Thursday, March 31, 2022

विकासवाद और राष्ट्रवाद की भावना सर्वोपरि : बृजेन्द्र प्रताप सिंह

  • खनिज साधन मंत्री ने भानपुर में गौशाला निर्माण का किया भूमिपूजन 
  • आवारा पशुओं के लिए 1 करोड़ 14 लाख की लागत से बनेगी गौशाला 

गौशाला के भूमिपूजन अवसर पर ग्रामवासियों को संबोधित करते हुए खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह

पन्ना। विकासवाद और राष्ट्रवाद की भावना सर्वोपरि है। जनप्रतिनिधि को क्षेत्र के विकास के लिए संकल्पबद्ध होना चाहिए। नागरिकों को भी बेहतर विकास के लिए सहभागी बनने की आवश्यकता है। यह बात प्रदेश के खनिज साधन एवं श्रम मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने आज भानपुर में 1 करोड़ 14 लाख 69 हजार रूपए की लागत से आवारा पशुओं के लिए बनने वाले गौशाला के भूमिपूजन के अवसर पर ग्रामवासियों को संबोधित करते हुए कही। इस दौरान ग्राम पंचायत के 11 लाख 25 हजार रू. लागत के सड़क मरम्मत कार्य और 12 लाख 75 हजार रू. लागत के सड़क निर्माण का भूमिपूजन भी किया गया। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में अवरूद्ध विकास के कार्यों को अब समय सीमा में पूर्ण किया जाएगा।

मंत्री श्री सिंह ने कहा कि बरियारपुर से नरैनी तक 45 किलो मीटर मार्ग निर्माण के लिए सभी बाधाएं दूर हो गई हैं। 54 करोड़ रूपये की लागत से सड़क निर्माण के दौरान 6 पुल भी बनाए जाएंगे। सड़क का चौड़ीकरण और विस्तारीकरण होगा। आगामी दिनों में सड़क निर्माण का भूमिपूजन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मझगांय परियोजना शीघ्र पूरी की जाएगी। नहर बनाकर मझगांय बांध में पानी की पूर्तिकर सिंचाई और पेयजल की व्यवस्था की जाएगी। रामनवमी के बाद अजयगढ़ में 220 के.व्ही. विद्युत सब स्टेशन का भूमिपूजन होगा। इससे पन्ना और छतरपुर जिलों में विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित होगी। 


उन्होंने कहा कि बरियारपुर बिलहरी सहित अन्य क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के निर्माण कार्य के लिए बजट में राशि स्वीकृत की गई है। उन्होंने कहा कि गांव के विकास के लिए सड़क संपर्क जरूरी है। बरियारपुर नरैनी सड़क बनने से विकास के नये द्वार खुलेंगे। क्षेत्र के विकास में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए शासन स्तर पर सभी जरूरी प्रयास किए जाएंगे। अजयगढ़ में अटल भू-जल योजना के माध्यम से भू-जल स्तर बढ़ाने का प्रयास किया गया है। वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल के माध्यम से शुद्ध पेयजल मिलेगा।

उन्होंने कहा कि किन्हीं कारणों से वंचित पात्र ग्रामीणजनों को आवास प्लस सर्वे के माध्यम से पक्के आवास का लाभ मिलेगा। अब प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में मकान निर्माण के लिए मुफ्त रेत प्रदान करने का प्रावधान भी किया गया है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का आगामी सितम्बर माह तक विस्तार होने से पात्र हितग्राहियों को नि:शुल्क राशन सुविधा का लाभ मिलेगा। 

आगामी 18 अप्रैल से मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना की शुरूआत नये स्वरूप में होगी। इसी तरह 21 अप्रैल से शुरू होने वाली सामूहिक विवाह योजना में 55 हजार रूपये की राशि निर्धारित की गई है। उन्होंने कहा कि पन्ना जिले में नवीन राजस्व ग्राम बनाने की प्रक्रिया जारी है। इससे ग्रामीणों को सभी सरकारी सुविधाओं का लाभ आसानी से मिल सकेगा। मड़ला से झिन्ना सड़क मार्ग की स्वीकृति के लिए भी प्रयास किए जाएंगे। 

इसी तरह पन्ना में ईएसआईसी अस्पताल और श्रमोदय विद्यालय खोला जाएगा। विधानसभा क्षेत्र के निवासियों की जायज समस्याओं के निराकरण के लिए कन्ट्रोल रूम भी बनाया जाएगा। खनिज मंत्री ने भानपुर में संबल और पेंशन योजना के हितग्राहियों को हितलाभ का वितरण कर बुुजुर्ग नागरिकों का शाल-श्रीफल भेंट कर सम्मान किया। ग्रामवासियों के साथ सामूहिक भोजन भी किया। मंत्री का फल से तुलादान भी किया गया।

कुंवरपुर में लगाया गया जनसमस्या निवारण शिविर

खनिज मंत्री के विशेष प्रयास से मझगांय परियोजना में विस्थापित ग्रामवासियों की समस्याओं के त्वरित निराकरण के लिए कुंवरपुर में शिविर लगाया गया। मझगांय बांध के भू-अर्जन कार्य में विसंगति संबंधी समस्याएं दूर करने के उद्देश्य से आयोजित शिविर के दौरान राजस्व और जल संसाधन विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में ग्रामीणजनों की समस्याएं सुनकर तीन माह में निराकरण का भरोसा दिया गया।

खनिज मंत्री श्री सिंह ने कहा कि मुआवजा और सर्वे कार्य में विसंगति दूर करने के उद्देश्य से इस विशेष शिविर का आयोजन किया गया है। मझगांय बांध के बनने से सिंचाई और पेयजल की समस्या दूर होगी। उन्होंने कहा कि पुनर्वास और व्यवस्थापन का लाभ ग्रामीणों को मिलेगा। मुआवजा राशि के लिए पूरक अवार्ड भी बनाया जाएगा। इसी तरह वृक्षों की क्षति, आवास क्षति सहित सभी क्षतियों का उचित मूल्यांकन किया जाएगा। वर्ष 2018 के सर्वे के अलावा 2022 की सर्वे रिपोर्ट के हिसाब से बालिग सभी पात्रों को मुआवजा मिलेगा। समय सीमा में सर्वे की कार्यवाही पूरी की जाएगी। मंत्री श्री सिंह ने अनुसूचित जाति बस्ती में सामुदायिक भवन बनाने की बात भी कही। कुंवरपुर में 8 लाख 14 हजार रू. लागत राशि के तालाब जीर्णोद्धार कार्य का भूमिपूजन भी किया गया।

कलेक्टर  संजय कुमार मिश्र ने कहा कि परियोजना के लिए जमीन देने वाले किसानों को नियामानुसार सभी मदद दी जाएगी। नाम छूटे होने अथवा मूल्यांकन संबंधी अन्य सभी त्रुटियों को दूर करने के बाद ही भू-अर्जन की कार्यवाही पूरी की जाएगी। 

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Wednesday, March 30, 2022

गुजरात में नदी जोड़ परियोजना पर रोक, तो केन- बेतवा पर क्यों नहीं?

  •  आगामी गुजरात चुनाव में आदिवासी वोट बैंक खिसकने के डर का असर
  •  काश,वन्य प्राणियों का भी होता अपना वोट बैंक तो बच जाता बाघों का घर


केन नदी को निहारते वनराज का बांध बनने से डूब जायेगा आशियाना। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। आदिवासियों के आक्रामक रुख व विरोध के चलते सरकार ने गुजरात में पार-तापी-नर्मदा नदी जोडऩे की परियोजना को स्थगित करने का फैसला किया है। गुजरात सरकार के सिंचाई मंत्री ने मंगलवार को विधानसभा में जानकारी देते हुए बताया कि इस परियोजना से आदिवासियों के विस्थापन की आशंका है और राज्य सरकार आदिवासियों को उनकी पुश्तैनी जमीन से विस्थापित नहीं करना चाहती है। जबकि वास्तविकता यह है कि आदिवासी शुरू से ही इस परियोजना का विरोध करते आ रहे हैं।

पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश का कहना है कि सरकार ने आदिवासियों के विरोध व आगामी गुजरात चुनाव को देखते हुए नदी जोड़ो परियोजना पर रोक लगाई है। लेकिन मध्यप्रदेश में विनाशकारी केन- बेतवा लिंक परियोजना जारी है। मालूम हो कि केन- बेतवा लिंक परियोजना से पन्ना टाइगर रिजर्व का बड़ा हिस्सा डूब जाएगा, जिससे यहां स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे 70 से भी अधिक बाघों सहित विभिन्न प्रजाति के जीवों की जिंदगी संकट में पड़ जाएगी। इतना ही नहीं इस परियोजना के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का वह खूबसूरत जंगल जो सदियों से हरा-भरा और वनाच्छादित है, वह भी नष्ट हो जाएगा। इससे पर्यावरण और इकोसिस्टम को कितनी क्षति होगी इसका अनुमान लगा पाना भी कठिन है। इतना ही नहीं केन नदी का नैसर्गिक प्रवाह थमने से डाउनस्ट्रीम के गांवों में जल संकट के साथ-साथ अनेकों तरह की समस्याएं उत्पन्न होंगी।


चुनावी राजनीति की समझ रखने वाले जानकारों का कहना है कि गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। यहां विधानसभा में 27 आदिवासी सीटें हैं। नर्मदा-पार-तापी परियोजना आदिवासी बहुल सीटों से होकर गुजरती है। अगर यह परियोजना जारी रहती है तो राज्य में सत्ताधारी दल को आगामी चुनाव में भारी नुकसान हो सकता है। यही वजह है कि अब राज्य सरकार इस परियोजना को रोकने की बात कह रही है। जाहिर है कि वोट बैंक की राजनीति तथा आदिवासियों के आक्रामक विरोध को देखते हुए सरकार परियोजना पर रोक लगाने को मजबूर हुई है। इसके उलट केन-बेतवा लिंक परियोजना को लेकर इस तरह का विरोध नहीं है। पन्ना टाइगर रिजर्व का बड़ा हिस्सा डूबने व पन्ना से लेकर उत्तर प्रदेश के बांदा तक केन किनारे स्थित ग्रामों में आने वाले संकट के बावजूद इस इलाके के लोग शांत हैं। केन किनारे स्थित ग्रामों के ज्यादातर लोगों को इस परियोजना के बारे में जानकारी तक नहीं है। जो छुटपुट विरोध है भी वह सरकार द्वारा केन-बेतवा लिंक परियोजना का किए जा रहे लाभकारी प्रचार के आगे सुनाई भी नहीं दे रहा।

काश! बाघों और जंगल में रहने वाले वन्य प्राणियों, पक्षियों और पेड़-पौधों का भी अपना वोट बैंक होता? तो वे भी गुजरात के आदिवासियों की तरह अपने वजूद को बचाने के लिए विरोध प्रदर्शन कर पाते। यदि ऐसा संभव होता तो कोई भी सरकार बाघों के घर को डुबाने व जंगल को तबाह करने की हिम्मत नहीं करती। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है, वन्यजीवों के वजूद की किसी को चिंता नहीं। विनाशकारी विकास के पक्षधर शक्तिशाली हैं, उनके आगे मूक और निरीह वन्यजीवों की कौन फिक्र करता है?

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Tuesday, March 29, 2022

सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने और आर्थिक उन्नति के लिए कटिबद्ध

  • कृषक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लें: मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह
  • पन्ना में जिला स्तरीय कृषि विज्ञान मेला सह प्रदर्शनी का आयोजन  

पन्ना में जिला स्तरीय कृषि विज्ञान मेला में प्रदर्शित उत्पादों का अवलोकन करते हुए मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह।

पन्ना।  सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने और आर्थिक उन्नति के लिए कटिबद्ध है। यह बात प्रदेश के खनिज साधन एवं श्रम मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने पन्ना में जिला स्तरीय कृषि विज्ञान मेला सह प्रदर्शनी के शुभारंभ अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि कृषक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें। सभी कृषकों को किसान हितैषी योजनाओं का लाभ जरूर लेना चाहिए। केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा किसानों के हित में कई कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं। 

उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत प्रतिवर्ष 10 हजार रूपये किसानों को प्रदान किए जाते हैं। कृषि कार्य के लिए किसानों को ऋण प्रदान करने की व्यवस्था भी की गई है। किसानों के बिजली बिल भी माफ किए गए हैं। रबी एवं खरीफ सीजन में समर्थन मूल्य पर फसल उपार्जन की उचित व्यवस्था भी की गई है। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश गेहूं उत्पादन में पंजाब से आगे निकल गया है। प्रदेश को लगातार कृषि कर्मण अवार्ड मिलना उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने संबल योजना दोबारा शुरू की है। केन्द्र सरकार द्वारा भी गरीबों के लिए नि:शुल्क राशन प्रदान करने की समयावधि आगामी सितम्बर माह तक बढ़ाई गई है।

मंत्री श्री सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पात्र हितग्राहियों को लाभांवित करने के लिए बजट में 10 हजार करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त योजना के लाभ से वंचित पात्र हितग्राहियों को आवास प्लस सर्वे सूची के माध्यम से लाभांवित किया जाएगा। इसके लिए आवास की सूची सार्वजनिक कर निर्धारित स्थानों में चस्पा की जाएगी। इसका पंचनामा भी तैयार होगा। स्वामित्व योजना के तहत भू-अधिकार पत्र का वितरण किया जाएगा। इसके अतिरिक्त राशन आपके द्वार योजना की शुरूआत होने से घर बैठे हितग्राहियों को राशन मिल सकेगा।

कलेक्टर संजय कुमार मिश्र ने कहा कि कृषि मेला के माध्यम से किसानों को कृषि कार्य के लिए महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकेगी। मेला किसानों के लिए लाभकारी होगा। इसके जरिए किसानों को उन्नत तकनीक अपनाकर कृषि उत्पादन बढ़ाने और अच्छी किस्म के खाद-बीज की जानकारी मिल सकेगी। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने और आर्थिक उन्नति के लिए कटिबद्ध है। अब किसानों को कृषि कार्य के लिए साहूकारों से कर्ज लेने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग की टीम भ्रमण कर किसानों के घर-घर पहुंचकर महत्वपूर्ण जानकारियों से अवगत कराएगी।

कलेक्टर श्री मिश्र ने किसानों से कम पानी और अल्प समय में तैयार होने वाली फसलों के उत्पादन की अपील की। उन्होंने कहा कि एक जिला-एक उत्पाद योजना में आंवला के विभिन्न उत्पाद तैयार करने के लिए खाद्य प्रसंस्करण यूनिट की स्थापना की जाएगी। इससे उत्पादकों को अच्छी कीमत मिल सकेगी। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन आंवले को जीआई टैग दिलाने के लिए कटिबद्ध है। इससे पन्ना के आंवले की देश-विदेश में अलग पहचान होगी।

इस अवसर पर बृजेन्द्र गर्ग ने कहा कि कृषि पर निर्भर किसान की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए सरकार प्रयासरत है। इस वर्ष किसानों के फसलों की अच्छी पैदावार हुई है। उन्होंने कहा कि सभी किसानों को आगे बढ़कर सरकारी योजनाओं का लाभ लेना चाहिए। इस अवसर पर जिला पंचायत सीईओ बालागुरू के., उप संचालक कृषि ए.पी. सुमन, बाबूलाल यादव सहित संबंधित अधिकारी-कर्मचारी तथा बड़ी संख्या में कृषक, हितग्राही और आम नागरिक भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन परियोजना अधिकारी संजय सिंह परिहार ने किया।

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Friday, March 25, 2022

मध्यप्रदेश के जंगलों में यहाँ रहते थे आदिमानव, चट्टानों और गुफाओं में अंकित हैं चिन्ह

  • मध्यप्रदेश में पन्ना और छतरपुर जिले के जंगलों में हजारों साल पूर्व आदिमानव रहते थे। यहाँ की वनाच्छादित पहाड़ियों की चट्टानों और गुफाओं में आखेट के दुर्लभ शैल चित्र आज भी मौजूद हैं, जो आदिमानवों द्वारा बनाये गए थे। इन अति प्राचीन शैल चित्रों का संरक्षण जरूरी है।

पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में जरधोवा गांव के पास पहाड़ी में बने प्राचीन शैल चित्र। (फोटो - अरुण सिंह)

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना (मध्यप्रदेश)। प्राचीन धरोहरों से समृद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना और छतरपुर जिले के जंगलों और पहाड़ों की कंदराओं में हजारों वर्ष पूर्व आदिमानव निवास करते रहे हैं। यहां के पहाड़ों व घने जंगलों के बीच स्थित गुफाओं में मिले आखेट के दुर्लभ चित्रों से यह साबित होता है कि हजारों साल पहले भी यहां पर मानव आबादी थी। जिनके द्वारा चट्टानों और कंदराओं में प्राकृतिक रंगों से आखेट के ऐसे चित्र बनाये गये हैं। आदिमानवों द्वारा बनाये गए शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध भीमबैठका (मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित) की तरह पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल में भी अनेकों जगह दुर्गम पहाड़ियों और गुफाओं में शैल चित्र (रॉक पेंटिंग) बनी हुई हैं। ये कितनी प्राचीन हैं इसका पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की मदद ली जानी चाहिए। ताकि यहां के दुर्लभ प्राचीन शैल चित्रों का संरक्षण हो सके। मालूम हो कि आदिमानवों द्वारा बनाये गए शैलचित्रों के कारण भीमबैठका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया गया है।

जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 18 किमी. दूर ग्राम जरधोवा के निकट पन्ना नेशनल पार्क के जंगल में स्थित गुफाओं व ऊँचे पहाड़ों की चट्टानों पर प्राचीन भित्त चित्र मिले हैं। हजारों वर्ष पूर्व आदिमानवों द्वारा पहाड़ों व गुफाओं में ये चित्र बनाये गये हैं, जो आज भी दृष्टिगोचर हो रहे हैं। राज्य वन्य प्राणी बोर्ड के पूर्व सदस्य एवं पर्यटन व्यवसाय से जुड़े श्यामेन्द्र सिंह बिन्नी राजा ने बताया कि पन्ना नेशनल पार्क के घने जंगलों में दर्जनों की संख्या में ऐसी गुफायें मौजूद हैं जहाँ हजारों वर्ष पूर्व आदिमानव निवास करते रहे हैं। उस समय चूंकि खेती शुरू नहीं हुई थी, इसलिए आदिमानव पूरी तरह से जंगल व वन्यजीवों पर ही आश्रित रहते थे। वन्यजीवों का शिकार करके वे अपनी भूख मिटाते थे। यहाँ की गुफाओं व पहाड़ों की शेल्टर वाली चट्टानों पर उस समय के आदिमानवों की जीवनचर्या का बहुत ही सजीव चित्रण किया गया है। भित्त चित्रों में वन्यजीवों के साथ-साथ शिकार करने के दृश्य भी दिखाये गये हैं।

जरधोवा गांव की पहाड़ी का वह शेल्टर जहां चट्टानों पर शैल चित्र आदिमानवों ने बनाए हैं। (फोटो - अरुण सिंह)


वन्य जीवों का शिकार करने के लिए आदिमानवों द्वारा तीर कमान का उपयोग किया गया है। चित्रों से यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं होता कि तीर की नोक लोहा  की है या फिर नुकीले पत्थर अथवा हड्डी से उसे तैयार किया गया है। यदि तीर की नोक लोहा से निर्मित नहीं है तो शैल चित्र पाषाण काल के हो सकते हैं।पन्ना नेशनल पार्क के अलावा भी जिले के अन्य वन क्षेत्रों में भी इस तरह के शैल चित्र पाये गए हैं। जानकारों के मुताबिक बराछ की पहाड़ी, बृहस्पति कुण्ड की गुफाओं व सारंग की पहाड़ी में भी कई स्थानों पर आदिमानवों द्वारा बनाई गई रॉक पेंटिंग मौजूद हैं। लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक शासन व प्रशासन का ध्यान इन प्राचीन धरोहरों के संरक्षण की ओर नहीं गया। ऐसी स्थिति में उन स्थानों पर जहाँ लोगों की आवाजाही अधिक है तथा सहजता से जहाँ लोग पहुँच जाते हैं वहाँ की रॉक पेंटिंग नष्ट हो रही हैं। इन रॉक पेंटिंग (शैल चित्र) की महत्ता से अनजान लोग चट्टानों की दीवालों पर बनी इन पेंटिंग्स के आस-पास कोयला या पत्थर से खुद भी चित्र बनाकर अपना नाम लिख देते हैं, जिससे अमूल्य धरोहर नष्ट हो रही है।

आदिमानवों द्वारा बनाई गई इन प्राचीन शैल चित्रों को देखने हमने जरधोवा, बराछ की पहाड़ी, बृहस्पति कुण्ड का भ्रमण किया। जरधोवा गांव के निकट दुर्गम पहाड़ी पर एक विशालकाय चट्टान का शेल्टर है, जिसके नीचे दर्जनों लोग बैठकर विश्राम कर सकते हैं। पहाड़ी के ऊपर अत्यधिक ऊँचाई पर यह स्थान होने के कारण यहाँ से मीलों दूर तक जंगल का नजारा दिखाई देता है। इस शेल्टर की बनावट व स्थिति को देख ऐसा लगता है कि यहाँ पर आदिमानव विश्राम करते रहे होंगे और शिकार करने के लिए जंगल के किस हिस्से में जानवर अधिक संख्या में मौजूद हैं इस बात का भी जायजा लेते रहे होंगे । इस शेल्टर की खूबी यह है कि बारिश होने पर न तो यहाँ  बारिश का पानी पहुंच सकता है और न ही धूप,यहाँ पर गर्मी के दिनों में भी शीतलता का अहसास होता है। इस शेल्टर की भित्त पर शिकार करने के अनेकों दृश्य बने हुये हैं।

पन्ना टाइगर रिजर्व का जंगल जहां कभी आदिमानव रहते रहे हैं। (फोटो - अरुण सिंह)


जरधोवा गांव के मेघन सिंह (60 वर्ष) पूर्व जनपद सदस्य बताते हैं कि सैकड़ों वर्ष पूर्व इस जंगल में गोंड़ राजाओं के समय काछा नाम का गांव आबाद था जो गोंड़ शासन खत्म होने के बाद उजड़ गया। पहाड़ी पर स्थित शेल्टर जहाँ  भित्त चित्र मौजूद हैं उस स्थान को घुटइयां के नाम से जाना जाता है। स्थान अत्यधिक दुर्गम होने के कारण तथा पुरानी मान्यताओं के चलते गांव के लोग यहाँ नहीं जाते। ग्रामीणों की मान्यता है कि वहाँ चुडैलों का वास है,  इसलिए वहाँ जाने से अनर्थ हो सकता है ।

पेन्टिंग को खून की पुतरिया कहते हैं ग्रामीण

बियावान जंगल में स्थित गुफाओं व पहाड़  की चट्टानों पर लाल रंग से अंकित शिकार के दृश्यों को गांव के आदिवासी खून की पुतरिया कहते हैं। प्रेमबाई गोंड (65 वर्ष) बताती हैं कि इन स्थानों पर वास करने वाली चुडैलें नवजात शिशुओं को मारकर उनके रक्त से ये चित्र बनाती हैं। इसी मान्यता के चलते गांव के लोग भित्त चित्र वाले स्थानों पर जाना तो दूर उस तरफ रुख भी नहीं करते। गांव के बड़े बुजुर्ग पूरे भरोसे के साथ यह बताते हैं कि आदिमानवों द्वारा नहीं  बल्कि चुडैलों द्वारा ही  गुफाओं में जगह-जगह खून की पुतरिया बनाई गई हैं, जो कोई भी वहाँ जायेगा वह चुडैलों के कोप का शिकार हो सकता है। अनर्थ होने की आशंका से गांव का कोई भी व्यक्ति इन खुन की पुतरियों के पास नहीं फटकता। इसी पुरानी मान्यता के चलते जरधोवा गांव की दुर्गम पहाड़ी के शेल्टर में बने शैल चित्र काफी हद तक आज भी सुरक्षित हैं।

वन और पर्यावरण पर विशेष रूचि रखने वाले श्यामेन्द्र सिंह बिन्नी राजा का कहना है कि जरधोवा के जंगल की रॉक पेन्टिंग कई हजार वर्ष पूर्व पुरानी है। जो दुर्लभ और पुरा महत्व की है । आपने बताया कि हजारों वर्ष पूर्व इस पूरे इलाके में आदिमानव रहते रहे हैं, इसके चिह्न पेन्टिंग के रूप में आज भी मौजूद हैं। यहाँ  के जंगलों में यदा-कदा आदिमानवों द्वारा शिकार के लिए उपयोग में लाये जाने वाले पत्थर के नुकीले हïथियार भी मिल जाते हैं। हजारों साल गुजर जाने के बाद भी भित्त चित्र नष्ट नहीं हुए, इसकी वजह का खुलासा करते हुए आपने बताया कि ये वनस्पति रंग से बने हैं। बनस्पतियों और पेड़ पौधों के रंग से आदिमानवों ने ये शिकार के दृश्य अंकित किये हैं।

दुर्लभ शैल चित्रों का संरक्षण जरूरी


अकोला बफर क्षेत्र में बराछ गांव के पास की पहाड़ी में बने शैल चित्रों के बारे में जानकारी हासिल करते स्कूली बच्चे। (फोटो - अरुण सिंह)

पर्यावरण संरक्षण के हिमायती व वन्य जीव प्रेमी हनुमंत सिंह का कहना है कि पन्ना के जंगलों में मिले शैल चित्र हजारों वर्ष पुराने हैं। इन शैल चित्रों का हर हाल में संरक्षण होना चाहिए। क्योंकि इन दुर्लभ धरोहरों से मानव विकास के इतिहास का ज्ञान होता है। आने वाले समय में इन शैल चित्रों का पर्यटन के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। हनुमंत सिंह कहते हैं कि वन व पर्यावरण का संरक्षण करने के साथ-साथ यदि इन दुर्लभ शैल चित्रों को भी संरक्षित किया जाय तो इन प्राचीन धरोहरों से समृद्ध पन्ना के जंगल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन सकते हैं।

बिजावर व किशनगढ़ क्षेत्र में भी मिले शैल चित्र


छतरपुर जिले के किशनगढ़ क्षेत्र में मिले शैल चित्र दिखाते हुए समाजसेवी। (फोटो- अमित भटनागर)

सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर ने बताया कि महाराजा कॉलेज के प्रोफेसर पुरातत्वविद एस. के. छारी के 2016 के शोध पत्र में छतरपुर जिले में शैलचित्रों की बात कही गई है, जिसके बाद कई स्थानों पर शैलचित्र पाए गए। किशनगढ़ क्षेत्र में शैल चित्रों की संभावनाओं को देखते हुए अमित भटनागर व उनके साथियों ने इस पूरे इलाके में शैल चित्रों को खोजने की मुहिम चलाई। अमित का कहना है कि कई महीनों की मेहनत के बाद किशनगढ़, ककरा नरौली,पटोरी, आमा पहाडी, कूपी सहित क्षेत्र में कई स्थानों पर शैलचित्र पाए गए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर का कहना है कि बिजावर के जंगलों में मध्य पाषाण काल के शैल चित्रों का होना सिर्फ बुंदेलखंड ही नहीं पूरे भारत के लिए गरिमा की बात है। उनका कहना है कि हमारे लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हम इतनी अनमोल अपनी धरोहर की देखभाल भी नहीं कर पा रहे हैं। अमित ने बताया कि पूरे क्षेत्र में आदिम युग के हथियार और उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुएं भी होंगी। सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा इन मध्य पाषाण कालीन शैल चित्रों के संरक्षण व इन्हें विश्व स्मारक घोषित करने की मांग भी उठाई है।

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Wednesday, March 23, 2022

वन व जीव जंतुओं के साथ हमारा पुराना नजदीकी रिश्ता

पद्मश्री बाबूलाल दाहिया : बघेली कवि व कृषक  
                 

 ।। बाबूलाल दाहिया ।।

वन का मनुष्य व तमाम जीव जंतुओं के साथ बड़ा पुराना नजदीकी का रिश्ता रहा है। हमारे प्राचीन मनीषियों ने जीवों की अंडज, पिण्डज, स्वदज एवं जरायुज आदि 4 उत्पत्ति की श्रेणियां बनाई थी, उन में जरायुज का आशय पेड़ पौधों से ही था। पर उनका जीव जगत का एक वर्गी करण और भी बड़ा ही सटीक था। वह है स्थावर और जंगम प्राणी।

स्थावर वे पेड़ पौधे बनस्पतियाँ हैं जो जहाँ उगते हैं वही रह जाते हैं। आग लगे तो जल जाएंगे, बाढ़ आयेगी तो डूब जायेंगे, पर भाग कर नहीं जाएगे ? किन्तु जंगम प्राणी हम मनुष्य सहित तमाम पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े आदि सभी चलने फिरने वाले प्राणी हैं जो खतरे को भाप इधर उधर भाग सकते हैं ? पर इन दोनों तरह के प्राणियों का बड़ा ही आपसी गहरा सम्बन्ध है ? यहां तक कि अगर एक न हो तो दूसरा अपने आप समाप्त हो जायगा। हमारे इन स्थावर बन्धुओ के पास आँख, कान, नाक आदि तो नहीं दिखाई पड़ते ? पर लगते बड़े ही चालाक हैं। और हमसे जो उनका स्वार्थ है वह यह है कि वे सूर्य के प्रकाश और पत्तियों से अपना भोजन तो तैयार कर सकते हैं पर उसमें लगने वाली एक गैस कार्बन डाईआक्साइड वे हम जंगम प्राणियों से ही लेते हैं ?

हम लोग उनके इर्द गिर्द मंडराते रहें, इसका अगर गहराई से अध्ययन किया जाय तो उनकी चतुराई पर आप दाद दिए बिना नहीं रह सकेंगे ? वह यह कि हर पौधा जमीन से एक जैसा हवा, पानी और सूर्य से धूप ग्रहण करता है किन्तु फल फूल और पत्तियां कुछ में साथ-साथ तो कुछ में अलग-अलग समय में आती है। आम, जामुन, महुआ, अचार, तेंदू, कटाई, बेल अगर चैत्र से असाढ़ तक फल देंगे तो कठजमुना, कोसम, लभेर, सीताफल आदि सावन से कार्तिक तक ? उधर बेर ,अमरूद, कैथा, आदि अगहन से फागुन तक, पर ऊमर, बरगद ,पीपल की डाल कभी फलों से खाली ही न होगी ? कि "खूब खाओ और हमारे इर्द गिर्द मेड़राते रहो।" 

इसी तरह कुछ छोटे मझोले पत्तियों वाले पेड़ नीम, आम, महुआ, सरई, कैथा आदि में तो नई कोपले और पत्तियां चैत बैसाख में ही आ जायेंगी, कि जीव जन्तु छाया में आराम फरमाये और कार्बन डाइऑक्साइड का उनके लिए उत्सर्जन करते रहें। लेकिन बड़े पत्ते वाला सागौन और पलास अपनी पत्तियां अषाढ़  में ही उगायेंगे ? वह इसलिए जिससे जीव जन्तु उनके नीचे खड़े होकर पानी की बौछार से अपनी रक्षा कर सकें ? अब गौर कीजिए कि वे हमारी कितनी आवश्यकताओं और कमजोरियों से वाकिफ हैं ? अगर कोई अपनी पत्नी से अधिक प्यार करता है तो लोग उसे "जोरू के गुलाम" नामक मुहावरे से नवाजने लगते हैं। पर मनुष्य कहाँ है जोरू का गुलाम ? वह तो पेड़ पौधों का गुलाम अधिक दिख रहा है ? अगर आम, केला, अमरूद ने अपने मीठे फलों से उसे मुग्ध कर रखा है, जिससे वह अपने बाग़ में उसे लगाने के लिए बाध्य सा है ? तो बेला,चमेली, रातरानी खुशबू से और गुलाब, अमलतास, केक्टस आदि खूबसूरती से उसे अपना चहेता बनाए हुए हैं।

लेकिन एक स्वार्थ को तो हम भूल ही रहे हैं कि जैसे हम उन्हें कार्बन डाइऑक्साइड देते हैं, उसी तरह वे हमें प्राण वायु आक्सीजन भी तो देते हैं। जिसे हमें नजर अंदाज नहीं करना चाहिए ? हम जंगम प्राणियों में बाकी प्राणी तो बेचारे आज भी आदिम जीवन शैली में जी रहे हैं। बस मनुष्यों ने ही प्रकृति के सारे नियमों को तहस-नहस किया है।

इसलिए आज स्थावर और जंगम प्राणियों के अंतर सम्बन्धो को हमे ही खूब अच्छी तरह समझने की जरूरत है। और यही जानने के लिए विश्व वानिकी दिवस है भी ? फिर अगर पेड़ पौधे न रहेंगे तो वर्षा में भी तो कमी आयेगी। जो जीव जगत के लिए एक जरूरी प्राण रक्षक घटक है ?

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Tuesday, March 22, 2022

अब जल संकट का निदान बेचारे वरुण देव भी नहीं कर सकते ?

  • विश्व जल दिवस पर जल देवता के दुश्मनों को जानें  

 


 ।। बाबूलाल दाहिया ।।  

आज विश्व जल दिवस है। जल को हमारी संस्कृति में देवता का दर्जा मिला हुआ है। हमारी धार्मिक मान्यताओं में बकायदे एक जल मंत्रालय है, जिसके देवता वरुण हैं। यही कारण है कि प्राचीन समय में जब अचानक बर्षा रुक जाती तो लोगो को वरुण देवता याद आ जाते थे और उनको प्रसन्न करने के पूजा अनुष्ठान होने लगते थे। पर आज का जल संकट अलग तरह का है। क्योंकि वह इस मानव रूपी दानव का ही दिया हुआ है। अस्तु इस संकट का निदान बेचारे वरुण देव भी नहीं कर सकते।

इस साल अपेक्षाकृत अधिक बारिश हुई है अस्तु हम अगहन पूस तक ग्लैड थे कि "चलो इस साल जल संकट नही आयेगा"। पर फागुन आते ही सारी खुसी रफू हो गई। जब लोग साईकल में डिब्बा बांधे इधर उधर जाते दिखने लगे। इसलिए हमें समय रहते अपने गाँव के जल देवता के दुश्मनों की तलाश करना आवश्यक प्रतीत होने लगा और हम कुछ दुश्मनों को चिन्हित करने में जुट भी गए।

दुश्मन न .1 -  कंक्रीट भवन व सड़क

जब तक गाँव में कच्चे मकान हुआ करते थे तो मिट्टी लेने के लिए घर के समीप ही गढ़इन खोदनी पड़ती थी। उसमें वर्षा का पानी अपने आप एकत्र होकर धरती को पानी दार बनाता था । पर अब पक्की सड़क कंक्रीट के भवन गाँव के पानी को सीघ्र ही नाली से नाला और नाला से नदी में पहुचा देते हैं एवं धरती अच्छी वर्षा के बाबजूद भी प्यासी की प्यासी ही रही आती है।

दुश्मन न . 2 - सोयाबीन महराज

पहले गाँव में बड़े- बड़े बांध होते थे, जिनमें असाढ़ से क्वार तक पानी भरा रहता था और वह गाँव के जल स्तर को बढ़ाता था। पर अब उन सोयाबीन जी को बोने के लिए लोग असाढ़ में ही बांध को फोड देते हैं।

दुश्मन न .- 3 तलाब फोड़ कर खेती

पहले तलाब बनवाना एक पुन्न का कार्य माना जाता था। तालाब कोई बनवाये पर उसका उद्देश्य सार्वजनिक हित ही होता था। उससे गाँव का जल स्तर भी बढ़ता था। पर अब लोग तालाब फोड़ कर भी खेती करने लगे हैं। कहीं-कहीं पोखर तालाबों को भाठ कर  मकान भी बना लिए गये हैं। इसलिए जल स्तर उत्तरोत्तर घट रहा है।

दुश्मन न. - 4  बैज्ञानिक खेती 

पुरानी वर्षा आधारित खेती में जो अनाज उगाये जाते थे वे यहां की जलवायु में हजारो वर्षों के रचे बसे होते थे। इसलिए कम वर्षा में भी ठोस और चिलक दार उपज देते थे। पर नए आयातित अनाजों में चार बार सिचाई अनिवार्य है। इसलिए लोग जमीन का 4 सौ 5 सौ फीट तक का पानी निकाल लेते हैं। जिसका अर्थ यह होता है कि अब अगर 1 क्विंटल गेहूं की उपज लेकर गांव के बाहर भेजते हैं तो गाँव का 1 लाख लीटर पानी बाहर जा रहा है। एक किलो धान उगाते हैं तो 3 हजार लीटर पानी धरती से निकाल रहे हैं।

 दुश्मन न.- 5   जंगल विनाश

पहले गाँव के आस-पास घने जंगल थे, तो आकाश से उड़कर जाते बादल पर्याप्त नमी के कारण नीचे उतर वर्षा करने लगते थे। पर अब पेड़ो के कट जाने के कारण गर्म कार्बन डाइऑक्साइड बादलों को और ऊंचा उठा देती है। इसलिए वे बगैर बारिश किए ही आगे चले जाते हैं। आप माने न माने पर बस यही सब जल देवता के दुश्मन हैं। हम विकास के दुश्मन नही हैं, पर हो रहे कथित विकास के नाम पर विनाश के दुष्परिणाम को भी देख रहे हैं। 

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Sunday, March 20, 2022

मुरली मुकुट छीन पहनाय दियो घाघरा चोली, यशोदा के लाल को दुलैया सो सजायो है

  •  पन्ना के श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में कायम है अनूठी परम्परा
  •   वर्ष में एक बार चैत्र मास की तृतीया को होते हैं सखी वेष के दर्शन

सखी वेष में राधिका जी के संग श्री जुगल किशोर जी की मनोरम झाँकी। 


।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। मध्यप्रदेश में मंदिरों के शहर पन्ना में हर तीज त्योहार बड़े ही अनूठे और निराले अंदाज में मनाया जाता है। रंगों के पर्व होली पर यहाँ के सुप्रसिद्ध भगवान श्री जुगल किशोर जी मंदिर की छटा देखते ही बनती है। चैत्र मास की तृतीया को यहां भगवान श्री जुगुल किशोर जी सखी वेष धारण करते हैं। भगवान के इस नयनाभिराम अलौकिक स्वरूप के दर्शन वर्ष में सिर्फ एक बार होली के बाद तृतीया को ही होते हैं। यही वजह है कि सखी वेष के दर्शन करने पन्ना के श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। 

"मुरली मुकुट छीन पहनाय दियो घाघरा चोली, यशोदा के लाल को दुलैया सो सजायो है"

कृष्ण की भक्ति में लीन महिलायें जब ढोलक की थाप पर इस तरह के होली गीत गाते हुये गुलाल उड़ाकर नृत्य करती हैं तो म.प्र. के पन्ना शहर में स्थित सुप्रसिद्ध श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में वृन्दावन जीवंत हो उठता है।

फ़ाग की भोर अबीरन में, गहि गोविन्द ले गई भीतर गोरी ।

खूब करी मन की पद्माकर, ऊपर नाइ अबीर की झोरी ।।

छीन पीताम्बर कटि तटि सो, लगाय दई व ने माथे पे रोरी। 

नैन नचाये कहे मुस्काये, अइयो लला फिर खेलन होरी ।।    

उल्लेखनीय है कि मन्दिरों के शहर पन्ना में स्थित श्री जुगुल किशोर जी का मन्दिर जन आस्था का केन्द्र है। इस भव्य और अनूठे मन्दिर में रंगों का पर्व होली वृन्दावन की तर्ज पर मनाया जाता है। कोरोना संक्रमण का खतरा कम होने तथा सोशल डिस्टेंसिंग जैसी बंदिशों में ढील मिलने से इस वर्ष तृतीया के दिन रविवार को सखी वेष के दर्शन करने श्रद्धालु उमड़ पड़े। श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर की रंगत आज देखते ही बन रही थी। सुबह 5 बजे से ही महिला श्रद्धालुओं का सैलाब भगवान के सखी वेष को निहारने और उनके सानिद्ध में गुलाल की होली खेलने के लिये उमड़ पड़ा। ढोलक की थाप और मजीरों की सुमधुर ध्वनि के बीच महिला श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य की भक्ति और प्रेम में लीन होकर जब होली गीत और फाग गाया तो सभी के पाँव स्वमेव थिरकने लगे। 

सखी को वेष बना लौ कन्हैया, जा आई कहाँ की नार

सखी को वेष बना लौ कन्हैया.......

नंद बाबा की गुलनार, पकड़ के सखियाँ लाईं चार 

करो सब मन को है व्यवहार, दुलैया बना दई कन्हैया   

सखी को वेष बना लौ कन्हैया.......

फाग, नृत्य और गुलाल उड़ाने का यह सिलसिला सुबह 5 बजे से 11 बजे तक अनवरत चला। यह अनूठी परम्परा श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में साढ़े तीन सौ वर्ष से भी अधिक समय से चली आ रही है, जो आज भी कायम है। 

इस मन्दिर के प्रथम महन्त बाबा गोविन्ददास दीक्षित जी के वंशज देवी दीक्षित ने जानकारी देते हुये बताया कि सखी वेष के दर्शन की परम्परा प्रथम महन्त जी के समय ही शुरू हुई थी। इस अनूठी परम्परा की रोचक कहानी सुनाते हुए श्री दीक्षित बताते हैं कि नंदगांव में सबने मिलकर होली जलाई, इसके बाद नंदबाबा, बल्दाऊ व अन्य सब लोग लौटकर नंदगांव घर आ गए। लेकिन कन्हैया अपने ग्वाल बालों को लेकर बरसाने राधा जी के गांव पहुँच गये। वहां पहुंचकर इन लोगों ने रात में बृज गांव के सभी बछड़ों की रस्सी खोल दी। बंधन से आजाद होते ही बछड़े अपनी मां की तरफ दौड़ लगा दी और पूरा दूध पी गए। 

कन्हैया और ग्वाल बालों ने सिर्फ इतनी ही शरारत नहीं की अपितु इन्होंने गायों का गोबर उठाकर दरबाजों में डाल दिया। घरों में जब लोग गहरी नींद में सोये हुए थे उस समय भीतर घुसकर घरों में दूध-दही के सीके जो टंगे थे उन्हें फोड़ दिया। सुबह जब गांव की महिलाएं जगीं तो देखा कि " दही की कीच मचा गए कन्हैया"

कन्हैया और ग्वाल बालों की शरारतों से नाराज गांव के लोगों ने बरसाने में राजा वृषभान से शिकायत की। तो वे बोले कि नंदबाबा को लला शरारती तो है ही, उसका क्या उपाय किया जा सकता है ? तब राधा जी ने अपने पिता से कहा कि आप कुछ मत करो, मैं उपाय करती हूँ। राधिका जी ने अपनी सखियों ललिता, बिशाखा, चतुरा और सुन्दरा आदि को बुलाया और कचेहरी लगाई। "जिसमें ललिता बनी थानेदार और राधा बनी कप्तान, पकडे गए कृष्ण भगवान"। फिर इनको क्या सजा दी जाय कचेहरी में इसका निर्णय हुआ कि इनको (कन्हैया) दुलैया बना दिया जाय। तब राधिका जी ने अपना श्रंगार उतारकर कन्हैया को पहना दिया और कन्हैया का श्रंगार खुद धारण कर लिया। श्री दीक्षित बताते हैं कि इसी दिन से भगवान अर्द्धनारीश्वर कहलाये। 

मोर मुकुट मुरली सब छीनी, नथ बेसर उन दइ पहराय 

कर्ण फूल लल्लरी विराजत, शोभा हार कही न जाय 

जो पावे यहि रूप को दर्शन, कहे काम पूरन हो जाये।                 

गुलाल का ही मिलता है प्रसाद

परम्परा के अनुसार पन्ना के श्री जुगुल किशोर जी मन्दिर में चैत्र मास की तृतीया को गुलाल का ही प्रसाद श्रद्धालुओं को मिलता है। सखी वेष में भगवान जुगुल किशोर व मुरली मुकुट धारण किये राधिका जी के अलौकिक स्वरूप को निहारने जब महिला श्रद्धालु मन्दिर पहुँचती हैं तो उनका सत्कार गुलाल से ही होता है। आज के दिन सुबह 5 बजे से 11 बजे तक मन्दिर के भीतर सिर्फ महिला श्रद्धालुओं को प्रवेश मिलता है, जहां महिलायें एक-दूसरे को गुलाल लगाकर पूरे भक्ति भाव के साथ फाग और होली गीत गाती हैं। पूरा मन्दिर आज गुलाल के रंग में सराबोर नजर आता है। यहां पर रंगों के पर्व होली की पूरे पाँच दिनों तक धूम रहती है। दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुु यह गीत गुनगुनाते हुये पन्ना के जुगुल किशोर मुरलिया में हीरा जड़े हैं होली का उत्सव मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि चार धामों की यात्रा श्री जुगुल किशोर जी के दर्शन बिना अधूरी है।



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Friday, March 18, 2022

तो क्या केन-बेतवा परियोजना में डूबने से बच सकता है बाघों का घर ?

  •  प्रस्तावित बांध स्थल को पन्ना से पवई शिफ्ट करने की मांग 
  •  विधान सभा में बजट पर चर्चा के दौरान उठा यह मामला 

पन्ना टाइगर रिज़र्व के मध्य से होकर प्रवाहित होने वाली केन नदी जिसमें बांध बनना है।  

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व से होकर प्रवाहित होने वाली केन नदी के नैसर्गिक प्रवाह को रोककर पर्यटन पर आधारित एक मात्र आजीविका की धरोहर पन्ना टाईगर रिजर्व के बड़े हिस्से को डुबाने वाली केन-बेतवा लिंक परियोजना को लेकर नई चर्चा शुरू हुई है। सत्तारूढ़ और विपक्षी विधायकों ने राज्य विधानसभा में बजट पर चर्चा के दौरान केन-बेतवा परियोजना स्थल को पन्ना से पवई स्थानांतरित करने की मांग की है। 

भाजपा विधायक शैलेंद्र जैन व कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह का कहना है कि  "अगर केन-बेतवा परियोजना को बुंदेलखंड के पवई में स्थानांतरित किया जाता है, तो दो लाभ होंगे। पन्ना टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र जो बाघों का घर है वह डूबने से बच जायेगा साथ ही पन्ना सहित मध्य प्रदेश को सिंचाई के लिए ज्यादा पानी मिलेगा। भाजपा विधायक शैलेंद्र जैन ने लक्ष्मण सिंह का समर्थन करते हुए कहा कि अगर सिंह इस मुद्दे को उठाते हैं, तो वह इसका समर्थन करेंगे क्योंकि यह मध्य प्रदेश के लिए अच्छा है।

उल्लेखनीय है कि केन-बेतवा लिंक परियोजना के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के प्रमुख आवास का 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सा पानी में डूब सकता है। यदि इस क्षेत्र के कुल क्षेत्रफल की बात की जाए तो वो करीब 58.03 वर्ग किलोमीटर के बराबर बैठता है। वहीं अप्रत्यक्ष रूप से इस परियोजना के चलते बाघों के प्रमुख आवास का करीब 105.23 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा खतरे में है। पन्ना जिले के लोगों को चिंता इसी बात की है कि बाघों से आबाद हो चुके पन्ना टाइगर रिज़र्व से अब पर्यटन विकास के द्वार खुले हैं जिससे लोगों को रोजी रोजगार मिलने लगा है, ऐसी स्थिति में इसे फिर से उजाड़ना पन्ना जिले के साथ नाइंसाफी होगी। बांध स्थल को शिफ्ट किये जाने की सोच से पन्नावासी उत्साहित हैं क्योंकि ऐसा हुआ तो बांध भी बन जायेगा और राष्ट्रीय पशु बाघ का घर भी आबाद रहेगा।    

केंद्रीय बजट में 1,400 करोड़ रुपये आवंटित

केंद्र सरकार ने केन-बेतवा लिंकिंग परियोजना के कार्यान्वयन के लिए हालिया केंद्रीय बजट में 1,400 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। परियोजना के तहत केन नदी का पानी बेतवा नदी में स्थानांतरित किया जाएगा, दोनों यमुना नदी की सहायक नदियां हैं। यह परियोजना बुंदेलखंड को कवर करेगी, जो सूखा प्रभावित क्षेत्र है, जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिलों में फैला है। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर की वार्षिक सिंचाई, लगभग 62 लाख लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति और 103 मेगावाट जल विद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न होने की उम्मीद है।


इसमें कोई शक नहीं कि इस परियोजना की मदद से बुंदेलखंड क्षेत्र में रह रहे लोगों को सूखे से बड़ी राहत मिलेगी। लेकिन दूसरी तरफ अनुमान है कि इस परियोजना के चलते मध्य प्रदेश में पन्ना टाइगर रिजर्व का एक बढ़ा हिस्सा पानी में डूब जाएगा, जोकि वहां बाघों का प्रमुख आवास (क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट) भी है। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस परियोजना के चलते इस रिजर्व के काफी क्षेत्र में मौजूद जैव विविधता पर भी व्यापक असर पड़ेगा। गौरतलब है कि पन्ना टाइगर रिजर्व देश भर में बाघों के संरक्षण की सबसे सफल परियोजनाओं में से एक है। इसकी सफलता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं था, लेकिन अब यह वन क्षेत्र बाघों से न सिर्फ आबाद हो चुका है अपितु मौजूदा समय पन्ना लैंड स्केप में 70 से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। 

सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी की रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु

  • केन-बेतवा लिंक परियोजना के अन्तर्गत डूब में आने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का जंगल पारिस्थितिकी तंत्र और संरचना की दृष्टि से अनूठा है। जैव विविधता के मामले में भी यह क्षेत्र अत्यधिक समृद्ध है। इस तरह के पारिस्थितिकी तंत्र को पुन: विकसित नहीं किया जा सकता।
  • सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि परियोजना के लिये 6017 हेक्टेयर वन भूमि जो अधिगृहित की जा रही है, वह पन्ना टाईगर रिजर्व का न सिर्फ कोर क्षेत्र है अपितु बाघों का प्रिय रहवास भी है। इस वन क्षेत्र के डूब में आने से 10,500 हेक्टेयर वन क्षेत्र और प्रभावित होगा। यह वन क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व से पृथक होकर दो टुकड़ों में बँट जायेगा, जिससे वन्य प्राणियों का आवागमन बाधित होगा।
  • परियोजना पर जितना पैसा खर्च होगा उससे प्रति हेक्टेयर सिंचाई  में 44.983 लाख रू. व्यय आयेगा। यदि स्थानीय स्तर पर गाँव के पानी को गाँव में ही रोकने के लिये छोटी परियोजनाओं व जल संरचनाओं पर ध्यान दिया जाये तो कम खर्च में न सिर्फ कृषि भूमि सिंचित हो सकती है अपितु जंगल, बाघ व वन्य प्राणियों के रहवास को भी बचाया जा सकता है।
  • सीईसी ने नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ द्वारा केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के लिये सहमति प्रदान करने के निर्णय पर प्रश्र चिह्न लगाते हुये कहा है कि वन्य प्राणियों के रहवास, अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता को अनदेखा किया गया है। डूब क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर एरिया है, इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया।
  • सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी ने रिपोर्ट में  द्रढता के साथ यह बात कही है कि किसी भी विकास परियोजना को देश  में बचे इस तरह के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और बाघों के अति महत्वपूर्ण रहवासों को नष्ट करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिये। बेहतर यह होगा कि इस तरह की परियोजनाओं को संरक्षित वन क्षेत्रों से प्रथक रखा जाय। संरक्षित वन क्षेत्रों में इस तरह की विकास परियोजनायें न तो वन्य प्राणियों के हित में हैं और न ही लम्बे समय तक समाज के हित में है।

लिंक परियोजना से जुड़े कुछ तथ्य

  • बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवनदायिनी केन नदी की कुल लम्बाई 427 किमी है।
  • जहां बांध बन रहा है वहां से केन नदी की डाउन स्ट्रीम की लम्बाई 270 किमी है।
  • बांध की कुल लम्बाई 2031 मीटर जिसमें कांक्रीट डेम का हिस्सा 798 मीटर व मिट्टी के बांध की लम्बाई 1233 मीटर है। बांध की ऊँचाई 77 मीटर है।
  • ढोढऩ बांध से बेतवा नदी में पानी ले जाने वाली लिंक कैनाल की लम्बाई 220.624 किमी होगी।
  • बांध का डूब क्षेत्र 9 हजार हेक्टेयर है, जिसका 90 फीसदी से भी अधिक क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में निहित है।
  • 105 वर्ग किमी. का कोर क्षेत्र जो छतरपुर जिले में है, डूब क्षेत्र के कारण विभाजित हो जायेगा। इस प्रकार कुल 197 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र डूब व विभाजन के कारण नष्ट हो जायेगा।

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Friday, March 11, 2022

इटवांकलां गांव में विद्युत उपकेन्द्र का खनिज मंत्री ने किया भूमिपूजन

  • क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का विकास होगा : बृजेन्द्र प्रताप सिंह
  • नवीन उपकेन्द्र बनने से लो वोल्टेज की समस्या से मिलेगी निजात 

 

इटवांकलां गांव में नवीन 33/11 के.व्ही. उपकेन्द्र का भूमिपूजन करते खनिज मंत्री श्री सिंह 

पन्ना। आमजन की  समस्याओं का समय-सीमा में समाधान किया जाएगा। क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का विकास होगा। यह बात प्रदेश के खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने जनपद पंचायत पन्ना के ग्राम इटवांकलां में 2 करोड़ 51 लाख रू. की लागत के नवीन 33/11 के.व्ही. उपकेन्द्र का भूमिपूजन अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि नवीन उपकेन्द्र के बन जाने के बाद बिजली की लो वोल्टेज की समस्या से निजात मिलेगी। इससे लगभग 20 ग्रामों के 10 हजार कृषक और घरेलू उपभोक्ता लाभांवित होंगे। 

खनिज मंत्री श्री सिंह ने कहा कि उपभोक्ताओं के लाभ के लिए निर्माण कार्य की टेण्डर प्रक्रिया शीघ्र पूर्ण कर आगामी 6 माह में उपकेन्द्र के लोकार्पण की तैयारी पूरी की जाएगी। उन्होंने कहा कि अजयगढ़ में 220 केव्ही का विद्युत सब स्टेशन स्वीकृत हो गया है। इसकी स्थापना के बाद पन्ना सहित छतरपुर में भी विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था सुनिश्चित होगी। खनिज मंत्री ने विद्युत उपकेेन्द्र के जमीन आवंटन के लिए जिला कलेक्टर के प्रयास की सराहना की। उन्होंने कहा कि पहाड़ीखेरा में भी विद्युत उपकेन्द्र का भूमिपूजन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि क्षेत्रवासियों की मांग पर गत दिनों 50 लाख रूपये की लागत से बनने वाले लुधगवां-बराछ मार्ग के लिए रपटा निर्माण का भूमिपूजन किया गया था, जिसका गत 2 दिन पहले काम भी शुरू हो गया है।

डोभा बना नवीन राजस्व ग्राम

खनिज साधन मंत्री एवं कलेक्टर ने डोभा के नवीन राजस्व ग्राम बनने पर ग्रामवासियों को शुभकामनाएं दीं और सरपंच को नवीन राजस्व ग्राम का प्रमाण पत्र सौंपा। मंत्री श्री सिंह ने कहा कि राजस्व ग्राम घोषित होने के बाद पीएम आवास सहित सभी सरकारी योजनाओं का लाभ ग्रामीणजनों को मिलेगा। भविष्य में ग्राम पंचायत का दर्जा भी मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि आगामी दिनों में मडैय़न भी राजस्व ग्राम बनेगा। यहां के लोगों को 5 करोड़ 73 लाख रूपये लागत की सड़क सुविधा का लाभ भी मिलेगा। उन्होंने कहा कि वन विभाग के अधिकारियों से चर्चा कर सड़क निर्माण की बाधाओं को दूर किया जाएगा। 


उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ग के लिए कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं। किसान सम्मान निधि, राशन वितरण, आवास योजना जैसी जनहितैषी योजनाओं से हितग्राही लाभांवित हुए हैं। वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल के माध्यम से शुद्ध पेयजल भी मिलने लगेगा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जनकल्याण (संबल) योजना को वर्तमान सरकार द्वारा दोबारा शुरू किया गया है। आगामी दिनों में मुख्यमंत्री कन्या विवाह और तीर्थ दर्शन योजना भी शुरू होगी। आवास प्लस सर्वे के माध्यम से वंचित गरीब हितग्राहियों को पक्के आवास की सुविधा प्रदान की जाएगी। स्वामित्व योजना के तहत हितग्राहियों को मालिकाना हक प्रदान कर भू-अधिकार पत्र और पट्टे का वितरण भी किया जाएगा।खनिज मंत्री ने कहा कि इटवांकला को शासकीय हाई स्कूल की सौगात भी मिलेगी। ग्रामीणजनों से सतत संपर्क और संवाद कर सुख-दुख में सहभागी बन कर जनप्रतिनिधि के कर्तव्य का निर्वहन करेंगे।

 जिला पंचायत अध्यक्ष रविराज यादव ने कहा कि खनिज मंत्री की विकास के नाम पर पहचान बनी है। वे जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरे हैं और समर्पित जनप्रतिनिधि साबित हुए हैं। उन्होंने ग्रामवासियों को राजस्व ग्राम बनने की शुभकामनाएं दीं। जिला पंचायत उपाध्यक्ष माधवेन्द्र सिंह ने कहा कि क्षेत्र के विद्युत उपभोक्ताओं की बहुप्रतीक्षित मांग का निराकरण हुआ है। यह किसानों के लिए दिवाली जेैसा उत्सव है।

कलेक्टर श्री संजय कुमार मिश्र ने कहा कि समयावधि में विकास कार्यों को पूर्ण करना सर्वोच्च प्राथमिकता है। उपकेन्द्र के निर्माण के लिए 24 घंटे में जमीन आवंटन की प्रक्रिया पूर्ण की गई है। सभी विकास कार्यों को कार्ययोजना के साथ समय सीमा में पूरा कराने का भरोसा दिया। उन्होंने कहा कि पन्ना जिले में स्वामित्व योजना के तहत भू-अधिकार के लिए सर्वे का कार्य शुरू हो गया है। कलेक्टर श्री मिश्र ने ऊर्जा साक्षरता अभियान में सहभागी बन कर लोगों से बिजली की बचत करने की अपील की। पूर्व विधायक राजेश वर्मा और बुन्देलखण्ड विकास प्राधिकरण के पूर्व उपाध्यक्ष जय प्रकाश चतुर्वेदी ने भी ग्रामवासियों को संबोधित किया। विद्युत विभाग के अधीक्षण यंत्री शरद श्रीवास्तव ने उप केन्द्र से संबंधित जानकारियों के बारे में अवगत कराया। कार्यपालन यंत्री प्रशांत वैद्य ने आभार प्रदर्शन किया। कार्यक्रम का संचालन परियोजना अधिकारी संजय सिंह परिहार द्वारा किया गया। इस अवसर पर विवेक मिश्रा, पूनम यादव, ऊषा सोनी, अमिता बागरी, बाबी राजा, सुशील त्रिपाठी सहित अधिकारी-कर्मचारी और बड़ी संख्या में ग्रामवासी उपस्थित थे।

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Saturday, March 5, 2022

दूरगामी सोच एवं भावना से जुड़ा है अंकुर अभियान

  • जब तक त्रिवेणी रहेगी, सांस कम नहीं होगी
  • समर्थन  संस्था ने 1846 पौधों का किया रोपण


पन्ना। पेड़-पौधे हमारे जीवन का आधार एवं संस्कृति कें अंग रहे हैं। पेड़-पौधे के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। धरती पर मनुष्य के जीवन को सहेजने एवं जीने में वृक्षों का अपना विशेष महत्व है। हमारे धर्म ग्रन्थो में त्रिवेणी अर्थात पीपल,बरगद एवं नीम के वृक्षों का पूजा एवं कर्मकांण्ड में विशेष महत्व है। इन जीवनदायी पौधों की एक साथ मौजूदगी को त्रिवेणी के नाम से जाना जाता है। रसीले फलदार वृक्ष स्वाद के साथ-साथ हमें पोषण भी प्रदान करते हैं। आम,नीबू, आंवला, ईमली, मुनगा जैसे कई पौधे भोज्य पदार्थ में स्वाद एवं पोषण की द्रष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। 

पन्ना जिले में स्वयेसेवी संस्था समर्थन ने 18 गांव में 1846 पौधों का रोपण कराया जाकर वायुदूत एप में अपलोड किया गया है। जो निश्चित ही कल्याणकारी और पर्यावरण को समृद्ध करने की सराहनीय पहल है। जिले के विल्हा गांव से पौधरोपण का शुरू हुआ यह सफर 5 मार्च को कुंजवन गांव में पूरा हुआ। इस मौके पर पौधरोपण कार्यक्रम को आगे भी अनवरत जारी रखने का संकल्प लिया गया। समर्थन संस्था के रीजनल क्वार्डिनेटर ज्ञानेंद्र तिवारी ने बताया कि सभी पौधे किसान परिवारों ने लगाये हैं। उन्होने रोपे गए पौधों को अपने स्वजनो के नाम पर लगाया एवं उनकी समुचित देखरेख कर उन्हें बड़ा करने का संकल्प भी लिया।

ग्राम विल्हा में बच्चो के जन्म, शादी एवं उत्सव में पौधारोपण करने का प्रस्ताव महिलाओ ने अपनी बैठक में लिया। समर्थन टीम ने 150 पौधे किसानो के ही खेत में स्वयं रोपे, जिसका भुगतान टीम के सदस्यो ने किया। सभी पौधे फलदार हैं जो जलसंरक्षण एवं आमदनी का जरिया बन किसान को आत्मनिर्भर  बनने में मददगार साबित होंगे। अंकुर अभियान एक जिम्मेदारी का एहसास है, हम सब अपने पर्यावरण को बेहतर बनाये रखें क्योंकि हम सब के जीवन में इसका महत्व है। 

अंकुर अभियान के पांचवे दिन पीपल,बरगद एवं नीम का एक साथ कुजवन में देवी मन्दिर के पास समिति के अध्यक्ष ध्रुव कुमार मंडल एवं संजीत मंडल के सहयोग से लगावाया गया। इसमें जिले के पत्रकार अरूण सिंह, मानसी संस्था के निदेशक सुदीप श्रीवास्तव एवं समर्थन से ज्ञानेन्द्र तिवारी,अंकुर पाण्डेय, प्रदीप पिड़िहा, लखन लाल, चालीराला उपस्थिति रहे। अंत में सभी ने लगाये गये पौधों को संरक्षित करने की सपथ ली। 

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पन्ना टाइगर रिजर्व में तीन दिवसीय पक्षी सर्वेक्षण कार्य शुरू

  • जैव विविधता,सुरक्षा,संरक्षण और पक्षियों की संख्या के बारे में जानकारी मिलेगी
  • आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश के खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने किया शुभारंभ


पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में तीन दिवसीय पक्षी सर्वेक्षण कार्य शुरू हो गया है। प्रदेश के खनिज साधन एवं श्रम मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने शुक्रवार को मड़ला के कर्णावती व्याख्यान केन्द्र में आयोजित कार्यक्रम में पन्ना टाइगर रिजर्व के पहले पक्षी सर्वेक्षण कार्य का प्रतीक चिन्ह अनावरण कर शुभारंभ किया। नवीन टूरिस्ट गाइड को दूरबीन और पुस्तक एवं वालंटियर को टी-शर्ट और कैप का वितरण किया गया। इस अवसर पर पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक सहित टूरिस्ट गाइड, वालंटियर और जिप्सी चालक उपस्थित थे।

मंत्री श्री सिंह ने कहा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे पक्षी विशेषज्ञों के सानिध्य में टूरिस्ट गाइड को पक्षियों के बारे में नवीन जानकारियों से अवगत होने का मौका मिलेगा। यह नये पक्षियों की खोज के लिए भी बेहतर अवसर है। उन्होंने कहा कि हीरा और मंदिरों के बाद पन्ना टाइगर रिजर्व की देश में अलग पहचान स्थापित हुई है। यहां बाघ की संख्या में वृद्धि के प्रयास के फलस्वरूप अब इनकी संख्या 70 से अधिक हो गई है।

उन्होंने कहा कि पन्ना टाइगर रिजर्व के मड़ला और हिनौता पर्यटक प्रवेश द्वार के अतिरिक्त रमपुरा प्रवेश द्वार को भी पर्यटकों के लिए खोला जाएगा। टाइगर रिजर्व में गिद्धों की उपस्थिति के कारण भी यह आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण भी पन्ना टाइगर रिजर्व ने अलग पहचान स्थापित की है।

पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक ने तीन दिवसीय बर्ड सर्वेक्षण कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इसके माध्यम से जैव विविधता, सुरक्षा, संरक्षण और पक्षियों की संख्या के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी। टूरिस्ट गाइड की आजीविका में भी वृद्धि होगी। उन्होंने बताया कि 22 राज्यों और तीन केन्द्र शासित प्रदेश के 450 पक्षी विशेषज्ञों द्वारा बर्ड सर्वे के लिए इच्छा जाहिर की गई थी। इनमें से 60 विशेषज्ञों का चयन किया गया है।

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