अभिनव पहल से आदिवासी महिलाओं की जिंदगी में बदलाव दिखने लगा है। 

हरिजन व आदिवासी बहुल गांधी ग्राम में समाजसेवी संस्था पृथ्वी ट्रस्ट ने इसी साल मशरूम उत्पादन केंद्र शुरू किया है। इस केंद्र में गांधी ग्राम सहित रानीपुर, सुनहरा, जरधोवा व माझा की आदिवासी महिलाओं को मशरुम की खेती कैसे करें, इसका प्रशिक्षण दिया जाता है। अक्टूबर से लेकर अब तक 12-12 महिलाओं के तीन समूह मशरूम की खेती के गुर सीखकर अपने अपने घरों में मशरूम उगाना शुरू कर दिया है। 

तिरसिया बाई ने बताया कि उनके पति इमरत लाल आदिवासी की दो साल पहले सिलिकोसिस से पीड़ित होने के कारण मौत हो चुकी है। मेरे दो लड़के व एक लड़की है। एक लड़का मजदूरी करता है तथा दूसरा लड़का गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है। हांथ व पैर से विकलांग होने के कारण मैं मजदूरी नहीं कर सकती। मुझे 600 रुपए विकलांग पेंशन मिलती है। पूरी तरह अपने लड़कों पर आश्रित हूं, अभी तक प्रधानमंत्री आवास का लाभ भी नहीं मिला। तिरसिया बाई आगे बताती हैं कि जब से मेरे घर के आंगन में मशरूम उत्पादन केंद्र खुला है, तब से अतिरिक्त आय होने की उम्मीद जागी है। केंद्र में मशरुम के 70 बैग लगाएं हैं, जिनमें मशरूम निकलने लगा है।

समाजसेवी संस्था पृथ्वी ट्रस्ट की समीना बेग बताती हैं कि इन्विरोनिक्स ट्रस्ट दिल्ली के सहयोग से हमने वर्ष 2021 में मशरूम उगाने की गतिविधि रानीपुर, सुनहरा, गांधी ग्राम, जरधोवा तथा माझा गांव में शुरू किया था। इस गतिविधि में हमने सिलिकोसिस पीड़ित तथा पत्थर खदानों में काम करने वाले परिवारों की महिलाओं का चयन कर उन्हें मशरूम उगाने का प्रशिक्षण दिया। 

गरीब आदिवासी महिलाओं को मशरुम की खेती से जोड़ने के पीछे उद्देश्य कुपोषण दूर करना, पलायन रोकना तथा स्थानीय स्तर पर रोजगार देना था। इस उद्देश्य की पूर्ति में काफी हद तक हम कामयाब हुए हैं। आदिवासी व अनुसूचित जाति की महिलाएं मशरुम के उत्पादन में खासा रुचि ले रही हैं। अतिरिक्त आए होने से वे उत्साहित हैं तथा कुपोषण की स्थिति में भी कमी आई है।

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Monday, December 18, 2023

पन्ना में नर बाघ के गले में मिला क्लच वायर का फंदा, मचा हड़कंप

  •  क्या पीटीआर में फिर होने लगी शिकारियों की घुसपैठ ? 
  •  यह घटना वन्य जीव प्रेमियों के लिए चिंता का विषय 

पन्ना टाइगर रिज़र्व का  नर बाघ पी-243 जिसके गले में फंदा मिला।  (फ़ाइल फोटो)   

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में 8 साल के एक नर  बाघ के गले में क्लच वायर का फंदा फंसा हुआ मिला है, जिससे पन्ना टाइगर रिजर्व में हड़कंप मचा हुआ है। बाघ पी-243 पन्ना टाइगर रिजर्व का सबसे बड़ा डोमिनेंट बाघ है, जिसका मूवमेंट तीन रेंजों में देखा गया है। बाघ के गले में क्लच वायर का फंदा कैसे फंसा, यह अभी रहस्य है। लेकिन पन्ना टाइगर रिजर्व में शिकारियों के घुसपैठ की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा रहा।

उल्लेखनीय है कि नर बाघ के गले में फंदा लगा होने की खबर सबसे पहले पर्यटकों को तब लगी जब उन्होंने बाघ को इस हालत में घूमते हुए जंगल में देखा। फंदा फंसे बाघ का वीडियो गत रविवार को सामने आने पर पार्क प्रबंधन सक्रिय हुआ और इस नर बाघ को आनन-फानन ट्रेंकुलाइज करके फंदे से मुक्त किया गया। बताया गया है कि क्लच वायर का फंदा काफी टाइट था, जिससे बाघ के गले में घाव भी हो गया है। उपचार के बाद बाघ को खुले जंगल में फिर से छोड़ दिया गया है। इस मामले में पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक बृजेंद्र कुमार झा का कहना है कि मामले की जांच हेतु टीम गठित की गई है। बाघ के मूवमेंट वाले इलाके की सर्चिंग की जा रही है। जांच में डाग स्क्वायड की भी मदद ली जा रही है।

यहाँ बताना यह जरुरी है कि पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के बाद से दुनिया भर के वन्य जीव प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। वर्ष 2009 में यह टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था, फल स्वरुप बाघों को यहां फिर से आबाद करने के लिए तत्कालीन पार्क प्रबंधन द्वारा सार्थक पहल व प्रयास हुए। नतीजतन जन समर्थन से बाघ संरक्षण का पन्ना टाइगर रिजर्व एक अनूठा उदाहरण बन गया। लेकिन अब जिस तरह से बाघों के गले में फंदे लगे मिल रहे हैं, उससे एक बार फिर से वर्ष 2009 के पहले वाले हालात नजर आने लगे हैं। निश्चित ही यह वन्य जीव प्रेमियों के लिए चिंता का विषय है। पार्क प्रबंधन को इसे बेहद गंभीरता से लेना चाहिए, ताकि इस तरह की अप्रिय स्थितियां न बनें।

अनाथ शावकों की बाघ पी-243 ने की थी परवरिश   

पन्ना टाइगर रिज़र्व का नर बाघ पी-243 अपने भारी भरकम डील डौल के चलते जहाँ आकर्षण का केंद्र रहता है वहीँ इस बाघ में कुछ ऐसी विशिष्टताएं भी देखी गई हैं जो दुर्लभ है। दो वर्ष पूर्व  मई 2021 में बाघिन पी 213-32 की अज्ञात बीमारी के चलते मौत हो गई थी, उस समय इस बाघिन के तक़रीबन 7-8 माह के चार शावक थे जो मां की असमय मौत होने पर अनाथ हो गए। ऐसे समय जब इन अनाथ व असहाय शावकों के बचने की कोई सम्भावना नहीं थी उस समय इसी नर बाघ ने इन शावकों को न सिर्फ सहारा दिया बल्कि मां की तरह उनकी परवरिश भी की। इसका परिणाम यह हुआ कि चारो नन्हे शावक खुले जंगल में चुनौतियों के बीच अपने को बचाने में कामयाब हुए।   

नर बाघ पी-243 का व्यवहार शावकों के प्रति बहुत ही प्रेमपूर्ण और अच्छा था। वह अपने इलाके में घूमते हुए इन शावकों पर भी कड़ी नजर रखता था। खास बात यह थी कि बाघिन (जीवन संगिनी) की मौत के एक माह गुजर जाने पर भी नर बाघ ने शावकों की परवरिश के लिए जोड़ा नहीं बनाया। बाघ का इलाका चूँकि काफी बड़ा और फैला हुआ था, जिसकी वह सतत निगरानी भी करता रहा। लेकिन दो दिन से ज्यादा वह शावकों के रहवास स्थल से दूर नहीं रहता। नर बाघ की गतिविधि पर नजर रखने वाले मैदानी वन कर्मियों के मुताबिक वह शावकों की देखभाल करने में पूरी रुचि लेता रहा है। बाघ पी-243 शावकों के क्षेत्र में शिकार करके उनके भोजन का भी इंतजाम करता था। बाद में चारो शावक बड़े होकर दक्ष शिकारी बन जंगल में चुनौतियों और खतरों के बीच जीने में सक्षम हो गए। 

पर्यटकों द्वारा लिया गया बाघ पी-243 का वीडियो जिसमें फंदा गले में नजर आ रहा है - 




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Friday, December 15, 2023

मझगवां हीरा खदान की कॉलोनी में बंदरों का डेरा

  •  पिछले लगभग तीन साल से बंद पड़ी है यह खदान
  •  कर्मचारियों का तबादला होने से खाली पड़े हैं क्वार्टर



।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में मझगवां स्थित एशिया महाद्वीप की इकलौती मैकेनाइज्ड एनएमडीसी हीरा खदान विगत लगभग 3 साल से बंद है। खदान संचालन के लिए जरूरी पर्यावरणीय अनुमति न मिल पाने के चलते यह सुप्रसिद्ध हीरा खदान 1 जनवरी 2021 से ठप्प है, जिससे यहां की रौनक भी गायब सी हो गई है। चहल-पहल कम होने से अब यहां बंदरों ने कब्जा जमा लिया है।

उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 20 किलोमीटर दूर बेशकीमती हीरे निकालने वाली यह खदान स्थित है। मझगवां हीरा खदान में वर्ष 1968 से लेकर 2020 तक लगभग 13 लाख कैरेट हीरों का उत्पादन किया जा चुका है। बताया जाता है कि इस खदान में अभी भी 8.5 लाख कैरेट हीरे धरती की कोख में दबे हैं। लेकिन खदान संचालन की अवधि दिसंबर 2020 में खत्म होने व आगे इसके संचालन के लिए आवश्यक अनुमति न मिलने के चलते बेशकीमती हीरा उगलने वाली यह खदान बंद है।


परियोजना बंद हो जाने के उपरांत यहां काम करने वाले अधिकांश कर्मचारियों का स्थानांतरण एनएमडीसी की दूसरी परियोजनाओं में हो गया है। जिसके चलते एनएमडीसी कॉलोनी जिसे टाउनशिप के नाम से भी जाना जाता है, वहां बने कर्मचारी के आवासों में ताला लटक रहे हैं। कर्मचारियों की गैर मौजूदगी से यह कॉलोनी जहां बेरौनक होने लगी है, वहीं लंबे समय से खाली पड़े घरों में बंदरों का कब्जा हो गया है।


यहां संचालित होने वाले डीएवी पब्लिक स्कूल के प्ले ग्राउंड का नजारा इन दोनों देखते ही बनता है। यहां के प्ले ग्राउंड में सैकड़ो की संख्या में बंदर उछलते कूदते हर समय नजर आते हैं। आलम यह है कि इस इलाके में चलने वाली दुकानों के संचालक भी इन बंदरों से खासा परेशान हैं। खाने का सामान ये बंदर पलक झपकते उठाकर ले जाते हैं। यदि निकट भविष्य में एनएमडीसी हीरा खदान फिर चालू नहीं हुई और कर्मचारियों के क्वार्टर इसी तरह खाली पड़े रहे, तो इन पर बंदरों का पूरी तरह से कब्जा हो सकता है।

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Sunday, December 10, 2023

परम्परागत देशी किस्म के मोटे अनाजों को बचाने की पहल

  • पन्ना जिले के ग्राम पल्थरा में बीज मेंला का हुआ आयोजन 
  • विलुप्त हो रही देसी किस्मों को दोबारा प्रचलन लाया जायेगा 

पल्थरा गांव में ही लगी धान की फसल विविधिता ब्लाक का अवलोकन करते किसान। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का पल्थरा गांव चर्चा में है। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 27 किमी. दूर घने जंगल के बीच स्थित यह छोटा सा आदिवासी बहुल गांव स्वच्छता और जल प्रबंधन का जहाँ मॉडल विलेज बन चुका है, वहीं इस गांव के लोगों ने विलुप्त हो रही देसी मोटे अनाजों की किस्मों को संरक्षित कर उन्हें दोबारा प्रचलन में लाने की भी अभिनव पहल की है।

उल्लेखनीय है कि ग्राम पल्थरा जिला पन्ना में आरआरए नेटवर्क बुन्देलखण्ड एवं समर्थन संस्था के द्वारा गाठ दिवस बीज मेला का आयोजन किया गया। इस आयोजन में अखिल भारतीय समाज सेवी संस्थान मानिकपुर चित्रकूट, पी.एस.आई शाहनगर एवं समर्थन पन्ना के किसान एवं सभी संस्थान से साथियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का समन्वय आर.आर.ए नेटवर्क बुन्देलखण्ड के समन्वयक राजीव गुप्ता ने किया।


बीज मेले में किसानों एवं संस्थानों के द्वारा किसानों से एकत्र किए गए धान, कोदो, कुटकी, सांबा, मटर एवं गेंहू के परंपरागत बीजों को लाया गया। इस मेले में 8 किस्मों की धान के पेनिकल ( बाल ) को भी लाया गया, यहाँ किसानों द्वारा लाए हुए बीजों के बारे में किसानों ने विस्तार से बताया। किसानों ने परंपरागत देशी अनाज की खूबियों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने इस बात का भी खुलासा किया की वे देसी बीजों को क्यों लगा रहे हैं। मेले में बताया गया कि कुछ किस्में कम पानी में उग जाती हैं, जबकि कुछ किस्म कम दिन वाली हैं। कुछ गेहूँ एवं धान खाने में बहुत अधिक स्वादिष्ट हैं वहीं कुछ ऐसे बीज हैं जो मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत अधिक उपयोगी हैं। 

इस तरह से देशी किस्म के मोटे अनाजों की विशेषताएं बताई गईं तथा आपस में एक दूसरे के साथ बीजों को बदला गया। इसका उद्देश्य यह था कि आगे आने वाले सीजन में विलुप्त हो रही देसी किस्मों को इन क्षेत्रों में दोबारा से प्रचलन में लाया जा सके। गांव में ही लगी धान की फसल विविधिता ब्लाक का भ्रमण किया गया, जिसमें किसानों ने धान की किस्मों को देखा और किस्मों के बारे में समझा।

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