Monday, March 18, 2024

नदी का दोहन करता समाज...!!


।। आशीष सागर दीक्षित ।। 

बुंदेलखंड के बाँदा मे केन नदी किनारे खेती करने वाला भौतिक किसान आर्थिक युग मे कितना धनलोलुपता का शिकार है यह तस्वीर उसकी बानगी है।

बाँदा आसपास क्षेत्र मे जहां भी केन नदी मे लाल मौरम का उत्खनन हो रहा है। खासकर उन मौरम खदानों मे जिसमें पहले भी खंड चलने के कारण अब मौरम / बालू शेष नही बची है। वहां क्षेत्र गांव के किसान नदी किनारे अपनी कृषि भूमि अर्थात तरी ( जिसमें वो सब्जी आदि पैदा करते थे। ) उसे खनन ठेकेदारों को रुपयों मे बेचने लगा है। यह तस्वीर पैलानी क्षेत्र के ग्रामपंचायत सांडी से मौरम खंड 4 की है। इस गाँव मे खंड 60 और 2 के हालात कुछ यूं ही है। या ये समझें कि बाँदा खनन मामले मे लगभग यही है। 

केन नदी के तीरे किसानों ने अपने खेतिहर ज़मीन मे उपलब्ध मौरम को पोकलैंड से उत्खनन कराया है। जिससे तालाब जितनी गहराई हो गई है। केन नदी के तट पर लीज मे हुए खदानों पर यूं तो यूपी उपखनिज परिहार अधिनियम की उपधारा 41ज के अनुसार 3 मीटर गहराई तक ही बालू / मौरम निकासी का प्रावधान है। लेकिन क्योंकि केन मे किनारे मौरम नही बची है इसलिए अब या तो रात मे नदी की मध्य जलधारा मे प्रतिबंधित पोकलैंड से लाल बालू निकासी होती है। अथवा इस तर्ज पर किसान से तरी का खेत कुछ रुपया मे लेकर उसकी बालू निकाल ली जा रही है। खदानों मे बाकायदा सड़क पर चलने वाले रोलर मशीन है जो मौरम निकासी के बाद इन भारीभरकम तालाब जैसे गड्ढों को मिट्टी से भर देते है ताकि प्रशासन की निगाहों से बचा जा सके। 

उल्लेखनीय है कि यह नदी कछार / तरी से लगे बालू / मौरम युक्त खेतों पर ही गर्मी की फसल ककड़ी, खरबूजा, खीरा, तरबूज आदि मौसमी फसल पैदा होती थी। जब मौरम नही होगी तो यह ठंडी फसलें पैदा नही होंगी। बावजूद इसके त्वरित आर्थिक लाभ से आकर्षित क्षेत्र के किसान ऐसा पर्यावरण विरोधी / खेती के भविष्य को रसातल मे पहुंचाने वाला कृत्य कर रहें है। इतना ही नही नदी खदानों के रस्ते पर स्थित अपने खेत किराए ( हलफनामा अनुबंध ) मे देकर मोटी रकम लेने के बाद ठेकेदारों द्वारा पोकलैंड, जेसीबी, रोलर आदि परिवहन नदी कैचमेंट एरिया मे पहुंचाने की मदद करते है। 

कुल मिलाकर नदियां अब धरतीपुत्र अन्नदाता की जलमाता नही बल्कि ठेकेदारों बनाम किसानों की भौतिक सम्रद्धि का संसाधन बन चुकी है। लेकिन कब तक यह गौर करने वाली बात है...। कभी केन नदी पर सिंचाई को आश्रित रहने वाले मल्लाह अब नदी की लूट मे साझीदार है। इन्हें नदी की जैवविविधता से फिलहाल मतलब नही है। सरकार को राजस्व से वास्ता है।

00000

No comments:

Post a Comment