Friday, May 27, 2022

त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव की बढ़ गई सरगर्मी

  • पन्ना जिले में 6 लाख 51 हजार से अधिक मतदाता करेंगे मताधिकार का प्रयोग  



पन्ना। राज्य निर्वाचन आयोग, भोपाल द्वारा त्रि-स्तरीय पंचायत आम चुनाव 2022 की घोषणा किये जाने के साथ ही चुनावी सरगर्मी बढ़ गई है। पन्ना जिले में जिला एवं जनपद पंचायत सदस्य तथा पंच-सरपंच पद के लिए दो चरणों में मतदान होगा। प्रथम चरण में 25 जून को पन्ना एवं अजयगढ़ तथा द्वितीय चरण में 1 जुलाई को गुनौर, पवई एवं शाहनगर विकासखण्ड में मतदान होगा। त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव में कुल 6 लाख 51 हजार 786 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।

10 मई को प्रकाशित पंचायत की अंतिम मतदाता सूची में 3 लाख 44 हजार 120 पुरूष मतदाता, 3 लाख 7 हजार 661 महिला मतदाता और 5 अन्य मतदाता शामिल हैं। पन्ना विकासखण्ड में कुल मतदाताओं की संख्या 1 लाख 23 हजार 780 है। इनमें 65 हजार 429 पुरूष, 58 हजार 350 महिला और 1 अन्य मतदाता हैं। इसी तरह पवई में कुल 1 लाख 36 हजार 677 मतदाताओं में से 72 हजार 112 पुरूष और 64 हजार 565 महिला मतदाता, अजयगढ़ में 1 लाख 19 हजार 88 मतदाताओं में से 64 हजार 48 पुरूष, 55 हजार 39 महिला और 1 अन्य मतदाता, गुनौर में 1 लाख 41 हजार 269 मतदाताओं में से 74 हजार 310 पुरूष, 66 हजार 957 महिला और 2 अन्य मतदाता तथा शाहनगर विकासखण्ड में 1 लाख 30 हजार 972 मतदाताओं में से 68 हजार 221 पुरूष, 62 हजार 750 महिला और 1 अन्य मतदाता शामिल हैं।

7 हजार 417 पद के लिए होगा मतदान

पन्ना विकासखण्ड अंतर्गत 1 हजार 341 पंच, 75 सरपंच, 25 जनपद सदस्य और 3 जिला पंचायत सदस्य पद के लिए मतदान होगा। इसी तरह पवई विकासखण्ड में 1 हजार 434 पंच, 82 सरपंच, 25 जनपद सदस्य और 3 जिला पंचायत सदस्य के लिए, अजयगढ़ विकासखण्ड में 1 हजार 171 पंच, 65 सरपंच, 25 जनपद सदस्य और 3 जिला पंचायत सदस्य पद के लिए, गुनौर विकासखण्ड में 1 हजार 439 पंच, 80 सरपंच, 25 जनपद सदस्य और 3 जिला पंचायत सदस्य पद के लिए तथा शाहनगर विकासखण्ड में 1 हजार 506 पंच, 84 सरपंच, 25 जनपद सदस्य और 3 जिला पंचायत सदस्य पद के लिए मतदान सम्पन्न कराया जाएगा। कुल 15 जिला पंचायत सदस्य, 125 जनपद पंचायत सदस्य, 386 सरपंच और 6 हजार 891 पंच पद के लिए मतदान होगा।

गौरव दिवस का कार्यक्रम स्थगित

आगामी नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत निर्वाचन के दृष्टिगत पन्ना के गौरव दिवस कार्यक्रम को स्थगित किया गया है। गौरव दिवस कार्यक्रम के नोडल अधिकारी अशोक चतुर्वेदी ने बताया कि खनिज साधन एवं श्रम मंत्री और जिला कलेक्टर द्वारा बैठक में लिए गए निर्णय अनुसार प्रस्तावित कार्यक्रम को स्थगित किया गया है। आगामी समय में पन्ना का गौरव दिवस भव्य और पूर्ण गरिमामय रूप से मनाया जाएगा। कार्यक्रम की तिथि की सूचना पृथक से जारी की जाएगी।

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Thursday, May 26, 2022

पन्ना में हथिनी केनकली ने दिया एक नर बच्चे को जन्म

  • मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों के साथ-साथ हांथियों का कुनबा भी बढ़ रहा है। गत 24 मई को यहाँ की हथिनी केनकली ने नर बच्चे को जन्म दिया है। इस नये मेहमान के आने के साथ ही पीटीआर में हांथियों का कुनबा बढ़कर 16 हो गया है। 

नन्हे मेहमान को दुलारते हुए पन्ना टाइगर रिज़र्व का महावत पास में खड़ी हथिनी केनकली। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में हथिनी केनकली ने एक नर बच्चे को जन्म दिया है, इस नन्हे बच्चे का वजन लगभग 100 किलोग्राम है। यहां हाथियों के कुनबे में एक नये और नन्हे मेहमान के आ जाने से जहाँ खुशी का माहौल है, वहीं हाथियों की देखरेख करने वाले पीटीआर के महावत व प्रबंधन बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित भी है। मालूम हो कि यह नन्हा बच्चा अंदरूनी चोट के कारण खड़ा नहीं हो पा रहा है। इस नन्हे मेहमान के आ जाने से पन्ना टाइगर रिजर्व में हाथियों का कुनबा बढ़कर अब 16 हो गया है। हांथियों के इस कुनबे में दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला भी शामिल है, जो पन्ना टाइगर रिज़र्व के लिये किसी धरोहर से कम नहीं है। 

पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने आज जानकारी देते हुए बताया कि 15-16 वर्ष की मादा हाथी केनकली ने 24 मई को सुबह एक नर बच्चे को जन्म दिया है। हथिनी केनकली का यह पहला बच्चा है, जो जन्म के बाद से पीछे के पैरों में खड़ा नहीं हो पा रहा था। उक्त हाथी के बच्चे का प्रारंभिक स्तर पर पन्ना टाइगर रिजर्व की चिकित्सकीय टीम द्वारा निगरानी एवं उपचार उपरांत स्कूल फॉर वाइल्डलाइफ एंड फॉरेंसिक हेल्थ नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा महाविद्यालय जबलपुर से पांच सदस्यीय चिकित्सकों की टीम को बुलाया गया। उक्त 5 सदस्यीय टीम द्वारा डॉक्टर शोभा जावडे के नेतृत्व में निरीक्षण एवं उपचार किया गया। यह आशंका है कि बच्चे के पिछले हिस्से में कोई अंदरूनी चोट की वजह से वह खड़ा नहीं हो पा रहा है। 

पन्ना टाइगर रिजर्व के अनुभवी महावतों की टीम एवं चिकित्सकों द्वारा सतत निगरानी एवं उपचार किया गया। खड़ा न होने की वजह से बच्चा दूध नहीं पी पा रहा था। बच्चे को खड़ा करने हेतु कृत्रिम व्यवस्था बनाई गई। तत्पश्चात पशु चिकित्सक द्वारा किए गए उपचार एवं कार्यरत अमले द्वारा हाथी के बच्चे की देखभाल के उपरांत 24 घंटे के अंदर हाथी का बच्चा दूध पीने लगा है। वर्तमान में हाथी के बच्चे के स्वास्थ्य में सुधार है एवं बच्चे को स्वयं खड़ा करने हेतु समस्त प्रयास जारी हैं। इस नन्हे बच्चे का वजन लगभग 100 किलोग्राम है। हाथी के इस बच्चे की पन्ना टाइगर रिजर्व के अनुभवी महावत पूरी देखरेख कर रहे हैं। 

इसके पूर्व 46 वर्षीय हथनी रूपकली ने 18 सितम्बर 20 की सुबह पन्ना टाइगर रिजर्व के परिक्षेत्र हिनौता स्थित हाथी कैंप में मादा शिशु को जन्म दिया था। उस शिशु का भी जन्म के बाद अनुमानित वजन 100 किलोग्राम था। विगत 24 मई की सुबह नर बच्चे को जन्म देने वाली हथिनी केनकली व उसके नन्हे शिशु की समुचित देखरेख तथा विशेष भोजन की व्यवस्था भी की जा रही है। हथिनी को दलिया, गुड, गन्ना तथा शुद्ध घी से निर्मित लड्डू खिलाये जा रहे हैं ताकि नन्हे शिशु को पर्याप्त दूध मिल सके। हथनी व उसके शिशु की चौबीसों घंटे देखरेख व निगरानी के लिए स्टाफ की तैनाती की गई है।

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Monday, May 23, 2022

तेज आंधी और बारिश ने पन्ना जिले में मचाई तबाही, एक बालिका की मौत

 

तेज आंधी की चपेट में आकर सड़क में गिरा पेड़ जिससे आवागमन बाधित रहा। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में आज तेज आंधी के साथ हुई बारिश ने जमकर तबाही मचाई। आंधी की चपेट में आकर जहाँ सैकड़ों पेड़ धरासायी हो गए वहीं पेड़ों के गिरने से पन्ना-अजयगढ़ व पन्ना-पहाड़ीखेरा मार्ग सहित अन्य कई मार्गों में आवागमन बाधित रहा। जिला मुख्यालय पन्ना में सिविल लाइन, कुंजवन, अस्पताल चौराहा, इंद्रपुरी कॉलोनी आदि जगहों में पेड़ गिरने से बिजली के खंबे और तार टूट गए जिससे घण्टों बिजली गुल रही। तेज आंधी के कारण कई घरों के जहाँ टीन व छप्पर उड़ गए वहीं एक 15 वर्षीय बालिका की मौत हो गई। 

पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अजयगढ थाना अंर्तगत ग्राम बहादुरगंज में तेज आंधी के दौरान शौचालय की छत में रखा पुराना दरवाजा नीचे गिरा जिसकी चपेट में बालिका किरण अहिरवार आ गई। गंभीर रूप से घायल बालिका को परिजनों ने अजयगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती करवाया लेकिन बालिका की नाजुक हालत को देखते हुए चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार उपरांत जिला चिकित्सालय पन्ना के लिए रिफर कर दिया। जिला चिकित्सालय पन्ना पहुंचने पर चिकित्सकों ने परीक्षण उपरांत बालिका को मृत घोषित कर दिया। 


 जिला मुख्यालय पन्ना के अलावा जिले के ग्रामीण अंचलों में भी आंधी का तांडव दिखाई दिया। आंधी और बारिश के बाद भी विद्युत व्यवस्था तहस-नहस रही। जिले के अमानगंज थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पलका कला के पास 33 केवी विद्युत लाइन के खंभे और तार टूटने के साथ ट्रांसफार्मर भी नीचे गिर गया।   अजयगढ़ एवं पन्ना के आसपास कई कच्चे घरों के छप्पर उडऩे की जानकारी सामने आई है। तेंदूपत्ता फड़ो में रखा तेंदूपत्ता तेज आंधी में दूर-दूर तक बिखर गया। कई फड़ों में तो तेंदूपत्ता के उडऩे की भी जानकारी मिली है। आज की इस बारिश और तेज आंधी से आम की फसल को भी भारी नुकसान हुआ है। 

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Thursday, May 19, 2022

हीरा खदानों के लिए प्रसिद्ध पन्ना में बनेगा डायमण्ड पार्क

पन्ना शहर में धरमसागर तालाब के किनारे स्थित प्राचीन इमारत यादवेन्द्र क्लब जहाँ डायमण्ड पार्क बनना हैं।    

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बेशकीमती रत्न हीरा की खदानों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना शहर में स्थित राजशाही ज़माने की प्राचीन इमारत यादवेन्द्र क्लब में डायमण्ड पार्क बनेगा। पहाड़ी की तलहटी में बने झीलनुमा प्राचीन धरमसागर तालाब के ठीक किनारे स्थित इस विशाल इमारत को डायमण्ड पार्क के लिए संवारा जा रहा है। इस सम्बन्ध में बुद्धवार 18 मई को पन्ना कलेक्टर संजय कुमार मिश्र के साथ निर्माण कार्य करने वाली संस्था एवं वरिष्ठ अधिकारियों की  वर्चुअल बैठक आयोजित की गई, जिसमें निर्माण कार्य के संबंध में विस्तार से चर्चा हुई।

कलेक्टर संजय कुमार मिश्र ने बताया कि भवन में अतिरिक्त निर्माण न करते हुए भवन का सौन्दर्यीकरण कार्य, लाइटिंग व्यवस्था एवं बड़े हॉल को दो भागों में बांटा जाएगा। इसमें म्यूजियम के साथ बाह्य भाग में रेस्टोरेंट एवं दुकान बनाई जाएगी। लोगों के व्यवस्थित आने जाने की सुविधा के साथ बैठक व्यवस्था बनाई जाएगी। इस पूरे परिसर को सुन्दर लुक देने के लिए धरमसागर तालाब में लाइटिंग की आकर्षक व्यवस्था की जाएगी। कलेक्टर श्री मिश्रा ने बताया कि डायमण्ड पार्क को 10 भागों में बांटा गया है। निर्मित होने जा रहे इस डायमण्ड पार्क में पन्ना के इतिहास, एनएमडीसी द्वारा संचालित हीरा उत्खन्न कार्य का प्रदर्शन, हीरे के संबंध में जानकारी, हीरा उत्खन्न से लेकर तैयार होने तक की  पूरी प्रक्रिया एवं हीरे से संबंधित अनुभवों की जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी।

पर्यटक अब जान सकेंगे पन्ना के हीरा की कहानी



हीरे का जिक्र हो और पन्ना का नाम न आये ऐसा हो नहीं सकता। इसका कारण यह है कि मध्य प्रदेश की ऐतिहासिक नगरी पन्ना की पहचान हीरे के कारण ही है। यहाँ पर डायमण्ड पार्क स्थापित होने पर आने वाले समय में दुनिया भर के लोग पन्ना के हीरा की कहानी जान सकेंगे। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 450 किलोमीटर झांसी-रीवा मार्ग पर स्थित बुंदेलकेशरी महाराजा छत्रसाल की नगरी पन्ना अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल खजुराहो से महज 45 किमी.  की दूरी पर है। बेशकीमती हीरों के अलावा पन्ना शहर प्राचीन भव्य मंदिरों व पन्ना टाइगर रिज़र्व के लिए भी जाना जाता है। 

यहां की रत्नगर्भा धरती की सबसे बड़ी खूबी यह है कि कब किसकी किस्मत चमक जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। अब तक न जाने कितने लोग पन्ना की खदानों में हीरों की तलाश करते हुए रंक से राजा बने हैं। हीरा मिलने पर कई मजदूरों की तकदीर बदली है, वे लखपति और करोड़पति भी बने हैं। लेकिन बाहरी दुनिया के लोग यह नहीं जानते कि पन्ना की इस चमत्कारिक धरती से आखिर हीरा निकलता कैसे है। यहाँ निकलने वाले हीरों की क्या खूबी है। इस पूरी कहानी से पन्ना आने वाले पर्यटक डायमण्ड पार्क का भ्रमण कर वाकिफ हो सकेंगे। हीरा व्यवसाय व टूरिज़्म से जुड़े लोगों का कहना है कि पन्ना में डायमण्ड पार्क बनने से खजुराहो और पन्ना टाइगर रिज़र्व में आने वाले पर्यटक पन्ना भी आयेंगे जिससे यहाँ पर्यटन को जहाँ बढ़ावा मिलेगा, वहीं रोजगार के नये अवसरों का भी सृजन होगा।

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Wednesday, May 18, 2022

कुप्रथाओं की जंजीरों को तोड़ शिकारी समुदाय की एक लड़की कैसे बनी नेशनल खिलाड़ी ?

  • परंपरागत रूप से जंगल में वन्य प्राणियों का शिकार करके अपनी आजीविका चलाने वाले पारधी समुदाय की कोई लड़की पढ़ाई के साथ खिलाड़ी के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाएगी, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन 20 वर्षीय नीलम पारधी ने यह कर दिखाया है। अब यह जंगली लड़की युवाओं की रोल मॉडल बन चुकी है। 

शिकारी समुदाय की लड़की नीलम पारधी जो कबड्डी की नेशनल खिलाड़ी है। 

।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना (मध्यप्रदेश)। हमारे समाज में लड़कियों की शादी 5 साल की उम्र में ही कर दी जाती है, मैं चाहती हूं कि सदियों से चली आ रही यह कुप्रथा बंद हो। लड़कियां पढ़े-लिखें और आत्मनिर्भर बनकर अच्छी जिंदगी जीने में सक्षम हो, इसके लिए ऐसा होना जरूरी है। नीलम पारधी 20 वर्ष ने बताया कि पारधी समुदाय की वह पहली लड़की है, जिसने बचपन में ही शादी किए जाने की इस कुप्रथा को तोड़ा है। समाज ने इसका विरोध किया लेकिन मेरे माता-पिता ने इस लड़ाई में मेरा साथ दिया, इसीलिए मैं आज इस मुकाम पर पहुंच पाई हूँ।

पन्ना शहर के नजरबाग स्टेडियम में सुबह 6:00 बजे अन्य बच्चों के साथ व्यायाम और खेल की प्रैक्टिस कर रही नीलम ने बताया कि छत्रसाल महाविद्यालय पन्ना से उसने बीए अंतिम वर्ष की परीक्षा दी है। कबड्डी की नेशनल टीम से वह अमरावती महाराष्ट्र में खेल चुकी है तथा खो-खो व वॉलीबॉल में भी संभाग स्तर तक खेली है। नीलम बताती है कि कबड्डी और एथलेटिक्स में उसकी रुचि है और वह इस क्षेत्र में बेहतर करना चाहती है। परिवार में 6 भाई व पांच बहनों में नीलम इकलौती सदस्य है, जिसने शिक्षा अर्जित कर नई राह बनाई है। बहनों में यह सबसे छोटी है, बड़ी बहनों की वर्षों पहले शादी हो चुकी है तथा उनके बच्चे हैं। नीलम के भाई भी पढ़े-लिखे नहीं हैं, वे जंगल की जड़ी बूटियां बेचने का काम करते हैं।


नीलम पारधी का घर पन्ना से 80 किलोमीटर दूर खमतरा गांव में है। इस गांव में ज्यादातर पारधी समुदाय के लोग रहते हैं। नीलम के पिता राकेटलाल पारधी (57 वर्ष) एक समय जाने-माने शिकारी रहे हैं। पन्ना सहित आसपास के जंगलों में वन्य प्राणियों का शिकार करना इनका पेशा था। लेकिन पिछले करीब 10 वर्षो से इन्होंने शिकार करना बंद कर जड़ी-बूटी बेचने का काम कर रहे हैं। नीलम की मां अजमेर बाई (52 वर्ष) गांव-गांव जाकर महिलाओं के श्रृंगार का सामान चूड़ी-बिंदी आदि बेचती हैं।

राकेटलाल पारधी ने मोबाइल पर चर्चा करते हुए बताया कि सर जी बेटी से बड़ी उम्मीद है कि वह हमारे कुल का नाम रोशन करेगी। हमारा पूरा जीवन जंगल में यहां से वहां भटकते गुजरा है, बड़ी कठिन जिंदगी रही है। अब हमने जंगली जानवरों का शिकार करना छोड़ जड़ी-बूटी बेचकर गुजारा कर रहे हैं। राकेटलाल पारधी कहते हैं कि उनकी एक ही इच्छा है कि बेटी को अच्छी नौकरी मिल जाए और किसी पढ़े-लिखे लड़के से शादी हो जाए। हमने जिंदगी में जो परेशानी झेली है उससे नीलम दूर रहे और खुशहाल जिंदगी जिए। नीलम की मां अजमेर बाई ने बताया कि यह सुनकर बहुत खुशी होती है कि उनकी बेटी अच्छी तरह पढ़ रही है। हमारे पास आमदनी का जरिया कुछ भी नहीं है, बहुत मुश्किल से खाने पीने की व्यवस्था हो पाती है। सरकार और आप सब लोगों की मदद से लड़की की नौकरी लग जाए, बस यही इच्छा है।

जिंदगी में बदलाव की ऐसे हुई शुरुआत


अपने परिवार के साथ नीलम पारधी। 

अपने कुनबे के बीच जंगल में रहने वाली नीलम पारधी की जिंदगी में यह आमूलचूल बदलाव कैसे आया, इसकी बड़ी दिलचस्प दास्तान है। नीलम बताती है कि 8 वर्ष की उम्र में उसकी जिंदगी बदलनी तब शुरू हुई जब उसे पारधी आवासीय विद्यालय में प्रवेश मिला। यह वह समय था जब पन्ना टाइगर रिजर्व से बाघों का सफाया हो चुका था। यहां पर बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू कर फिर से बाघों के उजड़ चुके संसार को आबाद करने के बारे में सोच विचार चल रहा था। लेकिन शातिर शिकारियों की इस इलाके में सक्रियता के चलते योजना के सफल होने की उम्मीद कम थी। ऐसी स्थिति में शिकारी पारधी समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने तथा उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का काम शुरू हुआ। ताकि पारधी समुदाय के लोग शिकार करना छोड़ कर आजीविका हेतु दूसरे कार्यों व गतिविधि से जुडऩे को प्रेरित हों।

लास्ट वाइल्डर्नेस फाउंडेशन के फील्ड कोऑर्डिनेटर इंद्रभान सिंह बुंदेला ने बताया कि वर्ष 2007 में पन्ना टाइगर रिजर्व ने सर्व शिक्षा अभियान के सहयोग से पारधी समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने हेतु ब्रिज कोर्स शुरू किया। श्री बुंदेला बताते हैं कि LWF संस्था ने पारधी बच्चों में कौशल उन्नयन हेतु सतत प्रयास किया। इसका परिणाम यह हुआ कि पारधी समुदाय के बच्चे पढऩे लिखने लगे और विविध गतिविधियों में शामिल होकर समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने लगे। पन्ना में पारधी समुदाय के बच्चे भारत के पहले नेचर गाइड बने हैं, जिन्हें शासन से भी मान्यता मिली है। बेंगलुरु की संस्था नेचुरलिस्ट स्कूल ने इन्हें गाइड का  प्रशिक्षण कोर्स कराया है। मौजूदा समय 10 प्रशिक्षित पारधी गाइड हैं, जो "वॉक विद दि पारधीज" गतिविधि संचालित कर रहे हैं।

स्पोर्ट्स अकैडमी भोपाल में भी मिला था मौका


पन्ना (कुंजवन) स्थित बहेलिया छात्रावास के सामने समुदाय की अन्य लड़कियों के साथ।  

पिछले एक दशक से मध्य भारत के वन्य जीव संरक्षित क्षेत्रों पन्ना, बांधवगढ़, कान्हा एवं कूनों में मानव व वन्यजीव संघर्ष को कम करने एवं जंगल से जुड़े समुदायों को संरक्षण के लिए प्रेरित कर आजीविका का साधन मुहैया कराने का काम LWF संस्था कर रही है। इस संस्था की डायरेक्टर विद्या वेंकटेश ने  बताया कि वे पिछले 10 वर्षों से नीलम पारधी को जानती हैं। पारधी बच्चियों के लिए बने कुंज वन हॉस्टल में रहकर इस बच्ची ने 12वीं तक पढ़ाई की है। नौवीं से बारहवीं तक फंडिंग हमारी संस्था ने किया। पढ़ाई के साथ खेलकूद में रुचि लेने वाली नीलम ने 78 फ़ीसदी अंकों के साथ 12वीं की परीक्षा पास की है। तब इसे स्पोर्ट्स अकैडमी भोपाल में प्रशिक्षण का मौका भी मिला था। लेकिन नीलम के माता-पिता उसे अकेले भेजने को तैयार नहीं हुए। पारधी समुदाय में नीलम अकेली लड़की है जो स्पोर्ट्स में आगे बढ़ी है। एकेडमी ज्वाइन न कर पाने से नीलम काफी निराश हुई, लेकिन उसने हार नहीं मानी।

खेल के प्रति है गजब का जुनून

नेहरू एवं युवक कल्याण विभाग से नीलम सहित अन्य खिलाडी बच्चों को विविध खेल गतिविधियों की नियमित कोचिंग दी जा रही है। नीलम पारधी के कोच राहुल गुर्जर ने बताया कि नीलम में खेलों के प्रति गजब का जुनून और जज्बा है। कबड्डी के अलावा यह सौ व दो सौ मीटर की दौड़ बहुत अच्छा कर रही है। फुटबाल, थ्रो व जम्प में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन करती है। राहुल ने बताया कि नीलम कबड्डी नेशनल खेल चुकी है, जबकि ऐथलेटिक्स में स्टेट तक खेली है। खिलाडी को जिस तरह की डाइट मिलनी चाहिए वैसी डाइट नीलम को नहीं मिल पाती, नार्मल खाना से एक खिलाडी की रिक्वायरमेंट पूरी नहीं होती। यदि इस लड़की की मंथली डाइट की समुचित व्यवस्था हो जाय तो यह काफी आगे जा सकती है।

बच्चों को पढ़ाकर निकालती रही जेब खर्च

आत्मविश्वास से भरी नीलम पारधी हिम्मत और साहस के साथ हर तरह की परिस्थितियों का सामना करने से पीछे नहीं हटती। विद्या वेंकटेश बताती हैं कि 12वीं के बाद नीलम ने छत्रसाल महाविद्यालय पन्ना में प्रवेश लिया। इस दौरान नीलम ने अपनी जेब खर्च के लिए कुंज वन हॉस्टल के बच्चों को पढ़ाने का काम भी शुरू किया। कॉलेज में अपनी क्लास करने के बाद यह हॉस्टल के पारधी बच्चों को पढ़ाती थी, जिससे इसका जेब खर्च निकलता रहा। हॉस्टल के पारधी बच्चों को भी नीलम से पढऩा बहुत पसंद था, क्योंकि वह उनकी ही भाषा में पढ़ाती थी।

इकलौती लड़की जिसने 20 वर्ष की उम्र में भी नहीं की शादी




नीलम पारधी इकलौती ऐसी लड़की है जिसने 20 वर्ष की उम्र होने पर भी शादी नहीं की। उसका साफ कहना है कि जब तक वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो जाती तब तक शादी नहीं करेगी। विद्या वेंकटेश बताती हैं कि पारधी समुदाय में बहुत ही कम उम्र (5-10 वर्ष) में लड़कियों की शादी करने की परंपरा है। नीलम पहली लड़की है जिसने शादी से मना किया है। बातचीत के दौरान विद्या वेंकटेश ने बताया कि पारधी समुदाय में आटा-साटा (लड़कियों के लेनदेन) की परंपरा है। इस परंपरा के मुताबिक जिस परिवार में लड़की देते हैं, उस परिवार की लड़की लेते भी हैं। पारधी समुदाय में लड़कियों के लेन-देन की यह परंपरा चली आ रही है। इसके पीछे उनकी सोच यह है कि "हम आपकी लड़की को संभालते हैं तो आप भी हमारी लड़की को संभालो"। विद्या व्यंकटेश बताती हैं कि इस अजीबोगरीब परंपरा पर अब काफी हद तक रोक लगनी शुरू हुई है। जब से पारधी समुदाय के बच्चे पढऩे लगे हैं तो पढ़ाई के कारण उनकी शादी में रुकावट पैदा हुई है। क्योंकि बच्चे कुनबे से दूर हॉस्टल में रहकर पढ़ते हैं। पारधी बच्चों खासकर लड़कियों के लिए नीलम पारधी रोल मॉडल बन चुकी है। नीलम तेज दिमाग वाली बहुत ही अच्छी खिलाड़ी है, जिससे बच्चे प्रेरित हो रहे हैं।

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Tuesday, May 17, 2022

केन को पानी ऊपर छेंक लेहें तो हम का करबी !

  •  ग्रामीण कह रहे यह हम लोगों के साथ सरासर धोखाधड़ी 
  •  नदी में यदि पानी ना रहा तो हम लोग कैसे जिंदा रहेंगे ?

पन्ना टाइगर रिज़र्व के भीतर 55 किमी. तक प्रवाहित होने वाली केन नदी, जिसमें बांध बनना है।  

।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना। केन नदी के किनारे स्थित गांव के लोग बहु चर्चित केन-बेतवा लिंक परियोजना को लेकर सशंकित और चिंतित हैं। बीरा गांव के वीरेंद्र सिंह (75 वर्ष) अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि "केन को पानी यदि ऊपर छेंक लेहें तो हम का करबी। हमसे कउनो राय व सहमति नहीं ली गई, जा तो हम लोगन के संगे सरासर धोखाधड़ी है"। ग्रामीणों का साफ कहना है कि केन के पानी पर पहला हक हमारा है। हम केन के पानी को रोककर बांध बनाने तथा उस पानी को दूसरी जगह ले जाने की योजना का विरोध करते हैं। हम किसी भी कीमत पर जिंदा नदी को मरने नहीं देंगे, क्योंकि इस नदी की जलधार पर ही हमारा जीवन निर्भर है।

उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले से प्रवाहित होने वाली केन नदी रीठी कटनी के पास से निकलती है और 427 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद उत्तर प्रदेश के बांदा में यमुना नदी से मिल जाती है। ढोढन गांव के निकट जहां पर बांध का निर्माण होना है, वह नदी के उद्गम स्थल से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर है। इस तरह से बांध के निचले क्षेत्र में नदी की लंबाई तकरीबन 227 किलोमीटर बचती है, जहां सैकड़ों की संख्या में पन्ना, छतरपुर व बांदा जिले के गांव स्थित हैं। 

44 हजार करोड रुपए से भी अधिक लागत वाली इस परियोजना को मंजूरी देने से पूर्व केन नदी के किनारे स्थित ग्रामों के रहवासियों से ना तो सहमति ली गई और ना ही उन्हें बांध बनाने के बाद जो हालात बनेंगे उसकी हकीकत बताई गई। केन नदी के किनारे स्थित  फरस्वाहा गांव  के करण त्रिपाठी (55 वर्ष) का कहना है कि बांध बनने से केन की जलधार यदि रुक गई तो केन किनारे के गांवों में जिंदगी मुश्किल हो जाएगी। केन नदी में यदि पानी नहीं रहा तो इन गांवों के लोग कैसे जिंदा रहेंगे ? क्योंकि केन नदी किनारे स्थित ग्रामों के जीवन का आधार है।

प्रदेश की पूर्व मंत्री सुश्री महदेले ने उठाये सवाल

सुश्री कुसुम सिंह महदेले

मध्यप्रदेश शासन की पूर्व कैबिनेट मंत्री व भाजपा की वरिष्ठ नेता सुश्री कुसुम सिंह महदेले ने केन-बेतवा लिंक परियोजना को पन्ना जिले के लिए घातक बताया है। इस परियोजना के बारे में उनकी राय जानने के लिए जब संपर्क किया गया तो उन्होंने बड़े बेबाकी से कहा कि पन्ना जिले में पानी की कमी हो जाएगी तथा केन किनारे के गांव पेयजल के साथ-साथ सिंचाई से भी वंचित हो जाएंगे। यह पन्ना जिलावासियों के साथ बहुत बड़ा अन्याय हो रहा है, जिसका विरोध होना चाहिए। सुश्री महदेले का कहना है कि बीते एक दशक में ही रेत कारोबारियों ने केन नदी को इस कदर खोखला कर दिया है कि वह कंगाल हो गई है। गर्मी शुरू होते ही मार्च और अप्रैल के महीने में इस सदानीरा नदी की जलधारा टूट जाती है। जिससे केन किनारे स्थित ग्रामों के लोगों को भीषण पेयजल संकट का सामना करना पड़ता है।

टूरिज़्म के लिए स्लो डेथ साबित होगा डैम 

राज्य वन्य प्राणी बोर्ड के पूर्व सदस्य तथा केन किनारे स्थित पन्ना जिले के पर्यटन विलेज मंडला में पर्यटन व्यवसाय से जुड़े श्यामेन्द्र सिंह (बिन्नी राजा) बताते हैं कि केन-बेतवा लिंक परियोजना से पर्यटन व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित होगा। इस बाबत उनका तर्क है कि वाइल्डलाइफ टूरिज्म में टाइगर के अलावा दूसरा कोई ऐसा एनिमल नहीं जो पर्यटकों को इतना आकर्षित करे। डैम बनने से टाइगर रिजर्व का 28 से 30 फ़ीसदी हिस्सा डूब में आ जाएगा, शेष बचा एरिया 70 बाघों के लिए छोटा पड़ेगा। इतने बाघ 250 - 300 वर्ग किलोमीटर के एरिया में पनप पाएंगे इसकी संभावना बहुत कम है। यह स्थिति धीरे-धीरे स्लो डेथ की ओर ले जाएगी। इंटर ब्रीडिंग व जेनेटिक कारणों से एक बार फिर बाघों के खत्म होने का खतरा उत्पन्न हो जायेगा। मंडला गांव जो वाइल्डलाइफ टूरिज्म के कारण फल-फूल रहा है, उसका भविष्य अंधकार में चला जायेगा।

क्या केन नदी में अतिरिक्त पानी है ?



विनाशकारी केन-बेतवा लिंक परियोजना का विरोध करते पन्ना जिलावासी।  ( फाइल फोटो )

केन-बेतवा लिंक परियोजना महज 18 साल के पानी के आंकड़ों पर आधारित है। यदि हम अतीत पर नजर डालें तो अमूमन यहां अल्प बारिश (सूखा) की स्थिति रहती है। बाढ़ की स्थिति अमूमन 10 वर्ष में एक बार आती है। पिछले चार दशकों के दौरान केन नदी में दो बार वर्ष 2005 व 2011 में बाढ़ के हालात निर्मित हुए थे। तो फिर इस नदी में अधिशेष जल कहां है ? पन्ना जिले की पूर्व कलेक्टर दीपाली रस्तोगी जिनके कार्यकाल (2005) में बाढ़ आई थी। उन्होंने एक दशक पूर्व ही केन-बेतवा लिंक परियोजना के दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए चेताया था। पूर्व कलेक्टर ने शीर्ष अधिकारियों को बताया था कि यदि केन बेसिन के लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी की जाएं तो केन नदी में कोई अतिरिक्त पानी नहीं बचेगा। उन्होंने यहां तक लिखा था कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना केन बेसिन के लोगों के लिए एक त्रासदी होगी।

डूब क्षेत्र में आने वाले पेड़ों का सच

इस विवादित परियोजना से प्रकृति व पर्यावरण की क्षति के बारे में शुरू से ही पूर्वाग्रह पूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है। प्रारंभ में परियोजना के दस्तावेजों में डूब में आने वाले पेड़ों की संख्या सिर्फ 9525 से अधिक बताई गई थी, जो अब 23 लाख पेड़ों तक जा पहुंची है। एक रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि परियोजना में तकरीबन 44 लाख पेड़ कटेंगे। सूखे की विभीषिका झेलने वाले इस इलाके में क्या इतनी बड़ी संख्या में वृक्षों के विनाश का जोखिम उठाना समझदारी होगी ?

पर्यटन पर आधारित एक मात्र आजीविका की धरोहर पन्ना टाइगर रिजर्व 70 से भी अधिक बाघों का घर है। यहां तेंदुआ, भालू , नीलगाय, फिशिंग कैट, चिंकारा, चीतल, चौसिंगा व सांभर जैसे सैकड़ों प्रजाति के वन्यजीवों सहित 247 प्रजाति के पक्षी रहते हैं। यहां विलुप्त प्राय गिद्धों की सात प्रजातियां भी निवास करती हैं। यूनेस्को ने जिस वन क्षेत्र को बायोस्फीयर रिजर्व की वैश्विक सूची में शामिल किया है, उस अनमोल धरोहर को नष्ट करने की योजना भला कैसे हितकारी साबित होगी ?

क्या हो सकता है परियोजना का विकल्प ?

बुंदेलखंड क्षेत्र के लोगों की जल समस्या का समाधान करने के साथ-साथ जैव विविधता को भी बचाया जा सके, क्या ऐसा कोई विकल्प है ? एक अध्ययन रिपोर्ट में बुंदेलखंड के बांदा जिला स्थित जखनी गांव का जिक्र किया गया है। इस गांव ने अपने दम पर पानी की समस्या का निराकरण किया है। नीति आयोग ने भी इस गांव को जल ग्राम का मॉडल घोषित किया है। इस गांव ने जल संरक्षण के बेहतर उपाय किए हैं। जिनमें खेत में तालाबों का निर्माण, जलाशयों का जीर्णोद्धार, वर्षा जल संचयन, खेत में पानी रोकने मेड़ बनाना, साथ ही वृक्षारोपण जैसे उपाय शामिल हैं।


जानकारों का यह मानना है कि यदि दो से तीन सौ करोड रुपए खर्च कर बुंदेलखंड क्षेत्र के प्राचीन चंदेल कालीन तालाबों को पुनर्जीवित कर दिया जाए तो 3 साल में ही जल की समस्या का समाधान हो सकता है। अब विचारणीय बात यह है कि जब इतनी कम धनराशि खर्च कर समस्या का समाधान हो सकता है तो पर्यावरण के लिए विनाशकारी व बेहद खर्चीली (44 हजार करोड़) परियोजना के लिए आखिर इतनी ज़िद क्यों ? 

सरकार द्वारा बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं कि इस परियोजना के मूर्त रूप लेने पर पूरे इलाके में खुशहाली आ जाएगी। लेकिन परियोजना के पूरा होने में कितना समय लगेगा और इस दौरान प्रकृति व पर्यावरण का किस कदर विनाश होगा इस पर भी विचार किया जाना चाहिए। परियोजना के पूरा होने तक प्रकृति व पर्यावरण को जो क्षति होगी उसके क्या दुष्परिणाम होंगे, इस पर कोई चर्चा नहीं होती। भविष्य में परियोजना का लाभ जिनको मिलना है, वे किस हालत में बचेंगे इस विषय पर भी विमर्श जरूरी है। 

यहां यह बताना उचित है कि वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था। उस समय संरक्षण के अथक जमीनी प्रयासों व स्थानीय जनता के सहयोग से बाघों को फिर से आबाद करने में सफलता मिली है। पन्ना में सिर्फ खूबसूरत जंगल ही नहीं बल्कि यह उम्मीद की एक किरण है। विपरीत परिस्थितियों में भी अपने को बचाए रखने का प्रतीक है पन्ना। लेकिन नई चुनौतियां फिर खड़ी हैं, क्या इस बार पन्ना बच पायेगा ?

क्या कहते हैं श्यामेन्द्र सिंह, आप भी सुनें -



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Monday, May 16, 2022

पन्ना पुलिस की बड़ी कार्यवाही, 12 अंत्तर्राज्यीय गाँजा तस्कर गिरफ्तार

  • आरोपियों के कब्जे से कुल 73.850 किलो ग्राम गाँजा बरामद 
  •  गाँजा सहित कुल 27 लाख 35 हजार रूपये का सामान जप्त



पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की पुलिस ने बड़ी कार्यवाही करते हुए आज 12 अंत्तर्राज्यीय गाँजा तस्करों को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से कुल 73.850 किलो ग्राम गाँजा कीमती करीब 08 लाख 88  हजार रूपये, 01 वोलेरो कार कीमती करीब 7 लाख रूपये, 02 टाटा इण्डिगो कार कीमती करीब 11 लाख रूपये एवं 06 मोबाईल कीमती करीब 47 हजार रूपए सहित कुल करीब 27 लाख 35 हजार रूपये का सामान जप्त किया है। यह कार्यवाही थाना कोतवाली पन्ना, थाना अमानगंज एवं थाना बृजपुर की पुलिस ने अलग-अलग स्थानों पर की है जिसमें 12 आरोपी गिरफ्तार हुए हैं।  

मामले के संबंध में दी गई जानकारी के मुताबिक पुलिस अधीक्षक पन्ना धर्मराज मीना को मुखबिर द्वारा सूचना प्राप्त हुई कि कुछ संदेही व्यक्ति अवैध रूप से अलग-अलग चार पहिया वाहनों से मादक पदार्थ (गाँजा) की तस्करी कर ले जा रहे हैं। पुलिस अधीक्षक पन्ना द्वारा तत्काल थाना प्रभारी कोतवाली पन्ना, थाना प्रभारी अमानगंज एवं थाना प्रभारी बृजपुर के नेतृत्व में अलग –अलग पुलिस टीमों का गठन कर आरोपियों को गिरफ्तार कर मादक पदार्थ जप्त करने के हेतु निर्देशित किया गया। पुलिस अधीक्षक पन्ना द्वारा गठित पुलिस टीमों की सहायता हेतु पुलिस सायबर सेल टीम को कार्यवाही में शामिल किया गया। पुलिस ने थाना कोतवाली क्षेत्रान्तर्गत बराछ तिराहा, बृजपुर क्षेत्रान्तर्गत पुलिस टीम द्वारा लुरहाई तिगड्डा के पास पहाङीखेरा में तथा थाना अमानगंज क्षेत्रान्तर्गत टाईं मोङ के पास अमानगंज पवई रोड में वाहन चेकिंग के दौरान आरोपियों को दबोचा गया। 

पुलिस सायबर सेल पन्ना द्वारा मिली जानकारी एवं मुखबिर सूचना के आधार पर पुलिस टीमों द्वारा अलग-अलग थाना क्षेत्रों में वाहन चेकिंग लगाई गई । थाना कोतवाली क्षेत्रान्तर्गत बराछ तिराहा के पास पन्ना-अमानगंज रोड में चेकिंग के दौरान अमानगंज तरफ से एक बोलेरो वाहन क्रमांक रूक्क 17 ष्ट्र 8860 तेज रफ्तार से आता हुआ दिखा, जो पुलिस टीम को चकमा देकर भागने लगा। जिसे पुलिस टीम के द्वारा घेराबन्दी कर रोका गया। बोलेरो वाहन को चैक करने पर उसमे कुल 05 लोग बैठे थे। पुलिस टीम द्वारा सभी व्यक्तियो की विधिवत तलाशी लिये जाने के बाद, बोलेरो वाहन की भी विधिवत तलाशी ली गई तो वाहन के पिछले हिस्से मे ब्राउन टेप से बन्द किए हुए कई पैकेट दिखाई दिए, जो की मादक पदार्थ के थे। लगभग 01-01 किलो ग्राम के कुल 28 पैकेट मिले। पुलिस टीम द्वारा विधिवत 01 पैकेट खोल कर चैक किया गया जो पैकेट में गाँजा होना पाया गया । पुलिस टीम द्वारा आरोपियों के कब्जे से 28 पैकेट में कुल 27 किलो 500 ग्राम गाँजा कीमती करीब 03 लाख 30 हजार रूपये सहित प्रयोग किया गया वोलेरो वाहन कीमती करीब 07 लाख रूपये का जप्त किया जाकर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। 

इसी प्रकार थाना बृजपुर क्षेत्रान्तर्गत पुलिस टीम द्वारा लुरहाई तिगड्डा के पास पहाङीखेरा मे वाहन चेकिंग लगाई गई थी। वाहन चेकिंग दौरान एक स्लेटी रंग की टाटा इंडिगो कार क्रमांक ङ्खक्च 30 हृ 0928 को घेराबन्दी कर रोका गया। वाहन को चैक करने पर कार में कुल 03 लोग बैठे थे, कार की डिग्गी में टैप से लिपटे हुए मादक पदार्थ के 23 पैकेट मिले। आरोपियों के कब्जे से कुल 22.350 कि.ग्रा. गाँजा कीमती करीब 02 लाख 67 हजार 600 रूपये सहित 01 स्लेटी रंग की टाटा इंडिगो कार कीमती करीब 5 लाख 50 हजार रूपए एवं 03 नंग मोबाईल कीमती करीब 15000 रूपए कुल सामग्री कीमती करीब 8 लाख 32 हजार 600 रूपये का जप्त किया जाकर 03 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। 

इसी प्रकार थाना अमानगंज क्षेत्रान्तर्गत पुलिस टीम द्वारा टाईं मोङ के पास अमानगंज पवई रोड में  वाहन चौकिंग लगाई गई थी। चेकिंग के दौरान पवई रोड तरफ से एक सिल्वर रंग की टाटा इण्डिका कार क्रमांक ङ्खक्च 30 त्र 0119 आती दिखाई दी, जिसे पुलिस टीम द्वारा घेराबन्दी कर रोका गया।  इसमें कुल 04 व्यक्ति बैठे थे। आरोपियों के कब्जे से कुल 24 कि.ग्रा. गाँजा कीमती करीब 02 लाख 88 हजार रूपये सहित 01 सिल्वर रंग की टाटा इंडिगो कार कीमती करीब 5 लाख 50 हजार रूपए एवं 03 नंग मोबाईल कीमती करीब 32000 कुल सामान कीमती करीब 8 लाख 70 हजार रूपये का जप्त किया जाकर 04 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। 

उक्त तीनो प्रकरणों में गिरफ्तारशुदा सभी 12 आरोपी मादक पदार्थो की तस्करी करने वाले अंतर्राज्यीय गिरोह के सक्रिय सदस्य हैं, जो पन्ना जिले के अलावा म.प्र. के अन्य जिलो सहित छत्तीसगढ़,  उ.प्र., उड़ीसा, राज्य के जिलों में मादक पदार्थों की तस्करी में सक्रिय हैं। इसके संबंध में पुलिस के द्वारा विवेचना की जा रही है । गिरफ्तारशुदा आरोपियो को न्यायालय में पेश किया गया है। पुलिस अधीक्षक पन्ना द्वारा तीनो प्रकरणों में 5000-5000 रूपये के ईनाम की घोषणा की गई है ।

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Sunday, May 15, 2022

अवैध कटाई व आग लगने से उजड़ रहे चिरौंजी के पेड़

  • पन्ना के जंगल में प्राकृतिक रूप से प्रचुरता में पाये जाते हैं चिरौंजी के वृक्ष 
  • प्रदेश के पन्ना, छतरपुर व छिन्दवाड़ा जिले में होता है सर्वाधिक उत्पादन

पन्ना के जंगल में अचार फल से लदा चिरौंजी का पेड़। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड अंचल में चिरौंजी के पेड़ बहुतायत से पाये जाते हैं। लेकिन अवैध कटाई व आग लगने से यह बेशकीमती वृक्ष जंगल से नदारत होता जा रहा है। यहां के जंगलों में कुछ वर्षों पूर्व तक चिरौंजी के वृक्ष प्राकृतिक रूप से प्रचुरता में पाये जाते रहे हैं लेकिन अब उनकी संख्या तेजी से    घट रही है। चिरौंजी के वृक्षों की घटती संख्या की एक बड़ी वजह विनाशकारी विदोहन भी है। यही कारण है कि औषधीय महत्व वाले चिरौंजी के वृक्ष जो जंगल में हर तरफ नजर आते थे अब कम दिखते हैं। वृक्षों के कम होने से चिरौंजी का उत्पादन भी उसी अनुपात में घट रहा है। जंगल में आबादी के बढ़ते दबाव व वनों की हो रही अधाधुंध कटाई से भी इस बहुमूल्य वृक्ष की उपलब्धता कम हुई है।

उल्लेखनीय है कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना व छतरपुर जिले के जंगलों में चिरौंजी के वृक्ष बड़ी तादाद में प्रचुरता से मिलते हैं। लगभग 20 मीटर ऊंचाई तक बढऩे वाले चिरौंजी के वृक्ष को स्थानीय लोग अचार का वृक्ष भी कहते हैं, इसका लेटिन नाम बुकेनेनिया लेटिफोलिया है। चिरौंजी के पत्ते छोटे - छोटे नोंकदार और खुरदरे होते हैं। इसके फल करौंदे के समान नीले रंग के होते हैं, इन फलों को तोडऩे पर उनके भीतर जो मगज निकलती है, उसे चिरौंजी कहते हैं। चिरौंजी का मेवों में जहां महत्वपूर्ण स्थान है वहीं यह पित्त और वात रोगों, कुष्ठ रोग, वीर्य दुर्बलता, श्वांस रोग, उदर रोग, चर्म रोग तथा मूत्र विकार हेतु उत्तम औषधि है। 

चिरौंजी को तेल के साथ पीसकर मालिश करने से मकड़ी का विष दूर होता है तथा इसे खाने से कलेजे, फेफड़े और मस्तक की शर्दी मिटती है।  चिरौंजी को गुलाब जल में पीसकर मालिश करने से चेहरे पर होने वाली फुंसियां और दूसरी खुजली मिट जाती है। वैद्यों का यह कहना है कि एक छटांक भर चिरौंजी खा जाने से शरीर में उछलती हुई पित्ती शांत हो जाती है। अगर पित्ती किसी दवा से न जाय तो इससे जरूर चली जाती है। चिरौंजी की जड़ कसैली, कफ पित्त नाशक और रूधिर विकार को दूर करने वाली होती है।


वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश के पन्ना, छतरपुर व छिन्दवाड़ा जिले में चिरौंजी फल का सर्वाधिक उत्पादन होता है। पन्ना जिले के जंगलों से लगभग 8 सौ कुन्टल चिरौंजी फल का संग्रहण वनवासियों व स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है। औषधीय महत्व वाले इस मेवे का उत्पादन प्रदेश के जिन अन्य जिलों में होता है, उनमें बालाघाट, बैतूल, भोपाल, बुरहानपुर, दमोह, गुना, जबलपुर, नरसिंहपुर, रायसेन, सागर, सीहोर, सिवनी, शहडोल व सीधी हैं। लेकिन प्रदेश में चिरौंजी के कुल उत्पादन का लगभग 60 फीसदी हिस्सा बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना और छतरपुर जिले में उत्पादित होता है।

कल्दा पठार के जंगल में चिरौंजी के सर्वाधिक वृक्ष

औषधीय वनस्पतियों के लिए अनुकूल पन्ना जिले के कल्दा पठार में चिरौंजी के सर्वाधिक वृक्ष पाये जाते हैं। कल्दा के अलावा पन्ना नेशनल पार्क के रिजर्व वन क्षेत्र सहित उत्तर व दक्षिण वन मण्डल के जंगल में चिरौंजी के वृक्ष प्राकृतिक रूप से प्रचुरता में मिलते हैं। इस फल की उपयोगिता व कीमत को देखते हुए ग्रामीण फलों को परिपक्व होने से पहले ही तोड़ लेते हैं। जिससे अच्छी गुणवत्ता वाली चिरौंजी प्राप्त नहीं हो पाती। वन

अधिकारियों का कहना है कि चिरौंजी  (अचार) के पके हुए फलों को ही तोड़कर संग्रहित किया जाना चाहिए ताकि बेहतर गुणवत्ता वाली चिरौंजी प्राप्त हो सके। जंगल में लगभग 10 प्रतिशत फलों को बीजों द्वारा प्राकृतिक प्रवर्धन हेतु छोड़ दिया जाना चाहिए, ताकि जंगल में चिरौंजी के वृक्षों का पुन: उत्पादन हो सके।

चिरौंजी सुधार सकती है वनवासियों की माली हालत


वन सम्पदा से समृद्ध पन्ना जिले में वनोपज के संग्रहण की उचित प्रक्रिया न अपनाये जाने के चलते भारी नुकसान होता है। पकने से पहले अचार व आंवला जैसे वनोंपज को तोडने की होड़ से उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। फलस्वरूप वनोंपज की उचित कीमत नहीं मिल पाती। जिले में चिरौंजी संग्रह एवं प्रोसेसिग के क्षेत्र में स्वरोजगार व रोजगार की काफी संभावना है। अगर योजनाबद्ध तरीके से काम किया जाए, तो इससे हजारों लोगों को काम मिल सकता है, साथ ही अर्थोपार्जन के माध्यम से उनकी आमदनी भी बढ़ाई जा सकती है। चिरौंजी के बीजों में वनवासियों की आर्थिक विपन्नता दूर करने की क्षमता है।

लेकिन मई के महीने में ही कच्चे अचार की तुड़ाई को लेकर लोगों में होड़ सी मच जाती है। सुबह से बूढ़े, बच्चे, महिलायें और जवान हर कोई जंगल जाकर ज्यादा से ज्यादा अचार की तुड़ाई कर उसका संग्रहण करने में जुट जाते हैं। आंख मूंदकर कच्चे अचार को तोडने की वृत्ति का मुख्य कारण यह है कि यदि अचार के पकने का इंतजार किया तो कोई दूसरा उसे तोड़ ले जायेगा। अचार के संग्रहण में एक - दूसरे से आगे निकलने की इसी होड़ के कारण हाल के वर्षों में अचार का अवैज्ञानिक विदोहन बढ़ा है। परिणामस्वरूप कच्चा अचार तोड़कर वनोपज संग्राहक अपना ही आर्थिक नुकसान कर रहे हैं।

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Saturday, May 14, 2022

विश्व प्रवासी पक्षी दिवस : पीटीआर के गिद्धों ने की रूस,चीन, पाकिस्तान और नेपाल की यात्रा

  • विश्व में बीते 30 सालों में पक्षियों की 21 प्रजातियां लुप्त हो गई हैं। वैश्विक स्तर पर पक्षियों की 192 प्रजातियों को अति संकटग्रस्त श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। 


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। पूरी दुनिया में आज विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाया जा रहा है। देशों की सीमाओं का बंधन मनुष्यों के लिए भले हो लेकिन परिंदे इससे मुक्त हैं। वे बिना पासपोर्ट वीजा के एक देश से दूसरे देश तक हजारों किलोमीटर का सफर तय कर लेते हैं। बसुधैव कुटुम्बकम का उद्घोष सही अर्थों में हजारों किमी. की दूरी तय करके एक देश से दूसरे देश तक पहुंचकर प्रवास करने वाले पक्षी करते हैं। 

विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाने का मकसद क्या है इस सम्बन्ध में पन्ना टाइगर रिज़र्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि विश्व प्रवासी पक्षी दिवस एक वार्षिक जागरूकता अभियान है जो प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों के संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। इसकी वैश्विक पहुंच है और यह प्रवासी पक्षियों के सामने आने वाले खतरों, उनके पारिस्थितिक महत्व और उनके संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने में मदद करने के लिए एक प्रभावी उपकरण है।


पन्ना टाइगर रिज़र्व के प्रवासी गिद्धों के साथ विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाने की अपील करते हुए क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिज़र्व ने प्रवासी गिद्धों के विचरण क्षेत्र व यात्रा मार्ग की जानकारी साझा की है जो हैरत में डालती है। आपने बताया कि यूरेशियन ग्रिफान गिद्ध EG_8661 पाकिस्तान गया और फिर मध्यप्रदेश आया। अब वह फिर पाकिस्तान चला गया है जिसकी लोकेशन मुल्तान के पास शोरकोट प्लांटेशन रिज़र्व में 12 मई 22 तक मिली है। पहला यूरेशियन ग्रिफान गिद्ध EG_8643 कुछ दिन पहले पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में भावलपुर जिले के लाल सुहानरा राष्ट्रीय उद्यान में था। पन्ना टाइगर रिज़र्व के प्रवासी गिद्धों ने रूस, चीन, पाकिस्तान व नेपाल की यात्रा की है।   

उल्लेखनीय है कि भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की मदद से मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में फरवरी 2022 में 25 गिद्धों को सौर ऊर्जा चलित जीपीएस टैग लगाए गए थे। टैग किए गए गिद्धों में 13 इंडियन वल्चर, 2 रेड हेडेड वल्चर, 8 हिमालयन ग्रिफिन एवं 2 यूरेशियन ग्रिफिन वल्चर हैं। गिद्धों को टैग करने का मुख्य उद्देश उनके आवागमन एवं रहवास के संबंध में सतत जानकारी एकत्र करना है। क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि टैगिंग के पश्चात जो जानकारी निरंतर प्राप्त हो रही है, वह बहुत ही रोचक एवं गिद्धों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण है।

संकटग्रस्त श्रेणी में 21 प्रजाति के पक्षी

विश्व में बीते 30 सालों में पक्षियों की 21 प्रजातियां लुप्त हो गई हैं। वैश्विक स्तर पर पक्षियों की 192 प्रजातियों को अति संकटग्रस्त श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। इनमें भारत की तीन प्रजातियां ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (सोन चिरैया), एशियाई हाथी और बंगाल फ्लोरिकन (बंगाल बस्टर्ड) शामिल है। बंगाल फ्लोरिकन को खरमोर नाम से भी जाता है। प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने परियोजना भी बनाई है।  दुनिया भर में हर साल कृत्रिम प्रकाश कम से कम 2 फीसदी बढ़ रहा है और यह कई पक्षी प्रजातियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए जाना जाता है। प्रकाश प्रदूषण प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है, जो रात में उडऩे पर भटकाव पैदा करता है, जिससे ये इमारतों से टकरा जाते हैं।

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Wednesday, May 11, 2022

कान में खुसी यह चोगी है, बीड़ी की परदादी

  

कान में चोगी खोसे प्रशन्न मुद्रा में बैठा बुजुर्ग।  फोटो-  गोपी कृष्ण सोनी

 ।। बाबूलाल दाहिया ।।

आदिवासी बुजुर्ग के कान में खुसी यह बीड़ी नहीं अपितु चोगी है। अगर इसे बीड़ी, सिगरेट की परदादी कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। कहते हैं तम्बाकू सबसे पहले बादशाह जहांगीर के समय में अंग्रेजों द्वारा लाई गई और उन्हें इंग्लैंड से लाये हुए एक उपहार के रूप में हुक्के सहित भेट की गई।

फिर तो इसका इतना प्रचार बढा कि गुलमेंहदी गाजर घास की तरह दूरस्त क्षेत्र तक में पहुच गई। बाद में सिगरेट ,सिगार ,बीड़ी आदि इसके अनेक उत्पाद  बने जिसके करोड़ों लोग आदी हो चुके हैं। आदिवासी क्षेत्र में यह चोगी में रखकर पी जाने लगी, जो यदा-कदा आज भी प्रचलन में है।

सिगरेट की तुलना में बीड़ी से ज्यादा नुकसान होता है। डॉक्टरों का कहना है कि बीड़ी और सिगरेट दोनों से ही कैंसर होता है। यह न केवल पीने वालों की उम्र कम करता है, बल्कि कैंसर की ओर धकेल देता है। बीड़ी सस्ती होने के कारण ग्रामीण इलाकों में ज्यादा पी जाती है। यही वजह है कि नॉर्थ-ईस्ट इलाके में देश में सबसे ज्यादा लंग्स, ब्रेन और नेक कैंसर के मरीज हैं।

आज 30त्न माउथ केंसर का जनक अगर गुटखा को माना जाय तो 30त्न भागीदारी बीड़ी सिगरेट और चोगी की भी होती है। बाकी 40त्न की हिस्सेदारी अब रसायनिक खाद, कीटनाशक, नीदा नाशक की हो गई है। चोगी आम के पत्ते, सरई के पत्ते एवं तेंदू चार आदि अन्य कई तरह के पत्तो से बन जाती है।

लेकिन बहुत पहले सुना गया एक आदिवासी गीत अभी तक जेहन में आ जाता है जिसमें नायिका अपने नायक की खूबसूरती की जो कल्पना करती है, उसमें सिर में घुघराले बाल तो हैं ही पर कान में खुसी हुई एक अदद चोगी भी है।

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Tuesday, May 10, 2022

उत्तरप्रदेश के राज्य पक्षी सारस को भा रहा केन नदी का किनारा

  •  पन्ना टाइगर रिजर्व में दिख रहा सारस का जोड़ा
  •  उड़ान भरने वाला धरती का यह सबसे बड़ा पक्षी


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। उड़ान भरने वाला धरती का सबसे बड़ा पक्षी सारस पन्ना टाइगर रिजर्व से होकर प्रवाहित होने वाली केन नदी के किनारे नजर आ रहे हैं। सारस पक्षी का एक जोड़ा पिछले कई दिनों से इस इलाके में डेरा डाले हुए है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि केन किनारे की आबोहवा व जलवायु इस विशालकाय पक्षी को भा रही है। मालुम हो कि सारस को उ.प्र. के राज्य पक्षी का दर्जा प्राप्त है।

उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिज़र्व वनराज व जंगल का शहजादा कहे जाने वाले तेंदुओं का घर तो है ही, यहाँ पर रंग बिरंगे 247 प्रजातियों के पक्षी भी पाए जाते हैं। पर्यावरण के सबसे बेहतरीन सफाईकर्मी कहे जाने वाले गिद्धों का अनोखा संसार भी यहाँ पर बसा हुआ है। यहां पर गिद्धों की 7 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 4 प्रजातियां पन्ना टाइगर रिजर्व की निवासी प्रजातियां हैं। जबकि शेष 3 प्रजातियां प्रवासी हैं। पन्ना टाइगर रिज़र्व व इसके आसपास पाए जाने वाले पक्षियों के अदभुत संसार में विशालकाय पक्षी सारस जो जोड़े में रहता है वह भी शामिल है। 

सारस पक्षी के जोड़े को दाम्पत्य प्रेम का प्रतीत माना जाता है। सारस पक्षी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि अपने जीवन काल में यह सिर्फ एक बार जोड़ा बनाता है और जोड़ा बनाने के बाद जीवन भर साथ रहता है। यदि किसी कारण से एक साथी मर या बिछड़ जाता है तो दूसरा भी उसके वियोग में अपने प्रांण त्याग देता है। सारस को किसानों का मित्र पक्षी भी कहा जाता है, क्यों कि यह फसलों में लगने वाले कीड़ों को खाकर फसलों को नष्ट होने से बचाता है। दलदली व नमी वाले स्थान इसे प्रिय हैं, इसकी आवाज काफी दूर तक सुनाई देती है। जानकारों के मुताबिक विश्व में सबसे अधिक सारस पक्षी भारत में ही पाये जाते हैं।

पन्ना टाइगर रिज़र्व के ऑफिसियल ट्वीटर हैंडल से ट्वीट कर यह बताया गया है कि केन नदी का किनारा सारस पक्षी को खूब रास आ रहा है। सारस क्रेन दुनिया का सबसे ऊँचा पक्षी है जो उड़ सकता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। लाल सिर और ऊपरी गर्दन को छोड़कर इसका पूरा शरीर ग्रे रंग का है। यह उनके सुंदर क्षेत्रीय और प्रेमालाप प्रदर्शनों के लिए प्रसिद्ध है जिसमें जोरदार तुरही कॉल, छलांग और नृत्य जैसी गतिविधियां शामिल हैं। इसे IUCN रेड लिस्ट में वल्नरेबल के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पन्ना टाइगर रिजर्व के किनारे के क्षेत्रो में सारस क्रेन देखी जा सकती है।


सारस पक्षियों में मनुष्य की ही तरह प्रेम भाव होता है, ये ज्यादातर दलदली भूमि, बाढ़ वाले स्थान, तालाब, झील और खेतों में देखे जा सकते हैं। अपना घोसला ये छिछले पानी के आसपास ही बनाना पसंद करते हैं। जहां हरे- भरे खेत, पेड़ - पौधे, झाडिय़ां तथा घास हो। नर और मादा देखने में एक जैसे ही लगते हैं, दोनों में बहुत ही कम अन्तर पाया जाता है। लेकिन जब दोनों एक साथ हों तो छोटे शरीर के कारण मादा सारस को आसानी से पहचाना जा सकता है। मादा सारस एक बार में दो से तीन अण्डे देती है। अण्डों से बच्चों को बाहर निकलने में 25 से 30 दिन का समय लगता है। सारस पक्षी का औसत वजन 7.3 किग्रा. तथा लम्बाई 173 सेमी. होती है। पूरे विश्व में सारस पक्षी की कुल 8 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से चार प्रजातियां भारत में मिलती हैं। अब इन पक्षियों की संख्या तेजी से घट रही है, जिससे पक्षी प्रेमी व पर्यावरण के हिमायती काफी चिन्तित हैं।

फसल उत्पादन के तरीके में हुए बदलाव यानी परम्परागत अनाज के बदले नगदी फसल उगाने के कारण सारस के भरण पोषण पर भी असर पड़ा है। औद्योगीकरण और आधुनिक कृषि से सारस के आवास को खतरा है। पन्ना टाइगर रिज़र्व के आसपास केन नदी के किनारे सारस के जोड़े की मौजूदगी से इन पक्षियों की ओर पर्यटकों का भी आकर्षण बढ़ रहा है। पन्ना टाइगर रिजर्व में आने वाले पर्यटक सारस पक्षी के जोडे को भी बड़े कौतूहल से निहारते हैं और उनकी छवि को अपने कैमरे में कैद करते हैं।

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Monday, May 9, 2022

खतरे में जंगल के राजकुमार, सड़क हादसे के हो रहे शिकार

  • टाइगर स्टेट सहित लेपर्ड स्टेट का दर्जा हासिल कर चुके मध्यप्रदेश में जंगल का राजकुमार कहा जाने वाला तेंदुआ सुरक्षित नहीं है। यह खूबसूरत वन्य प्राणी जहाँ शातिर शिकारियों के निशाने पर रहता है, वहीं सड़क हादसे में भी अपनी जान गवां रहा है। ताजा मामला पन्ना जिले के उत्तर वन मण्डल अंतर्गत धरमपुर रेंज का है जहाँ एक युवा नर तेंदुआ सोमवार की सुबह सड़क हादसे का शिकार हुआ है। 

जंगल का शहजादा जो सड़क हादसे का शिकार हुआ। 
।  अरुण सिंह । 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में उत्तर वन मण्डल के धरमपुर रेंज अंतर्गत आने वाले किशनपुर गांव के निकट पन्ना-बाँदा मार्ग पर आज तड़के हुए सड़क हादसे में तेंदुए की दर्दनाक मौत हो गई। हादसे का शिकार हुए नर तेंदुए की उम्र 3-4 वर्ष के लगभग बताई जा रही है। सुबह घूमने जाने वाले लोगों से घटना की जानकारी मिलने पर वन अधिकारी मौके पर पहुंचे तथा मामले की जांच में जुटे हैं। 

उत्तर वन मण्डल पन्ना के डीएफओ गौरव शर्मा ने बताया कि युवा नर तेंदुए की मौत सड़क हादसे में हुई है। वन्य प्राणी चिकित्सक द्वारा पोस्ट मार्टम किया जायेगा तभी स्थिति स्पष्ट होगी। आपने बताया कि सड़क मार्ग पर ताजा खून व वाहन के पहियों के निशान भी पाए गये हैं जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि घटना सुबह 4 से 6 बजे के बीच की है। वनपरिक्षेत्राधिकारी नरेश काकोड़िया वन अमले के साथ मौके पर हैं, तेंदुए को टक्कर मारने वाले अज्ञात वाहन का अभी तक कोई सुराग नहीं लगा है। डीएफओ श्री शर्मा ने बताया कि टाइगर स्क्वाड की टीम भी तहकीकात में जुटी है। 

घटनास्थल पर मौजूद वनकर्मी जहाँ तेंदुआ असमय काल कवलित हुआ। 

उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले में बाघों के साथ-साथ तेंदुओं की भी अच्छी खासी संख्या है। पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघ व तेंदुओं की संख्या बढ़ने के साथ ही वे अपने लिए इलाके की तलाश में कोर क्षेत्र से बाहर निकल रहे हैं। बफर व टेरिटोरियल का जंगल कोर की तरह सुरक्षित न होने के कारण ये वन्य प्राणी जहाँ शिकारियों के निशाने पर रहते हैं वहीँ हादसे का भी शिकार हो जाते हैं। पन्ना-बाँदा, पन्ना-छतरपुर व पन्ना-कटनी मार्ग में आये दिन वन्य प्राणी हादसे का शिकार होते हैं। नवम्बर 2020 में ठीक दीपावली के दिन पन्ना-कटनी सड़क मार्ग पर अकोला बफर वृत्त के बीट अमझिरिया में तेज रफ्तार वाहन की टक्कर से एक वर्षीय बाघिन की घटनास्थल पर ही दर्दनाक मौत हुई थी,जिसके आरोपियों का आज तक पता नहीं लगा।

बाघों के साथ तेंदुओं की संख्या भी मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 

मध्य प्रदेश सिर्फ टाइगर स्टेट ही नहीं अपितु लेपर्ड स्टेट ऑफ इंडिया भी बन गया है। जंगल के राजा बाघ के साथ-साथ जंगल के राजकुमार कहे जाने वाले तेंदुओं की संख्या भी पूरे देश में सबसे अधिक मध्य प्रदेश में पाई गई है। मध्य प्रदेश में 3421 तेंदुओं का अनुमान लगाया गया है, जो देश में सर्वाधिक है।मध्य प्रदेश को यह तमगा कर्नाटक और महाराष्ट्र को पछाड़कर मिला है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने वर्ष 2018 में तेंदुए की स्थिति रिपोर्ट जारी की थी। इसके मुताबिक, मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 3,421, कर्नाटक में 1783 और महाराष्ट्र में 1690 तेंदुए पाए गए थे।



मालुम हो कि मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में जहाँ बाघों की संख्या 70 के पार है, वहीं जंगल के राजकुमार तेंदुओं की भी अच्छी खासी तादाद है। टाइगर रिज़र्व के अलावा जिले के उत्तर व दक्षिण वन मंडल क्षेत्र में भी तेंदुओं की मौजूदगी पाई गई है। जाहिर है कि मध्यप्रदेश को तेंदुआ स्टेट का दर्जा दिलाने में पन्ना जिले की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

टाइगर रिज़र्व के बाहर का जंगल तेंदुओं के लिए सुरक्षित नहीं 

जंगल का शहजादा कहा जाने वाला तेंदुआ पन्ना टाइगर रिज़र्व के कोर क्षेत्र से बाहर बफर व टेरिटोरियल के जंगल में सुरक्षित नहीं है। यहां स्थित पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र को यदि अलग कर दें तो बफर क्षेत्र व उत्तर तथा दक्षिण वन मंडल का जंगल तेंदुओं के लिए अनुकूल और सुरक्षित नहीं बचा है। तकरीबन 50 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौडऩे की क्षमता रखने वाला यह खूबसूरत वन्य जीव शातिर शिकारियों के निशाने पर रहता है। बीते दो वर्ष के दौरान अकेले विश्रामगंज व धर्मपुर वन परिक्षेत्र में शातिर शिकारियों ने पांच तेंदुओं को अपना निशाना बनाया है। यह तो ज्ञात संख्या है, इनके अलावा तेंदुओं  के मारे जाने की अज्ञात संख्या कितनी होगी, यह अनुमान लगा पाना कठिन है। पन्ना शहर से लगे उत्तर वन मंडल के विश्रामगंज वन परिक्षेत्र तथा अजयगढ़ से लगे धरमपुर वन परिक्षेत्र में जिस तरह से बड़े पैमाने पर अवैध उत्खनन और जंगल की कटाई हो रही है, उससे इन वन क्षेत्रों में में वन्यजीवों के रहने लायक स्थान का तेजी से क्षरण हुआ है।

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Saturday, May 7, 2022

पन्ना टाइगर रिज़र्व के हांथी ने महावत पर हमला कर किया घायल

  • जिला चिकित्सालय पन्ना में घायल महावत का चल रहा इलाज 
  • पसली में फ्रैक्चर लेकिन चिकित्सकों ने बताया खतरे से बाहर 

हांथी के हमले में घायल महावत जिला चिकित्सालय में इलाज कराते हुए। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में एक हांथी ने शुक्रवार की शाम महावत पर हमला कर उसे घायल कर दिया है। हांथी के हमले में घायल हुए महावत को आनन-फानन में पन्ना टाइगर रिजर्व की एंबुलेंस से जिला चिकित्सालय पन्ना में भर्ती कराया गया,जहाँ उसका इलाज चल रहा है। महावत की हालत खतरे से बाहर बताई गई है।  

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिज़र्व उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि पीपरटोला हांथी कैम्प में 6 मई की शाम को प्रहलाद नाम के हांथी ने अचानक महावत मन्नू गोंड के ऊपर हमला कर दिया था, जिससे महावत की पसलियों में चोट आई है। चिकित्सकों ने पसली में फ्रैक्चर बताया है, महावत का सीटी स्केन भी कराया जा रहा है ताकि यदि कोई अंदरूनी चोट है तो उसका पता चल सके। श्री शर्मा ने बताया कि आज सुबह वे और उपसंचालक जिला अस्पताल जाकर घायल महावत से मिले हैं तथा चिकित्सकों से भी चर्चा की है। 

महावत हांथियों से इस तरह करते हैं जंगल व वन्य प्राणियों की निगरानी। 

मालुम हो कि पन्ना टाइगर रिज़र्व में हांथियों का पूरा कुनबा है जिसमें छोटे बड़े 14 हांथी हैं। जिनमें ढाई-तीन वर्ष के नन्हे बच्चों सहित दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला शामिल है। जिस हांथी ने महावत के ऊपर हमला कर घायल किया है उसकी उम्र लगभग 6 वर्ष है। इसका जन्म पन्ना टाइगर रिज़र्व में ही हुआ था। इस हांथी को दूसरे प्रशिक्षित हांथियों के साथ रखकर जंगल की रखवाली व वन्य प्राणियों की सुरक्षा के कार्य का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कम उम्र के इस हांथी ने महावत मन्नू गोंड जो कि हांथी की देखभाल भी करता है अचानक उस हमला क्यों बोला, यह अभी रहस्य है। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा का कहना है जानवरों और आदमी के बीच के रिश्ते को समझ पाना बेहद मुश्किल है। बेहद प्रतिकूल और कठिन परिस्थतियों में जंगल की रखवाली व वन्य प्राणियों की सुरक्षा का कार्य चुनौतियों से भरा होता है जिसका मुकाबला मैदानी वनकर्मी करते हैं। 

पूर्व में भी यह हांथी कर चुका है हमला 

शरारती स्वभाव वाला कम उम्र का यह हांथी इसके पूर्व भी एक अन्य महावत पर हमला कर चुका है। सितम्बर 2019 में नर हांथी प्रहलाद जब उसकी उम्र चार साल के लगभग थी उस समय भी इसने महावत विष्णु के ऊपर अचानक हमला कर घायल किया था। इस गुस्साये हांथी ने उस समय महावत को अपनी सूंड़ में लपेट कर न सिर्फ पटक दिया था, अपितु सूंड़ से उसको दबाने का प्रयास भी किया था। गनीमत यह थी कि तब वहां मौजूद दूसरे महावतों ने तत्काल हांथी को रोका और घायल हो चुके महावत को वहां से पृथक किया। विचारणीय बात यह है कि कम उम्र का यह हांथी आखिर क्यों और किन परिस्थितियों में अचानक भड़क उठता है, इस बात की गहराई से छानबीन होनी चाहिये ताकि ऐसे अप्रिय हालात फिर कभी निर्मित न हों। 

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Wednesday, May 4, 2022

पन्ना की रत्नगर्भा धरती ने गरीब किसान को किया मालामाल

  • कृष्णा कल्याणपुर की पटी हीरा खदान में मिला 11.88 कैरेट वजन का हीरा
  • हीरा मिलने की खबर फैलने के बाद से किसान के घर पर उत्सव जैसा माहौल 

खुशनशीब किसान प्रताप सिंह यादव हीरा दिखाते हुए।  

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की रत्नगर्भा धरती ने आर्थिक तंगी से गुजर रहे एक गरीब किसान को आज मालामाल कर दिया है। हीरा की खदानों के लिए प्रसिद्ध पन्ना जिले की उथली खदान से इस किसान को 11.88  कैरेट वजन का बेशकीमती हीरा मिला है। यह नायाब हीरा पन्ना जिले के ग्राम झरकुआ निवासी प्रताप सिंह यादव को कृष्णा कल्याणपुर की पटी हीरा खदान में मिला है। 

हीरा मिलने के साथ ही आर्थिक तंगी से परेशान रहने वाला किसान  मालामाल हो गया है। इस नायाब हीरे की अनुमानित कीमत 50 से 60 लाख रुपये आंकी जा रही है। हीरा धारक प्रताप सिंह यादव ने हीरा मिलने पर बुद्धवार को नियमानुसार कलेक्ट्रेट स्थित हीरा कार्यालय में आकर जमा कर दिया है। इस हीरे को आगामी होने वाली नीलामी में विक्रय के लिए रखा जायेगा।

किसान प्रताप सिंह यादव को मिले हीरे का वैलुएशन करते हुए हीरा पारखी अनुपम सिंह। 

हीरा कार्यालय पन्ना के हीरा पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि ग्राम झरकुआ निवासी किसान प्रताप सिंह यादव 58 वर्ष को 11.88  कैरेट वजन का बेशकीमती हीरा मिला है, जो जेम क्वालिटी का है। हीरा पारखी ने बताया कि जमा हुए इस हीरे को आगामी नीलामी में बिक्री के लिए रखा जायेगा। बिक्री से प्राप्त राशि में से शासन की रायल्टी काटने के बाद शेष राशि हीरा धारक को प्रदान की जाएगी। हीरे की अनुमानित कीमत पूंछे जाने पर हीरा पारखी ने बताया कि हीरा जेम क्वालिटी का है जिसकी अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद है, लेकिन अभी उसकी कीमत नहीं बताई जा सकती। जानकर इस हीरे की अनुमानित कीमत 50 से 60 लाख रुपये आंक रहे हैं।

जीवन में पहली बार मिला हीरा, कोई धंधा करेंगे

हीरा धारक प्रताप सिंह यादव ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए बताया कि वे पिछले 10-12 साल से हीरा खदान में अपनी किस्मत आजंमा रहे थे। आख़िरकार भगवान जुगल किशोर जी ने मेरी फरियाद सुन ली और गरीबी दूर कर दी। श्री यादव ने बताया कि उसके दो लड़के व एक लड़की है, बच्चों को जिंदगी में कष्ट न झेलना पड़े इसलिए कोई धंधा शुरू करूँगा। आपने बताया कि उसके पास सिर्फ एक एकड़ खेती की जमीन है जिससे बमुश्किल गुजारा हो पाता था। लेकिन अब सारी परेशानी दूर हो जायेगी।

गौरतलब है कि पलक झपकते ही रंक से राजा बनने का चमत्कार यदि कहीं घटित होता है तो वह रत्नगर्भा पन्ना जिले की धरती है। इस धरती की यह खूबी है कि अचानक ही यहां पर कब किसकी किस्मत चमक जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसा ही कुछ 4 मई बुद्धवार को झरकुआ गाँव के प्रताप सिंह यादव की जिन्दगी में घटित हुआ। किसान प्रताप सिंह यादव को बहुमूल्य हीरा मिलने की खबर फैलने के बाद से उनके घर पर उत्सव जैसा माहौल है, हर कोई उन्हें बधाई दे रहा है तथा परिचितों और रिश्तेदारों का आना-जाना लगा है।

वीडियो - हीरा मिलने पर क्या कहा किसान प्रताप सिंह यादव ने, देखें 


 

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ध्वनि प्रदूषण से पशु पक्षियों की जिंदगी में भी पड़ रहा खलल

  • विभिन्न प्रजाति के पक्षियों की आबादी घटने का खतरा उत्पन्न
  • बढ़ते शोर से इंसानों, पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों को भी नुकसान   



।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बढ़ते ध्वनि प्रदूषण व शोरगुल के माहौल से परेशानी सिर्फ मनुष्यों को ही नहीं होती बल्कि परिंदों और पेड़-पौधों को भी असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण चिडिय़ों में संवाद करने की क्षमता पर जहाँ असर पड़ा है,वहीं इसके चलते पूरा ईको सिस्टम प्रभावित हो रहा है। बढ़ते  शोर से पशुओं का व्यवहार बदला रहा है। शोरगुल की वजह से नर पक्षी की पुकार मादा तक नहीं पहुंच पाती, ऐसे में विभिन्न प्रजाति के रंग विरंगे पंछियों की आबादी घटने का खतरा उत्पन्न हो गया है। 

घने जंगलों और टाइगर रिज़र्व के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश में पन्ना शहर के आसपास स्थित वनाच्छादित पहाडिय़ों में कुछ वर्षों पूर्व तक सैकड़ों प्रजाति के पक्षियों के दर्शन सहजता से हो जाते थे। सुबह के समय पक्षियों के कलरव व सुरीले गीतों को सुन मन प्रफुल्लित हो जाता था, लेकिन वाहनों के प्रेसर हार्न, जंगलों की बेतहासा कटाई व मानव दखलंदाजी बढने से पक्षियों का प्राकृतिक रहवास तेजी से नष्ट हो रहा है जिससे उनके दर्शन दुर्लभ हो गये हैं।

उल्लेखनीय है कि बढ़ते ध्वनि प्रदूषण से पक्षियों का जीवन बेहद प्रभावित हो रहा है। उनमें प्रजनन की शक्ति घट रही है और साथ ही उनके व्यवहार में भी परिवर्तन आ रहा है। एक अध्ययन रिपोर्ट में यह चौकाने वाली जानकारी दी गई है। यह अध्ययन जर्मनी के मैक्स प्लैँक इंस्टीट्यूट फॉर ऑर्निथोलॉजी के शोधार्थियों ने किया है। उन्होंने जेबरा फिंच नाम के पक्षी पर अध्ययन किया और पाया कि ट्रैफिक के शोर से उनके रक्त में सामान्य ग्लकोकार्टिकोइड प्रोफाइल में कमी हुई और पक्षियों के बच्चों का आकार भी सामान्य चूजों से छोटा था। अध्ययन में दावा किया गया है कि ट्रैफिक के शोर की वजह से पक्षियों के गाने-चहचहाने पर भी फर्क पड़ता है।


यह अध्ययन कंजर्वेशन फिजियोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन में पक्षियों के दो समूह को शामिल किया गया। इनमें एक समूह वह था, जो जर्मनी के राज्य बावरिया की राजधानी म्युनिख के एक शोर भरे इलाके में रहता है, जबकि दूसरा समूह शांत इलाके में रहता है। यह अध्ययन पक्षियों के प्रजनन काल के दौरान किया गया। जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि पहली प्रजनन अवधि के अंत के कुछ समय बाद दोनों समूहों के समान जोड़ो के लिए शोर की स्थिति बदल दी गई। शोधकर्ताओं ने दोनों परिस्थितियों में प्रजनन अवधि के दौरान, पहले और बाद में हार्मोन में तनाव के स्तर को दर्ज किया। इसके अलावा, उन्होंने (इम्यून फंक्शन) प्रतिरक्षा कार्य और प्रजनन की सफलता के साथ-साथ चूजों की वृद्धि दर को भी देखा।

उन्होंने पाया कि जब वे शांत वातावरण में प्रजनन कर रहे थे, तब पक्षियों के खून में कॉर्टिकोस्टेरॉन का स्तर ट्रैफिक के शोर में प्रजनन कर रहे पक्षियों की तुलना में कम था। यह आश्चर्यजनक था क्योंकि तनाव अक्सर कॉर्टिकोस्टेरॉन के उच्च स्तर का परिणाम होता है, एक हार्मोन जो तनावपूर्ण अनुभवों के दौरान चयापचय क्रिया में शामिल होता है। प्रमुख अध्ययनकर्ता सू एनी जोलिंगर कहते हैं, शांत वातावरण में प्रजनन करने वाले पक्षियों में, प्रजनन के पूरे मौसम में उनका आधारभूत कॉर्टिकोस्टेरॉन कम रहता है। इससे पता चलता है कि जिन पक्षियों को शोर में रहने की आदत नहीं थी उनके प्रजनन चक्र के दौरान उनके हार्मोन का स्तर उपर-नीचे होता है अर्थात असामान्य पाया गया था। 

वहीं इसके विपरीत जो शांत वातावरण में इस प्रक्रिया से गुजरते हैं उनके हार्मोन का स्तर सामान्य पाया गया था। जिन चूजों के माता-पिता ट्रैफिक के शोर के संपर्क में थे, उनके चूजे शांत वातावरण में रहने वाले माता-पिता की तुलना में छोटे थे।  हालांकि, एक बार शोरगुल की स्थिति में रह रहे चूजों के बड़े होकर घोंसला छोड़ देने के पशचात, वे फिर शांत जगहों पर घोंसले बनाने में कामयाब रहते हैं। हालांकि, शोधकर्ता ने संतानों पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को नहीं लिया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले एक अध्ययन से पता चला है कि ट्रैफ़िक के शोर के संपर्क से युवा जेबरा फ़िंच पक्षी में टेलोमेयर क्षति में तेजी आई है, जिसका अर्थ है कि इन पक्षियों का जीवनकाल छोटा होने की आशंका है। हालांकि घोंसले में चूजों की संख्या पर यातायात के शोर का कोई प्रभाव नहीं था।

पक्षियों के साथ अध्ययन आम तौर पर यातायात से जुड़े अन्य कारकों, जैसे कि रासायनिक प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण और शहरी क्षेत्रों में पाए जाने वाले अन्य भिन्नताओं को शामिल करने के लिए किया गया था, उदाहरण के लिए पक्षी समुदायों की संख्या और संरचना, निवास स्थान की संरचना, खाद्य प्रकार और उसकी उपलब्धता आदि थे। शोध समूह के मुख्य अध्ययनकर्ता हेनरिक ब्रम कहते हैं, हमारे आंकड़े बताते है कि शहरी परिवेश की अन्य सभी गड़बडय़िों के बिना यातायात (ट्रैफिक) का शोर, पक्षियों के शरीर क्रिया विज्ञान को बदल देता है और उनके विकास पर प्रभाव डालता है। इसका मतलब यह है कि पक्षियों की प्रजातियां जो पहली नजर में शहरों में अच्छी तरह से मुकाबला करती दिखती हैं, ट्रैफ़िक के शोर से प्रभावित हो सकती हैं।

दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक शोर का असर सिर्फ मनुष्यों पर नहीं हो रहा है, बल्कि जानवर भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। अध्ययन में पाया गया है कि शोर की वजह से सभी जानवरों की प्रजातियों के व्यवहार में बदलाव आ रहे हैं। ध्वनि प्रदूषण की वजह से सबसे ज्यादा समस्या पक्षियों को हो रही है। पक्षी ऊँची आवाज में गा रहे हैं ताकि अपने साथियों से बातचीत कर सकें। 

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Sunday, May 1, 2022

विश्व मजदूर दिवस पर विल्हा गाँव के किसानों की अनूठी पहल

  •  गाँव के लोगों ने एकजुट होकर जल संरक्षण की ली सपथ 
  •  श्रमदान करके तलैया के गहरीकरण का कार्य किया शुरू

विश्व मजदूर दिवस पर जल संरक्षण का कार्य कर गाँव को पानीदार बनाने की सपथ लेते ग्रामवासी। 

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। जैविक खेती के लिए चर्चित मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का विल्हा गाँव सभी का  ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। विश्व मजदूर दिवस पर आज रविवार को गाँव के लोगों ने एकजुट होकर अनूठी पहल की है। भीषण तपिश भरी गर्मी में जब हर तरफ पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है, ऐसे समय पर ग्रामीणों ने संगठित होकर जल संरक्षण की न सिर्फ सपथ ली है बल्कि गाँव की तलैया के गहरीकरण का कार्य भी श्रमदान करके शुरू कर दिया है। विल्हा गांव के लोगों की इस अभिनव पहल की हर कोई सराहना कर रहा है। 

उल्लेखनीय है कि विल्हा गांव रक्सेहा पंचायत के अन्तर्गत आता है। जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर हरदुआ एवं विलखुरा मार्ग से जुडे पहाड़ की तलहटी में बसा है। इस गांव में 152 किसान रहते हैं जो रासायनिक खेती के दुष्परिणामों को देखते हुए अब जैविक खेती को अपनाने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। स्वयं सेवी संस्था समर्थन के सहयोग व मार्गदर्शन से गांव के किसान जैविक खेती अपनाने के साथ-साथ जल संरक्षण के कार्य में भी खासी रूचि ले रहे हैं। आज विश्व मजदूर दिवस के अवसर पर ग्रामवासियों ने श्रमदान कर जलसंरक्षण की सपथ ली। श्रमदान करने में गांव के बड़े बुजुर्गों के साथ महिलाओं ने भी उत्साह के साथ हिस्सा लिया। 

विल्हा गाँव की तलैया में ग्रामवासी श्रमदान करते हुए। 

ग्रामीणो ने बताया कि हमारा गांव पानीदार था, लेकिन आज जल संकट से जूझ रहा है। लगभग 30 वर्ष पहले सुखरानी दास ने सरपंच रहते जलसंरक्षण के तहत तलैया का निमार्ण कराया था। इस तलैया का जीर्णोद्धार और गहरीकरण अब जरूरी था। समर्थन संस्था ने इस गांव में क्लेड परियोजना से पानी संरक्षण के कार्य एवं किसानों को लगातार पानी बचाने के लिये जागरूक किया। इसी पहल का नतीजा है कि बड़े-बड़े तालाब जब जल विहीन हो रहे हैं उस समय विल्हा गांव की तलैया में आज 1 मई को भी पानी देखने को मिल रहा है। इस तलैया के पानी से पशु पक्षी एवं जगली जानवर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। समर्थन संस्था के रिजनल क्वार्डिनेटर ज्ञानेन्द्र तिवारी बताते हैं कि तलैया गांव के उपरी हिस्से एवं वन विभाग की सीमा से लगी होने की वजह से पंचायत को कार्य कराने में समस्या है। लेकिन जनहित में यदि वन विभाग ही कार्य को करा दे तो इसका फायदा गांव के किसानो व ग्रामवासियों को मिलेगा। 

गांव के लोग पानी का नहीं करते दुरूपयोग 


गाँव की तलैया जिसमें थोड़ा पानी आज भी है, मवेशी यहीं बुझाते हैं अपनी प्यास।  

विल्हा गांव में तीन वर्ष पहले ग्राम सभा में यह निर्णय लिया गया था कि पानी का उपयोग कोई मशीन लगाकर नहीं करेगा, इस निर्णय को गांव के लोग आज भी मान रहे हैं। समाजसेवी दीपकदास सहित सभी चाहते हैं कि गांव पानीदार बने और किसानो को भरपूर खेती का पानी मिले। विश्व मजदूर दिवस पर आज लगभग 70 से 80 किसानों ने तलैया में पूजा अर्चना कर श्रमदान किया एवं तलैया गहरीकरण की सपथ ली। इस कार्य हेतु आज ही 28 परिवार ने 14050 रुपये एकत्र किया, अनुमान है कि 50 हजार से ज्यादा का जनसहयोग मिलगा। उपस्थिति किसानों में सुदामा पटेल, राजावाई पटेल, मंजूरानी,पंचम सिंह, छोटे ददी, रामस्वारूप सोनी, गीता पटेल, गुडडी   बाई, विनीता, मलखान, चिरोजीलाल पटेल, छोटेलाल पटेल, रामकृपाल पटेल सहित बड़ी संख्या में किसान भाई मौजूद रहे। समर्थन के ब्लाक समन्वयक प्रदीप पिड़ीहा, शिवमन सोनी एवं ज्ञानेन्द्र तिवारी मौजूद रहे। किसानों ने कहा कि हम सब एकजुट होकर पानी रोकने के कार्य करके पानी भंडारण की क्षमता बढ़ायेंगे।

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